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________________ भूमिका १३ प्रधुम्नकुमार-चुपई आ कृतिनुं संपादन में प्रस्तुत ग्रंथमां करेलुं छे, तथा तेनी समग्र विवेचना, आगळ करेली छे. तेमां आ कृति परत्वे वा. कमलशेखरनी सर्जक-प्रतिभा विशे विस्तारथी माहिती आपेली छे. धर्ममूर्तिगुरु फाग महद् अंशे "फागु" काव्यस्वरूपनो उद्भव वसन्तना वर्णन निमित्ते श्रृङ्गाररसनी निष्पत्ति अर्थे थयेलो छे. परंतु समयना वहेण साथे "फागु" ना आ मूळ स्वरूपमां सांप्रदायिकत्व आववा मांड्युः जैनेतर कविओए कृष्ण-गोपि के कृष्ण-रुक्मिणीने नायक-नायिकरूपे लई तेमना वसन्तोत्सव निमित्त वनक्रीडा के प्रेमकेलिना शृङ्गाररससभर फागुओनुं सर्जन कयु छे. जेम के "नारायण फागु", "भ्रमरगीता", "हरिविलास फागु" इत्यादि. ज्यारे जैन कविओए आ काव्यस्वरूपने सविशेष सांप्रदायिक रूप आपी ते द्वारा स्वधर्मना सिद्धान्तोने कथात्मक रीते उपदेश्या छे. आथी शङ्गाररसना वाहनरूप आ काव्यस्वरूप नेमिनाथ के पार्श्वनाथ जेवा तीर्थकरो, गौतम जेवा गणघरो के जंबूस्वामी जेवा केवलीओना बोधदायक जीवनचरित्रने निरूपवा न साधन बन्यु छे. एटलु जनहि परंतु समय जतां केटलाक आचार्यादि व्यक्तिविशेषो पण फागुना विषय बन्या. उदाहरण रूपे "हेमरत्नसूरे फाग", "जिनहंसगुरु नवरंग फाग", "अमररत्नसूरि फागु" इत्यादि गणावी शकाय. श्रीभोगीलाल सांडेसरा जणावे छे ते प्रमाणे, 'आवी रचनाओमां आचार्योना मातापिता, बाल्यावस्था, दीक्षा- महोत्सव इत्यादिनो वृत्तान्त आपीने वसंतर्वणन, कामविजय, संयमनी दृढ़ता, उपदेशनो प्रभाव वगेरे वर्णवेला होय छे अने ए रीते फाग' नामनी ओछेवत्ते अंशे सार्थकता साधवानो प्रयत्न थाय छे." वा, कमलशेखरे २३ कडीनो प्रस्तुत फाग, अंचलगच्छनो विधिपक्ष शाखाना पट्टधर अने पोताना समकालीन आचार्य धर्ममूर्तिसूरिनी प्रशस्तिरूपे लखेलो छे. आ. धर्ममूर्तिसूरिना जीवननी केटलीक हकीकतोन निरूपण करतां कवि जणावे छे के धर्ममूर्तिसूरिनो जन्म खभातमा थयो हतो. तेमना, पितानु नाम हंसराज हतुं अने मातानु नाम हांसलदे हतुं. तेमनु' सांसारिक नाम धर्मदास इतं. श्रीजिनेश्वर भगवंतनी वाणी सांभळी तेमने वैराग्य थयो अने अंते घरनो भार छोड़ीने. श्रीगुणनिधानसूरि पासे दीक्षा लीधी. गुरुए त्यारबाद तेमने ध्यानथी विद्यावंत अने संघनु भलु करनार जाणीने, अमदावादमा महोत्सवपूर्वक पोतानी पाटे स्थाप्या. देशविदेशमा तेमणे घणी क्रियाओ आदरी, पंच महाव्रत धार्या, छ प्रकारना जीवनी रक्षा करी, सात प्रकारना भय निवार्या, आठ प्रकारना मद वार्या, नवविध शील धारण करी, दसभेदे यतिधर्म शोभाव्योः अगियार प्रतिमा कही अने बार भिक्षु-प्रतिमाथी एमणे पोतानु काम पार पाडयु; तेर काठिया निवारीने तेमणे धर्मनु काम कयु. आम साधुओना छत्रीश गुणोथी युक्त आ. धर्ममूर्तिसूरिनु जन्मस्थळ, माता-पिता तथा तेमनु नाम, दीक्षा, आचार्यपद इत्यादिनो परिचय करावो तेमना आध्यात्मिक गुणोनी प्रशंसा करेली छे. - आ टंका फागुकाव्यमां आम तो बीजा कशा वर्णनने अवकाश नथी, छतां य ज्यां एवो कंइ अवकाश मळ्यो छे, त्यां कर्ता वा. कमलशेखरे पोतानी वर्णनशक्तिनो परिचय . १ प्राचीन फागु संग्रह-पृ. २३-२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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