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प्रद्युम्नकुमार-चुपई तेहनइ राणी छइ कणयमाल आणी आपिउ तेहनइ बाल
धर्मपुत्र करिथापिउ तेह बात कही ते स्वामी एह (प्रद्युम्नना पूर्ववृत्तान्त विष नारदनो प्रश्न )
श्लोक
कथं वैरं धूमकेतोस्तेनाभूत्यूर्वजन्मनि ।
भूयोऽपि नारदेनैवं पृष्टः स्वामीत्यवोचत ॥२४ (प्रधुम्नकुमारना पूर्वभवो १. अग्निभूति - घायुभूतिनो भव )
चुपई जूंबूद्वीप भर(त)खेत्रह ठाम मगधदेसि मोटं सालिगाम मनोरम नामि वन अभिराम वसइ वासि विप्रह सोमदेव नाम १७० अगनिज्वाल तेहनी स्त्री अछइ तेणइ पुत्र बिई जाया पछइ। अगनिभूति-वायभूति कुमार विद्यावेद पढ्या ते सार १७१ लोकमांहि प्रसिद्ध हुया भोग भोगवइ अति घणा2 जूया इणि अवसरि पहुता वनि जती एहवी विप्र सुणी वीनती १७२ तिहां आव्या वाद करवा भणी वात्त सिउं जाणु शास्त्रह तणी
जाणहु तु कहु अम्ह प्रतिइं पूर्वभवि अम्हि कुण ह्या उभिई १७३ (२. शियाळयानो भव)
तव चेलु बोलिउ ततकाल तुम्हे पूरवभवि हूया सयाल आ चांबड3 खाधउ घणु हलि बांधिलं जे हाली तणुं १७४ अति आरतइ बेहु मूया विप्रतणइ घरि पुत्र तुझे ह्या न मानु तउ कहुं अहिनाण पूछउ हाली मूकउ जाण १७५ मूकी जइ पूछि4 ते वली मूकु कहइ मइ सांभली जातीसमरण उपनमोहि साचु कहिउं इणि न्यानी तो हि १७६
1. पढय
2. पण
3. चाबड
4. मछि
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