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________________ सामायिके बत्रीश दोषनी भास पढम दोष क्यणह तणउ जी, बोलइ कुवचन बोल, बीजउl सहसा कारि सुणउजी, अणविमासिउं बोलइ रे ।९ जीव० राग नाद आलति करइ जी, जीजउ लोडण दोष, आपछंदइ चउथइ चवइ जी, इम करइ वयण पोष रे ।१०। जीव० सूत्र संखेपइ ऊचरइ जी, पंचम दोष अपार, छठइ दोषिइ कलह करइ जी, मांडइ राडि3 असार रे ।११। जीव० सातमइ विकथा करइ जी, राजादिक सुविचार, आठमइ4 हासू अति हसइ जी, दांत काढइ घण भारि रे ।१२। जीव० नवमइ सीध्र ऊतावलू जी,5 सूत्र पतावी जांइ, दसमइ दोष हिवा सांभलऊजी, कहइ तु आवि जाइ रे ।१३। जीव० दोष वचनना दस ह्या जी, मनना दस कहुं हेव, मन अविवेक पहिलइ हुया जी, सामाइक सखेव रे ।१४। जीव० जस कीरति वंछइ बीजइ जी, चितइ मनह मझारि, धन्नलाभ हुइ त्रीजइ जी, इम मन9 दोष सभारि रे ।१५। जीव० चउथउ दोषह मनतणउ जी, गरव आणइ अपार, दोष पांचमइ 10 बीहतउ जी, सामाइक करइ छार रे ।१६। जीव० छठइ दोषई मनि धरइ जी, नव नीयाणा वात, सत्तम संसय अणसरइ जी, नवि जाणइ धर्म वात रे।। ।१७। जीव० अठमदोष।2 ते जाणीइ जी, रोसई सामाइक थाइ, नवमउ इणिपरि भावीइ जी, विनय रहित कराइ रे ।१८। जीव० दसमउ दोषह मनतणउ जी, भगति सहित नवि होइ बार दस दस इम गिणउ जी, काय वयण मन जोइ रे ।१९। जीव० कमलशेखर वाचक कहइ जी, समता करउ रे सुजाण, दोष बत्रीसइ परिहरइ जी, ते पामइ सिवठाण 3 रे। ।२०। जीव० ( ) 1. मूळ प्रतमां “त्रीजउ" छे. 2. चुथु 3. राडिमांडि 4 अठमि 5. जीने बदले "रे" 6 मूळ प्रतमां "दोसमइ” छे. 7. हिवइ 8. आवज 9. मनि 10. पंचमि 11. न जाणइ धर्मह वात रे 12. अठमि दोषि 13. ठाम 14. अंते : इति श्री सामायिके बत्रीस दोष भास संपूर्णः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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