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________________ प्रद्युम्नकुमार-चुपई गणावे छे. अंतमा पोताना नामोल्लेख साथे कवि कहे छे के 'बत्रीश दोषने परिहरी, समता धारी, जो सामायिक करवामां आवे तो ते मोक्षपदसाधक बनी रहे छे.' आखी कृति एक ज ढाळमां रचायेली छे. कडीनी प्रत्येक पंक्ति प्रास-अनुप्रासथी बंधायेली छे. कर्तानी कथन-शैली पण लोको समजी शके अने याद राखी शके एवी सरळ छे. कायाथो लागता “अस्थिर आसन" अने "चपळ दृष्टि" ए बे दोष केवा सरळताथी कर्ताए वर्णव्या छे, ते जुओ : "बीजउ दोष आसण तणउ रे, आघउ पाछउ थाइ दृष्टि चपळ त्रीजउ सुणउ रे, एकइ ठामि न रहाइ रे जीवडा " .. आ उपरांत उचित वर्णविन्यासथी पदावलि सुवाच्य पण बनी छे. जेम के : .. 'दसम दोष खाजि खणइ जी, वछइ वीसामण अग्यागि." आम कर्तानी कथनशैली सरळ अने सुवाच्य छे. छतां मात्र समायिकना बत्रीश दोषोनु कथन ज करी, ते दोषोने परिहरी, शुद्ध सामायिक करी, मोक्षप्राप्ति करवानो सीधेसीधो उपदेश आपवानो होई, साहित्यनी दृष्टिए बीजां कोई नोधपात्र तत्त्वो आ कृतिमां खास छे नहि.' ३. "प्रद्यम्नकुमार चुपई "नो सामान्य अभ्यास "प्रद्युम्नकुमार-चुपई" ए रास प्रकारनी कृति छे. आ प्रकरणमा “प्रद्युम्नकुमार चुपई" नु एक रासकृति तरीके अवलोकन करेलु छे. प्रथम "प्रद्युम्नकुमार चुपई" ना उद्भवस्थाननी चर्चा करी छे अने त्यारबाद तेना "रास" तरीकेना स्वरूपनी विचारणा करी छे. मध्यकालीन गुजराती साहित्य अन्तर्गत घडायेला रासकाव्य स्वरूपना जे व्यावर्तक लक्षणो छे ते आ "प्रद्युम्नकुमार चुपई" मां केवी रोंते प्रतिबिंबित थयों छे, तेनो अभ्यास करतां, साथे साथे प्रस्तुत कृतिना जुदां जुदां पासाओर्नु पण विगते अध्ययन करेलु छे. प्रद्युम्नकुमार चुपई नुं मूळ उद्भवस्थान : __हिन्दु परंपरा प्रमाणो आलेखायेला "महाभारत", "शमायण" भने “पुराणो" पैकीना अनेक पात्रोनी कथाने घणा प्राचीन समयथी जैन परंपराए पोताने अनुकूळ एवा फेरफारो साथे अपनावी तेनु जनीकरण करेलु छे. उपलब्ध माहिती प्रमाणे श्रीसंघदास गणि वाचक कृत 'वसुदेवहिंडो",श्री जिनसेनाचार्य कृत "हरिवंशपुराण", श्रीगुणभद्राचार्य कृत " उत्तरपुराण," १. जे हस्तप्रतमाथी वा. कमलशेखरनो आ “ सामायिके बत्रीस दोषनो भास" कृति मळी छे, तेमां बीजी "पौषधनो भास" नामनी कृति पण मळे छे. जो के तेमां तेना कर्ताना नामनो उल्लेख नथी. परंतु काव्यस्वरूप, विषय, भाषा तथा आलेखननी दृष्टिथी जोतां ए कृति पण वा. कमलशेखरनी होवानो संभव छे. अनंतनाथजी जैन देरासर, भात बजार, मुंबई-मध्येना हस्तप्रतना भंडारमा उपरोक्त बने कृतिनी त्रण पत्रनी एक प्रत नं क-२४०४ नी रहेली छे. तेमां प्रथम बे पानां मळतां नथी. छेल्ला त्रण नंबरना पाना उपर एक बाजुए 'सामायिके बत्रीस दोषनो भास" ए कृति तेनी छठी कडीथी शरू थई ते जपत्र उपर २०मी कडीए पूरी थई जाय छे. तेनी पाछळनी बाजुए १३ कडीमां "पौषधनो भास" ए कृति लखेली छे. तेनी प्रतिलिपिनो समय संवत १६८३नो नोंधेलो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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