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________________ २८ प्रद्युम्नकुमार-चुपई __ 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र'मां नारदे पट उपर आलेखेला रूपने जोता कृष्ण कामविह्वल थइ, दत द्वारा भीष्मक पासे रुक्मिणोना हाथनी मांगणी करे छे. ते वखते रुक्मी जे वचनो उच्चारे छे ते आम छे : हसित्वोवाच रुक्म्येवं गोपो हीनकुलोऽप्यहो। मज्जामि याचते मूढः कोऽयं तस्य मनोरथः॥ [त्रि.श.पु.च.-पर्व ८मु-सर्ग ६ठो- लोक २०] 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई' मां पण लगभग आबुज आलेखन छे: "एह वात जव कांने सुणी महितइ जई मागी रुखमिणी दृतवचनि ते हसिउ कुमार गोपी हीनकुलइ अवतार ५१ अन्याई ए भूडु घणउं कंस वधी इहां आविउ सुणउं मूढ मनोरथ मोटउ करइ, ऊत्तम राय कुमरि किम वरइ ५२ अने त्यारपछी, पर्व ८. सर्ग ६ना लोक २१ अने २२'के जेमां रुक्मी शिशुपालने ज मॅक्मिणी आपवानो निर्धार करे छे, ते बन्ने संस्कृत श्लोको वा. कमलशेखरे पोतानी कृतिमा सीधेसीधा उतारी लीधा छे. वळी पोतानो विवाह शिशुपाल साथे थवानो छे, त्यारे रुक्मिणी, गमे तेम करीने कृष्णने मेळवी आपवानु पोतानी फोईने कहे छे त्यारे, 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' मां एम आलेखन छे के कृष्णेऽभिलाष रुक्मिण्या ज्ञात्वैवं सा पितृष्वसा । सद्यः प्रच्छन्न-दूतेन कृष्णायैवमजिज्ञपत् ॥२॥ वा. कमलशेखरे पण तेवा ज प्रकारनु आलेखन करतां को छे के कृष्ण-अभिलाष माइ जाणोयु, एक दूत प्रछन आणीयु कहि तु जइनइ यादवराय, चीरी आपी लागी पाय । ५४ स्यारबाद, 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' माथी पर्व ८, सर्ग ६, लोक २९थी ३२-ए चार प्रलोको के जेमां, रुक्मिणीनी फोईए कृष्णने, माघमासनी शुक्ल अष्टमीए नगरबहारनी वाडीमाथी रुक्मिणीनु हरण करी जवानो पाठवेलो संदेशो; रुक्मिणीने परणवा माटे शिशुपालन डिनपुरमां आगमन अने तेने आवेलो जाणी कलहप्रिय नारद द्वारा कृष्णने खबर आपवा-तेनुं निरू. छे. ते बा. कमलशेखरे पोतानी कृतिमा अक्षरशः उतारी लीधुं छे. आम कृष्णनी भीष्मक पासे रुक्मिणीनी मांगणी, रुक्मीए करेलो तेनो अनादर अने उपहास अने रुक्मिणीनी इच्छा. थी फोई द्वारा एक दूत मारफत गुप्त रीते कृष्णने रुक्मिणीना हरणनो संदेशो पाठववो-ए प्रसंगो कवि सधारु करतां वा. कमलशेखरे जे पोतानी कृतिमा विशेष आलेख्या छे. ते सर्व, उपर्युक्त रीते जोता, 'त्रिषष्टिशलाकापुरुष' ना आधारे आलेखाया छे एम निःशंकपणे कही शकाय. आ उपरांत, शिशुपाल अने रुक्मी मोटी सेना लई राम-कृष्णनी पाछळ पडे छे त्यारे बन्ने भाईओने एकला जोइ भयभीत थयेली रुक्मिणीने कृष्ण, तालवृक्षनी श्रेणिने एक ज बाणथी छेदी नाखी तथा अंगुठा अने आंगळीनी वच्चे राखीने पोतानी मुद्रिक्रानो हीरो मसूरना १ त्रिषष्टि-ना अहीं सर्वस्थाने आपेला पर्व, सर्ग अने लोकना संख्यांक, श्रीजैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर तरफथी प्रकाशित थयेल आवृत्तिने आधारे आपेला छे. २ त्रिषष्टि० पर्व ८, सर्ग ६, लोक २८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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