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________________ भूमिका ८५ "उपरंभा भले आवे ने तमने विद्या पण आपे. शत्रु तमारे वश थाय एटले पछी तमे तेने अंगीकार करशो नहि. वाणीनी युक्तिथी छोडी देनो." रावणे आ वचनो स्वोकार्या. उपरंभा त्यां आवी पहोंची. तेणे आशाळी विद्या रावणने आपी. ते उपरांत बीजां व्यंतररक्षित अमोधशस्त्रो आप्यां. पछी रावणे ते विद्याथो ते किल्लो सर करी नलकूबरने पकड़ी लीधो. सुदर्शन चक्र रावणने त्यांथी प्राप्त थयु . पछी नलकूचर नमी पड्यो एटले रावणे तेनु नगर तेने पाल्छु सोंपी दीg. पछी रावणे उपरंभाने को, "तोरा कूळने योग्य एवा तारा पतिने ज तु अंगीकार कर कारण के ते मने विद्यादान दीधु एटले तुं तो मारे गुरुस्थाने छे. तेम ज परस्त्रीने हु माता अने बहेनने ठेकाणे ज जोऊ छ" आम कही तेने कलकूबर राजाने सोंपी. दिव्य विद्याओनी जेम छळ-कपटथी तेना मालिकने बनावीने दिव्य वस्तुओनी प्राप्ति पण थाय छे. राजस्थाननी लोककथामा 'राजकुमारी फूलमदे"नी कथामां आ प्रकारना वृत्तान्तनु निरूपण थयु छे'. ढूंकमा कथा आ प्रमाणे छः फूलमदे नामनी रामकुमारीने पोताना साहस अने पराक्रम वडे एक रजपूत जीतीने परणे छे. अने पोताने देश जवा नीकळे छे. रस्तामा एक जादुगर मळे छे. ते आ सुंदर राजकन्याने पोतानी पासे राखी जवानु कहे छे, अने तेना बदलामां एक जादुइ गदा पोते तेने आपशे एस जणावी "आ गदा, तेनो मालिक जे प्रमाणे हुकम करशे ते प्रमाणे करशे.” एम कह्य. रजपूते हुकम कर्यो के, "जादुगरने मार", तरत ज गदा जादुगरने मारवा लागी. ज्यारे खुब मार खाधो त्यारे जादुगरे जादुइ गदा अने राजकुमारो बन्ने रजप्तने भापी दीधां. सांजने टाणे बीजा गाममां बीजो एक जादुगर मळयो. तेणे पण रजपूतने राजकुमारीने पोतानी पासे राखी जवानु कह्य' अने तेना बदलामा पोते जादुइ दोरडु तेने आपशे एम एम कही, "आ दोरडु' हुकम थतां आखा सैन्यने कोइनी पण मदद विना बांधी शकेले" एम जणाव्यु. रजपूते तेनी पासे राजकुमारी मूकी अने जादुई दोरडु लई तरत ज तेने जादुगरने वांधी लेवानो हुकम कर्यों अने गदाने मार मारवानो हुकम कर्यो. खूब मार खाधो त्यारे जादुगरे दोरडु अने राजकुमारी बन्ने रजपूतने आपी दीधां. त्यारबाद पोताना गामनो राजा के जे आ राजकुवरी मागे छे, तेने पण जादुई गदा अने दोरडा वडे हरावी दे छे अने राजपाट भोगवे छे. __ उपर प्रमाणेनी ज कथा, "गुजरात तथा काठियावाड देशनी वारता" मांनी “बेलाराणी" की वार्तामा निरूपाइ छ.२ एमां एक राजकुमार पोतानी भाभीनु महेणु' टाळवा बेलाराणी पणीने आवे छे त्यारे रस्तामां तेना बे गुरुओने आ बेलाराणी आपवाना बहाने छेतरी तेमनी पासथी अनुक्रमे उपरनी कथा प्रमाणे ज, जादुइ सोटो अने दोरडू लई ले छे. १. 'Princess Fulamde' From : 'Folktales from Rajasthan' - p. 47-51 -by Birla L. N. २. 'गुजरात तथा काठियावाड देशनी वारता'-भाग २ जो. पृ. १३०-१३४. सं. गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी तरफथी हीरालाल त्रिभोवनदास पारेख (आवृत्ति २ जी) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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