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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir વિ, સં. 145 કારતકી પૂર્ણિમા જન્મ, 1154 દિક્ષા કરાવતી નગરી, 1166 આચાર્યપદ, 1229 નિર્વાણ જગદુદ્દારક જગનું પૂજય કલીપલ સર્વજ્ઞ શ્રીમાન હેમચંદ્રાચાર્ય મહારાજ વી. સં. 1924 માં તાડપત્રપર હસ્તચિત્રીત મૂતિઓ પરથી લીધેલ કેટે // श्री पार्श्वनाथाय नमः // श्री गुणवर्मा चरित्र **44 ( द्रुतविलंबितवृत्तम् ) विजयतां जिनवाक्यसुधारसः. सकलपापविषापनयक्षमः // अजनि यस्य निरीक्ष्य मनोज्ञतां. शशिधराभिध एव सुधाकरः // 1 // | (उपजातिवृत्तम् ) करोतु वृद्धिं प्रभुपार्श्वदेवः, संकल्पितातीतफलप्रदाता // ચૌલુક્ય વંશ શીરોમણી ગુર્જદિ અઢાર દેશાધિપતિ પ્રલ પ્રતાપી અહિંસા પ્રતિપાલક પરમ જીનભકત પરમહંત કુમારપાલ ભૂપાલ. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्प द्रुमो युक्तमनेन साम्यं, नाप्नोत्ययं पल्लवधूननेन // 2 // वीरो जिनः सत्यपुरावतारः, सारश्रियं यच्छतु वांछितां वः॥ चरीत्र. यो वर्द्धमानां कमलां विधाय, पितु हेऽभूद्भुवि वर्द्धमानः // 3 // ( आर्यावृत्तम् ) श्रीअंचलगच्छेशाः, श्रीमंतो मेरुतुंगसूरीशाः / / विजयतां यदाण्या, सिता मिता संयुता पयसा // 4 // देवगुरुधर्मतत्वत्रयीसमासेवनेन सम्यक्त्वम् / / तेनैव देवपूजा, मूलं तस्यापि विज्ञेया // 5 // (स्वागतावृत्तम ) वर्तते यदि मनोरथमाला, राज्यऋद्धिरमणीषु विशाला // ईप्सिता यदि मनोज्ञतनूजास्तत्कुरुध्वमनिशं जिनपूजां // 6 // _ (अनुष्टुप्वृत्तम् ) | मोक्षसाख्यं फलं मुख्यं, गाणं राज्यादिकं पुनः॥ देवपूजाभिधा कल्पवली दत्तेऽन्वहं नृणाम् / पक्षा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir સુ. 11 દીક્ષા સ. 1949 અશાઢ સુદ 11 ગણિપદ સં 1961 માગશર સુદ 5 પ્રાતઃ સ્મરણીય-જગપૂજ્ય-વિશુદ્ધ ચારિત્ર ५मधी-तीया TAIMATE- गुरुप्रसादान्माणिक्यसुंदरः सूरिरल्पधीः॥ ભટ્ટારક-પૂજયપાદ-વિક-શ્રી-શ્રીશ્રી पूजाधिकारे वक्ष्यामि, गुणवर्मकथामहम् // 5 // पूर्व राजगृहे वीरः, श्रेणिकाग्रे जगौ यथा // तथा कथामौ विज्ञेया, पूजाफल निदर्शने // 9 // हस्तिनापुरमित्यस्ति, पुरं भरतमंडले // विहारवेश्मणाकारप्रतोली द्वारशोभितम् // 10 // 1. नवर्मनृपस्त्वत्र, जिनधर्मपरोऽभवत् // प्रिया लीलावती तस्य,शीलालंकारशालिनी // 11 // तत्कुक्षिभूः सुतस्तस्य, गुणवर्माभियोऽभवत् // कलाकलापकुशलः, कलशः स्वकुलस्य यः // 12 // सभायां संस्थिते भूपेऽन्यदा वेत्री व्यजिज्ञपत् // यायाय श्री-विशयनीतीसूरीशः॥ // 8 चापपुरनराधोशमंत्री द्वारे च तिष्टति // 13 // જન્મસ. 1930 પન્યાસપદ સં 1962 કારતક વદ 11 सा२५ 1473 भागश२ मुझ 5. For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण शा आनयेति नृपाज्ञप्तः, सोऽपि मंत्रिणमानयत् ॥नत्वा निविष्टंतं भूपः, स्माहविस्मापयन् बुधान् अस्ति चंपानिराकंपा. देशो नक्लेशलेशभाक्॥मन्मित्रं भूपतिः शूरः, पाति राज्यं प्रतापवान। अथ मंन्त्रिश्वरःप्रोचे, सर्वत्र कुशलं नृप // परं येनाहमायातः, कारणं तन्निशम्यताम् // 16 // के गुणावलीति नानास्ति,तस्य राज्ञी गुणालया। तत्कुक्षिजा सुता रत्नावली नानाच विश्रुता 17 / रूपलावण्यसौभाग्यभाग्यादिगुणरंजितः।। तस्याः स्ययंवरं कर्तुमारेभे भूपतिर्मुर्दा // 10 // आकारयितुमादिष्टो, निःशेषान्नृपतीन्नहं // प्राप्तोऽत्रापि ततः प्रीत्या, गम्यतां तत्स्वयंवरे / श्रुत्वेति भुपतिः प्राह. युक्तमुक्तं त्वया पुनः / / तत्र नागमनंभावि, यतोमांबाधते जरा 20 (उपजातिवृत्तम् ) जरा नराणां खलु काष्टकीटः, काष्टं यथांतस्तनु जीर्णयंती // तचूर्णपातादिव शुक्ललोमा, विलोक्यतेऽसौ किल वृद्धलोकः // 21 // प्रायो जनाः स्युः पशवः शिशुत्वे, स्त्रीशैवलिन्यां शफरा युक्त्वे // धर्मे मतिर्यस्य न वार्द्धकेऽपि, हाहा हतोऽसो मृगवन्मनुष्यः // 22 // ततस्तिष्टाम्यहं पुत्रं. प्रेपयामि स्वयंवरे // इत्युक्तवादर्शयद्भपो, गुगवर्मागांतिके THAT For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण * विलोक्य गुणवर्माणं मंत्री दथ्यौ मुदाहृदि / यद्येष वृणुते कन्या. सैव धन्या ततःक्षिता॥२४ / एवमेव ततः कार्यमित्युक्त्वा मंत्रिपुंगवः॥ ययावन्यत्रभूपेनादिष्टोऽचालीत् कुमारराट्॥२५ चरित्र | अर्धमार्गे व्रजन्नग्रे. तूर्णमायातमग्रतः // अद्राक्षीत् करभारूदं. स पितुर्लेखहारकम् // 26 // साश्चर्ये भूपतनये, लेखपर्ययति स्म सः।। तस्य शीर्षे तमुन्मुद्रय, वाचयामास राजसूः।।२७॥ // 3 // स्वस्तिश्रीहस्तिनपुरानरबर्मनरेश्वरः।। यथास्थानस्थितं पुत्रं. गुणवर्माणमादिशेत् // 28 // // 2 // . अस्त्यत्र कुशलं किंच. जयंतो नाम केवली॥ प्राप्तोऽस्ति तत्समीपेऽहं,संयम लातुमुत्सहे२९, * आगंतव्यं त्वया शीघं. न्यस्य राज्यं यथा त्वयि।।स्वकार्य माधयाम्येष, दुर्लभःसमयः पुनः 30 | ज्ञात्वेति कार्ययुगलं व्यग्रेऽथ नृपनंदने // पुरःकोऽपि समायातचंपातो लेखहारकः॥३१ लेखं समर्प्य सोऽवादीच्छ्रेण कथितं हि वः।।अपटुत्वेन कन्यायाः, स्थितोऽत्रास्ति स्वयंवरः।।। अथ प्रीतो निजं प्रोचे, कुमारो लेखहारकम्।। पश्चात्त्वं प्रहितः पित्रा, समागाः पुरतः कुतः॥३३॥ सजगौ स्वामिनिर्देशापामेव गतोऽस्म्यह।। अनागतंच तत्र त्वा, ज्ञात्वा व्याधुटितः ज्ञाणात्। पुरंप्राप्तः कुमारोऽथ, पितुः प्रीतिकृतेऽजनि।।सोऽपि तस्मै निजं राज्यं, दत्वा संयमभागभूत् / गुणवर्माथ संप्राप्तराज्यः प्राज्यप्रतापभाक्। स्वप्रजापालयामास.वासवोपमलीलया // 36 // *460-*: * tok46 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण // 4 // सभास्थिते नृपेऽन्येद्युइँतो वेत्रिनिवेदितः॥ समेतः प्रोचिवानेवं, पुनर्जातः स्वयंवरः।।३७ / / गुणवर्मा नृपोऽचालीदथ प्रस्थितसेनया // संप्राप्तश्च पुरीं चंपां, तस्थिवान् राजमंडले।।३० चरीत्र. - गौरगौरवपूरेण, शूरेण बहुमानितः // सोऽत्रावासमलंचके, शक्रेण समविक्रमः // 39 // / रत्नावलीसमादिष्टा, सारसी नामतः सखी॥सायंतनक्रियाप्रांते, प्राप्ता सा तेन मानिता।।४० कृत्वकांतंच सावादीत,कन्योक्तं शृणु वाचिकम् // अपाटवस्वरूपं यत्पूर्व जज्ञे तदप्यहो॥४१॥या जाते स्वयंरारंभे, रंभेवान्येयुर तम् / / रूपं दधाना सा सायं, गवक्षस्था ह्यराजत।।४२॥ | चिल्लीव रुदती श्येनेनैव तत्र खगेन सा॥ उद्धृत्य गगने नीत्वा, वने क्यापि व्यमुच्यत // 43 // न्यस्य पादं गले तस्याः, खङ्गमुक्षिप्य भीषणम् ॥ऊचे मुंचाम्यहं कंप्रे,मदाचं यदि मन्यसे॥ - मयास्ति कारितं चैत्यं, वैतादयाचलसंनिधौ // स्थापिताच युगादीशमूर्तिस्तत्र मनोहरा॥४५१ जिनयूजामहं रात्री, तत्र कुर्व निरंतरम् / / मिलंति खेचराः सर्व वीक्षितुं किल कौतुकम्॥ - राजकन्या सलावण्यास्तिस्रो नृत्यंति तत्र च / / त्वमप्य तचातुर्या, तुर्या तासांभवान्वहम्।। अदृश्यं प्रथमे यामे, यामिन्या नित्यमेष्यति // विमानं तत्त्वयामरागंतव्यं जिनमंदिरे॥४॥ * नांगीकार्यो विवाहोऽपि, ममादेशं विना त्वया।।सा स्वीकृतेऽखिले तेन पुनर्मुक्ता स्ववेश्मनि For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ततश्च तेषामेव सदुपदेशप्रभावाद् ग्रंथोऽयं प्रकटदशामुपैत्यधुना जैनसाहित्ये / यद्यप्यस्य / संशोधनकार्यमतिसावधानतया प्रयत्नपूर्वकं च यथामति कृतमस्ति तथापि जनस्वभावसु-चरित्र लभात् प्रमादादक्षरयोजकदोषाच ये ये दोपा दृक्पथमागच्छंस्तेषां शुद्धिपत्रमपि प्रकटीकृतमस्त्येव, परं स्तका च तथा नारी शुद्धयेतां न कदाचन' इति लोकोक्त्या यत्र कुत्राऽप्यायायाददृष्टिदोषो मुद्रणदोषो वा तर्हि___ “गच्छतां स्खलनं क्याऽपि भवत्येव प्रमादतः / हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति सज्जनाः " // इतीममनुसृत्य न्यायं कृपापीयूषपूर्णान्तःकरणा विवेकिनो विद्वांसः क्षस्यंत | इत्याशास्ते विद्वद्रशंवदः संशोधकः // 5 // RROR-46: For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रांकः पंक्तिः चरित्र 12 इस्ततः Y Y Y शुद्धिपत्रम्. अशुद्धम्. | पत्रांकः पंक्तिः अशुद्धम् शुद्धम. चांप चंपा 7 2 हपान्दपः हर्षान्नृपः तिष्टति तिष्ठति इतस्ततः मंत्रिश्वरः मंत्रीश्वरः 12 क्लशलेशविवर्जितः क्लेशलेशविवर्जितः भूपतिर्मुर्दा भूपतिर्मदा 9 बजतमपि ब्रजंतमपि भुपतिः भूपतिः दृष्ठा दृष्टा काष्टकीटः काष्ठकीटः विषणचित्तोऽसो विषण्णचित्तोऽसा काष्टं काष्ठं 14 3 च्यूतं ततस्तिष्टाम्यहं ततस्तिष्ठाम्यह 17 3 शादूलविक्रीडितम् शार्दूलविक्रीडितम् / / साऽपि सोऽपि 10 श्रेष्ठी मलंचके मलंचक्र 3 गिरिगुह गिरिगुहां स्वयंरारंभे स्वयंवरारंभे 4 पार्श्वदेवधिश्चाष्ठाता पार्श्वदेवश्चाधिष्ठाता गवक्षस्था गवाक्षस्था " 10 सोधर्म सोधर्म 21 3 श्रुत्वेयुद् श्रुत्वेत्युद् सर्वे 4 स्तत्राहजन्म स्तबाह जन्म से श्रेष्ठी निरंतरम् नितरम् सर्व For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रांकः पंक्तिः 23 10 1 25 9 बहो अशुद्धम्. शुद्धम्. / पत्रांकः पंक्तिः अशुद्धम. अचलगछेच्श अंचलगच्छेश आगच्छति आगच्छेति नागदशाहवयः नागदशाहवयः पृष्टानुगा पृष्ठानुगा कूपदष्टातो पर्दष्टांतो निजोत्संग निजोत्संगे तारं तार बद्धो धर्मण्यपि घर्मण्यपि सेोमस्त सोमश्रीस्त धावतः धावत स्वजा सजो पुरों कुसुमस्त्रजः कुसुमनजः क्रमेणे क्रमेण प्राचिरे प्रोचिरे विषण्णधी विषण्णधीः पुष्पस्त्रक पुष्पस्त्रक व्यचारयामास विचारयामास 602 तददृष्ट्वा विलोकयल्लक्ष्मी व्यलोकयलक्ष्मी | 61 2 नाम्रा नाम्ना श्रेष्टिनो श्रेष्टिनो स्त्यथै कीडत क्रीडतं नीवेश्यनां निवेश्यनां लक्ष्मधरो लक्ष्मीधरो 1 पठश्चछायाटरो षष्ठ छायाकरो कुसुमाग्रह कुसुमाग्रहम् 65 12 सुरागंधसमन्वित मुरागंधसमन्वितम् ददशकं ददशकं / 96 4 पुष्णं त्रपूष्णं तदृष्ट्वा स्त्रयर्थे 45 2 46 11 52 2 // 2 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रांकः पंक्तिः 70 12 चरित्र अशुद्धम् शुद्धम् | पत्रांकः पंक्तिः मंतिता मंत्रिता स्वबुद्धया स्वबुद्धया तच्छुत्वा तच्छु त्वा गृहीतोऽस्त्या गृहीतश्चास्त्यमा 8. 8 पस्मेश्वरी परमेश्वरी येथारुचि यथारुचि प्रेक्षिता कृता स 20 गेहे अशुद्धम् शुद्धम् / क रतां कपूरतां सुस्वान्यसा मुखान्यसो भुक्तवा मुत्क्वा पृथक पृथक वरमाला वरमाला स० तच्छुत्वा तन्छ त्या तच्छुत्वा तस्छु त्वा कार्थकारं कथंकारं वृद्विरुप्यते वृध्धिरुप्यते भवद्गयां भवद्भयां देवो देव ! गवाक्षयित् गवाक्षात् श्रृत्वोपदेशं श्रुत्वोपदेशं सुमनाहरम मुमनोहरम् वृणिष्वेति वृणीष्वेति सञ्जायन सज्जयन् 882 92002 दृत्वा मस्म दत्त्वा भस्म . बधुरसि बंधुरसि समाप्तः कपरो // 3 // समाप्तः कपूरो For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरित्र नीला इद 128 बुद्धा पत्रांकः पंक्तिः - अशुद्धम् अशुद्धम् शुद्धम् पत्रांकः पंक्तिः অপু 95 10 शरीराभरणादिकम शरीराभरणादिकम् 1155 लग्नः 7 एषः रुधिरेः रुधिरैः भ्रमद्भमरझंकारं भ्रमभ्रमरझंकार परिणेप्यामि परिणेष्यामि 984 देवयोगन देवयोगेन सुताऽभवत सुतोऽभवत् 99 7 पात्रावतीर्णा तत्रावती 123 निला ज्यमभावाढयः पुण्यप्रभावादयः 8 नष्टवा नष्टवा 1308 बुध्धया पके पुष्पके परमास्त परमस्ति भाग्येशालिनः भाग्यशालिनः 10 सर्वलोकोनां सर्वलोकानां बुद्धया बुद्धया 133 वामनोड बामनोऽयं भारपट्टा भारपट्टो 12 हारकुंडलकाटीर हारकुंडलकोटीर 11 बध्धया बुध्धया 135 7 प्रेषितस्तेनापहाराय प्रेषितस्तेनोपहाराय / M106 4 वक्रमेव वकामेव | 136 10 तान्मत्रं चन्मित्रं मंत्रि तत्सखाः तत्सखा स्नेहभा. स्नेहभाक श्रुयतां श्रूयतां श्रेष्टी 141 8 देवलाका देवलोका REETE EEEEEEEE . . . . . :: मंत्रो श्रेष्ठी For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __पंक्तिः //चरित्र अशुद्धम् शुद्धम् | पत्रांकः पंक्तिः अशुद्धम् शुद्धम् जटाभा जटाभारं 155 1. सोऽधिष्ठाता सोऽधिष्ठाता परीक्ष्येहं परीक्षेऽ .. 10 चतस्रोऽपि चतस्रोऽपि क्रमेणामृद् क्रमेणाभूद् | 156 3 प्रज्ञाप्राग्भारतोऽभवत प्रज्ञापाग्भारतोऽभवन् / मूलादपि म्लादपि जहि ,. 12 हंसवस्थिताः सवस्थिताः श्वाचेत्ः वाचेत् 158 7 वारित वारितः श्रेष्ठया श्रेष्ठयत्र / 159 10 तावाचयंत ता वाचयंत For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण 4 प्रस्तावना. - इदं तावदवधारयंतु सहृदयाः सुधियो विद्धन्महाशया यत् किलाऽनाद्यनंतकालीने चरित्र // 1 // घोरघोरांऽधतमसाऽपरपर्यायाऽज्ञानसमावृते विविधयोनिसमापतन्ननेकजीवसंकुलेऽस्मि निःसारे संसारे स्वहितमनुमन्यमानैः प्रत्येकसुज्ञानुजैः स्वकर्तव्यत्वेनाऽदः सुतरां के || विज्ञेयमेव यद् धर्माऽर्थकाममोक्षाऽभिधाने पुरुषार्थचतुष्टये मोक्षस्यैव प्राधान्यमादिशति / प्राचीनाः पूज्या मुनिपुंगवाः / तत्साधने च मुमुक्षुभिः सर्वैर्नितरां बद्धपरिकरैरेव * भाव्यमित्युद्घोषयंति नैकशास्त्रपटहोघोषणापूर्वकमेव ते महातपस्विनः पूर्वपूरुषाः / वस्तुस्वरूपाऽज्ञानत्वरूपाऽतिदुष्टमिथ्यात्वग्रहग्रहिलचेतसां ग्रहणधारणपटुत्वे सत्यपि बालस्वरूपत्वेनैव व्यपदिश्यमानानामज्ञानाऽऽवृतमानवानां मोक्षाप्तये च तैरेव कृपापूर्णाऽऽशयै वैद्ययनरैक्षिस्य साधनत्वेन सुगमसरलभाषोपनिबद्धा ज्ञानिकथिताभी रहस्यपूर्ण* कथाभिः परितः पूर्णा अतिहासिका बहवो ग्रंथा ग्रथिताः सन्त्येव / तेषामेकतमस्यास्य | // 1 // गुगवर्मचरित्रग्रंथस्यापि जिनेन्द्रस्य भगवतो वीरस्यैव मुखांबुजान्निर्गताभिः सुरसाऽमृत kapals-460 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 2 // कथाभिः परिणतत्वेन मोक्षसाधनतामुपयाति सर्वेषां साधककोटिप्रविष्टानां मुमुक्षुजनानाम्।। गुण न च श्रुताऽऽगमपर्यायैः प्रसिद्धानां सूत्रवृत्तिचूर्णिनियुक्तिप्रकरणादिप्राचीनतमग्रंथनि- चा - वहानां मोक्षसाधनतया मुक्तिमार्गदर्शकत्वेन वा विद्यमानत्वमत्युच्चतरकक्षायां च सर्वा दृतत्वं वर्वत्येवेति किमीदृशैश्चरित्रादिग्रंथैरिति वाच्यम्; समग्रशास्त्राऽतिशायित्वेन जगति प्रथितानां गूढरहस्यैः पूर्णानां तेषां महाग्रंथानां ज्ञानस्य केषांचित्तीव्रतरशेमुषीमतामभ्या सकानामेव संभवात्, नेतरेषां सामान्यमतिमतां बालानाम्; तेषां तु धर्मतत्वं प्रकटतया / प्रतिपादयन्ति सोपानावलिबत् क्रमशः स्थितिमुच्चां प्रापयन्ति तेषु च महाग्रंथेषु संस्का15 रापादनपूर्वकं सुखावगाहनां कारयन्तीदृश्चरित्रादीन्येव विशेषत उपयोगितामावहति / / / किंच एतादृशां चरित्रग्रंथानां पठनपाठनश्रवणमननादिभिः पूर्वेषां प्रातःस्मरणीयपुरुष धौरेयाणां चरितादीनि बालानां स्वच्छादर्शनिभेषु हृदयेषु प्रतिबिंबतामायांति, येन च / तेषां पूज्यनराणामनुष्ठानादि- " यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः / स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते " // // 2 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -इति न्यायाद् विगणय्य प्रमाणभूतं सुतरां सज्जानि भवंति तदनुसरणे बालानां गुण चेतांसि / एवं चेदं गुणवर्मचरित्रमपि सामान्यबुद्धिमतां वालजीवानामतिशयेनोपयोगि चरित्र // 3 // सद् धर्मपथस्य मुक्तिमार्गस्य च प्रदर्शकमेवेति निर्विवादमस्याऽत्युत्तमत्वम् / ग्रंथस्याऽस्य | कर्तारोऽचलगच्छेशाः श्रीमाणिक्यसुंदरसूरय एवेति प्रतिसर्गमस्मिन् ग्रंथे स्वनामनिर्देशं / कृत्वा तैरेव निवेदितप्रायम् / अपरं चैतैः सूखिररेतद्ग्रंथवर्जमन्येऽपि माणिक्यांक-चतुः पो-शुकराजकथा-पृथ्वीचंद्रचरित्रादयो ग्रंथाः प्राणीयंतेति तैरेवैतद्ग्रंथप्रशस्तावुल्लिखिते। नैतेनाऽनुष्टुभा विज्ञायते " माणिक्यांकश्चतुःपर्वा शुकराजकथा तथा / पृथ्वीचंद्रचरित्रं च ग्रंथा एतेऽस्य बांधवाः” // इति शोचनीयमेतदेव यदत्रभवंतः सूविर्याः कदा कतमं प्रदेशं स्वकीयपवित्रजनुषा / समलंकृतवंत इति नैव ज्ञायते, किंत्वेतावन्मात्र ज्ञातुं शक्यते यद् ग्रंथस्याऽस्य रचना // 3 // विक्रमादारभ्य चतुरशीत्यधिकेषु चतुर्दशशतसंवत्सरेषु गतेषु भगवन्महावीरचैत्याऽलंकृते / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरित्र | श्रीसत्यपुरे ( साचोरग्रामे ) समजनीति, यथाऽऽह भगवानयमेव सूरिराड् ग्रंथस्याऽस्य / गुण० प्रशस्तौ " चतुरशीत्यधिकेषु समाचतु-र्दशसु तेषु गतेषु च विक्रमात् / __ अयमभूज्जिनपूजनसत्कथा-समुदयः स करोत्विह मंगलम् / / श्रीवर्धमानजिनभवन-भूषिते रचित एष सत्यपुरे / ग्रंथः श्रीमदुपाध्याय-धर्मनंदनविशिष्टसांनिध्यात्”॥ अस्मिँश्च ग्रंथे स्नात्रादिसप्तदशप्रकारैरर्हत्पूजनतः किमदृष्टं समापद्यते, तथाचैवं परिपूज्य कैभव्यपुरुषैस्तत्संपादितमित्येतच्छ्रीगुणवर्मकथानुसंधानपूर्वकं तस्य भूपालस्य / सप्तदशपुत्राणां कथाद्वारा चित्ताकर्षकभाषया निर्दिश्यते / चरित्रमिदं श्रीविजयनीति सूरीश्वरशिष्यरत्ने; पंन्यासदानविजयैरेव प्रथमतो मुद्रितमुपलब्धम्, तस्य च प्रायः प्रतिस्थलमशुद्धत्वेन पुनर्मुद्रणमर्हतीदमित्याकलय्य, तथैवाऽशुध्धावस्थायामपि समाजे प्रायः / सर्वत्र तत्प्रसिद्धयभावं च पर्यालोच्य तैरेव महाशयैस्तत्संशोधनकार्ये न्ययुज्यताऽयं जनः। // 4 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / स्वस्थीभूता मया पृष्टा, तत्सर्व निजगादसा॥