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प्रद्युम्नकुमार- चुपई
वा. कमलशेखरना प्रशिष्य
विनयशेखर कृत " यशोभद्र चोपई" (सं. १६४३) नामनी कृतिनी पोते ज लखेली हस्तप्रतनी पुष्पिकामां आ प्रमाणेनो उल्लेख प्राप्त थाय छे :
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" संवत १६४४ वर्षे वैशाख शुदि १३ सोमे श्री अंचलगच्छे श्री धर्ममूर्तिसूरीश्वर - राज्ये वाचनाचार्य वा. कमलशेखर गणि तत् शिष्य रिषि श्री ६ सत्यशेखर गणि तत् शिष्य ऋ. विनयशेखरेण लिखितं श्री आगरानगरे उत्वारे । तैाद् रक्षेत् जलाद् रक्षेत् स्थलबंधनात् परहस्ते गताद् रक्षेत् एवं वदति पुस्तिका .
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आम संवत १६४४ मां लखायेल उपर्युक्त प्रत पुष्पिकामां वा. कमलशेखरना नामनो उल्लेख प्राप्त थाय छे. त्यार बाद आज विनयशेखरनी "शांतिमृगसुंदरी चोपई" (सं० १६४४) नी प्रत - पुष्पिकामां पण आ प्रमाणेनो उल्लेख छे :
" संवत १६४८ पोस शुदि ३ बुधे अंचलगच्छे वा कमलशेखर रिषि सत्यशेखर गणि शि. रिषि विनयशेखर रिषि विवेकशेखर लि. साध्वी विमला सध्यणी साध्वी कुशललक्ष्मी वाचनार्थ"
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आम संवत १६४८मां लखायेली उपर्युक्त प्रत पुष्पिकामां पण वा. कमलशेखरनां नामनो उल्लेख प्राप्त थाय छे. ए पछी एमना नामनो उल्लेख कोई प्रत-पुष्पिकामां, उपलब्ध माहिती अनुसार क्यांय प्राप्त थतो नथी. आथी अनुमान करी शकाय के वा. कमलशेखर संवत १६४८ सुधी विद्यमान हशे ए पछी पण तेओ थोडु जीव्या हशे आम उपर्युक्त सर्व प्रमाणोने आधारे वा. कमलशेखरनी विद्यमानता संवत १५८० थी संवत १६४८ सुधीनी गणावी शकाय एम छे.
वा. कमलशेखर परत्वे आथी विशेष माहिती उपलब्ध थई शकी नथी. एक "धर्ममूर्ति - गुरु फाग" सिवाय एमनी बीजी कृतिओ आज दिवस सुधी अप्रकाशित होईने साहित्यकार तरीकेनी एमनी प्रतिभा वणमूलवी ज रही छे. अहीं हवे पछी वा कमलशेखरनी कवन - प्रतिभाने, तेमनी उपलब्ध चारेचार कृतिने अनुलक्षीने, निरूपवानो प्रयत्न करेलो छे. वा. कमलशेखरं साहित्य - सर्जन
वा. कमलशेखरनी अत्यार सुर्ध मां, आपणे आगळ जोयुं तेम, चार कृतिओ उपलब्ध थई ७. ए चारे य कृतिओ तेमणे प्राचीन गुजराती भाषामां रचेली छे, अने साहित्याना त्रण भिन्न स्वरूपोनो ए कृतिओ परत्वे उपयोग करेलो छे-ते छे चोपाई, फागु अने भास. "नवतत्व चोपाई " अते "प्रद्युम्नकुमार चुपई " ए वे कृतिओ साहित्य-स्वरूपे एक छतां विषयी दृष्टि साव भिन्न छे. जैनपरंपरानी दृष्टिए मोक्ष-मार्गमां उपयोगी एवा जीव, अजीव, आस्रव, संवर इत्यादि नव तत्त्वोनी समजण "नवतत्त्व चौपाई " मां पद्यबद्ध करी सामान्यजनार्थे तेनुं अर्थबोधन सरळ बनाव्युं छे, तो 'प्रद्युम्नकुमार चुपई " मां, जैन परंपरा प्रमाणेना २४ कामदेवामांना एकवीसमा कामदेव अने नवमा वासुदेव श्रीकृष्णना पुत्र प्रद्युम्ननी जैन परंपरा प्रमाणेनी कथाने चोपाई -बद्ध करी छे, आम अनुक्रमे प्रथम कृतिमां तात्त्विक चर्चा भने बीमी कृतिमां पौराणिक कथाने विषय बनावी, ए बन्ने कृतिओना कलेवरो घडेलां छे. स्यारबाद
१. जैन गूर्जर कविओ - भाग १ लो. पृ० २८५ २. जैम गूर्जर कविओ-भाग ३ जो-खंड १लो पृ० ७७७
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