________________
भूमिका
आम आ नानकडा काव्यमां पण वा. कमलशेखरनुं रचना-कौशल्य, भाषा-प्रभुत्व, वर्णन-प्रतिभा तथा लाघव-शक्तिनो ठीक ठीक परिचय थाय छे. सामायिके बत्रीश दोषनो भास
जूनी गुजरातीमां जैनरासादिना कडवाने 'भाषा' अथवा 'भास' कहेवामां आवे छे. केटलीक वार अलग काव्योंने पण भास कहे छे. जेम के 'लक्ष्मीमहत्तरा भास"-आ 'भास' नामना काव्यप्रकारमा वा. कमलशेखरे उपर्युक्त नानकडी कृति रचेली छे.
_ 'रागद्वेषरहित शान्त स्थितिमां बे घडी अर्थात् ४८ मिनिट सुधी एक आसने बेसी रहेवू एन नाम 'सामायिक' छे. एटला वखतमा आरमतत्त्वनी विचारणा, जीवनशोधननु पर्यालोचन, जीवनविकासक वैराग्यशास्त्रोनु परिशीलन, आध्यात्मिक स्वाध्याय अथवा परमात्मानुं प्रणिधान करवानु छे'.
आ व्रतना आचरण समये जाणे--अजाणे तेना व्रतीथी बत्रीस प्रकारना दोषो थई जवानो संभव के आदोषोमां दश मनना दोष, दश वचनना दोष अने बार कायाना दोष लागता होय छे. ते आ प्रमाणे छ :
मनना दोष-१. शत्रुने जोई तेना प्रत्ये द्वेष करवो. २. अविवेक चिंतववो ३. तत्त्वनो विचार न करवो. ४. मनमा उद्वेग धारण करवो ५. यशनी इच्छा करवी ६. विनय न करवो ७. भय चितववो ८. व्यापार चिंतववो ९. फळनो संदेह करवो १०. निदान-नियाणु करचुएटले फळनी इच्छा राखी धर्मक्रिया करवी.
वचनना दोष-१. कुवचन बोल, २. हुंकारा करवा ३. पाप कर्मनो आदेश करवो ४. लवारो करवो ५. कलह करवो ६. क्षेमकुशळ पूछी आगता स्वागता करवी ७. गाळो देवी ८. बाळक रमाड ९. विकथा करवी १.. हांसी करवी
कायाना दोष-१. आसन-चपळ-अस्थिर करवु २. चोतरफ जोया करवु ३. सावद्य की करव ५. आळस मरडवी ५. भीत इत्यादिनी ओथ लईने बेसवु ६. अविनये बेसवं ७. शरीर परनो मेल उतारवो ८. खरज खणवी ९. पग उपर पग चढ़ावो १० कामबासनाप अंग उघाडा राखवा ११. जंतुओना उपद्रवथी डरोने चोतरफथी शरीरने डांकवं १२. निद्रा लेवी.
प्रत्येक श्रावकने आचरवा योग्य उपर्युक्त सामायिक नामना व्रतनो महिमा गावा तथा तेना आचरण समये जाणे अजाणे तेना व्रतने लागता उपयुक्त बत्रोश प्रकारना दोषोने परिहरी शुद्ध रीते ते व्रत, पालन करवानो बोध आपवा माटे वा. कमलशेखरे आ नानकडा
करीना भास' न सर्जन कयु छे. कर्ताए प्रथम कायाना, पछी वचनना अने छल्ले मनना दोषो गणान्या छे. कृतिनो प्रारंभ तीर्थकर, गुरु के देव-देवानी स्तुतिथी करवाने बदले कर्ता जविकजनोने संसारिक इतर प्रवृत्तिभो त्यजी, समता धारी, मननो दंभ दर करी, तथा बत्रीश प्रकारना सकिना दोषने निवारी साररूप सामायिक करवानो बोध आपे छे अने पछी बत्रीश दोषी
१.महीराज कृत 'नल-दवदंतीरास(सं. डॉ. भोगीलाल सांडेसरा) पृ. १५८. २. जनदर्शन, कर्ता-पू. न्यायविजयजी, पृ. ७०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org