अंगापटुत्वव्याजेन, स्थापितोऽस्याः स्वयंवरः।। गुण पिताऽपृच्छन्निमित्तज्ञमन्यदा दूनमानसः।। कोदोषो विद्यते पुत्र्याः,सोऽप्यभाषत भूपतिम् // 51 चरित्र. // 5 // अस्ति दोषो महान् कोऽपि,दुःसाध्यो भिषजामपि। नृपोऽवादीत्सुतासैषा,किंस्थास्यत्यविवाहिता / निमित्तज्ञो जगादेवं, गुणवर्मास्ति भूपतिः। स एव पतिरस्त्वस्याः,स कर्ता दोषनिग्रहम् 53 || निमित्तज्ञं विसृज्याथ, तत्सर्व पृथिवीपतिः।। सुताया ज्ञापयित्वाशु, स्वयंवरमकारयत् // 54 // / अतस्त्वां प्रार्थयत्येषा, त्वमेव हि वरिष्यसे॥ ब्रह्म पाल्यं मया तावद्यावन्मोक्षोन संकटात् 55 ओमित्युक्ते नरेंद्रेण, सारसी हृष्टमानसा / / रत्नावल्याः पुरः प्राह, तत्सर्व वत्सलाशया 56 | प्रगे राजकुले नामांकितसिंहासनस्थिते // प्राप्ता स्वयंवरं मालाभारिणी राजकन्यका 57 वर्णितेऽथ प्रतीहार्या, सकले राजमंडले // गुणवर्मा तया वत्रे, जातो जयजयाखः॥५०॥ - पाणिग्रहोत्सवे जाते शूरेण बहु मानिताः // विसृष्टा मूभुजःसर्वे, ययुनिजनिजं पुरम् 59 | मासं सगौरवःस्थित्वा, गुणवर्माप्यथाचलत् // रखावल्या समं प्राप्तः, पुरं प्रौढमहोत्सवैः॥६॥॥५॥ तं मध्यसंसदासीनं. प्रतिहारोऽन्यदा जगौ // भूतानंदाभिधो योगी, भवंतं द्रष्टुमिच्छति।। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण राजादिष्टेन तेनाशु, समानीतःसमांतरम् // निजगाद नृपं योगी,दत्वाशीर्वादमादरात्। मंत्रस्य पूर्वसेवा हि, कृता द्वादशवार्षिकी। साधयाम्यथ सांनिध्यात्तव साहायिको भव 63 | चरित्र // 6 // रात्रावद्य चतुर्दश्यामवश्यं प्रेतमंदिरे // गत्वा मंत्रो मया साध्य, उपकारपरो भव // 6 // || ओमित्युक्ते नृपेणाथ,सज्जीभूय समागते॥योगी चैपोऽपि यामिन्यां, जगाम प्रेतमंदिरप्६५ / विधाय मंडलं योगी,प्रारेमे मंत्रसाधनम्॥ कखालकरस्तस्थौ, नृपःपश्यन् दिशोऽखिलाः।।६६/ || जाते क्षणेन निर्घाते, प्रत्यक्षः कोऽपि चेटकः।। बभूव भीषणाकारां, कर्नीकां कंपयन करे६७ | हसतो नृत्यतस्तस्य, फेत्कारं मुंचतो मुखे // चकर्त्त करखालेन, कर्तीका साहसी नृपः। | अहं तुष्टोऽस्मि तुष्टोऽस्मीत्यूचाने चेटकेनृपः।।जगौ च योगिने सिद्धिं, देहि क्लेशकृतेऽन्वहम्॥ सिद्धमेतत्परं स्वार्थ, प्रार्थयेत्यत्र भाषिणि॥ कुरु मे निग्रहोपायं, स्त्रावल्या विरोधिनः।।७०॥ | दत्वा दिव्यांजनंतस्मै, तिरोधत्त स चेटकः। योगी ययौ निजंस्थान, नृपोप्यागात् स्वमंदिरम् || सुखसुप्तो निशां नीत्वा, कृतप्रातःक्रियः प्रगे।। रत्नावल्या समं शास्त्रविनोदै दिनमत्यगात 726 // 6 // . कृत्वा दिव्यांजनं नेत्रे,गतो रत्नावलीगृहम॥ नृपो विमानमद्राक्षीत, व्योमश्रीकर्णकुंडलम्॥ PORN 40:9 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लया समं तमाम्य, ब्रजनंबरवर्त्मना // स चैत्यं तुंगमद्राक्षीदेताब्यगिरिसंनिधौ // 74 // कृतकोलाहलं हर्षान्दपः खेचरमंडलम् // ददर्श तत्पुरःस्थं च दुर्द्धर्षखेचरेश्वरम् // 75 // चरित्र. उत्तीर्य व्योमयनात्स,प्रणम्य वृषभप्रभुम् ॥अदृश्य एव तत्रास्थाचित्रवीक्षणलालसः।।७६।। / स्नावल्यपि तत्राहन्मूर्ति नत्वा खगाज्ञया॥आयातास्वन्यकन्यासु, नर्तकीवन्नन सा // 7 // / पतिताभरणं तस्या, नृत्यव्याक्षेपतो नृपः।।जग्राह तिस्रःकन्यास्तु, चकीतादिकक्रियाम् // 7 // | अथ निवृचे संगीते,खगं स्नावली जगौ // पतिताभरणं किंचिन्न लभेऽद्य जिनालयो।७९॥ MH कोपाटोपात् खगःप्रोचे, रेरे शृणुत खेचरागादत्वाभरणमेतस्या,गम्यतां हन्मि वोऽन्यथा 80 वे तं कोपाकुलं वीक्ष्य, पक्षिवत् प्रपलायिताः।। खगो रुष्टो दधावेऽथ,कन्यासु कस्खालभा८१ / / वन्हिःशुष्कमशुष्कं वा,पुरस्थं ज्वालयेद्यथा॥निर्मतुंवासमंतुंवा, तथा हन्यात् क्रुधांधलः 82 / / सदृश्या नृपतिस्तस्यादृश्य एव करस्थितप्॥ करवालं तदा जहे, स्त्रीणां हत्यामसासहिवाशा अपश्यन् नृपति कापि, सिक्ककात्पतितौतुवन् / इस्स्तःपश्यतिस्म, स विस्मयस्सान्वितः 84 || - वासु कोपात्पुनस्तस्मिन् , बध्वा मुष्टिं प्रभवति // भूपाल प्रकटीभूतो,भ्रकुटीभालभीषणः८५ / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 446 3 धिधिक तव महाकोपं, व्यर्थ ते जिनपूजनम्॥अहंदाशातनाकारि, न पुण्यमपि लभ्यते गुण जल्पंतमितितं वीक्ष्य, सूर्यवदुर्द्धरौजसम् // खेटस्तथा हृदि क्षुब्धो, यथा तच्चरणेऽपतत्८७ चरित्र. // भूपो भूयोऽप्यभाषिष्ट, निविष्टो रंगमंडपे॥ रात्रौ पूजा निषिद्धास्त्याशातना तु विशेषतः * तांबूलं भोजनं पानमुपानत द्यूतमैथुने // स्वापो निष्ठीवनं मूत्रमलौ चाशातना इमे 89 / स्त्रीणांभोगांतरायोऽपि, भवेत् कर्मनिबंधनम्।।श्रुत्वेति खेचरः प्रोचे, साध्वहं बोधितस्त्वया। प्रियायै भूभुजा दत्ते, पतिताभरणे तदा / / अन्वमीयत खेटेन, स तस्या इंगितैः प्रियः९१ | भूपं विलोक्य कन्यासु, पृच्छंतीषु पुनःपुनः।। रत्नावली स्मितेनैव,स्माह स्वं लज्जितापतिम् / / अस्माकमपि कांतोऽस्तु, त्वत्पतिस्तासु तामिति // क्षामस्वरं वदंतीषु, ज्ञातवृत्तोऽवदन्नृपः९३ / / || अदत्ता द्रुह्यते कन्या, ह्यन्यायोऽसौ न युज्यते // पितृमातृप्रदत्तास्तत्परिणेष्याम्यमूर्युवम्।। खेटेन निन्यिरे कन्याः, स्वस्वस्थानं ततः क्षणा।। जिनं प्रणम्य भूपोऽपि, सप्रियःस्वपुरं ययौ / महोपकारं स्मरति, प्रयाते स्वपुरं खगे // पट्टदेवी कृता रत्नावली राज्ञा प्रमोदतः // 9 // 1 // दाःस्थेनावेदितोदूतोऽन्यदा भूपं व्यजिज्ञप। राजन् कलिंगदेशोऽस्ति, क्लशलेशविवर्जितः।। 40-20 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्र हेमपुरं नाम, पुरं नाममनोहरम् // राजा हेमांगदः पाति, हेमाद्रिखि धैर्यंभूः // 9 // गुण० हेमचूला प्रिया तस्य, सत्प्रशस्यगुणक्रिया। तत्कुक्षिसरसि हंसी, कन्यास्ति कनकावली।। चरित्र. // 9 // सा तारुण्ये प्रदत्तासीदाज्ञे समरकेतवे // केनापि हेतुना तस्या, विवाहो नाभवत्पुनः१०० अथ मन्मथदूना सा, त्वामेव पतिमिच्छति // हितोऽस्मि ततस्तस्याः, पित्राहंभवतःकृते 101 / / पंचाशद्योजनी च स्यात्तत्पुरं नगरादतः।। पंचविंशतियोजन्यां, गिरिरस्त्यंजनायः // 102 // / तत्रास्ति समरकेतुः, संकेतः शौर्यसंपदाम् // यस्मै पूर्व प्रदत्तासीकन्या सा कनकावली 103/ अयं यथा न जानाति, तथागम्यं त्वयान्यथा। विधत्ते स विवाहस्य, व्याघातमपि चेत्कुधीः / / पचायोम्यं करिष्यामीत्युक्त्वा दूतं विसृज्य तम्।। नृपतिःसुदिनेऽचालीवलेन सहितोद्विधा। भाग्ययोगात्तदातस्य, वैरी रोगातुरोऽभवत्॥ब्रजंतमपि तं श्रुत्वा, मनस्येव विषण्णवान्।।१०६॥३ नृपो हेमपुरं प्राप्तः, शुरेण कृतादरः॥ महोत्सवादुपात, सस्नेहां कनकावलीम्।।१०।। दिनानि कल्यपि स्थित्वाव्यावृत्तः खपुर प्रति॥ सैन्यमावासयामासांज गिरिगिरेवने।।१०वा // 9 // समस्पहितो दूतस्तत्रागस नृपं जगौ // मन्मुखासमरेणोक्तं, शृणु किंचन काचिकम् 109 / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - न जराऽऽपतिता यावदप्रसूतैव तावता॥ ऊदाप्येषा ह्यनूदैव, समरे समराजिते // 110 // गुण० सुखेन दीयतेऽमुष्मै, यद्येषा भवता स्वयम् ॥गुणंसमन्यते तर्हि, श्रमो येनास्य वारितः१११ चरित्र. // 10 // दूते निर्वासिते तेन, याते सति दिशोऽखिलाः।। स्त्रीवद्रजस्वला जाता,वाद्यनादास्तथाभवन् प्रियानेत्रदये न्यस्य,दिव्यांजनमथो नृपः। प्रियां प्रोचे प्रियेऽत्रैव, स्थातव्यं यावदागमः११३ 8 | बाढमुक्ते तया राज्ञि, सायुधं रथमाश्रिते // सज्जीभवति सेन्ये च, सा दध्यौ निजचेतसि११४/ दिव्यांजनप्रभावेण, नमां द्रक्ष्यति कश्चन // प्रियपृष्ठस्थिता तस्य, वीक्षेऽहं युद्धकौतुकम् 115 / / * ध्यात्वेति सानुलग्नेव, चलिता भूभुजा सह॥समरेण समं पत्युयुद्धं वीक्ष्य विसिष्मिये११६ / / | सा पश्यंती प्रमोदाश्रुपूरेण प्लावितांवका॥गलदिव्यांजना दृष्ठा, समरेण नृपानुगा॥१९७॥ BI भमव्याजादपसृत्य, जहू तेन रणादियम् / / नृपो जिताहवंमन्यः, स्वावासं मुदितो ययौ 118 | प्रियामलभमानोऽसौ, ज्ञात्वा तद्धरणं रिपोः॥ मूछित पतितः पृथ्व्यां,भृत्यैश्चक्रे सचेतनः११९ / / | अलं विषणचित्तोऽसौ, निशीथसमये नृपः ॥अंजनाद्रिगिरेः शृंगे देवोद्योतमलोकत।।१२०॥ 7 // 10 // किमेतदिति साश्चर्यो, गतस्तत्र नरेश्वरः // ददर्श नखर्माणं, मुनिमुत्पन्नकेवलम् // 12 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / पृथुप्रमोदपूरेण, पूरितःपृथिवीपतिः // प्रणम्य पितरं पुण्योपदेशं परमं पपौ // 122 // गुण०/ समरोऽपि समायातस्त्वत्र हर्ष दधत्परम्॥ मुनिप्रणम्य शुश्राव,देशनां क्लेशनाशिनीम्॥१२३॥ चरित्र. // 11 // याद्रव्येभवतिमतिथिवारमणीषुरूपयुक्तासु॥सायदिजिनवरधर्मेकरतलमध्यस्थितासिद्धिः // पुरः पूलियते कस्य, सदा कारा वधूरियम्।।वदंतोऽपीति तत्संगमीहते हंत बालिशाः।।१२५॥ 6 परनार्यः परीहार्या, विशेषेण विचक्षणः।। विवेकस्य विनाशाय, विषवल्लीसमा हि याः // 126 / / | समरोऽयाप्तवैराग्यः, क्षमयित्वा नरेश्वरम्।। समर्प्य तत्मियां तस्य, साधोः पार्श्वेऽग्रहीव्रतम् 127 | स्वपुरागमने तातं, निमंत्र्य नृपतिस्ततः।। चलितः पंचगव्यूत्यां, हस्तिनापुरतः स्थितः॥१२॥ तत्रामात्येन स प्रोचे, महाँलाभोऽत्र वर्तते। इदं हि देवरमणोद्यानं देववनोपमम् / / 12 / / / देवतस्य प्रमावेण, नोलूकान चवायसाः।।न करोति तरोमगमपि कश्चन कीनने // 130 // / अत्र कारयितुः पुण्यमिवास्ति जिनमंदिरम् / / दुरंत दुरितं येन दर्शनादपि दूरितम् // 131 // | तनवा प्रभु पार्थ, महालाभोहि गृह्यते / / श्रुत्वेति मुदितो भूपस्तक्षणे चल्तिस्ततः॥१३ // चलध्वजपटं स्वर्णदंड कलशबंधुरम् / / ऊत्तुंगतोरणं सारस्तंभमंडपमंडितम् / / 133 / / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रासादं वोक्ष्य नृपतिः, पादचारेण स व्रजन्॥जगाम सपरिवारो, दारदेशमुदारधीः // 13 // गुण०|| तत्रावलोक्य श्रीपार्श्वनाथस्य प्रतिमामसौ॥क्षणं स्तब्ध इव स्थित्वा, निविष्टः पृथिवीतले१३५ चरित्र. // 1 // जने परस्परं वीक्ष्यमाणे भूपो विमूर्छितः // पपात पृथिवीपीठे, निमीलितविलोचनः 136 / प्रधाविरे प्रधानाद्या, वारिखारीतिभाषिणः।।वीजितो व्यजनैःसिक्तोऽभोभिः सोऽभूत्सचतेनः॥ * उत्थाय तत्क्ष गं मध्ये, प्रविश्यादरतो नृपः।। चैत्ये प्रदक्षिणां दत्वा, जिनं नत्वा स्तुतिं व्यधात्। ( स्रग्धरावृत्तम् ) श्रेयःसंकेतशाला सुगुणपरिमलैर्जेयमंदारमाला, च्छिन्नव्यामोहजाला प्रमदभरसर पूरणे मेघमाला // नम्रश्रीमन्मराला वितरणकलया निर्जितस्वर्गिसाला, त्वन्मूर्तिः श्रीविशाला विदलतु दुरितं नंदितक्षोणिपाला // 139 // खत्कर्पूरपूरस्फुरदमलयशःशालिनस्ते, समस्ते, विश्वे विश्वेश शश्वत् कलयति कमला क्रीडितं तद्गृहेषु // |12|| For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण चरित्र. // 13 // तेषां न क्लेशलेशः क्वचिदपि विपदुच्छेदमेदस्विधामा, त्वं येषां भक्तिभाजां निवससि हृदये श्रीप्रभोपार्श्वनाथ // 140 // (अनुष्टुप्त्त म् ) / स्तुत्वेति श्रीमदर्हतं, धोतिंपोतिं विधाय सः॥ समं परिजनैरासीदिधिपूजाचिकीर्मुदा // 141 // स्वर्णकुंभादिसामग्री, कारयित्वा नरेश्वरः // काव्यान्येतानि पूजाया, बभाण मधुरस्वरम् // 142 // (उपजातिवृत्तम् ) शचीपतिः सप्तदशप्रकारे त्यामरैः संघटितोपहारैः // स्वर्गागनासु क्रमगायिनीषु, पूजां प्रभोः पार्श्वजिनस्य चक्रे // 143 // पुरंदरः पूरितहेमकुंभैरदंभमभोभिरलं सुगंधैः // सोकं सुरौघैः स्नपनेन सम्यक्, पूजां जिनेंदोः प्रथमां चकार // 144 // 400 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण चरित्र. // 10 // प्रमृज्यांगसुगंधगंधकाषायिकेणेष पटेन चंद्रः // विलेपनैश्चंदनकेशरादेः पूजां जिनेंदोरकरोद् द्वितीयाम् // 145 // न्यूतं शशांकस्य मरीचिभिः किं, दिव्यांशुकद्वंद्रमतीव चारु // युक्त्या निवेश्योभयपार्श्वमिंद्रः, पूजां जितेंदोरकरोत्तृतीयाम् // 146 // कर्पूरमौरभ्यविलासिवासैः, श्रीखंडवासैः किल वासवोऽथ // विभासुरश्रीजिनभास्करेंदोः, पूजां जिनेंदोरकरोचतुर्थीम् // 147 // मंदारकल्पद्रुमपारिजातजातैरलिवातकृतानुयातेः // पुष्पैः प्रभोरग्रथितैर्नवांगपूजां प्रतेने किल पंचमी सः // 148 // तैरेव पुष्पैर्विरचय्य मालाः, सौरभ्यलोभभ्रमिभंगमालाः // आरोपयन्नाकपतिर्जिनांगे, पूजां पटिष्ठी कुरुतेस्म षष्ठीं // 149 // मंदाकिनींदीवरपीवरश्रीरक्तोत्पलैश्चंपकपाटलाद्यैः // कुर्वन्विभोर्वर्णकवर्ण्यशोभां, पूजां प्रतेने किल सप्तमी सः // 150 // // 14 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण. चरित्र. // 15 // दंभोलिपाणिः परिमृज्य सद्यः, कर्पूरफालीबहुभक्तिशाली // चूर्ण मुखे न्यस्य जिनस्य तूर्ण, चक्रेऽष्टमं पूजनमिष्टहेतुम् // 151 // पुलोमजापोलिनिवेशनेन, प्रदक्षिणीकृत्य जिनालयं तम् // महाध्वजं कीर्तिमिव प्रतत्य, पूजामकान्निवमीं विडोजाः // 152 // मुक्तावलीकुंडलबाहरक्षकोटीरमुख्याभरणावलीनाम् // प्रभोर्यथास्थाननिवेशनेन, पूजामकार्षीदशमी विडोजाः // 153 / / पुष्पावलीभिः परितो वितत्य, पुरंदरः पुष्पगृहं मनोज्ञम् // पुष्पायुधाजेय जयेति जल्पन्नेकादशीमातनुतेस्म पूजाम् // 154 // कराग्रमुक्तैः किल पंचवर्णैरग्रंथपुष्पैः प्रकरं पुरोऽस्य / / प्रपंचयन वंचितकामशक्तेः, स द्वादशीमातनुतेस्म पूजाम् // 155 // आदर्शभद्रासनवर्द्धमानमुख्याष्टसन्मांगलिकैर्जिनाग्रे // म राजतप्रोज्वलतंडुलोत्थैत्रयोदशीमातनुतेस्म पूजाम् // 156 // // 15 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण चरित्र. // 16 // कर्पूरकालागुरुगंधधूपमुक्षिप्य धूमच्छददरितैनाः // घंटानिनादेन समं सुरेंद्रः, चतुर्दशीमातनुतेस्म पूजाम् // 157 / / अष्टोत्तरस्तोत्रशतं पठित्वा, जानुस्थितः स्पृष्टधरः सुरेशः // शक्रस्तवं प्रोच्य शिरस्थपाणिनत्वा जिनं संसदमालुलोके // 158 / / आलोकनाकूनविदो ततोऽस्य, गंधर्वनाट्याधिपती अमत्यौ // तूर्यत्रिकं सज्जयतःस्म तत्र, प्रभोर्निषण्णे पुरतः सुरेंद्रे // 159 // मृदंगभेरीवरवेणुवीणाषड्भ्रामरीझल्लरिकिंकिणीनाम् // भंभादिकानां च तदा निनादैः, क्षणं जगच्छन्दमयं बभूव // 160 // मुदा ततस्तुंबुरुनारदाद्याः, प्रभोर्गुणालीरुपवीणयंतः॥ सुधाशनादप्यधिकं वितेरुः, सुधाशनानां हृदये प्रमोदम् // 161 // ततश्चलत्कुंडलतारहारशृंगारभारस्फुरदंगयष्टिः // रंभा चिरं भावयतिस्म लास्यलीलां विनीलांगजिनाब्दविद्युत् // 162 / / // 16 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरित्र. साचीकृताक्षीव ततो घृताची तिलोत्तमा चोत्तमनाट्यशक्तिः // गुण. मेने मनोज्ञा किल मेनकापि, कलाकलापस्य फलेग्रहित्वम् / / 163 / / // 17 // ( शालविक्रीडितवृत्तम् ) इत्येवंविधगीतवाद्यनटनःपूजांविधायत्रिधा, तामूलादिरचय्यसप्तदशधापीतस्तदाखंडलः // / अर्चेयं धनदत्त उज्वलसरिनी रैम्पटी रैपटुः, कपूरैस्तुचमेरुनंदनवनीकल्पद्रुपुष्पैश्चिरम् 164 181 / एतत्काव्यानुसारेण, नृपश्चक्रे जिनार्चनम् / तथा परिजनः सर्वो, यथा राजा तथा प्रजाः।। / / मंत्री प्राह नृपं रंगानिविष्टं रंगमंडपे / अकस्मान्नाथ ते मूर्छा, चेतना चाभवत्कथम्१६६ / 8 कुतश्चैतानि काव्यानि. कुतो रीतिरियं मता // सर्वमेतत्प्रभो ब्रूहि, कौतुकं मम वर्त्तते / / s भूपः प्रोचेऽर्हति दृष्टे, जातिस्मृतिरभून्मम // सर्वः पूर्वभवो दृष्टः स्पष्ट एष निशम्यताम् 168 / अत्रैवासीद्गजपुरे, पुरा श्रेष्टी धनावहः / / धनदत्ताभिधस्तस्य, सुतस्तारुण्यमाश्रितः॥१६९॥ वधूश्चतस्रस्तस्यासन् , रूपलावण्यमंयुताः।।तुर्या तुचारुचातुर्या, रत्नमालाभिधाभवत॥१७०॥ // 17 // अन्यदा निशि निद्राणा, शिवाया फेकतानि सा॥श्रुत्वा जातिस्मृतेःप्रातःश्वश्रूसविनयं जगौ॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / प्रत्यासन्ने गिरौपूर्वभवस्य भगिनी मम॥शिवास्ति सुषुवे पुत्रद्वयमद्य तया निशि // 172 / / गुण०|यामि वर्द्धयितुंतस्याः, पुत्रौ लाभोऽस्तिमेऽपि हि॥ श्रुत्वेत्यचिंतयच्छ्वश्रूरियं नैव मृषाऽवदत् चरित्र // 10 // सा तयानुमताचालीत्, स्कारशृंगारशालिनी।।करस्थसाक्षतस्थाला, बालागिरिगुहंययौ॥१७४॥ | आयांतीं तां शिवा प्रेक्ष्य, जातजातिस्मृतिःक्षणात् // दैवतस्य प्रभावेण, मनुष्यवचसा जगौ।।। आगच्छागच्छ भगिनि,प्रोतास्मि तव दर्शनात् // सा तां शिवांतथापुत्रौ,भव्ययुक्त्या ह्यवीवृधत्।। शिवयापि समादाय, स्थालं गत्वा गुहांतरम् // रत्नैःप्रपूर्य दत्त्वा च, सा विसृष्टा गृहं ययौ 177 / / / श्वश्रूहस्ते तया दत्ते, रत्नस्थाले मुदा च सा // तस्याःश्वशुरमाकार्य, वधूवृत्तमचीकथत् // 17 // श्रेष्ठी रत्नेषु दृष्टेषु, प्रीतःप्रोचे प्रियां प्रति॥ नीचकर्म न कार्याऽसौ, मूर्तालक्ष्मीरियं वधूः // तनोविशेषतो मान्या, साभूत् परिजनेऽखिले // ईर्ष्या किंतु करोतिस्म, तस्यां ज्येष्ठवधूस्ततः।। पुत्रद्रये मृते तस्याः शिवाया दैवयोगतः / / कृत्वा मूर्खा तदाऽऽकंदं, दथ्यौ ज्येष्ठा वधूरिति।। / रत्नमाला गता पूर्व, यथा रत्नानि चानयत् / तथाहमपिगत्वा तान्यानेष्याम्यत्रवारके 182 // 10 // * श्वश्रू पृष्ट्वा गतां तत्र, मशृंगारां सकुंकुमां / / तां करस्थावतस्थालां,शिवा वीक्ष्य व्यचिंतयत्।। -: For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैरिण्यभ्येति काप्येषा, मदुःखसमये यदि // तदाशिक्षांप्रदास्यामि, ध्यात्वैवंसाप्रधाविता // गुण० विदार्य नखरैरंगं, दुकूलेन समं शिवा // तत्को त्रोटयामास, समं हारेण रोषिता॥१८५॥ चरित्र. // 19 // कष्टान्नंष्ट्वा गृहं सागादत्नमाला पृथगृहे // श्वश्रृं जगौ भगिन्या मे, विपन्नं तत्सुतद्वयम् // यामि युष्मदनुज्ञाता, तत्पुत्रमुखदर्शने / तयोक्ते सा ययौ तत्र, शोच्यवेषधरा गिरौ 187 / / दुःखेन विलपंती तां, देवोपालंभदायिनीम् / / कथंचित् स्थापयित्वा सा, शिवोचे मद्धचःशृणु॥ / नास्ति मेऽत्रगिरौ सौख्यं, यास्याम्यन्यत्रकुत्रचित् / / द्वादशे दिवसे प्रेतकार्य कार्यचपुत्रयोः / / तस्मिन् दिने त्वयागम्यं, सहानेयस्तुवल्लभः।।इत्युक्त्वा शिवया स्वैरं, विसृष्टा सा गृहं ययौ / / / 7 दिने तु द्वादशे पाने, सा स्वकांतेन संयुता॥आरुह्य वाहिनीं तत्रागमत् प्रीताचसा शिवा // | प्रेतकार्ये कृते सावङ्, निधिरत्रास्ति गृह्यताम् / / उदपाटि च ताभ्यां स, वाहिन्यांच निवेशितः | | कथं मनुष्यभाषास्या, इति चिंतयतोस्तयोः।।बभासे व्यंतर कश्चिददृश्योव्योमनिस्थितः 193 / / अत्रैव नगरे देवदत्ताख्यकृपणोऽभवम् / / निःक्षिप्तोनिधिरत्रासीज्जातोऽहंव्यंतरस्ततः / / 194 // - अक्षयोनिधिरस्त्येष, व्ययःकार्यःसदा त्वया // श्रीजैनमंदिरं कार्य,स्थाप्य पार्श्वप्रभुःपुनः॥ 9 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | तस्याधिष्ठायकोभावी, सोऽहंतद्भक्तितत्परः।। तस्मिन् तीर्थेममाप्यस्ति, मोक्षस्तेनेति कथ्यते / / गुण०|| इत्युक्ता व्यंतरे मौनभाजि तौदंपती मुदा // स्वीयंसद्म समायातो, सर्व हृष्टं कुटुंबकम् 197 चरित्र. // 20 // तत्पिता समये तस्मिन् , भारमारोप्य भावतः // दीक्षां गृहीत्वा माहेंद्रदेवलोकेसुरोऽभवत्।।।।। | अकारयद्धनोऽन्येयुःप्रासादमिह कानने॥स्थापितः पार्श्वदेवधिश्चाष्ठाता ब्यंतरोऽभवत् 199 / / / प्रकारैः सप्तदशभिः, स श्रेष्ठी श्रेष्ठभक्तिभाक् // श्रीपार्श्व पूजयामास,प्रासादे तत्र सर्वदा 200 / / | धनदत्तस्य कांतानां, तिसृणांचपृथक् पृथक् ॥चत्वारो नंदना जाताश्चतुर्थ्या पंच जज्ञिरे 201 / दत्तश्चवसुदत्तश्च, सुदत्तश्चित्तनंदनः // लक्ष्मीधरो धनेशश्च, धननाथो धनेश्वरः // 202 // कनकः कनकाभश्च, हेमांभो हेमवर्णकः / श्रीदश्रीदत्तशंखाश्चा, धर्मोधीराभिधस्तथा // एवं सप्तदशाभूवंस्तनयास्तस्य विश्रुताः।। समये सप्रियःसोऽथ, प्रपेदे संयमश्रियम् // 204 / / | प्रपाल्य निरतिचारं, चारु चारित्रमुज्ज्वलम् / / सप्रियोऽनशनात्प्रांते, सौधर्म स सुरोऽभवत् // .. कपल्यंकादुत्थितःसुप्तस्तरुणेन नरेण सः / / स्नात्वा विहितशृंगारव्यवसायः सभां ययौ 206 // 20 // . पुस्तकं वाचयित्वास,सिद्धायतनसंस्थितान् / / पूजयित्वाहतो भक्त्या, सुधर्मासंसदि स्थितः // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है काले सुघोषाघंटाया, नादोऽभूदमरालये // उद्घोषणातथाकारि, नाकिना नैगमेषिणा 208 / / बभूव भरतेक्षेत्रे, श्रीनमेरहतो जनिः // इंद्रो यास्यति हेमाद्रौ, स्नात्रं कर्तुं जिनेशितुः२०९ | // 29 // आगंतव्यंसुरैस्तत्र, श्रुत्वेयुद्घोषणामसौ // सुरैःसाकंसुरंद्रेण, स्वर्णशैलगिरि ययौ // 210 // सर्वैःसुरेंद्रैस्तत्रार्हजन्मस्नात्रमहोत्सवे // कृते सौधर्महरिणा, जिनोवायै समर्पितः // 211 // * कृत्वा नंदीश्वरेयात्रां, व्यावृत्तःसुरनायकः॥ मार्गे व्रजनिहायातः, प्रासादोपरि संस्थितः 212 / - स्वकारितमिदं दृष्ट्वा , धनदत्तामरस्तदा।। विशेषतः प्रभुं पार्श्वदेवं प्रणमतिस्म सः // 213 / / - साकं सुरैःसुरेंद्रोऽपि, विदधेऽत्रजिनार्चनम् // काव्यान्येतानि पूजाया, धनदत्तामरोऽपठत्।। / एकविंशतिकाव्यानि, सा नि हरिनामतः॥ काव्याद्रं च तदाकार्षीत्, स्वपूजाख्यापकं सुरः। ततःस्वर्ग गतेस्वर्गिलोके सोऽप्यमरश्चिरम् ॥सुख भुक्त्वा दिवश्युत्वा, मंत्रिनहमिहाभवम् / अप्रणम्य प्रभु पार्श्व, भोजनं न करिष्यते। स्थाध्यता तदिहादूरे, नवीन हस्तिनापुरम्।।२१७॥ // श्रुत्वेति सकले लोके, परमानंदमेदुरे // गुणवर्मा नृपस्तस्थौ, मवीने हस्तिनापुरे ॥२१वा // 21 // - सोऽन्यदा निशिनिद्राणः, कस्याश्चित्करुगस्वरम् // श्रुत्वा गच्छन् पुरोऽद्राक्षी द्रुदतींसुदती वने।।। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है। कथमेकाकिनी बाले,का तं सुंदरि रोदिषि॥ श्रुत्वेति रुदितं मुक्त्वा, मुदितंसा मनोदधौ२२० / गुण अभ्युत्थाय सलज्जा सा, बभाषे नृपतिं प्रति॥ खेटचैत्ये त्वया दृष्टा, रत्नमालाभिधास्म्यहम्।। चरित्र. // 22 // सा गता स्वपितुः, सिंहभूपतेः सिंहलेशितुः॥सदने स्वानुरागंच, सखीभिस्तमजिज्ञपम्२२२ / / * अमन्यमाने जनके, मद्धाक्यमतिदुःखिता // सुप्ता पल्यंकतः केनाप्यानीतास्म्यत्र कानने 2230 प्रियस्य दर्शनेनाद्य, सर्व भव्यमजायत // श्रुत्वेति मुदितो भूपस्तां गृहीत्वा गृहं ययौ 224 / / / कथं विवाह्या कन्येयमदत्ता जनकादिभिः।।इति चिंतयति मापे, प्रतिहारो व्यजिज्ञपत् 225/! | मंत्री सिंहलराजस्य, द्वारे तिष्ठति वारितः॥भूपेनोक्तेन तेनाशु, स आनीतःसभांतरे 226 / | स्फुरद्रत्नमयं मुक्त्वा,प्राभृतं नृपतेःपुरः। मंत्री संमानितोऽत्यंत, निविष्टो योग्यविष्टरे // 227 / / कथं यूयं समायाताः, सिंहलद्वीपवासिनः।। इति पृच्छति भूपाले, स जगौ शृणु कौतुकम्२२८५ - अस्माकं स्वामिनःपुत्री, रत्नमालाभिधानतः॥सा केनापि हृता तेन,नृपतिर्दुःखितोऽभवत् / / स्वप्ने केनाप्यथादिष्टस्त्वत्पुत्री हस्तिनापुरे॥मुक्तास्ति मंत्रिणं प्रेष्य, विवाह्या गुणवर्मणा२३०॥२२॥ - ततः कस्यापि सांनिध्याद्रयमत्र समागताः॥इदं स्वीक्रियतां सर्व, स्वामिनःसुतया सह // 40-4400-00 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir M तथा का नृपेणाथ, विसृष्टो मंत्रिपुंगवः // गत्वा सिंहलराजस्य, प्रीतिपूरमवर्द्धयत् 232 / / गुण० गुणवर्मा चरेणोचे, कोऽप्येति परराष्ट्रिकः।।मुखं पश्यति भूषाले, मंत्री ज्ञात्वा व्यजिज्ञपत्।। चरित्र. // 2 // अस्ति रत्नपुरे नाग्नि पुरे रत्नांगदो नृपः।। सुता कनकमालास्य, चिरात्त्वय्यनुरागिणी२३४ / तां समादाय यात्रार्थ, समेति स महीपतिः॥ श्रुत्वेति गुणवर्मापि, भूपस्तत्संमुखं ययौ // मिलितो भूपती तत्राभूतां प्रीतिकरौ जने॥महायात्रा कृता रत्नांगदेनाथ जगत्प्रभोः२३६ / | पुण्यकार्य मसौ कृत्वा, गुणवर्माणमालपत् // मत्सुतामुपयच्छस्व यच्छस्व मनसि स्थितम् // है तथैव कृत्वा तेनाथ, विसृष्टो मानतः // ययौ रत्नांगदो राजा, निजं रत्नपुरं पुरम।।२३८१ एवं चतुर्भिरमलैः सहितो ह्युदोरै-दो रैः सुवर्गकलिनैर्गुणवर्मभूपः // तुल्यैः श्रितस्य लघुभिर्गिरिभिः सुमेरो-माणिक्यसुंदररुचेः श्रियमावभार / / 239 / / ईति श्री अंचलगछेच्श श्री माणिक्यसुंदरसूरिचिरचित्ते पूजाधिकारे गुगवर्माचरित्रे // 19 // प्रियाचतुष्टयप्राप्ति वर्णनो नाम प्रथमः सर्गः (e): For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण 0-000140- 6 // सर्ग 2 जो॥ चरित्र. // 24 // / तासु कांतासु कांतासु, रममाणस्य भूपतेः // अथ सप्तदशाभूवनंदनाः कृतनंदनाः // 1 // आद्यः प्रथमराजाख्यस्ततःसिंहो हरिगंजः।। पद्मच्छायाकरः शंखोऽनंतो नागदशाहवयः।।२।। 18| अचलो बहुबुद्धिश्च, तारुणस्तु त्रयोदशः // चतुर्दशश्चक्रपाणिः, पूर्णः पंचदशस्तथा // 3 // सोमःसागर इत्येवं, सुता सप्तदश स्मृताः / प्रमोदभेदा इव ते, व्यराजंत नृपालये // 4 // जाते देवांगणे राजपुत्राः सप्तदशापिते // अप्रगम्य प्रभुं पार्श्व, स्तन्यपानं न चक्रिरे // 5 // है तज्ज्ञात्वा कौतुकं विभ्र यन्वहं सकले जने // केली नवर्मागात् , संदेहतिमिरार्यमा॥६॥ मांतःपुरपरीवारो, मुनि नंतुं नृपो ययौ // ददर्श स्वर्णपद्मस्थं, तं सुरासुरासुरसेवितम् // 7 // | स तं प्रदक्षिगीकृत्य, प्रणम्य परमादरात्॥ तद्रकान्यस्तनेत्राजो,निविष्टः शुद्धभूतले॥८॥ 1 बालयोग्यानलंकारान् , विभ्राणा रूपशालिनः॥ पुत्राः सभासरस्यांते, राजहंसा इवाययुः।। ||24 // / देशनां क्लेशनाशाय, मुनिश्चक्रे सुधोपमाम॥अस्मिन्नसारे संसारे, सारोधर्मो विधीयताम् // - 10:OY For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | धर्मेण विपुला भोगा, धर्मेण सुरसंपदः // धर्मेण पुत्रमित्राणि, सर्वसौख्यानि धर्मतः // 11 // गुण० व्रतानि धर्मरूपाणि, पंच वा द्वादशाथवा ।।दानं शीलं तपोभावो, धर्मभेदा अनेकशः॥१२॥ चरित्र. // 25 // | आद्यं पुण्यं च तत्रापि,श्लाध्यते जिनपूजनम्॥यदिनान हि सम्यक्त्वमपि पंफुल्यते नृणाम् | विधिनैव विधातव्यं, तत्रापि जिनपूजनम् / / गुणाय जायते युक्त्या, कृतं भेषजमप्यहो 14 विधाय पूजां जैनी ये, भोजनं कुर्वतेऽन्वहम् // भोजनं कथ्यते तेषामाहारःशेषजंतुषु 15 / / अत्रांतरे मुनिःकश्चिद्विपश्चित् पृच्छतिस्मतम् / / जिनपूजां विनाप्येते, साधवःसाधव कथम्१६ | / मुनिः प्रोवाच पूजाया, भेदद्वयमुदाहृतम्। एका हि द्रव्यतःपूजा, द्वितीया भावतः पुनः / / / / द्रव्यपूजां प्रकुर्वति, विरताविरता जनाः। सर्वसावधविरता, भावपूजां तु साधवः // 18 // | भावपूजा निरारंभा, सारंभं द्रव्यपूजनम् / ज्ञातव्यो कूपदृष्टातो, जिनानां द्रव्यपूजने // 19 // || अथ प्रस्तुतमाचख्यौ, मुनिः शृणुत भोजनाः॥ भोजनावसरे नूनं, जिनः पूज्यो निरंतरम्।। - मुख्यरीतिरियं ज्ञेया, त्रिसध्यं यज्जिनार्चनम्।।अभावे जिनपूजाया, नूनं, कार्यानमस्कृतिः॥ // 25 // * अत्रांतरे नृपोऽवादीदंतर्वक्तुं न युज्यते ॥तथापि क्रियते पृच्छा, हृदि माति न कौतुकम्२२ || For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / सुताः सप्तदशाप्येते, जिनं यावन्नमंति न // स्तन्यपानमपि प्रायस्तावत् कुर्वति न ध्रुवम् // गुण०।। मुनिः प्रोचे महाराज, श्रूयतां पूर्वजन्मजम् // एतेषां सफलं वृत्तं, कथ्यते भवतां पुरः॥२४॥ // 26 // अत्रैव हस्तिनापुरे, धनदत्तोऽभवद्धनी // प्रासादः कारितो येन, जनानां नेत्रगोचरः॥२५॥ के सुताः सप्तदशाभूवंस्तस्य भार्याचतुष्टयात् // एतद्विज्ञातपूर्व ते, जातिस्मरणयोगतः // 26 // / ओमित्युक्ते नृपेणेष,मुनिःप्रोचे ततः शृणु // प्रमादमदिरामत्ता, जातास्ते तस्य नंदनाः।।। / यत्र तत्र भ्रमंतस्ते, लोलया वक्रचंक्रमाः। अन्येचुर्देवरमणे प्रयाताः क्रीडितुं वने // 28 // गीतं नृत्यं स्मितं वाप्यां,स्नानमांदोलनं द्रुषु / कुर्वाणाः स्वेच्छया तत्र, प्रदेशे ददृशुर्मुनिम्॥ पारयित्वा मुनिः कायोत्सर्ग लाभं विदन् जगौ॥आगम्यतां महाभागा, हितं किंचिनिगद्यते / परस्परं स्मयमाना,लीलया वक्रवीक्षिकाः॥ नमयित्वा शिरः किंचिन्निविष्टास्ते मुनेःपुरः // / मुनिःप्रोचे महाभाग्या, यूयं शास्त्रविशारदाः॥ ततो विचक्षणैः साकं, गोष्ठी पुण्येन लभ्यते३२ | एते वस्त्राद्यलंकारा लीलामात्राद्भवेत् कुतः। ते प्राहुरर्थतःसर्वा नरागां स्युःसमर्थता // 33 // | अर्थेन प्राप्यते कीर्तिः, स्यादर्थाद्राज्यमान्यता।।मुनिर्जगौ पुनः कस्मादर्थ एव प्रजायते 34 / // 26 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 27 // | व्यवसायादिति प्रोक्ते, तैः पुनर्मुनिरालपत्॥सर्वेषांकि धनंन स्याव्यवसायं प्रकुर्वताम् 35 || गुण० ततस्तेष्वात्तमौनेषु, मुनिःप्रोचे विचक्षणः॥पुण्येन प्राप्यते ह्यर्थस्तस्मात्पुण्यं विधीयते 36 चरित्र. पुण्यादेव समीहितार्थघटना नो पौरुषात्प्राणिनां, यद्भानोभ्रंमतोऽपि नांवरपथे स्यादष्टमः सैंधवः // स्वस्थानात्पदमात्रमप्यचलतो विंध्यस्य चानेकशो, जायंते मदपालिपालितयशःश्रीलंभिन कुंभिनः // 37 // / कुलं वो विमलं लोके, सकला विकला कलाः। प्रासाद इव निःकेतुर्विना पुण्यं न राजते 38 / दानं शीलं तपो भावः,सम्यक्त्वं जिनपूजनम् ॥ध्यानं सामायिकंवापि, किंचित्पुण्यविधीयते / ते प्रोचुस्तद्विचारे च, साधुनोक्ते सुविस्तरे। सुखसाध्यां विधास्यामः:पूजामेकां वयं मुने // / अथ केन प्रकारेण, क्रियते जिनपूजनम्॥ इति पृष्टो मुनिश्रेष्ठःस्पष्टमेवमभाषत // 4 // स्नात्रं विलेपनं वस्त्रयुगलारोपणं तथा ॥वासपुष्पमाल्यवर्णचूर्णानामधिरोपणम् // 42 // // 27 // | महाघजविभूषाणां रोपणं पुष्पवेश्म च // पुष्पाणां प्रकरश्चाग्रे, पुरतो मंगलाष्टकम् // 43 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धूपस्योत्क्षेपणं गोतं, नृत्यं वाद्यं मनोहरम्॥एते सप्तदश प्रोक्ताः, प्रकारा जिनपूजने // 4 // गुण० तेऽन्योऽन्यं कथयामासुः, श्रुत्वेति वचनं मुनेः॥एतेषु भेदमेकैकं, विधास्यामःक्षणादपि 45 3 चरित्र // 28 // अभ्युद्यतास्ततःसर्वे, प्रासादेऽत्र मनोहरे॥ सामग्री कारयामासुः, पूजायास्ते निजां निजाम ही कृत्वा पार्श्वप्रभोःपूजां, मुदिता मुनिपुंगवम् / / नत्वा निजगृहं प्राप्ता, भोजनं चक्रिरे च ते॥ हट्टे निविष्टास्ते दृष्टा, मित्रेणैकेन भाषिताः॥वार्तामेकामहं वच्मि, मन्यध्वे चेन्मनोहराम्॥ / मयि हट्टे समासीने,गीतनृत्यकुतूहलम् // कारयत्यूचिरे केचिद्धन्योऽयं धनलीलया // 49 // मंदस्वरं परःप्रोचे, स्वमित्रं मयि शृण्वति॥वृथास्य वर्ण्यते लीला, व्ययतः पैतृकं धनम्॥५०॥ / मातुःस्तन्यं पितुर्लक्ष्मीयुज्यते बाल्य एव हि // इति तद्वाक्यमाकर्ण्य, युष्मदंतिकमागतः 51 तलक्ष्म्यै गम्यते क्वापि, व्यवसायविचक्षणाः।। एकः प्रोचे ततोवाौं, पद्भ्यां पित्रापि गम्यते।। - इक्षुक्षेत्रं समुद्रश्च, योनिपोषणमेव च // प्रसादो भूभृतां चैव,क्षणाद् भंति दरिद्रताम् // 53 // / * परोऽवग्गम्यतां तर्हि, सिंहलद्वीप एव हि // गजानांव्यवसायेन, महांल्लाभो यतो भवेत॥५४॥ // 26 // / तथैव सर्वेऽप्यालोच्य, समुद्रगमनं प्रति // पित्राद्यनुमतिं कष्टाज्जगृहुर्गृहमागताः // 55 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोहित्थं सज्जयित्वाशु, क्रयाणकशतैरमी॥ आपूर्य सुदिने चेलुः, स्वजनानुगताःपुरात् 56 | गुण विसृज्य स्वजनांस्तीरादारुह्य वहनं मुदा।। ययुस्ते सिंहलदीपं, स्तोकैरेव दिनैस्ततः // 57 // चरित्र. // 29 // | उत्तीर्णास्तेऽबुधेस्तीरे, मध्येनगरमागताः। विक्रीणानाः क्रयाणानि, व्यवसायं वितेनिरे 58 का दैवयोगात्तदा तत्र, राज्ञो रोगैzता गजाः॥ उत्तार्यो न गजो द्वीपादित्याज्ञा च प्रवर्त्तिता 59 / अलाभेन गजानां ते, स्थिताः षोडशवत्सरीम् // ततोऽमी स्वयमुद्भाज्य, ययुपं कटाहकम्।। षोडशस्वर्णकोटीनां, लाभस्तेषामिहाभवत्॥ ततः प्रमुदिताःसर्वे, प्रचेलुःस्वपुरं प्रति / / 61 // * अंतरा दैवतो वाताःप्रतीपा जज्ञि रेऽबुधौ // ततःकंदुकवत्पोत, उत्क्षिप्तस्तुपुनःपुनः // 6 // तदा जगर्ज पर्जन्यस्तेषां हृदयपाटकः // दुःखिताश्चिंतयामासुस्ततः सप्तदशापि ते // 63 // 8 न लीलावत्तया पूर्व, पुण्यं किंचिदुपार्जितम्।ततश्च व्याकुलं जातं, व्यवसायेन मानसम्६४ | धनदत्तस्य तस्यापि, पुत्रैर्भूत्वा विवेकिनः॥अस्माभिर्न कृतं पुण्यं गतं जन्म निरर्थकम् 65 / / 2 तदा तस्य मुनेचा, विहितं जिनपूजनम्॥तदेतदवलंबोऽस्ति, तत्पादाःशरणं च नः॥६६॥ // 29 // इत्थं चिंतयतां तेषां, बोहित्थं बुडतिस्म तत्॥अथ तेषां गतिं वक्ष्ये,श्रूयतां भोः पृथक् पृथक् / / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है येन पूर्व प्रभोः स्नात्रं, कृतं तस्य निगद्यते // अत्रास्ति भरतक्षेत्रे, पुरं पद्मपुराभिधम्॥६॥ गुण आनंदस्तत्र भूपोऽभूदानंद इव मूर्तिमान् // जयंतीनाम तत्पट्टदेवी देवीव रूपतः // 69 / / // 30 // दत्ताख्यः श्रेष्ठीसूस्तस्या, उदरे समवातरत् // स्वप्ने सरोवरं पूर्ण, तूर्गमालोकितं तया 70 ॐ तदैव च तया पृष्टः, स्पष्टमाचष्ट भूपतिः // सांप्रतं विद्यते देवि, लोके दुर्भिक्षमंकथा // 71 // | | सांवत्सरैर्ममाप्यो, प्रोक्तमस्तीति सर्वथा // वृष्टिं न कर्ता पर्जन्यः कार्यो धान्यादिसंग्रहः७२ स्वप्नेनानेन ते देवि, मेघो वृष्टिं करिष्यति / अस्मदीयकुलोत्तमः, पुत्रोऽप्यवतरिष्यति // ततो हृष्टा ययौ देवी, स्वस्थानं समलंकृतम् // तदैव जलदैश्वापि, गगनं समलंकृतम् 74 / / झात्कारं विद्युतश्चक्रुर्घना गर्जितमूर्जितम् / तत्र सर्वत्र देशेऽभून्महावृष्टिर्निरंतरा // 75 // मरसीः सारसैः साराः, सरसा नीरमारमा // वारिदा वारिदानाय, विदुराविवभुस्तदा // 6 // - हृदा तदा नृपो दध्यावहो स्वप्नस्य सत्यता / / भाग्यवत्ताच पुत्रस्यावतीर्णस्य प्रियोदरे 77 अथ पूर्णेषु मासेषु, सा राज्ञी सुषवे सुतम् / / सुंदरं शुभवेलायां, गुगलक्षणसंयुतम् // 79 // // 30 // नृपस्तस्योत्सवं कृत्वा, जनैःप्रमुदितैः समम् / / मेघनाद इति स्वप्नानुसारादभिधां दधौ 79 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रमेण वर्द्धमानोऽथ, स कलाधवत्कलाः॥