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________________ प्रद्युम्नकुमार-चुपई आ एक हलका प्रकारनु स्त्री-चरित्र छे. घणी वखत स्त्रीनी कामवासना एटली बधी उद्दिप्त होय छे के ते पोतानु गौरव, लज्जा के फरजनु भान भूली पोताना पति उपरांत इतर परपुरुष साथे अयोग्य संबंध बांधी कामभोग भोगवती होय छे. पति आ वातथी अजाण होय छे अने पत्नी तेनो लाभ लई पोतानी कामवासनाने संतोषे जती होय छे. आ रीते ते एटली हदे असंयमी बनी जाय छे के पोताना वासनाने संतोषवा माटे पोताना जारना हाथनो असह्य मार पण सहन करे छे. एटलुज नहि पण मारेक तो ते जारनो आज्ञाने वशवती पोताना पतिनु निकंदन पण काढी नाखती होय छे. केटलीक वार पतिने पोतानी पत्नीना आ व्यभिचारनी खबर पडो जाय छे, त्यारे पत्नो पोतानी निर्दोषता पुरवार करवा बीजा अनेक प्रकारना स्त्री-चरित्रो अजमावे छे. केटलीक वार चालाक पति पोतानी पत्नीनी आ प्रकारनी युक्तिआने निष्फळ बनावी तेनु' पोल उघाडु पण पाडे छे. क्यारेक पत्नी पोतार्नु भ्रष्ट चारित्र्य छुपाववा पति उपर सामु आळ पण मूके छे, तो क्यारेक पोताना यार साथे मनमानी मोज करवा माटे कर बनी पोते ज पोताना हाथे पतिनो कांटो दूर पण करती होय छे. आमां मात्र नीच कुळनी के हलका वर्णनी स्त्रीओ उत्तम कूळना परपुरुष साथे ज आवो अयोग्य संबंध राखे छे एवं नथी, के स्त्री पोताना पांगळा कुरूप के निधन पतिथी कंटाळीने कोइ सशक्त, देखावडा अने धनवान परपुरुष साथे पोतानी कामवासनानी भूख भांगवा जाय छे एवं य नथी. परन्तु 'कामांधो नैव पश्यति' ए न्याये उत्तम कूळनी स्त्रीओ नीच वर्णना पुरुषो साथे पण कामभोग आचरे छे अने पोताना गुणवान, रूपवान अने मोभादार-धनवान पतिने छोडीने रस्ते रखडता कूबडानी साथे अनीति आचरती होय छे. डॉ. जनक दवेए पोताना अप्रकट महानिबंधमां' "नारीनी नीच प्रीति' ए कथाघटकनो केटलाक दृष्टान्तो साथे विचार कर्यो छे. तेमां तेमणे नीचेना दृष्टातोनु आ कथाघटक परत्वे निरूपण करेलु छ : १. भर्तृहरिनी कथा २. दृष्टान्तशतकमांनी भतृहरिनी कथाने मळ्ती एक बीजी कथा ३. धर्मोपदेशमाला-विवरणमांनी "दोषबाहुल्ये नूपुरपंडिता कथा" ४. तेमां ज नारीनी नीच प्रीतिन एक बीजु कथानक ५. तेमां ज वळी एवु त्रीजु कथानक ६. दोषबाहुल्ये नूपुर-पंडिता कथाना प्रथम अंशना रूपान्तर समो शामळनी 'सूडाबहोतेरी'नी 'कोण मूरख ?' ए शीर्षकवाळी कथा ७. पंडित शुभशीलगणिकृत "विक्रमचरित्रम्"मां 'स्त्रीचरित्र वीक्षण संबन्धः' मांनी बे कथाएक "रत्नमंजरीकथा", बीजी "राज्ञीचरित्रवीक्षणम्" ८. शामळनी पंचदंडनी वार्तामा पांचमा दंडनी प्राप्तिनी वार्ता ९. पंडित शुभशोलग कृत "विक्रमचरित्रम्"मांनो छाहडनी वार्ता १०. शामळनी "सिंहासनबत्रीशी" मानी वहाणनी वार्ता ११. तेमांनी ज मेना-पोपटनी वार्ता १२. 'स्त्रीचरित्रनी नवीन वार्ताओ" नामना पुस्तकमांनी "कोडीलाल अने चतुरानी वार्ता” १३. ए पुस्तक मांनी ज त्रीजी 'रतनशी सोनी तथा तेनी स्त्री कूलवतीनी वार्ता" १४. ए पुस्तकमांनी ज छठी 'जहांदारशाह अने हरमनूरझांहानी वार्ता” १५. ए पुस्तकमांनी ज "अमरासिह अने तेनो स्त्री जारमती' नी कथा १६. "वरदा" पत्रिकामांनु लाखा फूलाणीनु कथानक १७. "कथासरिसागर"-शक्तियशालेबक, तरंग २ जो"मांनी "सिंहबळ अने तेनी राणीनी कथा १८.शुभशोल8. Shāmal's Sinhāsanbatrisī Preparation of an Authentic Edition of Tales Nos. 28,29,30,31 From the Original Manuscripts together with a Critical Study of these Tales p.638-675. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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