________________
६.
( यमसंवरनुं द्वारिका - आगमन )
कुमरह सिरि आरती उतारि एतलइ मेघकूटनुं धणी
माणिक कंचणमाल संजुत्त पवनवेग विद्याधरराय
प्रद्युम्न कुमार - चुपई
( यमसंवर अने श्रीकृष्णं प्रथम रतिवामा जे कन्हइ कुमारि जिमसंवरि भेटिउ हरिराउ
तइ बालु पालिउ परदवण तव रूपणि बोलइ तिणि ठाय किमइ न ऊरण थाउं तुझ घणउ आविनइ करिउ ऊछाह
मिलन )
सतिभामा ते वातह सुणी सुणतां दसकु पडीयु पेटि सतिभामा कन्हइ आयु दूत कुमर तिहां आविउ मति घरी ( कुबजादासीनुं रूपपरावर्तन )
Jain Education International
देई आसीसि चाली वरनारि संवरराजा कीरति घणी
कुबजादासी दीठी जिसइ कह रे ताहरु कांइ विरूप दासीनइ तव गुटिका दीघ सतिभामा कन्हइ आवी जिसिइ दासी पगि लागी जेतलइ स्वामिनि हूं ते कुबजादासि
1. भाख
द्वारिकनयरी आय पहुच जेहनी सेन न सुझइ ठाय
ते आणी द्वारिकांमझारि कृष्ण कहइ तुम्हे कीउ पसाउ
(प्रधुम्ननुं सिद्ध पुरुष रूपे सत्यभामा पासे गमन )
तुझ सम सुज[न] नही को कवण कनलमालइ लागी पाय
पुत्र भीख 1 तइ दीधी मुझ कुमरपजून थापिउ वीवाह
वदनि हूई आमणदूमणी विवाह पुत्रनउ न हूउ नेटि रुखमणित जणाविउ सूत सिधपुरुषनुं रूपह करी
सिधपुरुष बोलावी तिसइ तुम्ह भेटिइ होसइ सरूप रूप अनोपम तेहनूं कीध दासीनूं रूप दीठउ तिसइ राणी बोलावइ तेतलइ सिद्धपुरुष वांदिउ जई पासि
For Private & Personal Use Only
५९२
५९३
५९४
५९५
५९६
५९७
५९८
५९९
६००
६०१
www.jainelibrary.org