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प्रद्युम्नकुमार-चुपई ७. केटलाक शब्द अंतर्गत अर्ध रकारनी आगळ्नो व्यंजन बेवडाववामां आव्यो छे.
जेम के:-दर्पण २७, धर्मपुत्र १६९, कर्म १३२ इत्यादि.
८. बहधा जे शब्द बेवडाववानो होय तेनी पाछळ २ नी संख्या लखवामां आवी छे. जेम केः बिमणा (२) नांखई तोर ७४, हण (२) करी हकारिउ १११, जय (२) सबद हुउ जेतलइ २४१, पुन्य बलवंत (२) अछइ संसारि २८८, ठीगतु (२) बांभण गयु ४१४, धिग (२) ए राजुमती नारि ७०७ इत्यादि. उपसंहार:
जोडणीनी अनियमितता, संख्यांकमा भूलो, शब्दोनु बब्बेवार लखाई जर्बु, विरामस्थानोनी केटलेक ठेकाणे भूलो, शब्दमांना अक्षरोनु केटलेक ठेकाणे उलटसुलट लखाई जवु, केटलीक जग्याए लखेलु हरतालथी भूसी तेना पर फरीथी लखेलुं लखाण, स्वच्छतानी केईक अंशे न्यूनता ई. विगतो लहियानी बेदरकारी अने तेनी अविद्वत्ता दर्शावे छे. क्यांक शब्दमांनो अक्षर लखवो रही गयो छे. क्यांक हस्व के दीर्घ इ के उ लखवाना रही गया छे. क्यांक पंक्ति पूरी थये दंड मूकवाना रही गया छे. क्यांक 'चिी'-आ प्रमाणे अक्षरने हृस्व अने दीर्घ बन्नेना चिह्न लगाब्यां छे. क्यांक संख्याक्रम बब्बेवार लखाई गया छे, तो क्यांक लखवाना रही गया छे. शब्दमां क्यांक खोटा के वधाराना अक्षरो घूसी गया छे. शब्दमां क्यांक पंक्तिना पूर्वार्ध के उत्तरार्ध लखवाना रही गया छे. टूकमां प्रतनुं लखाण सुवाच्य जरूर छे, परन्तु शुद्ध के स्वच्छ तो नथी.
संपादित ग्रन्थपाठमां जोडणी मूळ प्रत प्रमाणे नियम तरीके राखी छे. तेमां विसंगतता होय तो पण घणुखरू जेमनी तेम रहेवा दीधी छे, कोईक ठेकाणे स्पष्ट रीते ज कानो-मात्र के अनुस्वारनी शरतचूक थई लागती होय त्यां ते भूल सुधारी लेवामां आवी छे अने त्यां मूळ शब्द, नीचे पादटीपमां मूक्यो छे. प्रतमां कडीनी संख्यामां भूल छे, ते सुधारी लेवामां आवी छे. प्रतमां कर्ताए वच्चे वच्चे बीजा ग्रन्थीमांथो उद्धत करेला श्लोको के गाथाओने पण चालु क्रमांक ज आपेला छे. अहीं संपादित ग्रन्थाठमां तेने जुदा क्रमांक आप्या छे, जेथी कर्ताए पोते लखेली कुल कडीनी संख्या केटली, अने बहारना आगन्तुक श्लोक-गाथाओनी संख्या केटली ते मालूम पडे. संपादित पाठमां दरेक प्रसंगने पेटा-शीर्षको आपवामां आव्या छे.
२. वाचनाचार्य कमलशेखर - तेमन जीवन अने कवन संवत ११६९ मां आर्यरक्षिते, अपरनाम विजयचन्द्र उपाध्याये, विधिपक्षगच्छनी स्थापना करो, “सूरि" पद प्राप्त थया पहेलां आ उपाध्यायजीए 'विणप' नगरमां कोडी (कोटी) व्यवहारीने प्रतिबोध्यो. तेनी पुत्री समयश्रीए दीक्षा लीधी. आ व्यवहारीने जेसिंगदेए (सिद्धराज जयसिंहे) णेतानो भंडारी को हतो कुमारपाळना समयमा प्रतिक्रमण करता हेमचन्द्राचार्यने पोताना वस्त्रनो छेडी राखीने ते वांदणा देवा लाग्यो. कुमारपाळ राजाए तेने, "वस्त्रांचले केम वांदणा आपे छे ?"एम प्रश्न करता हेमचन्द्राचा कह्य के 'ते प्रमाणे सिद्धांतनो मार्ग छे.' त्यारे कुमारपाळ राजाए "विधिपक्षगच्छ' एवं नाम सार्थक छे"-एम कही प्रशंशा करी, 'विधिपक्ष' नाम राखवाने उत्सुक थई, 'अंचलगच्छ' नाम स्थाप्यु छे.' आ अंचलगच्छमां
जर कविओ-भाग २जों' पृ. ७६६.
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