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भूमिका
'प्रद्युम्नकुमार-चुपई'ना वा. कमलशेखरे प्रसंगालेखननी दृष्टिए नीचे प्रमाणे छ विभाग पाड्या छ :
(१) कृष्ण-रुक्मिणी विवाह : कडी १थी १०६-कुल कडी १०६ (२) जांबवतीपाणिग्रहण : कडी १०७थी ११४-कुल कडी ८ (३) प्रशुम्नविद्याग्रहण तथा माता रुक्मिणी साथे मिलन : कडी ११५थी ४६४-कुल
कडी ३५० ४) प्रद्यम्नविवाह : कडी ४६५थी ६३१-कुल कडी १६७ (५) शांव-प्रद्युम्नपाणिग्रहण : कडी ६३२थी ६९६-कुल कडी ६५ (६) नेमकुमार-दीक्षा, केवळज्ञान तथा प्रद्युम्नकुमार-दीक्षा, ज्ञान अने निर्वाण : कडी
६९७थी ७५९-कुल कडी ६३ दरेक विभागने अंते कर्ताए संस्कृत भाषामां, विभाग-अंतर्गत आलेखायेला विशिष्ट कथाप्रसंगोनो उल्लेख करी ते दरेक विभागने 'सर्ग' कह्यो छे. जेम के त्रीजा सर्गने अंते कवि लखे छे -"इति प्रदिमनकुमारचरित्रे विद्याग्रहण रुखमिणीमातामिलनो नाम तृतीय सर्ग: ।”
उपयुक्त विभागो जोता एम जणाय छे के ज्यांथी कथानो नवो तबक्को शरू थाय के त्यांथी नवो विभाग शरू थाय छे. रुक्मिणी-कृष्णना विवाहनो मुख्य प्रसंग अने सत्यभामा द्वारा नारदनो . अनादर के रुक्मी-शिशुपालन कृष्ण साथै युद्ध इत्यादि प्रसंगोने लईने कर्ताए प्रथम सर्गनी योजना करी छे. रुक्मिणी विवाहना प्रसंगनी समाप्ति करी बीजा सर्गमां तहन नवो ज प्रसंग के जेने पहेला सर्ग साथे कंई संबंध नथी ते जांबवती-पाणिग्रहणनो प्रसंग मात्र आठ ज कडीमां आलेखायो छे. प्रद्युम्नकुमारनी कथामां पूर्वभूमिकारूपे रहेला आ वे महत्त्वना प्रसंगो पछी, त्रीजा सर्गथी प्रद्युम्नकुमारनी कथानो आरंभ थाय छे. तेमां प्रद्युम्नना जन्म अने तेना अपहरणथी मांडी तेनी विद्याप्राप्ति, तेना अवनवा साहस अने मायावी पराक्रमोनी कथाना आलेखन बाद सोळ वर्षे तेनी माता रुक्मिणीने मळे छे त्यां सुधीनी घटनाओर्नु आलेखन करेलुं छे आम आ सर्गमां प्रद्युम्नना जीवननी महत्त्वनी घटनाओन आलेखन थयु होवाथी तेनो विस्तार अन्य स्र्गनी सरखामणीमां वधु रह्यो छे. चोथा सर्गना आरंभे भले कवि "एतलई अवर कथांतर हउ (४६५)" एम कहे, परंतु तेमां पण कोई नवो बनाव न बनतां त्रीजा सर्गनी माफक मायावी विद्याबळथी प्रद्युम्न द्वारा अन्य पात्रोनी कनडगत अने युद्धनुं निरूपण करेलुं छे. त्रीजा सर्गमा भानुकुमार, सत्यभामा, वसुदेव के रुकमणीने प्रद्युम्न पोतानी मायावी विद्याओनो परचो बतावे छे, तेम ते चोथा सर्गमा बलिभद्र, अन्य यादवो, कृष्ण तथा पुनः सत्यभामाने पोतानी मायावी विद्याओनो चमत्कार अने साहसवृत्तिनो परिचय करावे छे. आथी चोथो सर्ग ए कथाप्रवाहमां कोई नवु वहेण नथी दाखवतो, परंतु त्रीजा सर्गना कथाप्रसंगनो विस्तार ज साधे छे. वळी आ सर्गमा कृष्णनी साथे प्रद्युम्नकुमारनुं मिलन याजाय छे, ते पछी प्रद्युम्न द्वारा सत्यभामाने रूपधान बनाववाना बहाने विरूप बनाववानो जे प्रसंग योजायो छ ते संकलनानी दृष्टिए उचित नथी लागतो, कारण के प्रद्युम्न साथे कृष्णर्नु मिलन योजाय छे, ते पूर्व प्रद्युम्न द्वारा मायावी विद्याओ वडे तेना स्वजनोने रंजाडवाना सर्व प्रसंगोनुं आलेखन थई गयु होय छे अने ते पछी कृष्णनी साथे मळी प्रद्युम्न द्वारिकामां ठाठमाठ साथे आवे छे अने ते वखते त्यां आवेला तेना पालक पिता कालसंवरनी रति नामनी पुत्री साथे तेना विवाह
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