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________________ भूमिका राजानी मुद्रावाळो एक आज्ञापत्र लखी त्यां कुणालनी आंखो फोडी नाखवानो हुकम लखी मोकलाव्यो. ते प्रमाणे तेनी बन्ने आंखा फोडी नाखवामां आवी.. ___त्यारबाद ते भिखारीनी हालतमां तेनी पत्नी साथे अशोकनी नगरीमां आव्यो अने त्यां राजमहेलनी सामे वीणा बजाववा लाग्यो. राजाए अवाज सांभळता तेने बोलाव्यो. साची वस्तुनी जाण थई. राजाए गुस्सामा राणीने मारी नाखवानो हुकम कर्यो, पण क्षमावंत कुणाले विनंतिथी तेने जीवितदान आप्यु अने कह्यु के "ए मारी माता प्रत्ये मने हजी पण अपार लागणी छे. जा आ शब्दो साचा होय तो मारी आंख पाछी जेवी हती तेवी थई जाओ." अने तरत ज तेनी आंखो पहेलांना जेवी सुदर थई गई.. __ आ कथामां अपरमानी अघटित मागणी अने पुत्र द्वारा अनादरनी वात आवे छे. जो के आमां उघाडा आळनी वात नथो आवती, परंतु अनादरथी उद्दिप्त थयेला वेरनी वसुलातनी वात आवे छे. जैनसाहित्यमां सुदर्शन श्रेष्ठिनो कथामां भ्रष्टाचारना आळनी वात आवे छे. शीलनो प्रभाव अने तेना माहात्म्य अर्थे जैन कथासाहित्यमां आ कथा खुब प्रचलित छे. तेनी कथा ट्रंकमां आ प्रमाणे छे : चंपापुरीमां ऋषभदास नामना श्रेष्टिने अहंदासी नामनी स्त्री हती. तेने सुदर्शन नामनो पुत्र थयो. ते सुदर्शन युवावस्था पाम्यो त्यारे तेने श्रेष्ठिए मनोरमा नामनी कन्या परणावी. सुदर्शनने राजाना पुरोहित कपिलनी साथे गाढ मैत्री हती. एक वखत कपिलना मुखथी सुदर्शननी प्रसंशा साभळी तेनी स्त्री कपिला तेना पर अनुरक्त थई. एक दिवस एकांतनो वखत जोईने कपिला सुदर्शनने घेर गई अने तेने कह्य', 'आजे तमारा मित्रने शरीरे ठीक नथी. माटे तेनी खबर लेवा माटे घरे चालो, ते बोलावे छे'. एम कही सुदर्शनने पोताने घरे तेडी गई. त्यां गुप्त गृहमां तेने लई जई बारणा बंध करी, लज्जा त्यागीने तेणे भोगनी प्रार्थना करी. त्यारे सुदर्शन पोते नपुंसक छे एम कही त्यांथी बहार नीकळी पोताने घेर गयो. ___एकदा राजा, पुरोहित अने सुदर्शनने साथे लई उद्यानमां क्रीडा करवा गयो. ते वखते वाहनमां बेसोने ते राजानी अभया नामनी राणी कपिलाने साथे लई उद्यानमां आवी. तेवामा मार्गमां कपिलाए एक स्त्रीने छ पुत्रो सहित मार्गे चाली जती जोईने, 'आ स्त्री कोण छे ?' एम अभया राणीने पूछय. त्यारे ते बोली के, 'आ तो सुदर्शन शेठनी स्त्री छे. अने आ छ तेना पुत्रो छे.' ते सांभळोने कपिलाए का के, 'शेठ तो नपुंसक छे. तेने पुत्रो क्याथी ?' एम कही तेणे पोतानो सर्व वृत्तान्त राणीने जणान्यो. राणीए ते सांभळी कह्य' के "तुं तो मुख छे, ते शेठे तने कपट करीने छेतरी छे.” कपिला बोली, "हे देवी! तमारी चतुराइ तो हुँ त्यारे ज जाणुं के ज्यारे तमे एक पण वखत ते सुदर्शन शेठ साथे क्रीडा करो." राणीए वचन अंगीकार कयु. १. अपरमाता पोताना दीकरानी आंखो पोताना पति पासे ज फोडी नखावे छे. ए प्रकार कथानक फ्रेन्च लोककथामां पण छे. जुओ: Tales from the French Folklore of Missouri-by Joseph Medard Carriere-[कथा नं. ४२ पृ० २०८] २. 'Buddha and the Gospel of Buddhism.' -आनंद कुमार स्वामी पृ० ३१४-३१५ ३. "उपदेशप्रासाद"-कर्ता विजयलक्ष्मीसूरि, गु० भाषांतर-श्री जैनधर्म प्रचारक सभा, भावनगर, [३जी आवृत्ति ] स्तंभ ४यो, व्याख्यान ५३मु, पृ. २५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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