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________________ ८२ प्रद्युम्नकुमार-चुपई काश्मीरनी एक बीजी लोककथामां आवी ज एक वात आवे छे.' एक दिवस शिकार करता एक राजोने एक फकीर मळयो अने तेणे राजाने कंइक मागवा कह्य. राजाए एक सुन्दर परनी मागी. फकीरे कयु के, “हु तने ते आपीश पण चेती जजे के, स्त्री बेवफा ज निवडशे.” राजाए का', 'कइ वांधो नहि.' फकीरे तेने सुन्दर पत्नी आगी. राजाए ते राणी माटे जंगलना एकान्तमा एक महेल बंधाब्यो अने बने एटलो वधारे समय तेनी साथे रहेवो लाग्यो. एक दिवस ते राणीए राजानी गेरहाजरीमा महेल नोचेथी सुन्दर अने युवान एवा वजीरने जतो जोयो, ते तरत ज तेना प्रेममां पडी अने तेने उपर बोलाव्यो. आ प्रमाणे रोज तेओ गुप्त रीते मळवा लाग्यां. एकबीजानां मन खूब मळी गयां त्यारे वजीरे शहेरथी राजमहेल सुधीनु गुप्त भोयर खोदाव्यु अने ते मार्गे रोज ते राणी पासे आववा लाग्यो. एक दिवस वजीरे एक मोटी मिनबानी गोठवी अने राजाने आमंत्रण आप्यु. पेली राणी पण वेशपलटो करी त्यां आवी. राजाए तेने ओळखी लीधी. छतां चोकस खात्री करवा माटे राणीना वस्त्रना छेडाने हळदरनो डाघ पाडी दीधा अने चाल्यो गयो. रात्रे ज्यारे ते महेलमां राणी पासे आव्यो त्यारे तेणे ते ज हळदरनो डाध तेना वस्त्रना छेडे जोयो. तरत ज तेणे तलवारना झाटके राणीनो शिरच्छेद कर्यो अने बीजे दिवसे राजपाट छोडी फकीर बनी गयो. "अखेराज देवडा" नी कथामां पण आ ज कथाघटकमो उपयोग थयेलो छ : शिरोही नगरमां अखेराज देवडो राज्य करतो हतो. तेनु लग्न झालावाडमां एक झालीनी साथे थयु हतु, पण परण्यां पछी अणबनाव ५ तां राजाए बीजु लग्न कयु. झाली मवनाबना होई तेनु चित्त खूब कामातुर रहेतुं. एक दिवस दिल्हीना बादशाहनो शाहजादो देशाटने नीकळयो हतो, ते फरतो फरतो आ राणीना महेल नीचेथी नीकळयो. आवो कान्तिमान शाहजादो जोई झालीनु मन चळी गयु अने संदेशो पाठवी पोतानी इच्छा संतोषवा जणाव्यु, पण गभर शाहजादाए पोतानो छावणीए आववा जणाव्यु. रात्र राणी शाहजादानी छावणीनां आवी अने तेने शाहजादाए पोतानी पासे राखी दिल्ही चाल्यो गयो. सवारे ज्यारे अखेराजने आ वातनी खबर पडी त्यारे ते अने सेनो भाणेज उमेदसिंग दिल्ही गया. रस्तामा पोताना ओळखीता नटोनी साथे दिल्हीना राजा पासे ढोलवाळाने वेशे तेओ गया. शाहजादानु माथु खाळामां लईने बेठेली झालीने जोतां प्रचंड आवेगमां आवी ते जोरथी ढोल बजाववा मांडयो. झालो अखेराजने ओळखी गई अने शाहजादाने ओळख आपी. शाहजादाए ढोलवालानु मस्तक कापी नाखवानो हुकम कर्यो. आ हुकम दोर उपर चढेला मटे सांभळयो अने विचार कर्यों के "लाख मरजो पण लाखनो पाळवावाळो मरशो नहि". तेथी ते दोर उपरथी ऊतरी राजा पासेथी ढोल लईने पोते वगाडवा मांडयो. सिपाइओए आवीने बोल वमाडता नटनु माथु बाढी नाल्यु. १. "Folktales of Kashmir'-by J. H. Knowles [ Second Edition P.227-228] २, "भारत लोककथा"-प्रथम गुच्छ, पृष्ठांक १थी १७. संपादक "गुजराती" प्रेस. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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