________________
२२
प्रद्युम्नकुमार-चुप
वा. कमलशेखर ए ज वर्णन प्राचीन गुजराती भाषामां आवे छे :
भइ नारद नारद निसुणि परदवण,
ए कहीह द्वारिकापुरी, वसई पासमांहि मायर,
जनक तुम्ह हूयु इहां, निरमल फटिक मणि जडिउ सरोवर कूया वावि वलि वन पवर, घणा धवलहरे आवास, बहु पयार जिणवरभवण, पोलि गढ चिहुपासि ॥ ३६२
आम आवा वर्णनोना पण थोकबंध उदाहरणों आपी शकाय, ज्यां वा. कमलशेखरे कवि सुधारुनां ज वर्णनोने सीधेसीधा पोतानी कृतिमां भाषान्तर करी उतारी लीधां छे. आ उपरांत अनेक संवादो, धर्मोपदेश, के इतर तत्त्वोना उदाहरणो आपी शकाय, ज्यां वा. कमलशेखरे, कवि सधारुमांथी ज सीधे सीधा वाक्यखंडोने लईने पोतानी भाषामां निरूपी लीधां छे. नीचे, कवि सधारुनी कृति "प्रद्युम्नचरित" मांथी अने वा कमलशेखर कृत “प्रद्युम्नकुमार चुपई” मांथी, केटलीक पंक्तिओ सरखामणी करवा माटे रजू करी छे, ज्यां वा. कमलशेखरे ते ते पंक्तिओने कां तो सीधेसीधी अक्षरशः ज पोतानी कृतिमां टांकी दीधी छे, कां तो ते पंक्तिनुं प्राचीन गुजरातीमां भाषान्तर करीने ए ज रीते मूकी दीघी छे.
प्रद्युम्नचरित
सायर माहि द्वारिकापुरी,
धणय जक्ष जो रचि करि घरी १६
नारदु आवत जवु देखियउ, नमस्कार सुरसुंदरि कीयउ ४३ नंदणवण की करहु सहेट, तिहिठा आणि कराउ भेट ४९ सतिभामा हरि दीठउ नयणा, कवण दोस स्वामी परहरी ९६ कणयमाल तर विसमउ धरइ, सिर कूटइ कुकुवारउ करइ । उर थणहर मह फारह सोइ केस छोडी विहलंघन होइ २५० जाइ जुही पाडल कचनारु ववलसिरि वेलु तिहि सारु । कुंजउ महकइ अरु कणवीरु, राचंप केवरउ गहीरु - ३४५ छपन कोटि मुखमंडल सार यह कहिए वलिभद्र कुवारु ।
Jain Education International
प्रद्युम्नकुमार चुप
सायरमझि द्वारिकापुर, रचीय धणवइ दीध-९
नारद आवत जव देखीयु, नमस्कार तव सुंदरि कीयु - ३८ नंदनवनमाहि करू सहेट, तिहां आणी करावु भेट - ४४ सतिभामा हरि दीठs नयणि, कवण दोसि स्वामी परहरी - ८७ कनकमाल ते विसमुं घरइ, कूटइ सिरनइ कूकू करइ, उर-थणहर मुह फाडइ तेह, केस छोडि मोकला मेल्हेय. ३०७ जाइ जूही पाडल अपार, विउलसिरीनइ बेलि विचार- ३८८ कूजउ मरुउ नइ कणबीर, रायचांपु केवडउ गंभीर छपन कोड मुखमंडणसार, ए कहीइ बलिभद्रकुमार- ४७९
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org