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तृतीय सर्ग (रुक्मिणी साथे प्रद्युम्ननु मिलन )
रूप मनोहर लक्षण सार रूपणि उलखीयु कुमार सोल वरसे पुत्र मुझ मिलिउ माहरु दु[ख] सयल हिव टलिउ ४६०
. वस्तुछंद जिसइ रूपणि रूपणि
दीठउ परदवण वदन चूंबि आलिंगीयु हसी वयण उठि कंठि लागीयु हवइ माहरु जनम सफल पुत्र आवई आरति भागीय दस मास मइ उरि धरिउ सही ए दुख महंत बालपणइ नवि दिठ मइ ए पछतावु पुत्त
चुपई मातातणा वयण निसुय पंच वरसनु बाल गुणेयु। क्षणेक मांहि वृद्धि सो करइ वली ते कुमर करी संहरइ ४६२ खिणि आलइ खिणि लाडइ-चडइ खिणि खिणि छेहडइ वलगइ पडई खिणि खिणि जे मनि मांगइ तेइ घणउ मोह ऊपायु जेइ ४६३ एतलु चरित्र तिहां तिणि कीयु वली आणइ रूपइ थीयु (?) माता वचन सुणउ एक मुझ कुतिग एक दिखाडुं तुझी ४६४
___ 1. अते : इति प्रदिमनकुमार-चरित्रे विद्या-ग्रहण, रुखमिणी माता मिलनो नाम तीय स्वर्ग:
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