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तृतीय सर्ग
प्रद्युम्न कुमार - विद्याग्रहण, रुक्मिणी-मिलन
( रुक्मिणी अने सत्यभामाने पुत्ररत्ननी प्राप्ति ) ( स्वप्न )
मनुषता सुख अति भोगवइ रूपणि सुपन वृषभ पेखति कृष्णरायनइ रुखमणि कहउ सुणि सुंदरि सुपन अणुसारि ( सत्यभामानुं स्वप्नविषे असत्य
सुपनवात दासीइ सांभली एह वात मनमाहि घरी स्वामी सुणउ सुपन मइ दीठ तं निसुणी कहइ कृष्णमुरारि ( रुक्मिणी-सत्यभामा वच्चे शरत
)
सतिभामा -रुखमणि बिइ जिणी सो हारइ जसु पाछइ होइ सतिभामा - रुखमणि भाखीयु तुम्हे केहनी म करु कांणि ( कौरवना दृतनुं आगमन )
चुपई
नारि बिऊंनइ गर्भ ज हवइ चडी हुं अमर विमानइ मंति रयणमझि सुपनांतर लहिउ मुझ सरिखु पुत्र होसिइ नारि कथन )
सभा नारायण बइठउ जिहा तुम्ह घरि जेठउ नंदन होइ 1. सुभा
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सतिभामा आगलि कही वली कलपित स्वप्न कहइ ते करी मोटउ मयगल मुखि पइठ कुमर होसिहं तुम्ह घरबार
वातचाट करइ पुत्रहतणी ते सिर मूंडी वीवाहइ सोइ बलिभद्र तिहां कीधु साखीयु हारइ ते शिर मूंडी आणि
दूत कुरवनु आवि तिहां कुरवपुत्री परणइ सोइं
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