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तृतीय सर्ग सिंहध्वजाइ बलिभद्र जोइ मीढाध्वजि घर वसदेव होइ जिहिध्वज विद्याधर अहिनाण ब्राह्मण वेद पढइ पुराण जिहां कलकलाट सुणीइ घणु ते आवास सतिभामातणु कनककलस सोहइ जिहि बारि ध्वज दीसइ गयणंगणि फार मणिमयगज दीसइ चउपासि ते तुम्ह मातातणु आवास
सुणी वचन हरखिउ परदवण तेह चरित्र नवि जाणइ कवण (प्रधुम्ननो द्वारिका-प्रवेश)
उतरि विमाननइ ऊभु थयु चाली कुमर नगरमांहि गयु हरिनंदन मोटउ एक .... .... बलि करइ कला नवनवी चाउरंग दल सेन संजुत्त भानुकुमर दीठउ आवंति ते देखी पूछइ कुमार एह कलयल सिं........ निसुणि वयण तव कहिउं विचार एह हरिनंदन भानुकुमार
एहथी नयरि घणु उछाह ए ते कुमर जिहतणउ विवाह (मायामयी अश्व अने प्रद्युम्ने लीधेलो वृद्ध ब्राह्मणनो वेश) :
तव पजून करइ उपाइ हवइ एहनु भांजु भडवाय बूढउ वेस विप्रनु करिउ चंचल तुरीय वैक्रय करिउ स्वेतवर्ण तुरीय करइ हीस च्यारइ पाय पखालइ दीस च्यारि च्यारि अंगुल जिहि कान राग वाग पघवाहइ सान एहवु अश्व पा[खरी]
साही वाग आगलि गयु धरी भानुकुमरि दीठउ ए एहवु ब्राह्मण गरढउ घोड जहु(?) जईनइ बाभण पूछिउ तिहा [ए] घोड लेई जाइ किहां बांभण भणइ ठाम आपणउ तेजी समुदवालिकातणउ । भाइ। सुणिउ भानुकुमर-2 नाम तेह भणी आणिउ तुरंगम ताम सुणि हो विप्र हूं भानकुमार अश्वरयण आपु मुझ सार निसुणि विप्र तूं माहरु वयण लिई सोवननइ आपि अश्वरयण विप्र कहइ दुडावी जोइ सुणिउ कुमर हर्षभरि सोइ 1. माइ 2. मानकुमरनु
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