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________________ ३४८ तृतीय सर्ग माहरी माय कनकमालतणी तुम्हे भगति करजो घणी इम कही चालिउ पजूनकुमार गिरि1 परबत मेल्हा अपार ३४४ (भीलवेशी प्रद्युम्न द्वारा भानुनी जाननी पजवणी ) वन उपरि वलि पहुतु जांम उदधिमाल2 तिहा दीठी ताम घणी जानजानणीइ मिली भानु-विवाहण जाइ वली ३४५ ए कन्या पहिलूं तुझ कही नारदि वात जणावी सही तुझनइ हरी धूमकेत गयु तव ए भाननइ मागणु थयु ३४६ रिखि कहइ तुझ नही ए खोडि । हुइ सक्ति तु लेइ विछोडि नारदवयण कुमर मनि धरइ । आपण वेस भीलनु करइ ३४७ घणइ कांधि सर लेई हाथि उतरि मिलिउ तेहनइ साथि पवनवेगि ते आगलि थयु देइ आखानइ ऊभु थयु4। हूं दांणी नारायणतणु दिउ दाण मुझ लागइ घणु वडी वस्तु आपु मुझ योगि । जिसइ जावा दिउं सघलं लोक ३४९ मुहुल भणइ निसुणि मुझ वयण वडी वस्तुमाहि मांगइ कवण अम्हे आपु तु सो तुं लेइ अम्हनइ आगलि जावा देइ ३५० भील रीसाणु दिई तव आण इणि परि किम तुम्ह लाभइ जाण भली कन्या जु आपण आहि ते मुझनइ आपी तुं जाहि ३५१ हरिनंदन परणइ ते जोइ अरे भील किम मांगइ सोइ । भील भणइ कुमरी दिउं सार हूं नारायणतणउ कुमार ३५२ महलुउ कहइ म कहि तूं मूढ जूठाबोल मोटउ कूढ त्रिणि खंडनु कृष्ण नरेस तेहनु पुत्र न हूइ भीलवेस ३५३ वाट छांडीनइ ऊवट जाइ केडइ भील कोडि बि धाइ अरे मूढ गमार कांइ थाइ आण भांजीनई किहां तू जाइ ३५४ (प्रद्युम्नकुमार द्वारा उदधिमालानु हरण) कुमरि ऊदाली लीधी पराणि चाली वेगिई चडिउ विमाण भील देखी कुमरी ते डरइ शोक-संताप घणउ दुख धरइ ३५५ __ 1. गिर 2. उदिधमाल 3. साकत 4. थुयु 5. साताप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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