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________________ तृतीय सर्ग २२५ Y लक्षण जोइ अहिनाणतणा इम कहितां दिन वुल्या घणा वात सुणउ हिव कुमरहतणी किणि परि विद्या पामी घणी २२३ (संवररायना पांचसो पुत्रोनो सिंहरथराजा साथेना युद्धमा पराजय) तिहां निवसइ सिंघराय नरेस तेह सिउ मांडउ जूझ नरेस जिम संवरराय कहइ सुजाण कुण भांजेसिई सिंघरथठाण २२४ दूहा कुमर पांचसइ तव कहइ राय करु पसाउ अम्हे जई तिहां जीपस सूर सिंघरथराउ तव ते दल लेई चालीया हीई धरी अभिमान गज-रथ-तुरंगम पाखऱ्या पायक मिल्या प्रधान ते सवि सिंधरथि त्रासव्या करी सिंघवाद्य जूझ ते देखी प्रद्युमन! कहइ भाई नासइ अबूझ (सिंहरथ अने प्रद्युम्ननुं युद्ध) तव ऊठिउ पजून तिहां पीयनइ कहइ सुजाण सामी तुम्ह पसाउ करु सिंघरथ2 टालू ठाण राय कहइ तूं नान्हडु न जाणइ जूझह वात नान्हउ सींह3 एवडु करइ मोटा गजघात २२९ २२८ यतः दाजावा जु जण मिल (?) बोलावइ अप्पाण4 । मइ दिठइ जु पग भरइ तु मुज जणणि अप्रमाण ॥२५ अज्ज वि नयण न उग्घडइ नखइ न लीधउ मग्ग । उद्यवि सिंघकिसोरडइ गयघड भडवा लग्ग ॥२६ किम हूं नान्ह उ तुझ कुंमर तव आदेस हूउ जिसइ जाणसि जूझह भेद चालीउ वेगि वछेद २३० 1. प्रद्यमन 2. संघरथ 3. सीह 4. आप्पाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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