सकलाः कलयामास, किंतु कालुष्यवर्जितः॥८॥ गुण० तारं तारुण्यसंप्राप्त, मानिनीनां मनोहरम्॥तं वीक्ष्य नृपतिर्दध्यौ, राज्यभारधुरंधरम् // 81 // | चरित्र. // 3 // अदृष्टपलिताः सर्वे, पूर्वजा जगृहुव्रतम् // ईदृशे सति पुत्रे मे, राज्यमेतन्न युज्यते॥२॥ | इति ध्यात्वा नृपःप्रातस्तस्मै राज्यं प्रदाय सः॥दीक्षां गृहीत्वा तपसा, कर्म भित्त्वा शिवं ययौ।। 18| मेघनादमहीपाले, प्रजाः पालयति क्षितो // देशा न मुक्ता मेघेन, काले वृष्टिविधायिना। / कराले ग्रीष्मकालेऽसौ, सिंहनामनरेश्वरम् // देशक्लेशकरं श्रुत्वा, चचाल सह सेनया 85 / / || महाटव्यां गते सैन्ये, जलं प्रापन कश्चन // नदी न निर्झरा नात्र,न कूपोन सरोवरम् // | शुष्ककंठास्तृपाक्रांताः, श्रांता भ्रांता वनेऽखिले // रत्नवं कथयामासुर्जलस्यैव जनास्तदा।। | पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि, जलमन्नं सुभाषितम् // मूढैःपाषाणखंडेषु, रत्नसंज्ञाभिधीयते 88 | | मेघनादस्तदा दध्यौ, मयि सत्यपि संप्रति / / मेघोऽपि न जलं दद्यात्, कथं नाम निरर्थकम् || इति चिंतयति क्षमापे,सैन्योपरि घनो घनः।। वृष्टिं चक्रे मुदा लोको, भूयमेव शशंस तम् 90 // 31 // रिपुं जित्वा सुखेनैव, गत्वासी नगर निजम् / / पप्रच्छ ज्ञानिनं साधुचंद्रं तत्र समागतम्।। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - अटव्यां मम सैन्यस्योपरिष्टादेव वारिदः॥ वृष्टिं चकार को हेतुरत्र चित्रमिदं महत्॥१२॥ गुण०। मुनिः प्रोचे भवान् पूर्वभवेऽत्र हस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, दत्तनामा सुतोऽजनि।। चरित्र. // 3 // विहिता तेन सामग्री, जिनस्य स्नात्रहेतवे॥कालेऽबुधौ स मृत्वाभूस्त्वमानंदनृपांगजः 94 / / के अंतरेऽत्र नृपोऽवादीत्कुत्र तद्धस्तिनापुरम् / / यतः पयोनिधौ गत्वा, मृत्वा चाहमिहाभवम्।। | मुनिर्जगी बहून्यत्र, नगराण्येकनामतः // हस्तिनापुरमन्यत्तदन्यत्र कुरुमंडले // 96 // / उक्तं प्रस्तुतमित्युक्ते, नृपेण मुनिपुंगवः // जगौ फलं जगन्नाथपूजायाः शृणु भूपते // 17 // / पूजाप्रभावतो राज्यं, स्वभावादपि जायते // स्नात्रपूजाविशेषेण जलदस्ते वशंवदः // 9 // 6 तवावतारे दुर्भिक्षवार्तायामपि सर्वतः // वृष्टिं चक्रे घनस्तस्मान्मेघनादाख्यया भवान् 99 / त्वयि पालयति क्षोणी, दुर्भिक्षं न भवेत्स्यचित् // अटव्यां तु तदा वृष्टिवितेने वनदेवतैः॥ IF एकापि पूजा सफला, वह्वीनां किं निगद्यते // विंशतिस्थानकैरर्हन्नेकेनापि च जायते 101 सर्वत्र शस्यते भावः, पुण्यकर्मणि भूपते // भावेनैव घृतेनेव भोज्यं तत्सफलं भवेत् 102 ||32|| - मेघनाद इति श्रुत्वा, स्मृत्वा पूर्वभवं निजम् / मुनिं नत्वा पुनः प्रोचे. विशेषाद्धर्ममादिशा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir R - | ततः सम्यक्त्वमूलानि, व्रतानि दादशापि हि // मुनिरारोपयामास, जग्राह च मुदा नृपः / / गुण०|मुनिं नत्वा गृहं गत्वा, पालयित्वा चिरं भुवम् // पद्मपुत्राय राज्यं च,दत्वासौ संयम ललौ॥ चरित्र. // 33 // / संयमालाप्य सौधर्म, सुखं भुक्त्वा ततच्युतः॥आयःप्रथमराजाख्यस्तवायं नंदनोऽभवत् // // इति स्नात्रपूजायां दत्तकथा.॥ कृतं विलेपनं येन, गतिस्तस्याथ कथ्यते॥अत्रास्ति भरतक्षेत्रे, पुरी चंपा गरीयसी // 107 // / तत्र श्रीनंदनो राजा, सोमश्रीस्तस्य च प्रिया // सोमःश्रेष्ठी च तस्यासीद्धर्मादत्रासितातिधीः / श्रीमतीकुक्षिसंभूतश्चंद्रस्तस्य सुतोऽभवत् // निजान्वयनभोदेशे, नवीन इव चंद्रमाः॥१०९॥ साहित्ये लक्षणे तर्के, षड्भाषास्वपि कौशलः // चंद्रो बभूव निस्तंद्रमुपाध्यायप्रसादतः 110 // 8 अहं स्वकीयद्रव्येणोपार्जितेन करग्रहम् ।।कर्तास्मीति हृदि घ्यावा, सार्थ सज्जयतिस्म सः॥ जनकस्यानुमत्या स, पुरी चंद्रावतीं प्रति॥गच्छन्नविच्छिन्नगतिस्तांजगामाभिरामधीः 112 || गृहीत्वा भांडशालां स, व्यवसायविचक्षणः।। अकरोव्यवसायं च जिनधर्मपग्रयणः // 113 // // 33 // कदाचिद्ग्रीष्मकालेऽस्य, वने केनापि हेतुना // गतस्य प्रकटा वातावलो च विकटाभवत्।। -40: For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धूलीभ्रमणमेवासीत्तया प्रसृतयाभितः॥ तरोर्मूले स्थितस्यास्य संध्यायाः समयोऽभवत् // गुण०|| तरोरुपरि संस्थायी, भूतो भूतं परं जगौ / अस्माकमागतं नूनं, महदेकं कुतूहलम् // 116 // चरित्र. // 34 // चंद्रावत्यधिनाथस्य, चंद्रशेखरभूपतेः॥ तृतीयदिवसे मृत्युर्घातकस्य प्रवेशतः // 117 // / मृते तस्मिन्नमात्याद्या, एतस्यांतःपुराणि च // वन्हिना मृत्युमाप्स्यंति, महदेतत्कुतूहलम् // | श्रुत्वेति सहसोत्थाय, चंद्रो नगरमागतः॥आगत्य भांडशालायां, चिंतयामास चेतसि // / येन केनाप्युपायेन, रक्षा स्याद्यदि भूपतेः॥तथाभव्यमिति ध्यात्वा, व्यकीणात्सर्ववस्तु सः।। रत्नपंचकमादाय, राजयोग्यमसौ प्रगे // प्राप्तःसमां नरेंद्रस्य, प्रतीहारनिवेदितः // 121 / / राज्ञासौ तेषु रत्नेषु दृष्टेषु बहुमानितः // कस्त्वं कुतः समेतश्चेत्यूचे स प्राह भूपतिम् 122 / 1. अहं चंपात आयात इहास्मि व्यवसायकृत्॥हितं च स्वामिनः किंचिद्वाच्यं नावसरः पुनः॥8| 2 राज्ञोचे पश्चिमे यामे, त्वयागंतव्यमित्यसौ॥ विसृष्टः स्वेप्सिते स्थाने,भुक्त्वा प्राप्तो नृपांतिकम्।। प्रोक्तायां भूपवा यां, जगौ तं प्रति भूपतिः॥शयनं न करिष्यामो, धर्मण्यपि गृहाबहिः१२५५॥३४॥ तं विसृज्य स्वरक्षार्थ नृपस्तस्थो सचेतनः॥तृतीयदिवसे रात्रौ, महान् कोलाहलोऽजनिः 126 / / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HODH को अमुं क्षुरिकया हत्वा, भृत्यं यात्येष धावतः॥सुभटा धाविता यावत्तावत्स्वापि ययौ च सः // गुण० प्रातः प्रीतिभराद्भपश्चंद्रमाकार्य संसदि // जगौ मे जीवितं दत्तं, जगदानंददायकम् 128 | // 35 // आलोच्य मंत्रिभिः सार्द्ध, राज्यार्द्ध मुदितो ददौ॥चंद्राय सुतया चंद्रावल्या साकं नरेश्वरः।। राजसौधांतिके रम्ये, मंदिरे तस्य तस्थुषः॥आययौ तपितुर्लेखश्चंपातः सोप्यवाचयत् 130 / अपीत्वा नीरमप्याशु, त्वयागंतव्यमेकदा॥ असौ तद् ज्ञापयामास, भूभुजे गमनोत्सुकः॥ मुक्ता चंद्रावली तत्र, नृपेणानुमतोऽचलत् ॥गच्छन् पथि नदीतीरे, स्थित्वासौ दिनमत्यगात्।। संध्यायां सरितो दूरं, गतः स तमुचिंतया॥ददर्श रुदतीं कांचिदंगनां शाखिनस्तले / / 133 / / / का वं रोदिषि तेनोक्ते, सा जगौ शृण्वहं नदी॥अर्द्धरात्रे महायूरो, नद्यामत्र समेष्यति।। यास्यति प्रलयं सर्वो, लोकस्तेनैव रोदिमि // श्रुत्वेति सत्वरं चंद्रश्चचाल सपरिच्छेदः 135 / पृष्टा तैर्जनै मोक्तं श्रुत्वा पूरसमागम् // चंद्रोदध्यावहो कीदृगुपकारः कृतस्तया // 136 // || विषमे सोऽथ कांतारे, भोजनाय स्थितोऽतरा।भोक्तुं निविष्टाःसर्वऽपिभटास्तस्यक्षुधातुराः / / - तदैव गिरिभिल्लानां, धाटो तत्र समागता // मलिना मेधमालेव, शरासारं वितन्वती 138 / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / भटेषु व्याकुलेपूच्चैश्चंद्रे चिंतातुरे सति // निर्गतः सुभटः कोऽपि, हयारूढो महाद्युतिः // गुण भल्लेन त्रासितास्तेन, सर्वे भिल्लागिरिययुः। व्यावर्त्तमानो नो दृष्टः,सुभटः कापि केनचित।। चार // 36 // चंद्रश्चित्रमिदं चित्ते, दधानः सपरिच्छदः। आजगाम पुरी चंपां, पितुश्चक्रे परां मुदम् 141 / / भोजनादनु तातेन, पृष्टं पुत्र तवाध्वनि // कष्टद्वयं समायातं, नद्यां कांतार एव च // 14 // पुत्रोऽवादीत् कथं तात, भवता ज्ञायते ह्यदः॥ कथं को वा समायातः, पूर्वमेव ममागमात्।। पिता प्रोचे न कोऽप्यागाज्जानामि स्वयमेव हि // पुत्रेण कथमित्युक्ते, समये कथयिष्यते।। || / इत्युक्त्वा श्रेष्ठिना शीघं, लेख्यं पुत्रेण कारितम्॥अदूरे स्थापितश्वायं, रात्रौ वाती प्रकुर्वता।। || अर्द्धरात्रे जगौ श्रेष्ठी, वत्स जागर्षि किं न वा॥सोऽथ जागरितोऽद्राक्षीदूर्धस्थं पितरं निजम् // भूमौ शयानमेकं च, दृष्ट्वा स पितरं जगौ // किमिदं दृश्यते तात, तव रूपदयं मया 147 श्रेष्ठी जगाद हेवत्स, स्वरूपं कथ्यते तव // त्वयि चंद्रावती यातेऽभून्मे किंचिदपाटवम् 148 // # स्वभावेनैव सम्यक्त्वाद्युच्चारं स्वयमेव हि // कृत्वा सुप्तःप्रमीलायामेव मृत्वा सुरोऽभवम् // // 36 // अवधिज्ञानतो ज्ञात्वा स्वरूपं सर्वमात्मनः।। गृहसूत्राय काय स्वस्तत्क्षगादाश्रितो मया 150 axX For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेष्य तत्रततो लेख,शीघमाकारितो भवान्॥नार्या भटस्य रूपं च, कृत्वा कष्टं निवारितम् // 1 गुण० कारितं लेख्यकं सर्व, त्वं सदैव सुखी भवेः॥स्वर्ग यास्याम्यथ स्थातुं, मर्त्यलोके न शक्यते॥ चरित्र. // 37 // इति प्रोच्य गते तस्मिन् , विद्युज्जात्कारकारिणि॥शवमेव पुरो दृष्ट्वा, चंद्रःपूत्कारमातनोत्।। || मिलिते स्वजने प्रातः, प्रेतकार्याणि तस्य सः॥ कृत्वा क्रमेणे निःशोकः, पुरीं चंद्रावतीमगात् | चंद्रावल्या समंक्रीडन्नाक्रीडादिषु सोऽन्वहम् ॥वासरान् गमयामास, लीलातिशयभासुरान्१५५ विकारेणान्यदा चंद्रावली केनापि बाधिता॥जाता दुर्गधता देहे, पिता भर्ता च दुःखितौ।। | कारयामासतुर्मत्रतंत्रौषधपरंपराम् / / दिनमेकं गुणे दृष्टे, जातो दोषस्तथैव सः // 15 // 6 चक्रे विलेपनं यः प्राग्यसुदत्ताभिधःप्रभोः।।सोऽवातरत्तदा तस्याः, कुक्षौ हंस इवांबुजे 1580 तस्मिन्नुत्पन्नमात्रेऽस्या,गता दुर्गधता क्षणात्। मध्यस्थचंदनेनेव, प्रत्युताभूत्सुगंधता॥१५९।। ताते कांते च हृष्टे सा समये सुपुवे सुतम् // चंद्रेण श्वशुरेणापि, कृतास्तस्य महोत्सवाः // अनेन चंदनेनेव, कृता मातुःसुगंधता // अतोऽस्य चंदनसार, इति नाम विनिर्मितम्१६१ ॥३णा वर्ध्वमानः क्रमात्ताभ्यां, कलाकौशलबंधुरः।। तारुण्ये कमलाराजपुत्र्यासौ परिणायितः 162 / / RECEN6 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir PAK | अन्येचुर्दैवयोगेन, चंद्रशेखरभूपतेः // दाहज्वरःसमुत्पेदे, दिवारात्रौ हि दुःखदः // 163 // है। गुण० सांवत्सरा गृहकृतां, वैद्याश्च व्याधिसंभवाम् / / मांत्रिका भूतसंभूतां पीडामाहुर्महीपतेः॥१६४॥ चरित्र. // 3 // सलिलं वालुकासद्म, चंदनं चापि चंद्रमाः। तापं शमयितुं शक्ता,नाभूवंस्तस्य भूपतेः 165 18 नीतायामपि षण्मास्यां, स्वप्नं लेभे नराधिपः।। वेत्रीति कुलदेव्याह, दौहित्रश्चंदनोऽस्ति ते है / तस्य हस्तेन संघृष्टय, चंदनेन विलेपनम् / कार्य सर्वांगमेतेन, तापःशांतिमुपैष्यति 167 | * स्वप्नं लब्ध्वा प्रबुद्धोऽथ,प्रातर्भूपः प्रकाश्य तम्॥दौहित्रं निजमाकार्य विलेपनमकारयत् 168 / / है शांततापे सति क्षमापे, प्रावर्त्तत महोत्सवाः॥आशीर्वचांसि ददिरे चंदनाय जना मुदा / / / चतुर्ज्ञानधरोऽत्रागान्मुनिश्चंद्रमुनिस्तदा / तं नंतुं च ययो राजा चंद्रश्चंदनसंयुतः // 170 / / धर्मोपदेशमाकर्ण्य, मुनिं प्रोचे महीपतिः॥महिमा चंदनस्येव, चंदनस्य कुतोऽधिकः 171 / / A मुनिःपूर्वभवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, वसुदत्तः सुतोजऽनि // 172 / / पूजायां क्रियमाणायां, चंदनस्य विलेपनम् / / कृतं जिनस्य तेनास्य, तेन सौभाग्यमद्भुतम्।।४॥३०॥ | चंदनोऽपि भवं पूर्व, ज्ञात्वा जातिस्परोऽभवत्॥ विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ 174 / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3. चंद्रशेखरचंद्रो तौ, मुनिं नत्वा पुरं गतौ // राज्यं चंदनसाराय, दत्वा प्राव्रजतां मुदा॥१७॥ गुण० राजा चंदनसारोऽपि, प्राज्यं राज्यमपालयत्॥ प्राप्तप्रौदप्रतापोऽपि, प्रजातापहरः परः // 176 // चरित्र. // 39 // समये सोमपुत्राय, राज्यं दत्वा नरेश्वरः // प्रपाल्य संयमं प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् // चिरं सौख्यानि भुक्त्वासौ, देवलोकात्ततध्युतः॥ द्वितीयः सिंहनामाभूत्तनयस्तव भूपते // // इति विलेपनपूजायां वसुदत्तकथा // | अथ येन कृतं वस्त्रयुगलारोपणं जिने॥कथयामि फलं तस्य, भव्याः शृणुत भावतः॥१७९॥ if अत्रास्ति भरतक्षेत्रे, जयंती नामतः पुरी // तत्र क्षेमंकरो राजा, तस्य रत्नवती प्रिया॥१८॥ | जीवस्तस्य सुदत्तस्य, मृत्वा तत्कुक्षिमागतः // तया च सुषुवे पुत्रः, समये शुभलक्षणः // 18 कृत्वा महोत्सवं तस्य, पुत्रस्य पृथिवीपतिः॥ रत्नध्वज इति प्रीतिधाम नाम विनिर्ममे // साकं पित्रोः प्रमोदेन,वर्द्धमानो नवेंदुवत्॥कलाः सर्वाः स जग्राह, ताः पुसां किल मंडनम्।। / सोऽन्येचुर्भामग्रीष्मता, निशायां घर्पपीडितः।। आसीनश्चंद्रशालायां, चंद्रपादानसेवत॥१८॥॥३९॥ मित्रैः साकं स कुर्वाणः, सुभाषितकुतूहलम् / / प्रमीलया परिस्पृष्टलोचन दयवानभूत् // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुप्तेषु तस्य मित्रेषु, तत्रैव तलकुट्टिमे // अर्द्धरात्रेऽचलचंद्रचूडश्च खेचराग्रणीः // 186 // गुण०|| तस्योत्तरीयमुत्तुंगविमानवलभीस्थितम् // पपात वातवेगेन. सौधे रत्नध्धजोपरि // 187 // चरित्र. // 40 // सोऽथ जागरितोऽद्राक्षीत्तद्दिव्यं वस्रमद्भुतम्॥ चंद्रांशुभिञ्युतमिव,लक्ष्यं चंद्रांशुभिःस्फुरत् // * संगोप्य तदुकूलं स स्वीयं तल्पमशिश्रियत् / / प्रातः प्रबुद्धस्तल्लात्वा, पश्यतिस्म पुनःपुनः॥ कृत्वोत्तरीये तत्तादृक्, परिधानं विना तदा॥विषण्णश्चिंतयामास, निजचेतसि राजसूः 190 / अंतरीयं विना तादृगुत्तरीयेण किं मम॥प्रच्छदोझिततल्पस्योपरि चंद्रोदयेन किम् // 191|| दैतीयीकं विना योग्यमेकेन रुचिरेण किम्॥ वरं मुखं भवेदेककुंडलादप्यकुंडलम् // 19 // 3 एवं चिंतातुरं चित्तं, दधानं राजनंदनम् // विलोक्य सुहृदः प्रोचुवैलक्ष्यं किमिदं तव // एतेभ्यः किमयुक्तेन, प्रोक्तेन वचसाधुना॥ साधुना वचनेनेति, तेन तेने मनःसुखम् 194 18 ततो मनोविनोदाय, वने क्रीडाकुतूहलैः॥ मित्रैः सह जगामासौ, वामौकमि विषण्णधी।।१९५॥ सरस्यां दीर्घिकायां च, पद्मतंतून विलोकयन् / / दुकूलमेव सस्मार, रेवाकूलमिव दिपः॥१९॥ // 40 // रंभासु क्रीडितं कुर्वन्नसौ तत्तंतुसंततिम् / / विलोक्य वस्त्रं सस्मार, तद्दिव्यं देवतामिव / / 197 / / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पुष्पेषु शतपत्रीणां, केशरश्रेणिमुज्वलाम्॥ वीक्ष्य वस्त्रस्य सोऽस्मार्पोन्मंत्रज्ञोमंत्रवञ्चिरम् // गुण एवं तत्रैव संध्यायाः समयः समजायत / / रंभागृहं समाश्रित्य विशश्राम नरेंद्रभूः // 199 // चरित्र. // 4 // सुप्तेषु सर्वमित्रेषु, शर्वर्या वर्यवाससा // कृतावासेन तचित्ते, निद्रा दूरं निवारिता // 20 // 13| अर्द्धरात्रगते सोऽथ शुश्राव श्रवणोत्सवम् / / गीतेन मिश्रितं वाद्यहृद्यं नाव्यध्वनि कचित्।। 18 उत्थाय तस्य वीक्षार्थ, ततो गच्छन्नतुच्छधीः॥ पुरो विलोकयामास, देवताभवनं वने।।२०२॥ | तस्मिन् गते मनुष्यत्वात्तत्क्षणं प्रेक्षणं स्थितम् // असौ व्यचारयामास, नाट्यं दैवतमेव तत् / / मध्येभवनमागत्य, तत्र मूर्ति गवेषयन्॥ पुरो विलोकयलक्ष्मी, देवतामासनस्थिताम्॥२०॥ | हेलक्ष्मि देवते गेहमासीनः कामितप्रदे // इत्युक्त्वा पूरयामासासनं तत्रैव भूपभूः॥२०५॥ / तस्य पुण्यवशात्प्रीता, प्रभातसमये रमा / दिव्यं वस्त्रद्रयं रंगादुत्संगाश्रितमातनोत् 2064 प्रातर्विलोक्य तदनदंद्रं दिव्यं मनोहरम् // अंतरीये करोतिस्म, वोत्तरीये तदैव सः॥२०॥ तत्तादृग्वेषधारी स, मित्रैः सह पुरं गतः॥ सभायां भूपतेरागात्प्रभाभरविभाकरः // 20 // // 1 // नवा निविष्टं तं भूपः स्पष्टमाचष्ट किं भवान् // वने तस्थौ यतो दोःस्थं सौख्यं भवति देवतः।। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुत्रः प्राह ततस्तात, नैवं प्रायः करिष्यते // नृपोऽथ वीक्ष्य तदस्त्रे, तद्वेषं हृदये दधौ // गुण स्वामिवेशाधिको वेशोऽन्येषामिह न युज्यते॥अयं स्वयं न जानाति, तत्पुरः कस्य कथ्यते।। चरित्र. // 42 // ध्यात्वेत्यसौ विसृष्टायां, सभायां नंदनं जगौ॥आयातानि कुतस्तानि वस्त्राणि तव कथ्यताम्।। || आयातानि किमुच्येत, सलीलमिति जल्पता॥नत्वा नृपं विनिर्गत्य, कुमारेण गते गृहम् 213 || | भोजनादनु दध्यौ स, राज्ञे वेशोऽपि रोचितः॥नोचितो मे ततो नूनं, सभायांगच्छतः सतः।। चिंतयित्वेत्यसौ वस्त्रयुग्मं संवृत्य यत्नतः / / स्वचेच्या प्रेषयामास, परिधानाय भूभुजे 215 / / | किमिदं वस्त्रयुग्मं रे, केन च प्रहितं वृथा। गच्छ वत्सस्य वस्त्राभ्यामिह नास्ति प्रयोजनम् // इति जल्पति भूपाले,कुमारोऽपि समागतः // प्राह तात भवद्योग्यं, वस्त्रयुग्ममिदं खलु // भूपोऽवग् वत्स ते पूर्ववस्तु विस्मृतिमागतम् // किमनेनाधुना तर्हि, गृहीत्वा वत्स गम्यतामा - भूपे निषिध्यति प्रोवैः, कुमारेच प्रयच्छति॥