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प्रद्युम्नकुमार-चुपई पहिलं प्रद्युमनकुमारनइ वरी भानु-वीवाहण पछइ संचरी नारद निसुणि माहरी वात हवइ भील करइ मुझ घात ३५६ तेह भणी परमेसर-सरण लिउ सन्यास कइ निश्चिई मरण तु नारद मनि हूउ संदेह विरूयु वचन इणि बोलिउं एह ३५७ तव रिखि कुमर प्रतिइ कहइ घणूं प्रद्युमन2 करु रूप आपणूं लक्षण बत्रीस सोवनमय अंगु रूप अनोपम जिसु अनंगु. ३५८ उदधिमालि देखउं ते रूप जाणे बयठउ [६]दहभूप
उदधिमालनइ रखि समझाइ चलिउ विमान सुभाविइ जाइ ३५९ (प्रद्युम्ननुं द्वारिकापुरी पासे आगमन)
आविउं विमान न लागी वार नयर द्वारिकांतणइ पयसार देखि नयर बोलय परदवण दीपइ पदारथ मोती-रयण धण-कण-कंचण दीसइ भरी नारद वसइ कवण ए पुरी
सिरि सोवन-कलस झलकति भरी नीर नइ नारी जंति (नारदऋषि द्वारा द्वारिकावर्णन)
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वस्तु
भणइ नारद नारद अ कहीइ द्वारिकापुरी जनम तुम्ह हूयु इहा कूया वावि वलि वन पवर बहु पयार जिणवरभवण
निसुणि परदवण वसइ पासमांहि सायर निरमल फटिक-मणि-जडिउ सरोवर घणा धवलहरे आवास पोलि गढ चिहुपासि
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चुपई
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कुमर भणइ नारद निसुणेइ केकेहनां ए भवनह एय वलतू रखि कहइ सुणउ कुमार यादवना घर ए अतिसार नगरमधि धवलहर उत्तंग पंचवर्णमणि-जटित सुचंग 3गरुडध्वज ते हरि-आवास सोवनकलस डंड सोहइ जास _1. सदेह 2. प्रद्यामन 3. गुरुड
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