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________________ ६ प्रद्युम्नकुमार-चुपई आपणी प्रद्युम्नकथामां प्रद्युम्ननी पालकमाता कन कमाला प्रद्युम्ननी बीरता, रूर अने गुणधी आकर्षाई तेनी पासे अणछाजती मागणी करे छे. प्रद्युम्न, माता तरफनो पोतानो पूज्यभाव प्रकट करी चाल्यो जाय छे. त्यारे पोतानी कामवासना पूर्ण न वाथी रोषे भरायेली कनकमाला तेना पर चारित्र्यभ्रष्टतानु आळ मूके छे. आगळ जोयु ए प्रमाणे आळ अनेक प्रकारनां होय छे. तेमांथी अहीं मात्र चारित्र्यभ्रष्टताना आळ विषे वधु विचार करेलो छे. चारित्र्यभ्रष्टतानु आ आळ स्त्री कोई परपुरुष उपर, पोताना ओरमान के पालकपुत्र उपर के दियर उपर मूके छे. स्त्री उपर्युक्त कोई पण व्यक्ति उपर तेनी वीरता, रूप, गुण के यौवनथी आकर्षाई आसक्त थाय छे. अने त्यारबाद ते पक्तिनी पासे पोतानी इच्छाने तृप्त करवा ते शारीरिक हावभाव के शृंगारिक चेष्टाओ वडे नम्र बनी मागणी करे छे. आवी मागणी करती स्त्री साधेना पोताना संबंधनो ख्याल करी तथा नीति अने फरजना भान साथे पेली व्यक्ति ए स्त्रीनी नठारी मांगणीनो ज्यारे अस्वीकार करे के त्यारे पोतानी इच्छा बर न आववाना कारणे वेरथी उद्दित थई तथा पोताना आ कुकर्म उपर दांकपिछेडो करवाना हेतुथी पोताना शरीरनी विकृति करी, पेली व्यक्ति उपर, पोताना पर बलात्कार करवानु आळ ओढाडे छे. कदिक पोताने अणगमती व्यक्तिने दूर करवा माटे पण तेना पर चारित्र्यभ्रष्टतानु आळ ओढोडवामां आवे छे. परंतु घणी वखत स्त्री, जे व्यक्ति उपर आळ मूके छे ते व्यक्तिने तेणे पहेलां क्यारेय जोइ नथी होती. परंतु अकस्माते ए व्यक्ति रात्रीना अंधकारमां के एकांता पोतानी तरफ आवती होय के पोताना शयननी बाजुमां ऊभी होय त्यारे स्त्री ए व्यक्ति पोतानुचारित्र्य भ्रष्ट करवा ज आवती होय छे अथवा ऊभी होय छे एम समजी तेना पर जाण्या बूझ्या वगर ज, चारित्र्यभ्रष्टतानु आळ मूके छे. अंते आ आळ, साची वस्तुपरिस्थितिनी जाणथी, आळ मूकायेली व्यक्तिनी वीरताथी के तेना शीलमाहात्म्यथी प्रसन्न थयेली कोई अलौकिक शक्ति वडे तरी जाय छे. कदिक चारित्र्यभ्रष्टताना आळ्थी कोइ व्यक्ति देहांतदंड भोगवे छे अने तेना मरण पछी साची वात बहार आवती होय छे. कदिक आळ मुकायेली व्यक्ति आळ ऊतरी जतां लोकोमा पूजाय छे अने आळ मकनार व्यक्ति, पोतानी पोल पकडाइ जवाथी लोकोमा निंदापात्र थाय छे. अने तेनी बीके घणीवार ते गळे फांसो खाई जीवननो अंत लावती होय छे. आम चारित्र्यभ्रष्टताना आळ विषे आटलो प्रास्तविक विचार कर्या पछी केटलांक कथानको द्वारा ते कथाघटकने समजवानो प्रयत्न करीए. डॉ० भायाणी तथा डॉ. दवेए लीधेलां कथानकोनी नोंध आगळ आपी छे. तेमणे निरूपेलां कथानकोनो अहीं उपयोग नथी कर्यो. ते उपरांत बीजां केटलांक नवा कथानकोन अहीं निरूपण करेलुं छे. बौद्धसाहित्यमा राजा अशोकनु कथानक आवे छे. तेमां तेना पुत्र कुणालनी करुण कथा आलेखवामां आवी छे. कुणाल नामनां पक्षी जेवी सुंदर आंखो घरावतो आ अशोक-पुत्र कुणाल राजसभानी खटपटोथी हमेशां दूर ज रहेतो होय छे. राजानी राणीओमांनी एक तिष्य मदर अने युवान कुणाल प्रत्ये प्रेममा सळगती होय छे. ते राणीए कुणाल पासे आवी अघटित मागणी करी, परंतु तेनी विनंति के धाकधमकी बधु नकामु गयु. वेरनी आग संतोषवा तेणे एक कात्रु रच्यु. ते मुजब तेणे कुणालने दूरना प्रान्तमां मोकल्यो अने पछी चोरीछुपीथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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