सेर्पण राज्ञा तदत्तं, मागधायांवरदयम् // 219 // / रूक्षचेतास्ततो गत्वा, कुमारो दध्यिवानिति॥स्वल्पेन वस्तुना किं स्यादाप्तेनापिन गौखम्।। ||4| | इति ध्यायन दिनं नीत्वा, निशायां सुप्तवानसौ / प्रातः प्रबुद्धोऽपश्यत्तचीरयुग्मं शिरस्तले For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | किमेतत्कौतुकं चित्ते, चिंतयन्निति सत्वरम् // वस्त्र युग्मं समादाय,स ययौ नृपसंसदि 222 / / गुण पुरो विमुच्य तद्धस्त्रयुग्मं स्वीक्रियतामिति / / कुमारे जल्पतिमापश्चिंतयामास चेतसि 223 चरित्र. // 43 // गृहीत्वा मागधादेव, किमिदं दीयते मम / / मागधश्च तदैवागाद्वसद्धयविभूषितः // 224|| नवीनं घटतीत्येतदिति ध्यात्वा नृपोऽवदत् // किमर्थ क्रियते वत्स, बहुव्यव्ययो वृथा // 8 B वहनि राजकार्याणि, सर्वत्रापि धनव्ययः॥ गृहीताश्च भटाहस्तितुरंगाः कार्यकारकाः / / 226 // || पुत्रोऽवादीदिह द्रव्यव्ययो न क्रियते मया // पृच्छतां कोऽपि केनापि, दत्तं वस्त्रद्वयं मम / / / ततः कुतः समायाति, नवं नवमिदं तव // पुत्रः प्रोवाच संतुष्टा, दत्ते श्री देवता मम 228 | / ततः प्रातः पुनर्वस्त्रद्रयमानेयमुज्वलम् // इत्युक्त्वा स्थापयामास, पूर्वायातं नरेश्वरः॥२२९॥ 18| पुनर्वस्त्रद्रये प्रातः, संप्राप्ते स महीपतिः॥तन्नेपथ्यं स्वयं कृत्वा, कुमारायान्वमन्यत // 230 // 1 महीपालकुमारेंद्रौ, तत्तादृग्वेशवारिणौ // विरेजाते सभामध्ये, धर्मार्थाविव संगतौ // 231 // * आर्थरक्षित इत्याख्या, वहन्नागान्मुनिस्तदा।चतुर्ज्ञानधरस्तं च, वंदितुं भूपतिर्ययौ // 232 // // 43 // कुमारसहितो भूपस्तं नत्वा देशनाम् // श्रुत्वा पप्रच्छ वत्सस्य, किमेवं भाग्यमद्भुतम् 233 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है। मुनिः पूर्वभवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे॥श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, सुदत्ताख्यः सुतोऽजनि 234 / / गुण पूजायां क्रियमाणायां, यदनेन जिनेशितुः॥ विहितं वस्त्रयुगलारोपणं भावशालिना 235 चरित्र. // 4 // तेन पुण्येन भूपाल, त्वत्कुलेऽसौ समागतः // वस्त्रद्वयं प्रदत्तेऽस्मै, श्रीदेवी च नवनवम् / / | इति श्रुत्वा कुमारोऽथ, जातिस्मृतिमुपागतः। विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ।।२३७। काले राज्यं पितुः प्राप्य, पालयित्वा चिरं भुवम्॥ प्रपाल्य संयमं प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् // चिरं सौख्यान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततच्युतः।तृतीयो हरिनामाभूत्तनयस्तव भूपते // 239 // // इति वस्त्रयुगलपूजाधिकारे सुदत्तकथा // वासपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते॥अत्रास्ति भरतक्षेत्रे, मथुरानगरी किल // 24 // भूपतिर्वा सवस्तत्र, नवीन इव वासवः॥जयंती वल्लभा तस्य, जयंती रूपतः श्रियम् // 24 // || अन्यदा नारदः शौक्ल्यजितशारदवारिदः // पारदद्युतिरायासीदीक्षितु भूपसंपदम् // 242 // || राज्ञा संमान्य स प्रोचे, किमप्याश्चर्यमीक्षितम् / सोऽवादीद्भूपतेभूमिर्विविधाश्चर्यसंकुला // 4 // इत्युक्त्वा सहसोत्पत्य, जयंती नृपवल्लभाम् ।।वीक्षितुं स ययौ किंतु, स तया नोपलक्षितः // | For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षणंस्थित्वारूपापूर्णो, व्यावृत्तोऽसौव्यचिंतयत्॥अनयानोपलक्ष्येऽहं, किंकिमस्या करोमिभो / गुण०।। इति ध्यायन्नसौ गच्छन्नतुच्छं मत्सरं वहन् // श्रेष्टिनो जिनदत्तस्य, प्राचालीन्मंदिरोपरि२४६ चरित्र. // 45 // सलावण्यां गवाक्षस्थां,तस्य कन्यां धनश्रियम्।।दृष्टवा सदथ्यौ तस्याःस्यान्मानच्छेदोऽनयाधुवम् / / ध्यात्वेति नारदस्तस्या रूपं चित्रपटेऽलिखत्॥नृपायादर्शयच्चाख्यदाश्चर्यमिह दृश्यताम् 248 नृपोऽवोचदियं लक्ष्मीहहोवास्ति चतुर्भुजा|भारती किमु हंसा सा, वीणापुस्तकधारिणी // / तवैव नगरे किंतु, जिनदत्तो महाधनी // धनश्रीरितिनाम्नास्य,सुता रूपश्रियायुता 250 रत्नं रत्नेन घटतामिति ध्यात्वा मया तव॥दर्शितास्ति यथायोग्य, कार्य कार्यमतःपरम् 291 / / इति प्रोच्य गते तस्मिन्, राजाहूय स्वमंत्रिणम् / स्वरूपं ज्ञापयित्वोचे, जिनदत्तं समाह्वय // I आकारितस्ततः श्रेष्ठी, तांस कन्यामयाचत॥अथ तेन प्रदत्ता सा,नृपेणोढा शुभे दिने / धनश्रियां मनस्तस्य, राज्ञो दृष्ट्वानुरागभाग्॥ जयंती वैजयंतीव, स्थैर्य प्रापन हि क्वचित् // वासपूजाकरश्चित्तनंदनाख्यो धनश्रियाः // लेभेऽवतारं कुक्षौ स, नंदने कल्पवृक्षवत् 255 // 45 // धनश्रियां सुते जाते, नृपः कृत्वा महोत्सवम् // धनराज इति प्रीतिधाम नाम विनिर्ममे।। ORM-4000-4 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4000-00 400K कियन्मात्रेषु घस्रेषु, जयंत्या अप्यभूत्सुतः॥ तस्यासीत्पद्म इत्याख्या,प्रावर्द्रतामुभौ सुतौ // गुण लेखशालागमार्डी तौ, जयंती वीक्ष्य दध्युषी॥धनश्रियाः सुतो वृद्धो, मम पुत्रो लघुःपुनः चरित्र. // 46 // वृद्धत्वाद्धनराजाय, राजा राज्यं प्रदास्यति // उत्पादयामि तत्किंचित्, दूषणं तस्य सांप्रतम् / ध्यात्वेति योगिनं कंचिदाकार्य कपटे पटुम् // भृशमावर्षी सा प्रोचे, किंचिच्चूर्णादि दीयताम् / है चूर्ण दत्वा स च प्रोचे, क्षिप्तेनानेन मस्तके। गृहिलत्वं भवत्येवेत्युक्त्वा योगी जगाम सः / IT तच्चूर्ग मुष्टिगं कृत्वा, सा प्रीता तत्र तस्थुषी॥इनश्च धनराजोऽत्र,समागात् क्रीडयाऽऽरमन् || सा तं दंभात्समाहूय, चूर्ण चिक्षेप मस्तके / / तस्य पुण्यप्रभावेण, तद्वयर्थ समजायत 263 || छद्मवत्याःसुतस्तस्या. अपि पद्मः समागाः॥ सा तं पस्पर्श चुंबती.स्नेहाच्छिरसि पाणिना२६४|| | अंगुल्यंतरगं किंचिच्चूर्ग तस्याः करे स्थितम् / / तेनापि पतितेनासौ,तत्क्षणं ग्रहिलोऽभवत् || / रुदंती चोरमातेव, प्रच्छन्नं स्वं निनिंद सा / / इतश्च धनराजोऽपि, तारं तारुण्यमाश्रितः 266/ पुत्री मंत्रिवरस्यासौ, भूपेन परिणायितः।। कीडतं चतया वीक्ष्य, जयंती चिखिदे हृदि 267 // 46 // / ततः स्वराज्यदानाय, धनराजस्य भूपतिः / / मुहूर्त गणयामास, गणकैर्गुणबंधुरम् // 268 / / -400- 4000 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तदा योगी स एवागाज्जयंत्या मंदिरं पुनः॥स प्रोचे मम चूर्णन, तव सिद्धो मनोरथः // गुण निःश्वासान् मुंचती सोचे, देवेन कृतमन्यथा॥सपनीनंदने जातं, तच्चूर्ण व्यर्थमेव ते 270 चरित्र. // 47 // अंगुल्यंतरगेणापि, तेन चूर्णेन मत्सुतः॥ तत्क्षणं प्रहिलो जातो, हा दैवेनास्मि वंचिता 271 के स्वराज्यं वणिजे तस्याः, पुत्राय यदि भूपतिः॥ ददाति स्फोटकस्तर्हि, दग्धोपरि ममाभवत्।। तत्किंचिद्दीयतां येन,तिष्ठंत्यंगानि तस्य हि॥वरं राज्यमिदं शून्यं, वणिकपुत्रे तु नोचितम् // दत्वा चूर्ण जगौ योगी, त्वया क्षेप्यमिदं जले॥अनेन लममात्रेण, स्थास्यंत्यंगानि तस्य हि॥ इत्युक्त्वा स ययौ योगी, सातचूर्ण कथंचन॥राज्याभिषेककलशोदके चिक्षेप दुष्टधीः 275 13 / मंडले मांडलिकानां, मिलिते च महोत्सवे ॥वर्तमाने सुतस्तस्या,पहिलोऽत्रसमागतः 276 यत्र क्षिप्तं तया चूर्ण, तमेव कलशं रयात्॥मामाकुर्वति लोकेऽमौ, निजशीर्षे व्यलोठयत् // स्थितानि तस्य सर्वाण्यंगानि तत्क्षणमेव हि।। तच्छ्रुत्वा सा जयंती तमुत्पाट्य सदनं ययौ२७८ 1 राज्याभिषेके संजाते, धनराजस्य भूपतिः // गुरोःसंयममादाय, निजकार्यमसाधयत् 279 // 47 // धनराजमहीपाले,तस्मिन् पालयति क्षितिम्॥ देशा न मुक्ता मौख्येन. सुभिक्षेण च सर्वदा।। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - इतश्च देशे पांचाले, कांपील्यपुरपत्तने // धनराजप्रतिद्वेषी वैरिशल्यो नृपोऽभवत् // 28 // गुण गोशीर्षचंदनोद्भूतं, वासोवासितविष्टपम् // विषमिश्रं विधायासौ, स्वनरान् प्रत्यभाषत // चरित्र. // 4 // वणिग्वेषधेरैर्भूत्वा, मथुरापुरि गम्यताम् // वैरिघातकरं वासः, कर्त्तव्यं प्राभृतोपरि // 283 // अनेनाघातमात्रेण, गते यामद्रये सति // तत्क्षणं प्राप्यते मृत्युरिदं भवति नान्यथा 284 वैरी जेघीयते वासो, यावत्तावत्सभांतरे / स्थातव्यमन्यथा मृत्युभविता भवतामपि 285 ॐ इति शिक्षा स्वयं दत्वा, वणिग्वेषधरान नरान् ॥प्रेषयामास मथुरापुर्या ते च समागताः // ते वेत्रिवेदिताःप्राप्ता, धनराजस्य संसदि॥ विमुच्य प्राभृतं तस्योपरि वासपुटं न्यधुः 287 वासयंतं सभामध्यं, वासं वीक्ष्य पुटस्थितम् ॥जेघीयतेस्म भूपालो, भ्रमरःकुसुमं यथा // * सिद्धं कार्यमिति प्रीता, अनुज्ञाप्य नरेश्वरम् // न केवलं सभायास्ते, निर्गता नगरादपि // / अथ यामद्धये जाते,धनराजो महीपतिः॥विषेण व्याकुलो जातः, पपात पृथिवीतले 290 # विषं विषमिति व्यग्रा, वदंतः सचिवादयः। कारयंतः प्रकारांश्च, नृपं चक्रुःसचेतनम् // 291 / / || / नृपतिः शोधयामास, तान्नरान्नगरेऽखिले ॥अदृष्ट्वा स्लदा मेने, तानेव विषदायकान् // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषव्यापे गते तस्मिन् , सज्जीभूते च पार्थिवे॥सर्वत्र नगरे तत्र, प्रावर्त्तत महोत्सवाः 293/ गुण, इतश्च जयसिंहाख्यः, सूरिस्तत्र समागतः॥ चतुर्ज्ञानधरस्तं च वंदितुं भूपतिर्ययौ // 294 // चरित्र // 49 // नत्वा च सपरिवारः, श्रुत्वा धर्मोपदेशनाम / / पप्रच्छ कर्मणा केन, प्राज्यं राज्यमिदं मम / / o मुनिः पूर्वभवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, सुतोऽभूचित्तनंदनः 296 / प्राप्तहर्षप्रकर्षेण भवता जिनपूजनम् // विहितं शुभभावेन, प्राज्यं राज्यमिदं ततः // 297 // वासपूजाविशेषेण, तूर्ण विघ्नो व्यलीयत / / बाल्ये राज्याभिषेके च, संप्रत्यपि नरेश्वर 298 | // इति श्रुत्वा मुनेर्वाचं, नृपो जातिस्मरोऽभवत् / विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे तस्य संनिधौ२९९ / मुनिं नत्वा पुरं गत्वा, पालयित्वा चिरंभुवम् ॥दत्वा कुशलपुत्राय, राज्यं राजाऽग्रहीव्रतम्३००० |प्रपाल्य संयमं भव्यभावेन स मुनीश्वरः॥विहितानशनः प्रांते, सौधर्म त्रिदशोऽभवत् 301 चिरं सुखान्यमा भुक्त्वा, देवलोकात्ततच्युतः॥ चतुर्थो गजनामाभूत्तनयस्तव भूपते 302 // 49 // // इति वासपूजायां चित्तनंदनकथा / / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरित्र. गुण // 50 // स्वात्रादिपूजनचतुष्कफलानि पुण्यमाणिक्यसुंदररुचिर्नृपतेःपुरस्तात् // उक्त्वा विशेषसहितानि हिताय साधुः, पुष्पादिपूजनफलं गदितुं प्रवृत्तः // 30 // // इति अंचलगच्छे श्रीमाणिक्यसुंदरसूरिविरचिते पूजाधिकारे गुणवर्मचरित्रे स्नात्रविलेपनवस्त्रयुगलारोपवासपूजाफलवर्णननाम द्वितीय सर्गः / / // 50 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण ॥सर्ग 3 जो॥ चरित्र. // 51 // नखा मुनिः प्राह, गुणवर्मणि शृण्वति / पुष्पपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते // 1 // * अत्रास्ति भरते भूमिरमणीमणिकुंडलम् // कुंडलं नाम नगरं. तत्राभूद्विक्रमो नृपः // 2 // तस्य शीलवती नाम,ललना शीलशालिनी // पुष्पपूजाकरो लक्ष्मीधरस्तत्कुक्षिमाययौ 3 | स तया समये जातः प्रातस्तज्जननोत्सवम् // कृत्वा विजयचंद्राख्या, विहितास्य महीभुजा 4 // पाल्यमानः स यत्नेन, रत्नेन समकांतिभाक्॥ हर्षदः पितृमातृभ्यां, षड्वर्षीयोऽभवत्क्रमात्५ / अन्येद्युर्विक्रमो भूपस्त्रिविक्रमसमोऽरिषु // सभां विभूषयामास, मंत्रिसामंतपूरिताम् // 6 // तदा लक्ष्मीधरो नाम, व्यवहारी विदेशतः॥ वेत्रिणा वेदितस्तत्र, समायातः सभांतरे // 7 // रिक्तहस्तै दृश्यंते,राजानो भिषजो गुरुः॥इति न्यायेन पुष्पाणि. सोऽमुंचद्भपतेः पुरः 8 तेषां परिमलेऽत्यंत. विष्वक् तत्र प्रसृत्व।। भूपोजगाद पुष्पाणि,दीयंतां सभ्यपाणिषु॥९॥ / तेषु प्रदीयमानेषु, पुष्पेषु व्यवहारिणा // रक्षके गोधृतो बालः, पुत्रो राजः समागतः 10 51 // 44: 0KX For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / राजा दधौ निजोत्संगे, तं रंगेण मनोहरम् // मूर्तिमंतमिवानंद, वस्त्राभरणभासुरम् // 11 // गुण याचमानस्य पुष्पाणि, दीयमानानि पश्यतः॥ कुमारस्य करे पुष्पयुग्मं लक्ष्मधरोऽमुचत् / / चरित्र. // 52 // 4 आजिनन् पुनरेतानि, कुसुमानि ययाच सः।। अन्याघ्रातानि तान्येष,दीयमानानिना ददे // 13 एतज्जातीयपुष्पाणि, नव्यान्येव प्रयच्छ मे // इत्यगृह्णति पुत्रे च, नृपो लक्ष्मीधरं जगौ॥ | कुतस्त्वया समानीतान्येतान्येष नृपं जगौ // चतुष्पथादिति श्रुत्वा. भूपो भृत्यानभाषत 15 / / गत्वा भो यत्रतत्राप्यारामिकाणां चतुष्पथे।आनीय दत्त पुष्पाणि. पाणी मे तनुजन्मनः / / | परिभ्रम्य समायातास्ते पोचुनृपतिं प्रति ॥न लब्धान्येव पुष्पाणि. सर्वतःशोधितान्यपि // तदा वाढतरं बालः, पारेभे कुसुमाग्रह // नामुक्त भोज्यमादत्त, न फलं न जलं पपौ // 11 // तस्य मातापि मंतापानामुक्त सपरिच्छदा !! राजापि दुःखितो दध्यावहो बालकदाग्रहः 19 भूपोऽथ मंत्रिणं प्राह, येनानीतानि मूलतः।ततःस्वरूपं विज्ञाय, पुष्पाण्यानय सत्वरम् 20 ततो मंत्री नृपादेशादारामिकचतुष्पथे। पप्रच्छारामिकान सर्वास्तेषामेकस्त्विदं जगौ 21 // 12 // - आरामिकः समायातः, प्रातरेव पुनर्गतः। प्रत्यासन्ने वसत्येष, ग्रामे सुग्रामनामनि // 22 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेन पुष्पाण्यपूर्वाण्यानीतान्यत्र चतुष्पथे / स्वर्णपंचशतैस्तानि, क्रीतानि व्यवहारिणा 23 / / गुण मंत्री मूलमिति ज्ञावा, तस्य ग्रामं गतस्ततः॥आरामिकंतमाहय, कुसुमानि ययाच सः॥२४॥ चरित्र. // 53 // सं जगाद ममारामे, तवृक्षा एव मंतिन // मंत्री प्रोचे कुतःस्थानादानीतानि ततो वद 25 / 3, सोऽवक प्रातरिहायातः, शैलस्यास्य गुहांतरे॥शिलातलोपरिस्थानि. कुसुमान्यहमाददे 26 शिलायां वीक्षितायांच.लब्ध्वा पुष्पचतुष्टयम् // मंत्री प्रमुदितः प्रेषीत्तदैवामूनि भूभुजे 27 शिलायां कुतरेतानि, समेतानीति चिंतयन् // सर्पतमंतः सर्प म. ददशक महातनुम् // 20 // 6 शिरःस्फुरन्मणिज्योतियोतिताखिलदिग्ङ्मुखम् // तं दृष्ट्वा कातराः केचित्पलायांचक्रिरे ततः / / | स्वमणिज्योतिषापास्तांधकारपटलस्ततः / / मर्पश्चचाल पातालविवरेण शनैःशनैः // 30 // आगच्छतिवचः श्रुत्वा, तस्य वक्त्रविनिर्गतम् / / मंत्री धीर मनः कृत्वा, प्राचालीदनुपनगम३१॥ गच्छन् मंत्री सुखं सर्प, धृतदीपइवाग्रगे / / पातालविवरेऽद्राक्षीद्रम्यां कुसुमवाटिकाम् // 32 // मंदारचंपकाशोकपाटलट्ठमवासिताम् / / तां वीक्ष्य हृदि दथ्यौ स, महदेतस्कुतूहलम् // 33 // ॥शा वाटिकांतास्थित तारताहपुष्पविराजितम् / / मंदारतमालोक्य, म एवं मुदमादधे ||34 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तरुतोऽमूनि पुष्पाणि, गृहीत्वा यामि भूरिशः॥ दत्तेष्वेतेषु पुत्राय, प्रीतो भवतु पार्थिवः३५ / / गुण० इति ध्यात्वा ततः पुष्पाण्यादातुमुपचक्रमे // सर्पःस्पष्टं तमाचष्ट. मर्त्यवाचा गृहाण मा 36 चरित्र. ॥५४लभ्यते न मुधा पुष्पाण्यप्रभुर्वाटिकापि नः॥ गज्छ वत्स गृहीत्वा तत् कुसुमानां चतुष्टयम्३७ के कार्य चेत्प्रचुरै रेतैस्तदा मान्यं वचो मम // अहं प्रातःसमेष्यामि, स्वयमेव सभांतरे 38 इति प्रोच्य स्थिते सर्प. कुसुमानां चतुष्टयम् ।।गृहीत्वा मचिवोऽवालीमोऽभूत्पूर्ववत् पुरः।। स्थिते सर्व गुहाद्वारे मंत्री विस्मितमानमः। आगत्य भूपतेःपाचे, ददौ पुष्पचतुष्टयम्॥ * गृहीत्वा तानि पुष्पाणि, पुत्र प्रमुदिते सति ॥भुंजाने भोज्यमंबापि.प्रीताभुक्त सखीयुता 41 / मंत्रिणा सर्ववृत्तांते, कथिते सति भूपतिः॥ प्रातः ममामलंचक्रे, नभोदेशमिवार्यमा // 42 // | वेत्रिणावेदितो वृद्धो, विप्रस्तत्र समागतः॥तस्य पृष्टानुगा कन्या,सलावण्या समाययौ 43 - मंदार द्रम पुष्पाणि, प्राभृतीकृत्य पाणिना॥स विप्रो भूभुजेदत्वाशीर्वादं च निविष्टवान् // 44 // केयूयं कुत आयाताः, केयं कन्या मनोरमा॥ एतानि कुत्र लभ्यते, पुष्पाणि प्रचुराणि च 45 // 54 // मोऽवादीन कथं पृष्टस्त्वया मंत्री मएव हि // यत्तस्याग्रे गुहामध्ये, प्रागेव प्रकटोऽभवम् 46 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / नृपे मंत्रिमुखं पश्यत्यकरोत्तत्क्षणादसो। सर्परूपं महाकाय, शिरःस्फूर्जन्मणिद्युति // 47 // गुण लोके बिभ्यति तत्कालं,विप्ररूपं पुनर्दयौ। विस्मितस्तंनृपः प्रोचे.कोऽसिवं सत्यमुच्यताम्४८ चास्त्र. // 55 // स जगौ देवशर्माभूदियो वेदेषु पारगः // सुग्रामनामनि ग्रामे, गौरी तस्य च वल्लभा 49 / वार्द्धके च तयोर्जाता, सुता रूपजितामरी // चतुर्षिप्रमाणायां, तस्यां स ब्राह्मणो मृतः 50 / / ब्राह्मण्यपि मूता सोऽभूद्धयंतरेषु महोरगः // पातालविवरे तेन क्रीडाथै वाटिका कृता 51 . 18 अवधिज्ञानतो ज्ञात्वा, निराधारां निजांसुताम्॥ खपार्थे स्थापयामाप्त,कियत्कालं समाहितः। तस्या योग्यं भवत्पुत्रं, ज्ञात्वा सांप्रतमेतया ॥युक्त्या सोऽहं समायातस्तकार्य सिद्धिमानया B| तदानाग्य नृपः पुत्रं, निजोत्संग न्यवेशयत्।। योग्यं वरं च कन्यांच, दृष्ट्वाहृष्टोऽखिलो जनः 54 // तदा पुष्पाणिपुष्पाणीत्येवं जल्पन सुकोमलम् / लावा तानि पुरःस्थानि,जनो नृपतिनंदनः नागो जगौ घेजामाता, जातो मेऽयं नु तन्मया॥ नित्यमस्सै प्रदेयानि, मंदारकुसुनान्यपि भवकुलेऽपि नो सर्पविषं वे प्रभविष्यति॥अथो नृपस्तयोः पाणिग्रहोत्सवमकास्यत् // 57 // // 5 // अनुहाप्य गवे नागे, राजा राज्यमपालयत् // नागपुत्र्या सनं रेमे, यौवनस्थो नृपांयजः। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की इतश्च धर्मघोषाख्यः, सूरिस्तत्र समागतः।। ज्ञानवांस्तं नृपो नंतुं, पुत्रेण सहितो ययौ // 19 // गुणः श्रुत्वोपदेशं पप्रच्छ, नृपस्तं केन हेतु // पुत्रस्य भाग्यं सौभाग्यमद्भुतं च निरीक्ष्यते 60 चरित्र. // 56 // मुनिः पूर्वभवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धादत्तस्य, सुतो लक्ष्मीधरोऽभवत् 61 / / अनेन शुद्धभावेन, यचक्रे जिनपूजनम् / पुष्पपूजाविशेषश्च, तेनास्याद्भुतभाग्यता 62 साफल्यं जायते किंतु, पुष्पाणां जिनपूजनात्।।अतोऽस्य पूजनं कार्य, श्रेयोर्थ कुसुमोत्करैः / कुमारस्य भवे प्राच्ये,श्रुतेऽभूज्जन्मनःस्मृतिः। विशेषादाहतं धर्म, प्रपेदेऽसौततो मुनेः६४ / - मुनि नत्वा पुरं गत्वा,दत्वा राज्यं स्वसूनवे॥भूपतिर्विक्रमः प्राप्य, संयम शिवमासदत् 65 / / अथो विजयचंद्रोऽपि, प्राज्यं राज्यमपालयत् ॥ग्रीष्मे रिपुं महामलं, निर्जेतुं स गतोऽन्यदा॥ IA सैन्ये गते महाटव्यां, स्थिते सति महीपती॥जिनपूजोद्यते नागस्तदा पुष्पाणि नानयत्॥ दवदग्धगुमायांचाटव्यामपि जनः क्वचित्॥नलेमे कुसुमं किंचित्, सर्व खिन्नं ततो बलम् 68 / / * सामंता नृपति प्राहुः, पूजां चंदनकेशरैः॥कुरुष्व भोजनं चापि, शरीरं सहते न हि'६९ // 56 // | तथापि निश्चले राज्ञि, भोजनं नैव कुर्वति॥दिनस्य पश्चिमे पामे, नागोव्योग्नि समाययौ।। / 2016:00 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जय त्वं पृथिवीनाथ, परीक्षेयं कृता मया।गृहाणैतानि पुष्पाणि कुरुपूजां जिनेशितुः 71 / / गुणा पूजां कृत्वा च भुक्त्वा च, नृपो यावत्सुखं स्थितः॥तावनागेनबद्धोऽरिनागपाशै समागतः॥ चरित्र. // 5 // मानयित्वा निजामाज्ञां, स भूपेन विमोचितः॥ ततो ययौ निजं स्थानं, महोत्सवपुरस्सरम् // पालयित्वा चिरं राज्यं, प्रांते दत्वा स्वसूनवे ॥गुरोःसंयममाप्यासो, सौधर्मत्रिदिवं ययौ७४ सुखान्यसो चिरं भुक्त्वा, देवलोकात्ततव्युतः // पंचमः पद्मनामाभूतनयस्ते नरेश्वर // 7 // // इति पुष्पपूजाधिकारे लक्ष्माधरकथा / ROHODE 200NOOX * माल्यपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते॥ भरतक्षेत्रमध्येऽस्त्ययोध्यानाम महापुरी // 76 // | श्रीदत्तो नृपतिस्तत्र, श्रीमती तस्य च प्रिया ॥धनेशो माल्यपूजाकृत्तत्कुक्षौ समवातरत् 77 दोहदावरे तस्या, माल्यतल्पे सुखं शये // इत्यभूदोहदः सोऽपि, ज्ञापितः पृथिवीभुजे 78 | आशमिका नृपादिष्टा, माल्यानयनहेतवे // प्रोविरे देव निर्दग्धं, हिमेन सकलं वनम् 79 // 5 // चेन प्रतीतिस्तमृत्यैर्निजैरेव निरीक्षताम् / तथैव कृत्वा भूपालश्चित्ते चिंतातुरोऽभवत् 80 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - दोहदापूरणा देवी, निशां निन्ये कृशा सती // प्रातरारामिकैरेवं, विज्ञप्तं च महीभुजे 81 / गुण / अहो चित्रं, अहो चित्रं, सायं दग्धनभूदनम् ।।पुष्पितं दृश्यते सर्व,वसंत इन सांप्रतम् 82 चरित्र. // 55 // तदैवारामिकानीतपुष्पमाल्यप्रकल्पितं॥ तल्पमासेव्य सा देवी, जाता संपूर्णदोहदा // 3 // | संजाते समये पुत्रे, कृत्वा जन्ममहोत्सवम् / / माल्यदेव इति प्रीत्या, तस्य नाम नृपो व्यधात्।। / 6 वर्द्धमानः क्रमेणासौ, कलाकौशलपेशलः॥ तारुण्यमाश्रितश्चक्रे, कन्याचिंतापरं नृपम् 85 / / 8 इतश्व भदिल पुरे, सोमदेवनृपोऽभवत्।सोमचंदाभिधा देवी, सोमस्त त्सुताऽभवत् 86 / / | तस्याः सखीत्वमापन्ना, मंत्रिवेष्ठिपुरोधताम् / / पुत्र्यस्ताभिर्युता सैपा, ययौ क्रीडाचलं वने। रमंतेस्म भ्रमंतिस्म, जल्पंतिस्म यदृच्छया। तास्तत्र वानरोवृंद, पश्यंतिस्म सवानरन् // 8 // वानरीभिः सह कीडन्नबोडंस्ताभिरीक्षितः // कपिश्चपलतां चक्रे, वृक्षाणामंतरं व्रजन् 89 / वानर्यः प्रोचिरेशैलमुपर्युपरि पादपान् // पश्यंत्यस्ताःस्रजो देहि, पुष्पाणां नः पृथपथक् ||| एका भूमिस्थितस्य दोनितंबस्थस्य चापरा॥शंगस्थस्य तरोरन्या, ययाचुः कुसुमस्रजः 91 फालां दत्ता क्षणेनैष, ताभ्यस्ताः कुसुमखजः॥ददौ तद्वीक्ष्य ताः सख्यः, प्रोचिरे च परस्परम्।। 444001 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण धन्या इमास्तिरश्चोऽपि, यासामेवं वशंवदः॥ ददाति वानरः कांतः, कामिताःकुसुमस्रजः 93 सोमश्रीस्ता प्रति प्रोचे, किमेवं कथ्यते हलाः॥गुणा एव विलोक्यंते,नारीणां भर्तृमानदाः चरित्र // 59 // यावद्विवाहो मे जातो, हे सख्यः किल तावता॥आनाययिष्यते भा. माला मेरुतरोरपि। सख्यस्ता प्राचिरे मुग्धे, वक्तुं नो वेत्सि सर्वथा।मानवानां कुतो मेरुस्थितकल्पतरोः स्रजः | तावन्मानं प्रयच्छंति, यावद्युक्तं हि याच्यते॥भतरोऽप्यवमन्यते, त्वयुक्ते ब्रह्मदत्तवत् 97 // 10 को ब्रह्मदत्त इत्युक्ते, प्रोचे पुत्री पुरोधसः॥ पंचालदेशे कांपील्यपुरनस्ति मनोहरम् 98 / / ब्रह्मदत्तोऽभवत्तत्र, चक्री सुत्रामसंनिभः॥ तस्मै तक्षकनागेन, वरो दत्तोऽयमीदृशः // 29 // है। IF सर्वेषामपि जीवानां, भाषांत्वमवभोत्स्यसे॥ यदा वक्ष्यसि चान्यस्मै, तदा मृत्युमवाप्स्यसि॥ 18 अन्यदा ग्रीष्मकालेऽसौ, स्नात्वा विहितभोजनः॥ पुष्पस्त्रश्चंदनालेपशाली तल्पमसेवत॥ / तदा पुष्पवती देवी देवीवाद्भुतरूपभाक् // भद्रासनमलंकृत्य, निविष्टा भूपतेःपुरः॥१०२॥ की चारुकपरकस्तूरिचंदनद्रवभाजनम् // भारपट्टस्थिता गोधा, वीक्ष्य प्राह पतिं प्रति // 103 // // 59 // पतित्वा भारपट्टात्त्वं, चंदनवभाजने // आलेपय ममाप्यंग, स्वांगसंगेन हेप्रिय // 10 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / इति श्रुत्वा च तदाषां,परिज्ञायचभूपतिः॥हास्यं चकार गोधाया, अप्यहो कीदृशी स्पृहा॥ गुण नृपं पुष्पवती पोचे, तद्दृष्ट्वा स्वात्मशंकिता। हास्ये प्राणेश को हेतुः स जगौ नास्तिकश्चन चरित्र. // 60 // मेघाविनां विना हेतुं, हास्यं न क्यापि जायते॥ तदापास्यामि भोक्ष्ये च,यदात्वं कथयिष्यसि।। बालसखित्वमकारणहास्यं, स्त्रीषु विवादमसज्जनसेवा // गर्दभयानमसंस्कृतवाक्यं, षट्सु नरा लघुतामुपयांति // 108 // इत्याग्रहपस देवी, पुनः प्राह महीपतिः॥ उक्तेऽस्मिन्न गुणः कोऽपि, प्रत्युतापाय एव हि // सा प्रोचे तत्करिष्यामि, निश्चित काष्ठभक्षणम् // भूपो जगौ भविष्यामि, तदहमपि पृष्ठगः / ॐ ततः सा चलिता शीघं, काष्ठभक्षणहेतवे।रुदता परिखारेण, सहिता साश्रुलोचनम् // 11 // मंत्रिभूपालसामंतैर्यिमाणो महाग्रहात्। चक्रयप्यचालीत्तत्स्नेहपाशवद्धपतत्रिवत् // 12 // पातश्चतुष्पथे चक्री, सशोकैर्वीक्षितो जनैः। ततः शृण्वति भूपे च,छागी छागंजगाविति।। / जातोऽस्ति दोहदो मेऽद्य, हृद्यं शकटसंचयात् ॥आनीय देहि त्वं मह्यं, यवपूलकपंचकम्॥ // 6 // स जगौ शकटा एते, राज्ञस्तुरगहेतवे॥नीयवैभृता यांति गृहणन मार्यो जनैरहम् 115 / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / सा प्रोचे कातरः कीदृग्, वर्त्तसे वं भुवस्तले // अयं चक्रधरो याति, भार्यया सह मृत्यवे // | गुण० स प्रोचे केवलं नाम्रा,बोत्कटोऽस्मि परं नृपः॥परिणामेन यः स्वयर्थे, वृथा राज्यं समुज्झति।। चरित्र. // 6 // श्रुत्वेति सस्मितश्चक्री,व्यावृत्तः स्वगृहं प्रति॥प्रोचे प्रिये ! वयं यामस्त्वया गम्यं यथारुचि // | श्रुत्वेति भूपतिं वीक्ष्य, प्रयांतं स्वगृहं प्रति॥लोके हसति संप्राप्ता, विलक्षा सापि मंदिरम् // ब्रह्मदत्तकथासैषा, भरतेऽथ भविष्यति॥संभवद् वचनं प्रोच्यमित्यतीता मयोदिता॥१२०॥ / अतस्त्वयापि वक्तव्यं, युक्तमेव स्वभर्तरि॥प्रायः पुमांसः स्वाधीनाः पराधीना हि योषितः॥ 8 सोमश्रीस्ताः प्रति प्राचे, तत्त्वं शृणुतहेहलाः॥ बलाकिमपि न प्राप्यं, गुगैरेव च लभ्यते // इदं तावन्मया प्रोक्तं, भवतीभिः श्रुतं पुनः॥ समये ज्ञास्यते सर्व, सांप्रतं किमु कथ्यते // 1 अथ ताः स्वगृहं प्राप्ताः प्रीतिभाजःपरस्परम् // श्रीदत्तसूनवे दत्ता, सोमश्रीः समहोत्सवम् // श्रीदत्तो माल्यदेवाय, दत्वा राज्यं स्वसूनवे॥ गृहीत्वा तापसी दीक्षा, ज्योत्तिष्केष्वमरोऽभवत् / / माल्यदेवस्तया सोमश्रिया सह मयौ वनम् / / ययौ सयौवनस्तां स, रमयामास भंगीभिः१२६ || // 69|| इतश्च नारदो देवगंवर्वोऽष्टापदे जिनम् // उपवीण्य प्रमोदेन, चलतिस्म दिवं प्रति॥१२७॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है। तस्य वीणास्थिता माला पतिता वायुवेगतः॥ तस्याः सोमश्रियाः शीर्षे, स्थिता चातपशोषिता / गुण तां खजंसा करे कृत्वा, पश्यंती प्रेयसो मुखम् ॥प्रोचे शुष्कापि कीदृक्षा,माला परिमलान्विता॥ चरित्र. // 62 / नृपः पोचे प्रिये ! सेयं, स्वर्गद्रुमसमुद्भवा / / बाल्योक्तं स्ववचः स्मृत्वा, सा ततो नृपतिं जगौ। मंदारतरुसंभृतां, मालां नव्यां प्रयच्छ मे॥अन्यथा नैव भोक्ष्येऽहं, न पास्यामि च किंचन // नृपः प्राह कुतः स्वापुष्पमाला भवेद्भुवि / / सा प्रोचे जीवितेनालं, सराज्येनापि तन्ममा तया सह गृहं गत्वा, नृपश्चिंतातुरोऽभवत् / / मंत्रिभिळविताप्येषा, न मुमोच कदाग्रहम्१३३० | रात्रौ व्यचिंतयद्भपस्तल्पे सुप्तोऽप्यसुप्तवत् // यद्येषा म्रियते तर्हि, जीवितव्येन किं मम१३४ |Ti | दुर्लभा स्वस्तरोर्माला, सुलभो जीवितव्ययः // अत एव करिष्यामि, प्रातर्निर्गमनं पुराता। इति ध्यात्वा नृपो, यावन्निर्ययो निजमंदिरात् / / आकाशात्पतिता तावन्माला सैव मनोहरा१३६३ - अहो चित्रमहो चित्रमिति जल्पनरेश्वरः // सोत्कंगयाः स्वकांतायाः, कंठे मालां न्यत्रीविशता।। मालां कंठे नीवेश्यैनां हृष्टा राज्ञीनकेवलम्।।तस्याःसख्योऽपिता श्रुत्वा,क्रमात्मापुःपरांमुदम्१३८६॥६२॥ एवं निरंतरं प्रातरेका माला समीयुषी // महेंद्ररिस्तत्रागाचतुर्ज्ञानवरोऽन्यदा // 39 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण / भूपः प्रियान्वितो गत्वा, वने नत्वा मुनीश्वरम् ॥श्रुत्वोपदेशं पप्रच्छ, मालागमनकारणम्।। गुण मुनिः पूर्वभवं प्रोचे,नगरे हस्तिनापुरे / / श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, धनेशाख्यःसुतोऽभवत् 141 चरित्र. // 6 // तदा धनेशजीवेन यत्त्वया जिनपूजनम् // विदधे शुद्धभावेन, प्राज्यं राज्यं ततस्तव 142 / माल्यपूजाविशेषेण मातुस्ते दोहदक्षणे॥ सपुष्पा विहिता वृक्षाः, सर्वेऽपि वनदैवतैः 143 त्वत्पिता तापसीभूय, ज्योतिष्कामरतां गतः॥ कांताकदाग्रहे मालां, दत्वा दत्तेऽपि संप्रति।। जिनेंद्रोयदि भावेन, पूज्यते मालया तया॥तदा सफलता स्वस्य, व्यर्थता स्वांगसंगता 145 / इतश्च राज्ञी पप्रच्छ, तदा क्रीडावने मया॥सखीभिर्युतयालोकि, वानरो वानरैर्वृतः।।१४६।। फाला दत्वा गिरेःशृंगं, गत्वा माला विधाय सः॥ कंठे चिक्षेप कांतानां,कपेःकिंसा समर्थता।। To मुनिःप्रोवाच ताःसर्वा, न वानर्यःकपिर्नच॥चिक्रीडःस्वेच्छया किंतु, व्यंतरा व्यंतरीयुताः॥ 8 - अथ पूर्वभवं श्रुत्वा, भूपो जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ 149 / / * मुनिं नत्वा, गृहं गत्वा, मालया जिनपूजकः॥समयं गमयामास, वसुधां पालयन्नसौ 150 // 6 // राज्यं दत्वा स्वपुत्राय, गृहीत्वा संयमं गुरोः॥ विहितानशनःप्रांते, सौधर्म त्रिदशोऽभवत् // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण // 4 // चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततच्युतः॥षष्ठश्छायाकरो नाम, तनयस्तेऽभवन्नृप१५२ / // इति माल्यपूजाधिकारे धनेशकथा | चरित्र. - *(e)*4विहितो वर्णकारोपो, जिनेंदोर्येन पूजने।। फलं तस्याथ वक्ष्यामः, श्रूयतां भविका जनाः॥ श्रावस्ती नगरी रम्या, श्रीधरस्तत्र भूपतिः।। तस्य बंधुमती नारी धर्मकमैकबंधुरा // 15 // जीवोऽथ धननाथस्य,तदातत्कुक्षिमागतः॥सतया समये जातः, पिता चक्रे महोत्सवम् / / | लक्ष्मीधर इति प्रीत्या, नाम तस्मै ददौ नृपः।।वर्द्धमानः क्रमेणासो, तारं तारुण्यमाश्रितः // सोऽन्येद्यः प्रातरायातस्तातं नंतुं समांतरे // पश्यतिस्म हयं रम्यं, केनापि प्राभृतीकृतं 157 | | अमूल्यस्याश्वरत्नस्य, मूल्यं कःकुरुते स्वयम् ॥गतिर्विलोक्यतां पूर्वमिति तद्धनिकोऽवदत्।। - अथोवाजिनमारुह्य, नृपादेशान्नृपांगभूः॥ गत्वा परीक्षयामास, वाह्याल्यां वाह्यकोविदः // शरीरे सुकुमारेण स कुमारेण तत्क्षणम् // प्रेरितस्तुरगोऽचालीत्, पवनस्येव बांधवः 160 // 4 // / तत्र क्वापि तुरंगस्तं निनाय क्षणमात्रतः।।न वृक्षा न फलं नांबु, केवलं यत्र तु स्थलम् // 94000460 0-OM For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वयमेव स्थिरीभूतादुत्तीर्य तुरगादसौ // जलं गवेषयामास, तृषाशुष्कोष्ठपल्लवः // 162 // है। गुण दृष्ट्वा जटाधरं कंचित्, कमंडलुकरं पुरः ॥स प्राह सादरं स्वच्छगिरा वास्ति सरोवरम्१६३ | चरित्र. // 65 // आगच्छेति वचःप्रोच्य,तं नीत्वा क्वापि पल्वले॥तापसःपाययामास,जलंपीयुषमंजुलम्।। || स्थूलस्थले त्वयागम्यमत्रास्मीति वदन्नथ।।जगाम तापस कापि, स चचाल हयं प्रति 165 / / | अप्राप्य तुरगं क्वापि, वलितःसरसी प्रति // तामप्यदृश्वास प्राप, स्थलं तापसवेदितम् 166 | स्फूर्जज्जटाकलापं तं, नत्वा तापसमग्रतः।। निषण्णः सैष पप्रच्छ, दृष्टा यूयं सरोवरे॥१६७॥ स प्राह मरुदेशे न, तादृक् क्वास्ति सरोवरम् // त्वया वयं न दृष्टाःस्मः, सोऽन्यः कोऽपि भविष्यति // 168 // ततश्चित्रंदधानोऽसौ, पुनःप्रोवाच तापसम् ।।कुत्रत्यस्त्वं कुतो हेतोः, स्थिरस्थूलस्थले स्थितः।। सपाह श्रूयतां भद,प्रत्यासन्नमतःस्थलात्॥अस्ति वीतभयं नाम, पत्तनं चित्तनंदनम् 170 / / * हेमचूलाभिधो भूपस्तत्र राज्यमपालयत् // चैत्रःपुरोहितस्तस्य, नित्यं क्षणमवाचयत् 171 // 65 // - पुरो निविष्टे भूपाले, क्षणं कुर्वन् विचक्षणे / उद्गारंस करोतिस्म, सुरागंधसमन्वित१७२ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / हृदि ज्ञात्वा स्थितो भूपो, विसृष्टे क्षणतःक्षणे॥सभ्यानाकार्य पप्रच्छ, तदाकाले समीपगान। गुण० / तैरप्युक्ते तथैवागात्तत्र चामरधारिणी // तज्ज्ञात्वा च हसित्वा च प्रोवाच नृपतिं प्रति॥१७॥ चरित्र. // 66 // मया सह सुरापानं, कृत्वा रात्री तवाग्रतः॥क्षणं प्रकुर्वतोऽमुष्य, साहसं महतो महत् 175 / पृष्ट्वा पौराणिकान् सर्वान् , प्रायश्चित्तकृते नृपः॥त्रपुष्णं पाययामास, सक्रोधस्तं पुरोधसम्॥ मृत्वा पुरोहितो जातो, रौद्राक्षो नाम राक्षसः॥ शिलातलं विकृत्यास्थात्, वैरं स्मृत्वा पुरोपरि। तद् दृष्ट्वा व्याकुलोलोको, भूपोऽपि स्नानपूर्वकम् / / बलिं चक्रे बभाषे च बद्धकोश इदं वचः।।। यक्षोवा राक्षसोऽन्योवा, यःकोऽप्यस्ति प्रकोपितः।।वयं तदीप्सितं दद्मः, प्रत्यक्षीभूय याच्यताम् / / स्वं ज्ञापयित्वा स प्रोचे, रे पापपरायणाः // क्षणादचूर्णयिष्यामि, पूर्णयिष्याम्यहं रुषम् 180 कृपां कुरु हितातत्वमपराद्धं क्षमस्व नः॥ इत्यादिवचनैर्लोकः, सभूपोऽक्षमयञ्च तम् // 18 // | किंचित्प्रशांतकोपोऽथ, वभाषे राक्षसो नृपम् ॥तदा मुंचाम्यहं चेन्मां, प्रासादस्थं त्वमर्चसि॥ * स्वीकृते वचने तस्य, लोकै साकं महीभुजा॥शिलां विदूरयामास, नगरादाक्षसःक्षणात् 183 // 66 // प्रासादे स्थापयित्वा तन्मूर्तिनित्यं नरेश्वरः॥ पुष्पचंदनकर्पूरैः, पूजयामास सादरम्॥१८५॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तमप्रणम्य लोकोऽपि, न चक्रे कोऽपि भोजनम्॥वैरं संस्मार्य तच्चित्ते, राक्षसःकुपितःपुनः / / गुण प्रत्यक्षीभूय स प्रोचे, रे रे नश्यत दुर्जनाः॥अलं मे भवतां भक्त्या, यैरहं त्रपु पायितः॥ चरित्र // 6 // युष्मान् धक्ष्याम्यहं सर्वानित्यूचानेऽथराक्षसे / भूपतिःप्रांजलीभूय,भूयस्तं भक्तिभार जगौ।।। 3 उपायो विद्यते कोऽपि, येन वं खलु तुष्यसि॥स प्राह श्रूयतां पाप, यदि सिद्धयति तत्कुरु।। | कुसुमैः पंचवर्णाभैस्त्रिसंध्यं चेन्ममार्चनम् // क्रियते सकलैलॊकस्तदा मुंचामि नान्यथा 190 | सामान्यतोऽपि नो पुष्पं,प्रायो देशेऽत्र दृश्यते॥ पंचवर्णानि लभ्यते, कुसुमानि ततःकुतः॥ क्षुद्रादेश इति ज्ञात्वा, सर्वे नष्टास्ततो जनाः॥ जनाधिपोऽहं संजातो, वैराग्यात्तापसव्रती 192 || न शूरो विद्यते विश्वे, यः प्रशांतं करोति तम् ।।प्रोचे कुमार श्रुत्वेति, तापसंप्रति साहसी // It पुरस्य तस्य मार्गमे, दर्शयाशु पुरो भव / / इत्युक्ते तापसस्तस्मै दर्शिताधा न्यवर्तत॥१९॥ * - कुमारः पत्तनं गत्वा, रक्षसो भवनं ययौ // पंचवर्णदुकूलस्य, पुष्पाणि विदधे सुधीः // 195 // तद् दृष्ट्वा राक्षसो दध्यौ, बालवद्वंचनं मम / / अस्ति प्रारब्धमेतेन, वीक्षे तावत्करोति किम्।। // 7 // | कृत्वा पुष्पाणि वस्त्रस्य कुमारो राक्षसं जगौ॥ त्वं माता त्वं गुरुस्तातः, क्षमतां वालचेष्टितम् // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | इत्युक्त्वा तानि पुष्पाणि,कृत्रिमाण्यपि यावता // निधत्ते तावता तान्यकृत्रिमाण्येव जज्ञिरे॥ गुण०/ दृष्ट्वा परिमलाढ्यानि, तानि तं राक्षसो जगौ॥ अहो पुण्यप्रभावस्ते,ह्यहो ते बुद्धिरुज्वला चरित्र // 6 // | अहं तुष्टोऽस्मि याचस्व,वांछितं ते ददाम्यहम् // सोऽवादीनगरं शून्यं, सकलं वास्यतामिदम्।। तत्पुरं वासयामास, स्थापयामास तं प्रभुम् // तवृत्तं ज्ञापयामास, तत्पितुश्च स राक्षसः 201 पित्रा स्वमंत्रिणं प्रेष्याकारितो लेखपूर्वकम् / / राज्यस्य सूत्रणां कृत्वा, कुमारःस्वपुरं ययौ // पुरं प्रविश्य सोत्साहं, पितृपादाननाम सः॥आलिंग्य जनकःपुत्रं, पप्रच्छ सकलां कथाम्॥ * अन्यदा तत्र संप्राप्ताः, श्रीसिंहव्रतसूरयः॥तान्नंतुं ससुतो भूपो, ययौ भक्तिभरोदधुरः 204 || श्रुत्वोपदेशं पप्रच्छ, पुत्रभाग्यस्य कारणम् / मुनिः पूर्वभवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे 205 || श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, धननामासुतोऽभवत्॥ जिनपूजामुना चक्रे, बांधवैः सह संमदात् 206 जिनपूजाप्रभावेण, राज्यं लब्धं महाद्भुतम् ।।वर्णिकाणां विशेषेण, यसलं तच्च कथ्यते॥ एप कृत्रिमपुष्पाणि, राक्षसाय तदा न्यधात् // अकृत्रिमाणि जातानि, वर्णकस्य विशेषतः॥ ॥६वा * सुभूमचक्रिणः स्थानं, नृणां पुण्याढ्यभूपते // चक्रित्वं कुलिशित्वं च, प्रपद्येत हि पुण्यतः२०९ / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण 6 . पुण्येन कर्करो रत्न, पुण्येन च विषं सुधा // सर्पः पुण्येन माला स्यात् कुमारस्य तथाभवत्।। कुमारोऽपि मुनिप्राह, पूर्वयेन हृतोऽस्म्यहम्।। स वाजो न स्थले दृष्टो, न च दृष्टं सरोवरम् / / चरित्र. कोहेतुः पोचिवान सूरिहॅमचूलस्य यः पिता ॥जातोऽस्ति व्यंतरस्तेन, पुरवासाय तत्कृतम् // लक्ष्मीधरो भवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मृतिं ययौ // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ // I मुनि नत्वा गृहं गत्वा, राज्यं लक्ष्मीधरे सुते॥ निवेश्य श्रीधरो राजा, जगृहे संयम स्वयम् / अथ लक्ष्मीधरो भूपः, पालयन पृथिवी चिरम् // जिनपूजापवित्रात्मा, धर्मकर्म चकार सः॥ समयेऽथ सुते राज्यं, न्यस्य संयममग्रहीत् // विहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् // चिरं सुखान्यसौभुक्त्त्वा , देवलोकात्ततच्युतः॥सप्तमःशंखनामाभूत्तनयस्तवभूपते // 217 / / / / // इति पूजाधिकारे धननाथकथा / - -*(*16चूर्णपूजा कृता येन फलं तस्य प्रकाश्यते // चूर्णशब्देन कर्पूरो, ज्ञातव्योऽत्र मनीषिभिः॥ अस्त्यत्र नगरं रम्यं, भरते श्रीपुराभिधम् / / श्रीचंद्रो नृपतिस्तत्र, तस्य चंद्रावती प्रिया // तत्रैव नगरे श्रेष्ठी, धन इत्यभिधानतः // प्रिया धनवती तस्य सती गुणवतीवभौ // 220 // 9 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4000 / धनेश्वरस्य जीवोऽथ तस्याः कुक्षि समागतः।। समये सतया सूतः, पिता चक्रे महोत्सवम्।। गुण० रखाकर इतिप्रीत्या, नाम तस्मै ददौ पिता॥क्रमेण वर्धमानोऽष्टवर्षमानो बभूव सः // 222 चरित्र. // 70 // कलाकलापकौशल्यवल्लीनां च महीरुहः।। न जहार मनः कस्य स प्रशस्यगुणोत्करः।।२२३ / / . इतश्व राजा श्रीचंद्रो, लोकवृत्तबुभुत्सया // निर्यातो नष्टचर्यायामंधकारपटावृतः // 224 // / भ्राम्यस्त्रिकचतुष्केषु, वीक्ष्य प्रेक्षणकं स्थितः॥ नटेन पठितं नाट्ये श्लोकंशुश्राव भूपतिः।। बुद्धिर्यस्य बलं तस्य, निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् // वने सिंहोमदोन्मतः,शशकेन निपातितः।। / ततो मे मतिमान्मंत्री, निश्चितं कोऽपि वीक्ष्यते।।इति. ध्यायन्नृपो गेहं गत्वा सुष्वाप निद्रया ! प्रातः प्रबुद्धः प्रातस्त्यकार्य कृत्वा नरेश्वरः // ययौ तुरंगमारूदो द्रष्टुं निजसरोवरम् // 228 / | चलचकोरचक्रांगचक्रवाकचयाकुलम् // भ्रमभ्रमरझंकारमुखरीभवदुत्पलम् // 229 // IT प्रसर्पल्लहरीबाहुवल्लरीश्लिष्टपादपम् // वभार प्रीतिसंभारं, कासारं वीक्ष्य भूपतिः // 230 // कासारांतःस्थितं संभं दृष्ट्वा प्रोचे महीपतिः। शण्वंतमंत्रिणः सर्वे, सर्वे लोकाश्च को विदः // 7 // अकृत्वा सलिले पादनिवेशं तीरसंस्थितः।। बध्नाति यः सरस्तंभ, मंतिता तस्य दीयते // 400-AND-*: MARD400- For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इखुद्घोषणया सर्वे, मिलितास्तव मंत्रिणः // संगताश्चतुरा लोकाः प्रोचुरेवं परस्परम् / / गुण कथं तटस्थितैः स्तंमो, बध्यते मध्यसंस्थितः / / उत्तानेनापि हस्तेन, स्पृश्यते तेंदुमंलडम् // चरित्र. ||१|एके विवेकिनः प्राहुर्बुद्धिरेव विलोक्यते॥ लक्ष्मीखि परं सापि, नाप्यते सुकृतं विना // बुद्धया सिध्यंति कार्याणि, विषमान्यपि तत्क्षणात्।। स्वबुद्धया वंचयामास, चंडिकां कमलो यथा | तथाहि भरतेऽत्रास्त्यवंतीनाम महापुरी // तत्र श्रीपालभूपालो भूमिपालशिरोमणिः // ही पंडितः कमलाख्योऽस्य, स्वभावविमलाशयः // डिसप्ततिकलापात्रं, विख्यातः पृथिवीतले // / सोऽन्येशुश्चिंतयामास दासप्ततिकलाः किल // विज्ञातास्ति मया किंतु, कलानामेकसप्ततिः। | दासप्ततितमी चर्यिकलां शिक्षे कुतोऽप्यहम् // हुं ज्ञातं द्यूतकारेभ्यः; सा शिक्ष्येत विचक्षणः॥ ध्यारवेति घाकाराणां, स. सेवां कर्तुमुद्यतः // तैः पृष्टो हेतुना केन, सेवनीया वयं तवः // स प्रोचे प्रायशः सर्वकलासुःकुशलोऽस्म्यहम्॥ किंतु चौर्यकलाया मे, किंचिन्मर्म प्रकाश्यतामा / ते पोचुर्मन्यते नैव, कृते चौर्य कदायमा / / इति शिक्षा समादाय, स्वस्थानं पंडितो ययौ // 7 // सादकोटीमूल्यस्याम्येयुभूपत्रिसंसदिः / केनापि दौकिनो हारा, सामतानिरीक्षितः For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पंडितोऽपि करे कृत्वा, हारं बाह्यंतरेधिपत् / / उत्थिता च संभा सर्वा, भूपश्चातःपुरं ययौं गुण हारं श्रुत्वा महादेवी, प्रर्थयामासः भूभुजम् / / कोशाध्यक्षं समाकार्य, तं च पप्रच्छ भूमिपः // चरित्र // 72 // सोऽवादीन करे हारः, प्रासो मे देव सर्वथा। सभ्याः पृष्टास्ततः सर्वे, भूपभृत्यैः पृथक्पृथका | कैश्चित् प्रोचिह्ययं हारः, पंडितस्य करं गतः // गृहीतस्तेन चान्येन, को वेत्ति ज्ञानवर्जितः / / 8 तच्छुत्वा पंडितः प्राह, निविष्टो भूपसंसदि ।.गृहीतोऽस्त्यसो हारः कलंकस्तु तथाप्यभूता। / अकृत्वाह महादिव्यं, नोत्थास्याम्येष सर्वथा.। भूपःप्रीचे मृषा लोको, भाषते त्वं क्षमस्वतता। / तत्रास्ति चंडिका देवी, दिव्यप्रत्ययकारिणी॥ स्थापितोभवने यस्या, ह्यन्यायी नैव जीवति। B ततस्तेन सह मापो, देवताभवनं गतः॥ प्रोवाच चंडिके देवि, शुद्धिःकार्याद्य पंडिते॥ | आनाय्य तत्र पत्राणि, पंडितः कुसुमानि च // निविष्टः पुरतो देव्याः,सर्वलोको विनिर्ययो। | प्रदाप्य तालकं द्वारे, भूपोऽपि सदनं ययौ // पंडितः पुरतो देव्या, भक्षतिस्म दलानि मः॥ चर्व चर्व च पत्राणि, तांबूलं देवतां प्रति // चिक्षेप निर्भयः सोऽप्यर्द्धरात्रिश्च समागता // 2 // - रौद्ररूपं दधाना सा, मुखे हुंकारकारिणी // खड्ञनभापयंती व प्रत्यक्षा देवताभवत् // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समिंद्राणी च सूर्याणी, ब्रह्माणी पस्मेश्वरी // पंडितस्तां च तुष्टाव, बभाषे साचतं प्रति // गुण रेहारं चोरयित्वात्र, निषण्णोऽसि ममाग्रतः // तांबूलं क्षिपसि स्वैरं, वीक्ष्यतां किं करोम्यहम् // चरित्र. // 73 // चोस्तिो न मया हारो, वर्तते परमेश्वरि // सावर ज्ञानेन पश्यामि, किं त्वदुक्तेन दुष्ट रे।। स प्रोचे यदि ते ज्ञानं, वर्तते देवि चंडिके // तदा मे संशयच्छेदं, कृत्वा कुर्यायेथारुचि // कःसंशयः इति प्रोक्ते, स प्रोचे शृणु चंडिके। पिता पुत्र उभौ मार्गे, चेलतुःप्रीतिशालिनौ / तौ विलोक्य पदन्यासं, नार्योरन्योन्यमूचतुः।। एका नीचा परात्युच्चा,तन्मार्ग बजतः स्त्रियोः / पुत्रप्रोवाच नीचा मे, प्रोचा भवतु ते पितः। अन्योन्यमिति जल्पंती, तो ते ददृशतुः स्त्रियो नीचा पुत्रेण चानीता, प्रोच्चा तु जनकेन सा // ते चताभ्यां कृते भार्ये, प्रोमा पुत्री परा प्रसू।। | तेषां च तदपत्यानां, संबंधः किमजायत // इति मे संशयं मिंधिज्ञानं चेत्तव वर्त्तते // / तस्यां तदुत्तरं देव्यां, वितयंत्यां गता निशा ॥अथो कैलासमाप्तायां, प्रभातं च ततोऽभवत् / # भूपालस्तूर्णमागत्योद्धाव्य तालकमादरात् // स्तुतं देवतां प्रेक्ष्य, पंडितं प्रीतिमाप मः // 7 // खगृहे सोत्सवं प्रेष्य, पंडितं भूपतिययौ / दिने तृतीये तं हारमर्पयामास स स्वयम् / / -460-4044100-40 4 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir O किमेतदिति भूपाले, पृच्छति स्माह पंडितः।। परीक्षा शिक्षितायाः स्वकलायाः प्रेक्षिता मया गुण०|| इत्यादि सर्वलोकेषु, प्रजल्पत्सु परस्परम् ॥धनश्रेष्ठिसतो रत्नाकरस्तत्र समागतः // 29 // चरित्र // 7 // तत्स्वरूपं परिज्ञाय, स नत्वा भूपति जगौ॥ पश्चादपि हि यो वक्ति, स वक्तु प्रथमं मतिम्। लोकेषु कृतमौनेषु, सर्वेषु स नृपाज्ञया // रज्जुमानाययामास, स्तंभबंधकृते कृती // 292 // * तत्प्रांतं भूपतेः पाणी, न्यस्य धृत्वा चतां स्वयम् // तटस्थ एव भ्राम, तटाकंपरितः सुधीर 6 एवं कृते स्वयं संभवद्धे सति महीपतिः // मंत्रिमुद्रां ददौ तस्मै, विस्मयस्मेरमानसः // / भूपोऽपि सोऽपि लोकोऽपि, मुदिताःस्वगृहं ययुः॥ विशेषान्मंत्रिणो गेहं, बभूव सुमहोत्सवः 15 सप्राज्यराज्यकार्याणि, कुर्वन् शिशुरपि स्वयम्।। वृद्धेभ्योऽपि हिमान्योऽभूच्छैलेभ्य इव सन्मणिः अन्यदा शूरभूपालः कालवत्कुपितो भृशम्॥आगच्छंस्तत्पुरं राज्ञे, ज्ञापितश्चतुरैश्वरैः // 29 // | राजा मंत्रिणमाकार्य, तत्स्वरूपं न्यवेदयत् // स प्रोवाच स्थिरैर्भाव्यं, स्थिराणांस्युर्यतः श्रियं / इत्युक्त्वा सायन् वर्ग, प्रच्छन्नंस नरैर्निजैः / / शत्रोरुत्तारकस्थाने, निधानानि क्षितौ न्ययात् 7 // / समेते शूरभूपाले, ससैन्ये परितःस्थिते // लिखित्वा स स्वयं लेख, प्रेषयामास तत्कृते // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेखोऽयं च स्वयं वाच्य, इति वाच्यं त्वयामुखात।। शिक्षयित्वेत्यसौ विनं, स्वंप्रेषीत शूरभूभुजगुणा लेखं स वाचयामास, स्वयमेवेति मातुलः॥ मदीयोऽस्ति भवन्मंत्री, तेन संबंधवानहम् // चरित्र. // 7 // तव सूत्रे विनष्टे स्यात्तदीयमपि नश्वरम् // ज्ञापयाम्युपकाराय, तस्यापि च तवापि च // सामंताः स्वामिनास्वाकं, त्वदीयाः संति लोभिताः।। बच्चा ते त्वांप्रदास्यंति, मत्प्रभोरिति चिंतये। चेन प्रतीतिस्तत्तेषां,शोध्या उत्तारकास्त्वया // मयास्ति ज्ञापितं योग्यं, विधेयं स्वहितं त्वया // 16 वाचयित्वेति तं लेखं, सामंतोत्तारकेषु सः॥ शोधितेषु च दृष्टेषु, निधानेषु पलायितः // || | पलायमानं तं ज्ञात्वा, सामंता अनुधाविताः। विशेषाद्धयभीतोऽसौ, पवनाज्जवनोऽभवत् // अस्मिन्नवसरे ज्ञाते, सति श्रीचंदभूपतिः // तेपामुत्तारकान् सर्वालुटयामास गच्छताम् // मतिमत्यश्रुतां तस्य, चित्ते चिंतयता भृशम् // मेने मनोज्ञता राज्ये, राज्ञा तेनैव मंत्रिणा / अथ चंद्राक्तीदेव्या, लवी रत्नवती स्वसा / / दत्ता श्रीचंद्रभूपाय, रूपचंद्रेण भूभुजा // 29 // 8 विवाहाक्सरे पित्रा, ज्ञापिते सति भूपतिः // रोगाक्रांतशरीरोऽभूद्धभाषे च स्वमंत्रिणम् // 7 // - मम खड्गं समादाय, गत्वैतेन विवाह्यताम् ।।दुतं रत्नावतीमत्रानय ज्ञेयविशारद // 29 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / तथैव कृत्वा भूपाज्ञां, स समेतः पुरं निजम् / / बह्वमन्यत भूपःस्त्रीरनं रनवतीमिति // 293 // गुण० अथ चंद्रावती दथ्यौ, स्वसा पूर्वमपि स्वसा॥ सपत्नोत्वेन संजाताधना दहति मां पुनः // चरित्र. // 76 // प्रागेव तत्करिष्येऽहं, विरक्तः स्यान्नृपो यतः।। ध्यात्वेतितं जगौ काले.मंत्रिश्लाधाविधायिनमा / अतिश्लाघान कस्यापि, प्राणनाथ विधीयते। मंत्रिणा यत्कृतं मार्गे, तत्सर्व मे जगौ स्वसा // श्रुत्वेति कुपितो भूपस्त्यक्त्वा रत्नवतीगृहम् / / जिघांसुर्मत्रिणं कंचिदुपायं स व्यचिंतयन् // 1 कुंभं स्वर्णमयं भृत्वा, भस्मना क्षोमवेष्टितम् / / कृत्वा दत्वा स्वयं मुद्रां, बभाषे मंत्रिणं प्रति // रेऽस्ति श्रीकांचनपुरे, मन्मित्रं भूपतिः पृथुः॥ अनेन प्राभृतेन त्वं प्राग् रुष्टं प्रीणयाशु तम् // मुद्रा मे नापनेतव्या, मार्गे किंतु सभांतरे॥ छोटयित्वा त्वया दृश्यः कर्पूरोऽस्ति मनोरमः॥ ही इति शिक्षा स्वयंढत्वा, प्रेषितोऽसौ महीभुजा // मंत्री तथैव चक्रे तमस्म कर्पूरतां गतम्।। - राज्ञा समानितोऽत्यंत, राजकार्य विधाय सः॥ निजंपुरं समागत्य, प्रणनाम नरेश्वरम् // विस्मितोऽपि हृदि मापः, स्वरूपं विनिवेदयत् // पुनर्थ्यात्वा तमादिक्षल्लिखित्वा लेखमात्मना 76 // पुरे हेमपुरे हेमकुंभो भूपः सुहृन्मम // तस्मै लेखं प्रदायेति, वाच्यं वाच्यः स्वयं त्वया // -RACTICOACT For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति शिक्षामथो विभन्मंत्री तन्नगरं गतः // लेखं दत्वा नृपं नत्वासोनः शिष्योक्तिपूर्वकम्। गुण, भूपतिर्वाचयामास, तं लेखमिति मंत्र्यसौ // वध्यो लोकापवादेन, मया हतुं न शक्यते // चरित्र. // 7 // ततस्त्वया रहो वध्य, इति लेख प्रवाच्य सः // विसृज्य मंत्रिणं सायान्हे तमाकारयत्पुनः॥ है रहो नीत्वासिमाकृष्य, तं तुं स प्रवृत्तवान् / स्मित्वोचे सचिवः सवं, शृंगपुच्छोज्झितः पशुः / नृपः प्रोचे भवद्भर्तुर्मया शिक्ष्या विधीयते॥ सोऽवक् तेनैव मूर्खत्वं, भाति मे नृपते तव।। ननु मज्जन्मनि प्रोक्तं दक्षैः सांवत्सरैरिति // तनुस्थाने ग्रहाः संति, पतिता बलत्तराः / / मृत्युः करिष्यते यत्र, बलादस्य कदाचन // द्वात्रिंशत्तत्र वर्षाणि,, दुर्भिक्षं निपतिष्यति // a दक्षेण स्वामिनास्माकं, प्रहितोऽस्मि ततस्तव।। मया हेतुरयंप्रोक्तो, यद्रम्यं तत्कुरुष्व भोः।। / / दुर्भिक्षभीतो भूपोऽवक्, स्वामी ते न सुहृन्मम।। सत्यं बधुरसि त्वं तु, येन मे विहितं हितम्।। संवृत्य खड्गमालिंग्य, संमान्य वसनादिभिः॥ विसृष्टः सोऽपि समाप्तः, संहृष्टः स्वपुरं ततः। सोपालंभं सुहृल्लेखं, मुक्त्वा भूपं ननाम सः। तत्स्वरूपे परिज्ञाते, सति सेोऽयं विसिमिय।।७।। / तथापि हंतुकामस्तमन्येशुभूपतिर्जगौ / मनोज्ञमद्य करं पत्राणि च समानय // 26 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तथाकृते नृपो रात्रौ, सामंतेभ्यः स्वपाणिना // ददौ कर्पूरमिश्राणि पत्राणि परमादरात् // गुण०। भूपः करतले तस्य, विषं न्यस्य दलैः समम् / / कपूरो गृह्यतां मंत्रिन्. भक्ष्यतामित्यभाषत / / चरित्र // 7 // विषं कर्पूरतां प्राप्तं, भक्षतिस्म स तत्क्षणम् // भूपे चमत्कृतेऽकस्मान्मध्ये कोलाहलोऽभवत् // || आगता त्वरितं दासी, स्माह स्वामिन्निशम्यताम् // देवी चंद्रावती वाद, व्याकुला वर्ततेऽधुना | चपेट्या हता केनाप्पदृष्टान्येन तल्पतः // पतिता पृथिवीपीठे, लुति अहिलेव सा // 32 // | नृपेण शीघ्रमागत्य, गुगुलोद्ग्राहपूर्वकम्।। भाषिता सा रुषा तस्मै, चपेटां दातुमुद्यता।।३२२॥ / सा कथंचिन्नौद्धा, भाषिता मंत्रवादिभिः॥ भूतो वा राक्षसो वापि, शाकिनी चेति वादिभिः॥ 3 सारुषा नृपति प्रोचे, रे कृतघ्नशिरोमणे॥ मायया वचसैतस्या मंत्री हंतुं विचिंतितः // 324 // मया क रतां नीतं, पूर्व भस्म ततो विषम् // अहं तवास्मि रे राज्याधिष्टात्री कुलदेवता॥ अर्थतां न हि मोक्ष्यामि, हनिष्याम्येव सर्वथा // ततो मंत्रिणमाकार्य, भूपः क्षमयतिस्म तम् / / तामप्यलुव्यत्पादयुगले मंत्रिणो मुहुः // क्षमिता बहुमानेन, सा ततो देवता गता ॥३२७॥७वा जातायामथ सज्जायां, देव्या हृष्टो जनोऽखिलः॥ मंत्रिणं श्लाघयामास, विदधानो महोत्सवमा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण 1 / रत्नवत्यप्यमान्या सा, मान्या राज्ञा ततः कृता // मंत्री विचिंतितश्चित्ते, जीवितादपि वल्लभः / श्रीमंतोऽजितसिंहाख्याः, सूरयो ज्ञानिनोन्यदा। संप्राप्तास्तान्नृपो नंतुं, मंत्रिणासहितो ययौ।। चरित्र श्रुत्वोपदेशं पप्रच्छ, मंत्रिणो भाग्यकारणम् // मुनिः भवं प्रोचे. नगरे हस्तिनापुरे॥३३१॥ श्रेष्ठिनोधनदत्तस्य, धनेश्वरसुतोऽभवत् // जिनपूजामुना चक्रे, बांधवैः सह संमदात् // 332 // कर्पूरार्चा विशेषेण, कर्पूरो विषभस्मनी // जातः क्रमेण राज्यं च प्राज्यमस्य भविष्यति / / मंत्री पूर्वभवं श्रुत्वा, जातिस्मरणमाप सः॥ विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ।।