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________________ भूमिका काष्टमुनि विहारना क्रमे फरतां फरतां ते न नगरमां आध्या अने अकस्मात ते वज्राना घरे भिक्षा माटे आल्या. वज्राए पोताना पतिने ओळखीने विचार्य, “जा आ मने ओळखशे तो मारी हेलना करशे" आथी तेणे भिक्षाना पात्रमा भिक्षानी साथे पोतानु एक आभूषण मूकी दई पोकार को. तेथी राजसेवकोए ते साधुने चोर धारीने पकडी राजा पासे लई गया. ते वखते राजा पासे बेठेली धात्रीए तेने ओळखीने राजाने का के, "आ तारा पिता छे", एटले राजाए सर्व वृत्तान्त जाणी, पिताने हवा इच्छती माताने गाम बहार काढी मूकी अने पोते श्रावक थयो. आम अहीं भ्रष्ट थयेली स्त्री, बेवफाइनी हदे पहोंची, पोताना पुत्र अने पतिनु कासळ कादवा तैयार थई जाय छे. . काश्मीरनी लोककथामां पण एक एवी कथा छे के जेमां जारना कहेवाथी पत्नी पतिर्नु कासळ काढी नाखे छे. पण पळी तेना फळरूपे ज जार तेने तरछोडी जाय छे त्यारे पोतानु कपट छूपाववा अने पोताने निर्दोष पुरवार करवा स्त्रा केयूँ चरित्र करे छे तेनो वृत्तान्त जोईए': एक वेपारी तेनी पत्नीने घरे मूकीने वेपाराथें बहारगाम गयो. आ बाज वेपारीनी पत्नी एक फकीर साथे विलास करवा लागी. एक दिवस वेपारी घरे पाछो आग्यो, आ गामनो राजा रात्रे नगरचर्या जोवा नीकळतो हतो. ते वखते मध्यरात्रीए ए वेपारीना घर पासे आवी ऊभो अने जोयु तो वेपारीनी पत्नी रांधेला भातनी थाळी माथे मूकी क्यांक जती हती. राजा छपातो छपातो तेनी पाछळ पाछळ गयो अने जोयु तो ते एक फकीर पासे गई अने थाळी मूकीने प्रणाम करी ऊभी रही. अने फकीरने भात आरोगवा विनंति करी. त्यारे फकीरे पोतानी डांगथी तेने फटकारी अने मोडा आववा माटे कारण पूछाय. एटले वेपारीनी स्त्रीए पोतानो पति घरे पाछो आव्यो छे अने तेथी मोडं थई गयु एम कही भात खावा जणाव्यु. पण फकीरे भात खावानी ना पाडीने का के "तुं ताग पतिर्नु माथु कापी लाव तो ह' भात खाऊं." जारनी ए वात पण मान्य राखी स्त्री घरे गई अने पोताना ऊंघता पतिनु माथु कापी नाख्यं अने फकीर पासे लावी त्यारे फकीरे तेने डांग वडे फटकारी कह्य के "तु तारा पतिने वफादार नथी, तो मने क्याथी वफादार रहेवानी ?"-आम कही ते चाल्यो गयो. राजा आ बधु जोतो रह्यो. ___सवारना राजाए शोरबकोर सांभळ्यो के, "वेपारीने चोरोए मारी नाख्यो छे." वेपारीनी स्त्रीए पण 'पोताना पतिने चोरोए मारी नाख्यो छे.' एवी वात राजाने करी. राजा जाणतो हतो के वेपारीने कोणे मारी नाख्यो छे. लोको गुनेगारने शोधवा मांड्या इत्यादि... एम मनाय छे के स्त्री स्वभावथी ज चंचळ हृदयनी होय छे. मेडिये पूरो के जंगलमानां एकान्तमा एकली राखो, पण जो तेनी कामवासना उद्दिप्त थशे तो जारकर्म करवा विविध युक्तिओ अजमावशे. १. Hatim's Tale- "Kashmiri Stories and Songs" प्रष्ठांक १३ थी १७, कर्ताः-Aurel Stein & G. A.Grierson. २. जारना हाथे स्त्रीमार खाय छे-ए कथानक माटे जुओ: पृष्ठांक ५७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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