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भूमिका
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"शेखर", "चन्द्र” “प्रभ", "रत्न”, “लाभ”, “मूर्ति" इत्यादि अनेक शाखाओ विस्तार पामी छे. तेमां "शेखर " शाखानो इतिहास विशेष महत्त्वपूर्ण छे. मुनिशेखरसूरि, मणिक्य शेखरसूरि, धर्मशेखरसूरि इत्यादि अनेक आचार्योए साहित्यनुं विपुल सर्जन करी, आ शाखानी प्रतिष्ठा वधारी छे कवि चक्रवर्ति जयशेखरसूरि तो आ शाखाना के गच्छना ज नहि परन्तु गुजराती साहित्यना उत्तम कोटिना कविओमांना एक हता. वा. कमलशेखर पण एक सारा ग्रन्थकार तरीके आ शाखामां ख्यातनाम हता.
आ "शेखर" शाखामांथी तेनी पेटाशाखा तरीके पालीताणीय शाखा अस्तित्वमां आवी छे. संवत १७३६ मां रचायेल श्री नयनशेखर - कृत " योगरत्नाकर चोपाई" मां आ पालीताणीय शाखानो निर्देश आ प्रमाणे छे.
श्री अंचलगच्छि गिरुआ गच्छपती, महामुनिसर मोटा यती श्री अमरसागर सूरिसर जांण, तप तेजइ करि जीवइ भाण ९२ तास ताई पषि शाखा घणी, एक एक मांहि अधिकी भणी पंच महाव्रत पालइ सार, इसा अछइ जेहना अणगार ९५ ते शाखामांहि अति भली, पालीताणीय शाखा गुणनिली पालिताचार्य कहीइ जेह, हूआ गछपति जे गुणगेह' ९६
a. कमलशेखर आ पालीताणीय शाखामां ज थई गया छे. एम वा. कमलशेखरना प्रशिष्य विवेकशेखरना शिष्य विजयशेखरे तेमनी संवत १६९४ मां रचेली "चंदराजा चोपाई" मां सूचित कर्यु छे.
श्री अचलगछि राजीयउ, प्रतपि सूरज तेजि री माइ श्री कल्याणसागरसूरीश्वरु, वंदीजइ मनहेजि री माइ १२
तस आज्ञाकारी भला, पालीताणीया वंसि री माइ कमलसेखर वाचक पद, साधुमइ थया अवतंसरी माइ १३
१. 'जैन गुर्जर कविओ' - भाग चीजो, पृ. ३५१-३५२.
श्री मोहनलाल दलीचंद देसाईए 'जैन गुर्जर कविओ-भाग २ जो' पृ.७७६ उपर एव निर्देश कर्यो छे के आ पालीताणीय शाखा अमरसागरसूरिथी नीकळी छे, अने तेनी पुष्टि अर्थे उपर्युक्त नयशेखर (नयनशेखर जोइए) कृत " योगरत्नाकर चोपई" नी प्रशस्ति जोवा सूचन्युं छे. आ अमरसागरसूरिनी समयमर्यादा तेमणे पोते संवत १६९४ थी १७६२ सुधीनी नी छे. (जुओ 'जैन गूर्जर कविओ, भाग २ जो, पृ. ७७६). तेथी ए रीते जोतां आ पालीताणी शाखा आ समयमर्यादानी पूर्वे तो अस्तित्वमां न ज होई शके. परन्तु प्रस्तुत वा. कमलशेखरनी विद्यमानता संवत १५८० थी संवत १६४८ सुधीनी लगभग गणाय छे. अने तेओ आ ज पालीताणीय शाखामां थइ गया छे तेवो निर्देश आपणने प्राप्त थाय छे. तेथी आ पालीताणीय शाखा, श्री देसाई कहे छे तेम अमरसागरसूरिथी नहि परन्तु वा. कमलशेखरनी पूर्वे लगभग सोळमी सदीना उत्तरार्धमां कोई आचार्यथी नोकळी हशे, एम अनुमान थई शके.
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