________________
षष्ठम सर्ग
नेमकुमार - दीक्षा - केवलज्ञान, प्रद्युम्न-दीक्षा - ज्ञान-निर्माण
( रूपचंदराजानुं कृष्ण द्वारा बहुमान )
रूपचंदराजानइ !
हाथी घोडा आपि करि
कुडनपुर 2 नगरइ जइ मनवंछित सुख भोगवइ
चउबारु प्रासाद तिहां प्रतिमा चुवीस जिनतणी सत्तरभेद पूजा करी अनेक तीरथ वंदि करि
( प्रद्युम्न द्वारा जिन चैत्यालयोनी वंदना )
इरछंतर ते कुमर दोइ तीरथि जइ यात्रा करइ
( नेमि वृत्तांत )
हवइ दूहा
Jain Education International
कृष्णइ दीधूं मान
साथइ दीयु प्रधान
पालइ 3 आपणू राज
सारइ धरमह काज
एतलइ अवर कथांतर सुणइ परणवा आविउं तोरणबार जीव घणा बांध्या बहू बंधि स्वामी तुम्हारा गुरव काजि जीव वधी करिस्यु आहार धिग धिग ए वीवाह सिरइ 1. राजाननइ 2. कुंमडनपुरि 5. अवर 6. संबधि
समकित पामिउ सार अष्टापद उदार
सोवनमयी ऊत्संग
पूजइ नव नव अंगि
चाल्या अति उल्हासि आव्या द्वारिका पासि
चुपई
त्रिभुवनपति श्रीयादवतणउ नेमकुमारि तिहां सुणी पोकारि कहि रे सारथि किस संबंधि जीव आंणी घाल्या ए राजि धिंग धिग ए संसार असार कर्मबंध छूटसि कि परइ
3. पालाइ
4. समकित
For Private & Personal Use Only
६९७
६९८
६९९
७००
७०१
७०२
७०३
७०४
www.jainelibrary.org