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________________ प्रद्युम्नकुमार-चुपई कराव्यो छे. अमदावादमां धर्ममूर्तिसूरेना 'सूरि'पदना महोत्सव प्रसंगे वागतां वाजिंत्रोना सूरोनु शब्दविधान तेमणे आम कयु छ : ताल दमामा वाजइ, वाजइ तिवल निनाद रणतूर नफेरी मेरी य, संख सुहामणउ साद.१२ चूं घर वाजइ घमघम, मादल दो दो कार पंचशबद धरि वाजइ, गाजइ गयण अपार. १३ रवानुसारी शब्द-प्रयोग अने वर्णसगाइथी उपयुक्त वर्णन कर्णप्रिय अने मधुर लागे छे. ते उपरांत कर्तानी अर्थ - लाघवनी शक्तिनो परिचय पण आपणने आ फागुकाव्यमां थाय छे. जैन संप्रदायनी दृष्टिए उर्ध्वगामी जीवनविकासार्थे चारित्रमय जीवनमा श्रेष्ठ आध्यात्मिक गुणो के जेना आचरणमां जीवनसाफल्यनी चरम सीमा रहेली , तेनी गणतरी अने तेनु विवेचन विद्वानोए ग्रंथो भरी भरीने करेलु छे. धर्ममूर्तिसूरिए पोताना जीवनमा करेलु ते गुणोनुं प्रस्थापन वा. कमलशेखरे मात्र आठ पंक्तिमाटूकमा सरळ अने सचोट रीते आम दर्शाब्यु छः "आदरी क्रिया जिणि अति धगि, मइ सुणि देस विदेसि पंच महाव्रत पालइ, टालइ सयल किलेस. षटविध जीवह राखइ, दाखइ जिनवर वाणि सात भय निवारीह, वारीय मद अठ जाणि. नवविध सील सदा धरइ, करइ यति दसविधि धर्म एकादस प्रतिमा कहइ, लहइ ते सूत्रह मर्म भिखूप्रतिमा बार ए, सारए आपणउं काज तेर काठिया निवारीय, कारीय धर्मह काज लाक्षणिक रीते एक पछी एक पांचथी तेरनी संख्याना क्रममां जैनधर्म-प्रबोधित लगभग समस्त गुणोथी गुरुने नवाजो कर्ताए गुरु प्रत्येनो पोतानो पूज्यभाव विनम्रपणे व्यक्त कर्यो छे. सामान्य रीते आवा आचार्य विशेषादिनी उपर फागुओमां पण वसतवर्णन अने सरि द्वारा कामविजयनु अने ते द्वारा तेमना संमयनी दृढ़तानु प्रतिपादन करवामां आवे छे. परंतु आ फागुमां वा. कमलशेखरे लाक्षणिक ढबे वसंतनुं के फाल्गुणर्नु जराय वर्णन नथी कयु. फक्त " फागुबंध" नी रचनाने लीधे तथा पुष्पिकामां एने “फागु" नाम आपेलुं छे, एने लीधे आ कृतिने "फागु" कही शकाय. जेम कर्ताए आ कृतिमां अद्वै उ अने फाग जेवा सरळ छंदोनो उपयोग कर्यो छे, तेवी ज तेमनी आडंबररहित, सरळ अने लालित्यसभर भाषा छ: "हंसराज घरि घरणी तुरणी ओढणी घाट" -जेवी पंक्तिमां "" अने "" वर्णना उचित विन्यासथी पदावली ललितमधुर लागे छे. वळी "फाग" स्वरूपमा, प्रत्येक पंकेमा आंतरयमानी योजना पण कर्तार शब्दार्थनी तोडफोड कर्या सिवाय अनायास सिद्ध करी छ "संजमनउ जंग मंडीउ, छंडीउ घरनउ भार" के "उदयकरण आणदइ, वंदइ गुरुना पाय" जेवी पंक्तिओ तेना दृष्टांत लेखे आपी शकाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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