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________________ ३४ प्रद्युम्न कुमार- चुपई मात्रानुं बंधारण, दुहाना विषम चरणना बंधारण जेवुं होय छे. त्रीजा अने चोथा चरणनी १५ मात्रा ३+३+५+४ ए रीते वहेंचायेली छे. त्रीजा अने पांचमा चरणनो प्रास मेळवेलो होय छे. ढाल :- मात्र एक ज वार, प्रद्युम्नहरणथी दुःखी रुक्मिणीना विलापनु (कडी १४६ थी १५३) वर्णन कविए ढालमां कयुं छे, पण ते दुहानी ज देशी छे. आ रीते जोईए तो वा. कमलशेखरे प्रस्तुत कृतिमां मात्रामेळ छंदनो विशेष उपयोग कर्यो छे. वर्णनो सामान्य रीते चोपाईमां ज आलेखायां छे, तो बीजी एक नोधनीय वस्तु ए छे के शिशुपाळ, प्रद्युम्न, कृष्ण के रुक्मी जेवा वीर पुरुषो ज्यारे क्रोधमां आवीने युद्ध करे छे के युद्ध माटे पडकार फेंके छे त्यारे तेनुं शब्द-चित्र आलेखवा माटे कर्ताने वस्तुछंद विशेष योग्य लाग्यो जणाय छे. अनुक्रमे कडीसंख्या ७०, ४९१, ५०३, ६८१ एनां उदाहरणो छे. ४. विस्तार अने विभाग :- (क) रासकृतिना विस्तार परत्वे १३-१४मा सैकामां ५० कडी जेटला विस्तार आसपास प्रमाण साधारणपणे देखाय छे. पण ते पछी १५ मा सैकामां ५० कडीनी रचना ओछी पण १००-१५०थी २००-३०० कडीनी रचनाओ वधु प्रमाणमा देखाय छे. आ ज सैकामां एक बे हजार कडीना विस्तारनी रचना देखावा मांडे छे. पण ते बहु ज थोडी. आम १५मा सैकामां एक हजारथी वधु कडीनी रचनानुं वलण शरू यु एम कही शकाय १६मा सैकामां २००थी ४०० कडीनो विस्तार साधारणपणे स्थिर थतो जणाय छे, अने ते सामे ५००-६०० थी मांडी बे हजार कडीना विस्तारनी रचनाओनु प्रमाण वतु जाय छे. ते पछी १७-१८मा सैकामां एक हजारथी मांडी छ हजार करतां पण वधु कडीनी विस्तृत रचनाओ प्राप्त था छे. आम शरूआतना रास ट्रंका हता पण पाछळथी तेनो विस्तार वधवा मांडयो. (ख) शरूआतना रासाओनां विभाग पाडवानुं वलण ओछु हतुं, पण पाछळथी तेना विभाग पाडवानी पद्धति दाखल थई, रासना कडवा, ठवणि, वाणि, भाषा, आदेश, खंड, उल्लास, ढाल एवा विभागो पाडवामां आवता. आमां "ढाल " विभाग हमेशां कथानो विभाग न सुचवतां लढणसूचक अर्थमां वपरायेलो घणीवार जोवा मळे छे. पठननी अनुकूलता के श्रोताओना रसनी जळवणी अर्थे रासना विभाग पांडवानी पद्धति शरू थई होय. आपणे आगळ जोयु तेम, वा. कमलशेखरे प्रस्तुत कृतिनी रचना ७५९ कडीओमां करेली छे. आम, पचास के सो कडी जेटलो ट्रंको य नथी अने हजारथी बे हजार कडीओ जेटली लांचो पण नथी, परंतु तेनो विस्तार सामान्य रीते मध्यम ज गणाय. लांबी लचक स्तुतिओ, निरर्थक वर्णनो, अप्रस्तुत आडकथाओ के कडीओनी कडीओ सुधी लंबातो धर्मोपदेश इत्यादि विगतो कृतिना लंबाणनुं कारण होय छे. परंतु प्रस्तुत कृतिमां उपर्युक्त सर्व अंगो प्रमाणसर ज आलेखायां छे. काव्य-विभागना नामकरण परत्वे आ कृति नोधनीय छे उपर जणावेला कडवा, ठवणि, खंड, ढाळ इत्यादि विभागोने बदले, महाकाव्यनी रीते वा. कमलशेखरे आ काव्यने जुदा जुदा छ सर्वोमां विभक्त कर्यु छे, रासकृतिना विभागोना नाम पैकी आ 'सर्ग' नो उल्लेख एक अपवादरूप होय तेम जणाय छे डो. भारती वैद्ये पण तेमना पुस्तकमां, रासकृतिना विभागने कोई ठेकाणे कोईए सर्ग कह्यो होय तेतुं नोंध्युं नथी. कदाच वा. कमलशेखरे, प्रस्तुत कृतिना एक आधारग्रन्थ कवि सधारु कृत ' प्रद्युम्नचरित'ना अनुकरणमां ज, पोतानी कृतिना विभागोने सर्ग कह्या होय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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