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प्रद्युम्नकुमार-चुप
निश्चित थाय छे अने तेना विवाहोत्सवनी तैयारीओ थाय छे. आ लग्नप्रसंगना आलेखननी वच्चे वळी पार्छु स्वरूपान्तर करी प्रद्युम्न द्वारा सत्यभामाने स्वरूपवान बनाववाना बहाने विरूप बनावी रंजाडवाना प्रसंगनुं आलेखन, चालु कथा - वणमां विक्षेप पाडी रसक्षति करे छे. आ प्रसंग अहीं आलेखन कर्यु, तेना करतां आगळ ज्यां प्रद्युम्न पोतानी मायावी विद्याओ वडे पोताना स्वजनोने रंजाडे छे त्यां जो कोई उचित जग्याए ते मूक्यो होत तो प्रसंगालेखननी व्यवस्था सचवात. वळी आ सर्गने “ प्रद्युम्नविवाह " ए नाम आप्युं छे तेना करतां "प्रद्युम्न - कृष्ण - मिलन” एवं नाम वधु सार्थक गणात, कारण के आखाय सर्गनी १६७ कडीओमांथी प्रद्युम्नना विवाहनी वात अने तेना विवाहोत्सवनुं वर्णन तो सर्गने अन्ते मात्र पंदरसोळ कडीमां ज थयुं छे, ज्यारे प्रद्युम्न - कृष्णना मिलननो प्रसंग तथा तेनी पूर्व - भूमिकारूपे रहेलां प्रद्युम्न द्वारा रुक्मिणी हरण, प्रद्युम्न द्वारा यादववीरोनो उपहास तथा कृष्ण-प्रद्युम्न युद्धनो प्रसंग आखाय सर्गनो घणो मोटो भाग रोके छे.
पांचमा सर्गथी कथाना वहेणमां नवो वळांक आवे छे. शांत्रकुमार-जन्म, शांत्र-सुभानुक्रीडा अने सर्वथी महत्त्वनो रुक्मीनी पुत्रीओ साथे शांब - प्रद्युम्नना विवाहनो प्रसंग आमां आलेखायो छे. शांत्र - प्रद्युम्नना रुक्मीपुत्रीओनी साथे पाणिग्रहणनो आ प्रसंग आखा सर्गनी ६५ कडीमांथी लगभग ३५ कडी जेटलो आलेखायो छे. सर्गना अडधा उपरांतनो भाग रोकता आ प्रसंगने अनुलक्षीने आ सर्गने 'शांव- प्रद्युम्न - पाणिग्रहण' एवं नाम आप्युं छे, ते सार्थक छे. "जांबवती - पाणिग्रहण" नामनो जे बीजो सर्ग छे ते आ सर्गनी पूर्व भूमिकारूपे रहेलो छे.
छट्ठासी प्रद्युम्नकथामांनो छेल्लो अने नवो तबको शरू थाय छे. ज्यांथी कथा अंत तरफ ढळती जाय छे. प्रद्युम्नकुमारनी दीक्षा अने तेमना निर्वाणनी कथानी पूर्व भूमिकामां नेमिनाथनी कथा, द्वारिकाना विनाशनी आगाही, यादवकुमारो द्वारा द्वैपायनमुनिनी सतामणी तेथी द्वैपायनमुनिए आपेलो शाप, अग्निकुमार बन्या बाद द्वारिका बाळवाने माटे द्वैपायनमुनिनु अव पण नगरजनोनी तपश्चर्याना बळथी पाछा जवु, ते वखते अनेक नगरजनो द्वारा नेमिनाथ पासे दीक्षा ग्रहण करवी इत्यादि प्रसंगोनु संक्षेपमां आलेखन करेलुं छे. छेल्ले माता-पिताने धर्मोपदेश दई प्रद्युम्नकुमार पण नेमिनाथ पासे दीक्षा लइँ, अणसण करी, शुक्लध्यान धरतां धरतां केवलज्ञान पामी मोक्षे जाय छे त्यां कथानक पूर्ण करी, ग्रन्थकार पोतानो परिचय आपी, रचना - मिति तथा स्थळ जणावी, फळश्रुति साथे कृतिनी समाप्ति करे छे. आखी कथामां प्रसंगो एक पछी एक झडपथी बनता जाय छे तेथी वाचक के श्रोताओ उपर कथानकनी पकड सारी रहे छे. वळी काव्यने प्रभावशाली बनाववा अवान्तर कथाओनु आलेखन पण आवश्यक होई आ कृतिमां रुक्मिणीहरण, जांबवती - पाणिग्रहण, सिंहरथ-युद्ध, भानुकुमार विवाह वर्णन, सुभानु-शांनी क्रीडाओ, नेमिनाथ-कथा इत्यादि अवान्तर कथाओनुं पण निरूपण थयेलुं छे. तेनाथी " प्रद्युम्न कुमार - चुपई " ना काव्यत्वमां वृद्धि थयेली छे. आ अवान्तरकथाओ काव्यमा कां तो आवता प्रसंगनी प्रस्तावनारूप होय छे, कां तो पाछळथी बनता कोई प्रसंग साये सीधा या आडकत संबंध धरावनी होय छे. आधी काव्यमां ते निरर्थक नहीं परंतु आवश्यक बनी रहे छे. आम वस्तुना विभागीकरण अने आयोजननी दृष्टिथी जोईए तो कर्ताए, कथामां बनता अनेकानेक अवनवा प्रसंगोने, कथाप्रवाहने अनुकूल थाय ए रीते विभागी, रोचक रीते ए घटनाओनो श्रृंखलाबद्ध क्रम राखी, तथा ए घटनाओने तेने योग्य एटला प्रमाणमां आलेखीने पोतानी आलेखनसूझनो सारो एवो ख्याल आप्यो छे.
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