SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२५ तृतीय सर्ग गाथा अन्नं रमइ निरक्खइ अन्नं अन्नं चिंतेइ भास अन्नं । अन्नस्स देइ दोसं कवडकूडी कामिणी वियडा ॥३१ - चुपई एहवी असतीतणु सभाउ जोउ जिम ऊजेणी राउ स्त्री-विस्वास बिंबि कीयु घणु स्त्रीनइ सुपिउ राज आपणउ ३२४ वली जे राउ यशोधर कहिउ अमयमहीदेवि जे सुख लहिउ । विस-लाडूया देइ मारिउ राउ कोई कूबडउ रमिउ करि भाउ वलि त्रीजउ निसुणउ तुम्हि जाण हूयू नयरि पाटणि पयठांण हापुसेठ वसइ तिणि कालि त्रिणि स्त्री तेहनी सुह लालि ३२६ सूतु सेठ तव वांणि बांधीयु प्रीय बांधीनइ ते स्यूं कीयु छांडी हापासेठनी कांणि धूरत एक घरि घालिउ आणि ३२७ परणिउ छांडि नाह सुपीयार धूरत आणि कीयु भरतार स्त्रीसाहस कोई अंत न लहइ स्त्रीचरित्र कवि केता कहइ ३२८ अभयाराणी करीय विनाण सुदंसण लगि गया पराण रावण-राम जु बांधी। राडि विग्रह सूपर्णखा लगाडि सीतहरण लंका परजली जोउ परियाण रावणर्नु वली घणी अक्षोहणि दल सांहारि कृष्णइ आणी द्रपदी नारि ३३० जिमसंवर कहइ3 दोष तुझ नही कनकमाल सि(१) रोष पूरवलखित न मेटइ कोइ प्रदिमन विद्या लेई गयु सोइ ३३१ असुभकर्म जव आवइ वही सुजन हुइ ते वयरी सही दोस न कनकमाल तुझतणुए लहिणु लाभइ आपणु ३३२ गाहा वज्जति गुणा विचलंति वल्लहा सज्जना इ विहडंति । विवसाए नत्थि सिद्धि पुरिसस्स परंमुहा दीहा ॥३२ ___ 1. बाधी 2. सूर्पमखा 3. कहइ 4. व्रजति 5. नित्य --- ३२९ " mmm Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy