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________________ भूमिका १७ श्री स्वयंभू कृत "रिठणेमिचरिउ,” श्री पुष्पदंत कृत "महापुराण" श्री हेमचन्द्राचार्य कृत "त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र," के सोमप्रभाचार्य कृत "कुमारपाल प्रतिबोध" इत्यादि ग्रन्थोमां जैन परंपरा प्रमाणेनी पुराणकथाओनो संग्रह थयेलो छे ते पछी तेना उत्तरकालीन कवि-लेखकोए ज्यारे पण एमांना कोई पौराणिक पात्र उपर स्वतंत्र कृति सजवानो प्रयास कर्यो छे रे तेना आधार तरीके उपर्युक्त जनपरंपरानो पुराणकथाओना संग्रड्नो उपयोग करेलो छे. अलबत्त, ते पात्रनी कथाना निरूपणमां कवि के लेखकोए निजी कल्पना अने प्रतिभाथी केटलाक फेफारे। समयान्तरे करेला छे. छतां पण कथाना मूळ उद्भवस्थान तरीके तो उपर्युक्त जैन पुराणग्रन्थो ज रहेला छे. बीजु एम पण बनवू शक्य छे के कोई कवि के लेख उपर्युक्त जैन पुराणग्रन्थाने नहि परंतु स्वभाषा के अन्य भाषामां कोई पात्र उपर स्वतंत्र रीते रचायेदी, पोताना समय पहेलानी कृतिने आधार तरीके लइ पछो ते पात्र उपर पोतानी नवी स्वतंत्र रचना करे. तो वळी ए पण बनवू शक्य छे के कर्ता पोतानी, कोई पौराणिक पात्रता उपर रचायेलो, स्वतत्र कृतिना आधार तरीके कोई एक पुराणग्रंथमांनी ते पात्र उपरनी कथा के ते पात्र ऊपर पोताना पहेलां बीजा कोई लेखके के कविए लखेली स्वतंत्र कृतिने ज न लेता, ते कथानो समा वेश करता अनेक ग्रंथो अने स्वतंत्र कृतिओनो आधार लई, ते दरेक ग्रंथ के स्वतंत्र कृतिओ. मांथो पोताने अनुकूळ ते कथाना प्रसंगो लई ते बधा प्रसंगोने साथे वणी लई पोतानी नवी स्वतंत्र रचनानु सर्जन करे. आम कोई पण पौराणिक पात्र उपर रचायेली स्वतंत्र कृतिना उद्भवस्थानना अभ्यास माटे उपर्युक्त बाबतो ध्यानमा राखवी आवश्यक छे. जैन परंपराना उपर गणावेला लगभग बधा ज पुराणग्रंथोमां प्रद्यम्नकमारनी कथानं आले खन थयेलु छे. ते उपरांत वा. कमलशेखरे आ प्रद्युम्ननी कथा उपर पोतानी कृति रची ते पहेलां अनेक भाषामा अनेक कविओए प्रद्युम्ननी जीवनकथा उपर पोतानी स्वतंत्र रचनाओ सर्जेली छे. आमांथी कया विशिष्ट ग्रंथ के ग्रंथोने आधारे पोते पोतानी कृतिनी रचना करी छे. तेनो कशो सीधो या आडकतरो उल्लेख कर्ताए पोतानी आ कृत्मिा के अन्य क्यांय को नथी, तेथी वा. कमलशेखरे पोतानी आ कृतिमां निरूपेला प्रसंगो, तेनी रजुआतनी पद्धति, पद्यरचना के इतर माहितीओना आधारे आ कृतिना उद्भवस्थाननी विचारणा आपणे करीशुं. “प्रद्युम्नकुमार चुपई" मांना प्रसंगो, तेनो घटनाक्रम, घटनाओना आलेखननी पद्धति, अने तेनी पद्यरचना, छंदोलय, तेना अलंकारो इत्यादिनु अवलोकन करतां स्पष्ट जणाय छे के ते सर्वे अंशोनु, संवत १४११मां, कवि सधारु कृत प्राचीन हिन्दीभाषामां रचायेल “प्रद्युम्नचरित" नामनी कृतिमांना ते ते अंशोने आधारे ज निरूपण करवामां आव्युं छे. एटलुज नहि परंतु वा. कमलशेखरे केटलीय पंक्तिओ तो अक्षरशः सीधे सीधी कवि सधारुनी कृतिमाथी ज उपाडी लीधी छे. अने ते उपरांत काव्यनो घणो मोटो भाग, कवि सधारुनी कृतिमाथी, मात्र प्राचीन हिन्दीमाथी १. कवि सधारु कृत आ आदिकालिक हिन्दी काव्य, “प्रद्युम्नचरित” संपादन पं० चैन सुखदास न्यायतीर्थ तथा कस्तूरचंद कासलीवाले कयु छे. दि. जैन अ. क्षेत्र श्री महावीरजी, महावीर भवन, सवाई मोनसिंह-हाइ वे, जयपुर, प्रथमावृत्ति सन १९६०. आगळ उपर ज्यां ज्यां आ कृतना उदाहरणो आप्यां छे ते सर्वे उपयुक्त पुस्तकने आधारे ज आपवामां आव्या छे. कडीओनी बाजुमां आपेला संख्यांक पण उपर्युक्त पुस्तकने आध रे ज नांधेलो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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