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________________ प्रद्युम्नकुमार-चुपई श्री-प्रतिमा लेइ करी बइसारी तिणि ठामि मूंन करी बइसी रहु . हुं जइ आवू ताम सतिभामानइ हरि कहइ जायो वनहमझारि हूं लेई आQ छु तिहां राणी रुखमणि नारि चुपई पाछउ आवी हरि तिहां थकी किमाउंतरि रहिउ ते लूकी सतिभामा सजाई करी सखी सहित जाइ परवरी वाविइ हाथपाय धोइ जिसिइ मालणि फूल लेई आवी तिसिई लेई पुप्फ जव देहरइ जाइ पूजी पुफि-फलि प्रणमइ पाय १०० देवि सुहासणि मुझनइ करे जिम मानइ यादव अतिखरे रूप अनोपम करु मुझतणुं पागि लागी माय मागू घj १०१ तव हरि हरखिइ हड हड! हसई2 तालोटा देई कर दोइ घसइ सतिभामा कहइ इम काइ राय वार वार तु लागइ पाय । १०२ एहनी भगति करे तूं घणी इणइ थांनइ बइठी रुखमिणी विलखवदनि बोलइ सतिभाय सिउं थयु जउ लागी पाय कूड-कुबुद्धि करु तुम्हि घणी ए बहिनि माहरी रुखमिणी राति-दिवस कतूहल करु गोवाल टेव न जाइं परु रुखमणिसिउ सतिभामा मिली बिइ आव्यां आवासिइ वली सवि सुख भुंजइ भोगविलास भोग पुरंदर लीलविलास १०५ प्रणम सगि3 परणी रुखमिणी कृष्णतणी वात कह घणी । बीजउ सर्ग4 जंबुवतितणु वाचक कमलशेखर कहइ सुणुः १०६ १०३ १०४ 1. वच्चे वधारानो 'इ' छे, ते काढी लीवो छे. 2. हस्यइ 3. स्वणि 4. स्वर्ग 5. अंते : कृष्णेन रुखमिणी परणीत नाम प्रथम स्वर्ग. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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