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________________ भूमिका ४९ केरी. आ साते चाबीओथी राजकुमारे साते खजाना खोली जोया अने तेमांथी सोनु, चांदी अने रत्नो मळेलो जोई खुश खुश थयो अने प्रधाननी वफादारी माटे खूब राजी थयो. वखत जतां कोई एक दुष्ट वृद्धपुरुष के जे प्रधाननी अदेखाई करतो हतो, तेणे राजकुमार पासे आठमा खजानानी चावीनी चाडी खाधी. राजकुमारे प्रधानने धमकावीने पूछतां तेणे आठमी चावी आण. तरत ज राजकुमारे आठमो खजानो खोल्यो त्यारे ते साव खालीखम हतो. मात्र त्यां एक लावण्यमयी कन्यानुं चित्र हतु. आ चित्र जोतां ज राजकुमार तेना अगाध प्रेममां डूबी गयो अने धीमे धीमे भान भूली जतां मूर्छा खाई पडी गयो. आम जोई शकाय छे के "चित्रद्वारा अनुरागर्नु कथानक कथा-साहित्यमा व्यापक छे. चित्रकार, साधु, प्रवासी, अनेक प्रकारनी व्यक्तिओ द्वारा अनेक प्रकारे अवनवा स्थळोएथी, नायक-नायिकाने एकमेकनी छबीओ प्राप्त थाय छे. उपरांत आकस्मिक रीते कोईपण व्यक्तिनी मदद विना अनायासे ज नायक-नायिकाने एकमेकनी छबी मळी जाय अने ते जोतां ज जोनार पात्रनी हृदयभूमिमां प्रेमबीज रोपाई जाय ए प्रकारनां वृत्तान्तनो, प्रेमकथाकारोए पोतानी कथाओमां उपयोग करी नायक-नायिकानो प्रणयमिलनां गोठवेलां छे. (३) जन्मतां ज बाळकनु अपहरण पूर्वजन्मना कोई वेरने लईने अन्य भवमां कोई व्यक्ति तेना बदलारूपे पोताना वेरीन अपहरण करी तेने मारी नाखवानो प्रयास करे एवा प्रसंगर्नु निरूपण विशिष्ट रीते जैनपरंपराना कथासाहित्यमांनी केटलीक कथाओमां थयुं छे. तेमांय खास करीने वेरीनो ज्यारे हजी मात्र क्यांक जन्म ज थयो होय छे त्यां तो पूर्वजन्मनं :वेर याद आवतां ते व्यक्ति तेनं अपहरण करे ए कथाघटकनो, अहीं एक-बे उपलब्ध थयेलां दृष्टान्तो द्वारा विचार कर्यो छे. धूमकेतु प्रधुम्नन जन्मतांवेंत ज अपहरण करे छे कारण के पूर्वभवमां प्रद्युम्न ज्यारे मधु नामनो राजा हतो त्यारे तेणे, धूमकेतु के ने पूर्वजन्ममां कनकरथ नामनो राजा हतो, तेनी चन्द्राभा नामनी स्वरूपवान स्त्रीनें कपटथी अपहरण कयु हतु: आम गत जन्ममा पोतानी स्त्रीना अपहरणना वेरना बदलारूपे आ भवे धूमकेतु प्रद्युम्न जन्मतां ज अपहरण करे छे. आ ज प्रमाणे 'त्रिषष्टिशलाकापुरुष'मां सीताना भाई भामंडळनु पण जन्मतांवेंत ज अपहरण थाय छे. टूकमां कथा आ प्रमाणे छः' जंबूद्वीपना भरतक्षेत्रमा दारु नामना गाममां वसुभूति नामना ब्राह्मणने अनुकोशा नामनी स्त्रीथी अतिभूति नामे एक पुत्र थयो. अतिभूतिने सरसा नामे पत्नी हतो. एक वखत क्यान नामना ब्राह्मणे अनुरागथी तेनुं हरण कयु. अतिभाते तेने शोधवाने पृथ्वी पर भमवा लाग्यो अने ए पुत्र-पुत्रवधूनी पछवाडे अनुकोशा अने वसुभूति पण भमवा लाग्या. पण पुत्र अने पुत्रवधूनो पत्तो न लाग्यो. अंते मुनिनी पासेथी धर्म सांभळीने बन्ने जणाए व्रत ग्रहण कर्यु. काळयोगे मृत्यु पामी तेओ सौधर्म देवलोकमां देवता थया. वसुभूति त्यांथी च्यवी वैताढय पर्वत पर रथनूपुर नगग्नो चन्द्रगति नामे राजा थयो अने अनुकोशा तेनी पत्नी पुष्पवती थई. सरसा दीक्षा लई मृत्यु पामी, ईशान देवलोकमां देवीपणे उत्पन्न थई. सरसाना विरहमां पीडित अतिभूति मृत्यु पामी, अनेक भवभवान्तरो ममी, विदग्ध नामना नगरमा प्रकाशम्हि राजानी प्रवरावली १. 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र'-पर्व ७मु, सर्ग चोथो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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