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. तृतीय सर्ग मुनिवर सुमतिगुप्तआवीयु लिखिमीवतीनइ नवि भावीयु रे रे मलिन जा तुं परहुं () इहां कांइ आविउ अणनुहुंतरिउ २०० यूं थुकार2 तिणि माहणिनि कीयु मुनिवर काढी बार तव दीयु फल दुगंछाकर्महतणु सचर सतम दिनि विणठउं घणुं २०१ अगनिमांहि पइसीनइ मुंई धोबीघरि रासिभी हुई वलि मूई ते भारइ करी त्रीजइ भवि हूइ सूकरी । २०२ चुथइ भवि थई कूतिरी अगनि बलीनइ हाथई करी भरुचछि नयरि नदी नरबदा माछीकुलि आवी एकदा २०३ दुर्गधा दोभागिणि क्काण (?) भव पंचमतंणा अहिनाण तेणइ दुर्गघि न रहइ कोइ पूरव पापतणा फल जोइ २०४ धीवरि अलगू घर ते करी तिहां राखी ते माहइ छोकरी मोटी बईरि जव ते हुई नाव एक बांधी ते जूइ वाही नाव आजीवका करइ इण परि पेट पाराभव भरइ समाधिगुप्तमुनि विहारह करी नदी नर्बदा आविउ फिरी २०६ कंठि आवी काउसग्ग करिउ माहामासनी ताढिइं भरिउ दुर्गधा दीठउ धीवरी किम ए सहसिइ सीतह खरी २०७ दया उपनी ते रिखितणी तिणइ आणी चारिह घणी वींटी मुनिवरनइ ते गई प्रभात4 समइ ते आवी रही २०८ ते मुनिवरनइ वांदइ जिसिइं जातीसमरण ऊपर्नु तिसिइं हई हई देव मय सिउं कीयु ए मुनिवर देखी थूकीयु वार वार पगि लागी करी खमावइ पूरवभव चरी मइ कीधां जे मोटां पाप तेहना पाम्यां मइ संताप सांमी ते मुझनइ तुं छोडी वलि वलि वांदइ बे कर जोडि मुनिवरि श्रावकनु धर्म दीयु साधवी साथिई विहारह कीयु २११ 1. समतिगुप्ति 2. धुंधूकार 3. दुर्गधि 4. प्रभात 5. वादइ
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