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________________ ( स्तुति ) ( प्रस्तावना ) यतः श्री जिनवर सवि पय नमी रास रचुं रलीयामणु ( सोरठदेश - प्रशस्ति ) प्रद्युम्न कुमार- चुपई प्रथम सर्ग कृष्ण-रुक्मिणी-विवाह सरस कथा यादवतणी कुमर पजूनह तेहतणुं Jain Education International जंबूद्वीपमझारी वर तेह मांहि सोहइ भलु ( द्वारिकानगरीनुं वर्णन ) दूहा जिहां तीरथ छइ अतिभला अनेक मुनि-सिउ सिद्धि गया असंख कोडि सिद्धि गया वली विशेष वांदीइ त्रिणि कल्याणिक तिहां हूयां नेमजिणेसर शिक्षय - स्युं सोरठदेस - मांहि पुरी अनेक नगरइ परवरी 1. तुरुणी तारु 2. सेत्रुज समरी सरसतिमाय वलि बंदी गुरुपाय तीर्थानि तटिनीतोयं तरुणी तारलोचना । तांबूलं तोयधेर्लक्ष्मीः सौराष्ट्रे रत्नपंचकम् ॥१ कहिस्युं ते इक चितु निसुणउ चारु चरितु भरह खित्त सुपसिद्ध सोरठदेस समिद्ध श्री सेज 2 गिरनार पुंडरीक 3 गणधार जां लगि जंबूकुमार ऊजलगिरि 1 अतिसार दिक्षा न्यान निरवाण सिद्ध हुया इणि ठाण द्वारमती सुचंग दिसइ अतिहि उत्तंग 3. पंडरीक For Private & Personal Use Only 4. ऊजलगरि ४ www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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