३३४॥ मुनिं नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वमंत्रिणे // निरपत्यो नृपः पार्क, गुरोः संयममग्रहीत M अथ रत्नाकसेराजा, पालयित्वा भुवं चिरम् // पुत्राय रत्नदेवाय, राज्यं दत्वागृहीव्रतम् // पाल्य संयम भव्यभावेन स मुनीश्वरः // विहितानशनः प्रांते सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् // चिरं सुखान्यसो भुक्तवा, देवलोकात्ततच्युतः // अष्टमोऽनंतनामासीत्तनयस्तव भूपते // * पुष्पादिपूजनचतुष्कफलानि पुण्यमाणिक्यमुंदररुचिर्नृपतेः पुरस्तात् // / उक्त्वा विशेषसहितानि मुनिर्धजाद्यारोपादिपूजनफलं गदितुं प्रवृत्तः // 339 // इति श्री अंचलगच्छेशमाणिक्यसुंदरसूरिविरचिते पूजाधिकारे गुणवर्माचरित्रे पुष्पमाल्यवर्णकचूर्गारोपणपूजनफलवर्णनो नाम तृतीयः स्वर्गः For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वर्ग 4 थो. गुण० चरित्र // // ध्वजारोपः कृतो येन, फलं तस्य निगद्यते / अत्रास्ति भरतक्षेत्रे, पुरमिंद्रपुरं परम् // 1 // तत्राभूदेवचंद्राख्यो, भूपो देवेंद्रसन्निभः॥ देवी चदेविला तस्य, देवकांतेव दिव्यरुक् // 2 // | कनकस्य ततो जीवस्तस्याः कुक्षि समागतः।। समये स तया सूतः, पिता चक्रे महोत्सवम्।। गरुडध्वजइत्याख्या तरय जाता मनोरमा / तस्मै प्रवर्द्धमानाय, राज्यं दत्वा पिता मृतः॥ | गरुडध्वजभूपालेऽन्यदा संसदि संस्थिते॥ वेत्रिप्रवेशितो दूतो, नत्वा कार्यमभाषत // 5 // 10 अस्ति पंचालदेशेषु, पुरं शिवपुराभिधम् // तत्र श्रीशंकरो राजा, शिवचंद्रास्य तु प्रिया॥६॥ / तत्कुक्षिपद्मिनीहंसी, कन्या नाम्ना सरस्वती॥ सरस्वतीव संजातसर्वशास्त्रार्थसंग्रहा // 7 // पाणिग्रहमकुर्वाणा तारतारुण्यशालिनी // प्रोचे सवित्र्या स्वोत्संगे, निवेश्य निजनंदिनी // 1 // न मन्यसे कुतो हेतोः, पाणिग्रहणमंगजे // यचित्ते वर्तते तन्मे, प्रकाशय सरस्वति // 9 // सा पोचे किं कृतेनापि, पाणिग्रहणकर्मणा / / कांता यदक्ति तत्कार्य, भर्ता न कुरुते यदि // 0 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / / सर्वकार्याणि यः कुर्यान्मदुक्तानि निरंताम्॥रस मेऽन्यथा नास्ति, विवाहेन प्रयोजनम् // गुणा इत्युक्त्वा सा समुत्थाय, जनन्युत्संगतो गता // माता संजातसंतापा, तत्मापाय न्यवेदयत् / / चरित्र. // 8 // अबालत्वेऽपि बालत्वं, तस्याः किमितिचिंतयन् // नृपो मंत्रिणमाकार्य, तत्स्वरूपं स्वयं जगौ // सपाह पुरुषः कोऽपि, प्रायस्ताहर न विद्यते ॥कुर्यात्सर्वाणि कार्याणि, नारीणामेव वाक्यतः॥ | भवत्यपि वरः कोऽपि, तद्रूपं वीक्ष्य रंजितः॥ अच्छंकारीभटीरूपात्परिणीयात सुबंधुरां॥१५॥ Te| ततः स्वयंवरस्तस्याः, कार्यते कार्यकोविदः॥ तत्प्रतिज्ञावचः श्रुत्वा, यो वृणोति वृणोतु सः / / | लोके निरुत्तर रेखें, भूयते भूयसाथ किम् // इति मंत्रिगिरा भूपोऽचीकरत स्वयंवरं // 17 // || आहूता भूभुजः सर्वे, दूतान प्रेष्य पृथक् पृथक // तद्भवतोऽपि संप्राप्ता वीक्ष्यतेतत्स्वयंवरे // इतितगिरमाकर्ण्य, सस्मितं भूपतिर्जगौ // अस्माभिरस्मिन्नर्थेत्रस्थितैराशूनरं भवेत् // 19 // - दूतः प्रोवाच दुःसाध्यं, चिंतयित्वात्र संस्थिता // यथा यूयं तथान्येऽपि, कथं भावि स्वयंवरः / / 9 तस्याः पाणिग्रहे कोऽपि, बलात्कारो न विद्यते // मिलंतु भभुजः सर्वे, रुचिर्यस्य करोतु सः // 8 // " इत्युक्त्वा सज्जयित्वा तं, दूतोऽन्यत्र जगाम सः॥ गरुडध्वजभूपालश्वचालाभि स्वयंवरम् // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir GSTहा मार्गे ग्रामाकरदगाँलंघमानस्य भूपतेः॥अन्येाः सरितस्तीरे स्थितं सैन्यमदैन्यभाक्॥२३॥ गुण० अर्द्धरात्रे नृपस्तत्र, कस्यचित् करुणस्वरम् / / श्रुत्वाचलत् करालेन, करवालेन संयुतः॥२४॥ चरित्र // 2 // गच्छन् शब्दानुसारेण, श्मशाने क्यापि भूपतिः॥कंदतं नरमद्राक्षीत्, कक्षाक्षिप्तं हि रक्षसा // करवालं करे कृत्वा, भूपालः स्माह राक्षसम् // क्रंदतं कातरं मुंच, मामेहि यदि शक्तता // रक्षः प्रोचेऽमुना मंत्रो, मदीयो जपितश्विरम् // प्रत्यक्षतांगतेनाऽसौ, नृमांसं याचितो मया। | न दत्तेऽसाविति क्रुद्धः, कातरं पीडयाम्यमुम् / / न विद्यते तव स्वार्थो, व्रज मार्गे समाधिना॥g पलाईप्रति भूपालः, प्रोवाच मयि पालके // मास्त्वन्यायो न युज्येत, तस्मात्त्वं कातरं त्यजा।। शिक्षा नोचेत् प्रदास्यामि, खड्गेन क्षणमात्रतः॥ इत्युक्त्वा दुर्द्धरो भूपो, दधावे राक्षसंपति।। कर्तिकां नर्तयन् पाणौ, बलादपि पलादराट् // भूभुजा ताडितः शीर्षेऽट्टहासस्फोटिनांवरः // चकर्त कर्तिकां चाशु, कखालेन भूपतिः॥ रक्षोऽवादीन ते क्षोभस्वं धीराणां शिरोमणिः॥ 15 साहसात्तव तुष्टोऽस्मि, वरं वृणु समीहितम् / / स जगाद स्मृतो येन, तस्य त्वं सिद्धतां भजा // 2 // सिद्धमेतत्परं स्वार्थ प्रार्थयेति तदीरितः॥ स प्रोवाच तथा कार्य, यथा सा वियते मया // 34 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | ओमित्युक्त्वा पलादेन, विसृष्टः स्वबलं गतः॥ प्रातश्च चलितो भूपः, क्रमाच्छिवपुरं ययौ। गुण० तत्र सिंहासनासीने, भूपवंदे स्वयंवरे // वरमाला करे विभ्रत्यागता सा सरस्वती // 36 // चरित्र // 8 // तां प्रोवाच प्रतीहारो, हारीकृतरदद्युतिम् // अंगुल्या दर्शयंती तानामग्राहं नरेश्वरान्॥३॥ | अंगवंगतिलंगानां, कलिंगानां महीभुजः॥ मिलिताः संति सर्वेऽपि, कृतार्थ्यतां त्वया दृशा। विलोक्य तांस्ततो बाला, पूर्वश्लोकं पपाठ सा // तं श्रुत्वा जज्ञिरे ते च, निराशास्तत्करग्रहे। | सर्वकार्याणि यः कुर्यान्मदुक्तानि निरंतरम् / / वरःसः मेऽन्यथा नास्ति विवाहेन प्रयोजनम्।।। / प्रतिभूपमिमं श्लोकं, पठंती प्रचचाल सा // न कोऽपि तस्या मालार्थी, बभूव क्षितिनायकः / / | ततस्तस्याः पिता किंचिदचिंतयद् हहा विधे / अस्या गुणनिर्दोषः कृतः कस्मात्कदाग्रह (मालिनी वृत्तम् ) / शशिनि खलु कलंक कंटकाः पद्मनाले, जलधिजलमपेयं पंडिते निर्धनत्वम् // * दयितजनवियोगो दुर्भगत्वं सुरूपे, धनिषु च कृपणत्वं रत्नदोषी कृतांतः // 43 // 3 // - स्वयंवरप्रयासो मे, विफलः सकलोऽभवत् // कथं यास्यंति भूपाला, बालापरिणयं विना // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्ताते चिंतयत्येवं, चित्तांतः सा सभांतरे॥ श्लोकं पठंती तत्रागाद्यत्रास्ते गरुडध्वजः // गुण राक्षसोक्तं वचो भूपस्तदा सस्मार चेतसि / / राक्षसश्च ततश्चक्रे, स तस्या मतिविभ्रमं // चरित्र. // 4 // सा स्थाने सर्वशब्दस्य, पुण्यशब्दं प्रयुज्य तम्॥ श्लोकं पपाठ तच्छुत्वा, सर्वो लोको विसिष्मिये / / पुण्यकार्याणि यः कुर्यान्मदुक्तानि निरंतरम् // वरः स मेऽन्यथा नास्ति, विवाहेन प्रयोजनमा / इति श्रुत्वा महीपालस्तन्मालार्थी बभूव सः॥ सा निचिक्षेप सोत्कंठं, तत्कंठे वरणस्रजम् // | क्षिप्तायां वरमालायां, बालया मतिविभ्रमः॥ परिज्ञातः परं प्रीता, वरं वीक्ष्य गुणालयम् // 14 ततस्तत्र तयोर्जाते, पाणिग्रहमहोत्सवे // विसृष्टा भूभुजः सर्वे, स्थानं निजनिजं ययुः // | गरुडध्वजभूपोऽपि, स्थित्वा तत्र कियदिनान् / तया सह समायातः स्वपुरं समहोत्सवम् // तदुक्तपुण्यकार्याणि, कुर्वाणः प्रीतमानसः // समयं गमयामास, नृपः सुखमयं सदा॥५३॥ | गवाक्षस्थस्तया साकमन्यदा भूपतिर्वने // समेतं संघमदाक्षीत्कुतश्चित्प्रौढतीर्थतः // 54 // / तया सह नृपस्तत्र, संघं द्रष्टुं वने ययौ / संघोऽप्यावर्जयामास, नृपतिं स्वयमागतम् // // 4 // - संघसाथै समायातान्, धर्मघोषाह्वयान गुरून् // प्रणम्य भूपतिस्तत्र, सकांतोऽपि निषण्णवान् / 40000 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण चरित्र. // 85 // समेतं तत्र संघेशं, नृपतिर्वहु मानयन् / / गुरूपदेशं शुश्राव, तीर्थयात्राधिकारिणम् // 57 // समेतेऽष्टापदे शत्रंजये खतपर्वते // वाराणस्यादितीर्थेषु, भव्यैर्यात्रा विधीयते // 50 // (इंद्रवज्रा वृत्तम् ) तीर्थेषु ये श्रीजिननाथभक्ति, कृत्वा कृतार्थी रचयंति लक्ष्मीम् // त एव धन्या धरणीतलेऽत्र, भवंति नारक्यपरा नरोऽन्ये // 59 // H इत्थमाकर्य संघेशवल्लभा संसदि स्थिता // प्रतिराज्ञीमिति स्माह, सोत्साहहृदया मुदा / / अस्माभिर्विहिता यात्रा, पूर्व शत्रुजये ततः॥ रेवताद्रौ च किंवत्र, कौतूहलमिदं पुनः॥ शबुजये खते चाप्येक एव महावजः॥ दत्तश्चित्तप्रमोदेन, एवं न दास्यते परः // 6 // | राज्ञी हसित्वा तां प्राह, संमेतेऽष्टापदेऽपि च॥ अस्माभिः क्रियते यात्रा, हृदये चिंत्यते पुनः / एतयोस्तीर्थयोरेवमेक एव महाध्वजः // दीयते किं त्वया श्लाघा स्वयमेव विधीयते // भूपो विसृज्य संघेशं, पल्या सह गृहं ययौ // समये च तयामाणि, पुण्यकर्तव्यमस्ति नौ - संवेशवलभाग्रे यत्, पूर्व प्रोक्तं तया स्यात् // तदेव कथयामास, पुस्तो भूपतेरपि // 66 // // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | तच्छुत्वा भूपतिर्दध्यावहो प्रोक्तं किमेतया // कुत्राष्टपदशैलेशः, क्वच संमेतपर्वतः॥६॥ गुण० तयोर्यात्रा विधातव्या, संघतश्च परस्परम् // द्वयोरपिध्वजारोपः, कथमेतद्विधीयते // 6 // चरित्र // 86 // मौनमाधाय भूपाले, स्थिते चिंतातुरे सति // गता सरस्वती देवी, नितांतखिन्नमानसा // | सचिवो ज्ञातवृत्तांतस्तामुवाच विचक्षणः // स्वामिनि! प्रायो वक्तव्यं, युक्तमेव हि सर्वथा // | सा जगाद सभामध्ये, यन्मया कथितं मुदा / अन्यथात्वं व्रजत्यत्र, जीवितान्मे मृतिर्वरम् / // इति तनिश्चयं ज्ञात्वा, राजा चित्तेऽतिदुःखितः॥रात्रावनुक्त्वा कस्यापि, निर्ययो निजमंदिरात स्थाने स्थाने भ्रमन्नेष, तुंगशृंगाभि गिरिम् // निरीक्ष्य भूगुपाताय, गच्छन्नालोकयन्नरौ // तौ शीर्षे ग्रंथिकां कृत्वा, व्रजतौ पर्वतं प्रति // तथैवाचलितो तूर्णे, तथाकारौ पुनःपुनः // विलोक्य भूपतिरेतावूचे हे सुहृदौ कथम् // गमागमौ विधीयेते, युक्तं चेत्तर्हि कथ्यताम्॥ / नृपमूचे तयोरेकः, सविवेक! निशम्यताम् // सारंगपुरमित्यस्ति, नगरं सागरांतिके॥७॥ तत्र चित्रांगदो राजा, राज्ञी तस्य मनोरमा॥ यया मनोरमाकारात्कारिता दास्यमिंदिरा // 6 // ता हल्ला चंडवेगाख्यः, खेचरः खेचरन्नथ // गत्वा जलनिधेर्मध्ये, दीपे क्वचिदवस्थितः // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परनार्यपहारेण, धरणेद्रव्यवस्थया // विद्याभ्रंशोऽभवत्तस्य, स तत्रैवास्त्यवस्थितः // 79 // गुण नैमित्तिकाच तद्ज्ञात्वा, दथ्यौ चित्रांगदो नृपः।। काथंकारं रिपुं हन्मि, काम्यकांतापहारकम् / / चरित्र. // // एवंचिंतयतः सिद्धः, पुरुषस्तस्य दृक्पथम् / / संप्राप्तो बहुमानेन, तेन भक्त्या च तोषितः॥ * आकाशगामिनी विद्या, विद्या चिंतितवर्द्धिनो // प्रज्ञप्त्यादिमहाविद्यावन्महाबलवत्तरे // दे विद्ये भूभुजे तस्मै, तेन दत्ते मनीषिणा // एकया गम्यते व्योम्नि, वर्द्धते शस्त्रमन्यया * यथा शस्त्रस्य वृद्धिः स्यात्तरसोऽपि तथा भवेत्॥ योजनानां शतं वृद्धिः सहस्रमपि भाग्यतः | चक्रिणो दंडरत्नस्य, सहस्रं वृद्धिरुच्यते // चर्मछत्रदयस्यास्य, वृद्धिादशयोजनी // 5 // विद्याया बहुरूपिण्या, रूपाणि च सहस्रशः।। जायंते कौतुकं नात्र, विद्याभिः किं न साध्यते / / विद्यादयेन सिद्धेन, यत्र तत्र स्थितो रिपुः // हेलया हन्यते मित्र, साधने युक्तिरुच्यते // यत्र सिंहो वसत्यद्रौ, साध्यते तत्र सा निशि॥ विद्यां साधयतः पुंसो, हरिःशांतोऽवतिष्ठते। पुष्पगुग्गुलधूपानां, वहंती ग्रंथिकामिमां // पितापुत्री समायातावावामिह दिनात्यये / / 89 // // 8 // | गच्छावः पर्वतं यावत्त्वरितं साधनेच्छया // सिंहनादममुं श्रुत्वा, तिष्ठावस्तावता भिया // 10 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है आवां किं कुर्वहे मित्र,न स्थिरं चित्तमावयोः॥विद्यासिद्धिर्भवेन्नोवा, सिंहान्मृत्युस्तु निश्चितम् नृपः प्रोचे भवद्भयां चेन्मह्यं विद्या प्रदीयते॥ साधयित्वा ततः शीघ्र, दर्शये प्रत्ययं युवाम् // चरित्र nanताभ्यां विद्यादयं दत्तं, विधिपूर्वकमोजसा॥ भूपतिः साधयामास, निर्भीकः सिंहसन्निधौ // सिद्धविद्यो विसृज्यैतौ, नृपतिः स्वपुरं ययौ॥ मंत्रिभिः संमुखायातैः, सह मंदिरमागतः // न देवी भवने क्यापि, दृश्यते भोजनादनु // इति पृच्छति भूपाले, मंत्री कृष्णाननो जगौ।। तदा विनिर्गतान युष्मान,सर्वत्रापि चशोधितान्।।अलब्ध्या सकलोराजलोको दुःखाकुलोऽभवत् / देवी त्वत्यंतदुःखार्ता, स्वं निंदंती कदाग्रहम् // लोकेन वार्यमाणापि, गवाक्षात्पतिता भुवि // 5 आकाशात्पतिता दृष्टा, न पत्ती भुवस्तले // न ज्ञायये गता क्यापि, देवीवृत्तमिदं प्रभो // नृपः श्रुत्वेति सूत्कारान् , मुंचंश्चित्ते व्यचिंतयम् // यदर्थेहमुपक्रांतः सैव दैवेन दूरिता // 99 // इति चिंतयतिमापे, वय॑से देवी वर्यसे। जल्पंतीति समायाता, दासी प्रीतिमती जगौ।।।। गवाक्षयित्पतिता यस्मात्तत एव समागता // स्वामिनी दृश्यते स्वामिन् , सारश्रृंगारभासुराच्या हर्षात्पश्यति भूपाले, राज्ञी तत्र समागता // भद्रासने निषण्णा च, कस्य प्रीतिं चकार न // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनौचित्यं तदा ज्ञात्वा, संकथानां परस्परम् // भूपः प्रियान्वितो यात्राकरणाय समुद्यतः // गुण संपेन सहितो भूपः, पूर्व संमेतपर्वते // सप्रियः स्नात्रसंघा ध्वजारोपादि स व्यधात् // चरित्र // 9 // ध्वजारोपं ततः कुर्वन् , विद्यादयबलान्वितः॥ पटे संघ समारोप्याष्टापदाद्रिं गतो नृपः // तत्र पूजां प्रभोः कृत्वा, बध्वा तं च महाध्वजम् // मनोरथं प्रपूर्यासो, पुनः संमेतमाययौ // संवेन सहितस्तस्मानिजं प्राप्य पुरं नृपः। महोत्सवैः प्रविश्यात्र, निजं राज्यमपालयत् // तदा देवेंद्रसिंहाख्याः सूरयोऽत्र समागताः॥ तानंतुं नृपतिः प्राप, सप्रियः पावनं वनम् / / शृत्वोपदेशं पप्रच्छ, देवी कुत्र गता तदा // सूरिःप्रोवाच मातास्याः कृत्वा पुण्यं मृता सती // संजाता व्यंतरेंद्रस्य, वल्लभा प्रियदर्शना॥ आयाता च सुतास्नेहात्, पतंती तां ददर्श सा // | गृहीत्वा पाणिपद्मन, पतितां पृथिवीतले // तां सुखं स्थापयामास, तवागमननेऽमुचत् // | कश्चित्पप्रच्छ कि मास्तिष्ठति सुरवेश्मनि // सूरिः प्रोवाच गंगायाः, सदने भरतः स्थितः। | स्थितश्च चमरेंद्रस्य, भुवने चेटको नृपः // अथ पूर्वभवं वक्ष्ये, त्वदीयं शृणु भूपते // 113 // // 9 // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, नगरे हस्तिनापुरे॥ पुत्रः कनकनामासीत्, ध्वजपूजा कृताऽमुना // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज्यं तव ध्वजार्चातः, संमेतेऽष्टापदेऽपि च // चक्रे महाध्वजारोपं, भवान् विद्याद्रयान्वितः / / गुण नृपः पूर्वभवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ।।११६॥ चरित्र // 9 // मुनि नत्वा गृहं गत्वा, पालयित्वा चिरं भुवं // दत्वा राज्यं स्वपुत्राय, गुरोः संयममग्रहीत 2 प्रपाल्य निरतीचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् // विहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् // चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततश्युतः / / नवमो नागनामाऽभूत्तनयस्तव भूपते // // इति ध्वजारोपप्रभाववर्णने कनककुमारकथा समाप्ता. // | येनाभरणपूजात्र, विहिता तकलं ब्रुवे // अत्रास्ति भरतक्षेत्रे, मिथिला नामतः पुरी॥१२०।। तत्र शत्रुजयो राजा, शत्रूगां जयकारकः // श्रीचंद्रा नाम तत्पत्नी, चंद्रज्योत्स्नेव निर्मला / / जीवोऽथ कनकाभस्य, तदा तत्कुक्षिमागतः॥ समये च तया सूतः, पित्रा चक्रे महोत्सवः // कुलभूषण इत्याख्या, तस्य जाता मनोरमा॥ वर्द्धमानः कलाशाली, क्रमात्तारुण्यमाप सः॥॥१०॥ न केवलं पिता तस्य, कन्यां योग्यां व्यिचिंतयत् ॥बहिर्विहारे गच्छंतं, तं वीक्ष्य सकलो जन For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाले स्वभावसंभूतम तद्युतिभासुरम् // स्वर्णमौक्तिकरत्नानि, विनापि सुमनाहरम् / / युग्ममा / गुण०|| बिभ्राणां तिलकं कांचिदंगनांकांचनच्छविम्॥ सोऽद्राक्षीदन्यदा स्वप्ने,मा वृणिष्वेतिभाषिगीम' चरित्र. // 9 // स्वप्नं दृक्षाप्रबुद्धोऽसौ, चिंतयामास चेतसि // तिलकस्यैव चिन्हेन, परिणेया मयांगना // / / इति निश्चित्य पित्रासो, कन्यकावरणेऽनिशम्॥याच्यमानोऽपि नो मेने, मानिनीनांमनोहर मंत्रिमात्रादिभिर्मित्रं, प्रेरितो मतिसागरः // तमूचे हेतुना केन, विवाहं नहि मन्यसे // 129 // / उक्तं विना न वैद्योऽपि, दुःखं जानाति कस्यचित् / / विना ध्वनि मयूराणां, वारिदोऽपिन वर्षति / विना त्वद्धचनं तातस्त्वदीयो नावबुध्यते // यचित्ते वर्तते तन्मे, प्रकाशय शुभाशय // ततस्तं स्वप्नवृत्तांतं, प्रतिमित्रमुवाच सः॥ तज्जगाद पुरे नात्र, दृश्यते तादृशी वधूः // g कुमारः सुहृदं प्राह, विदेशे तर्हि गम्यते।। कलशं लभते चक्रमपि न भ्रमणं विना // चेलतुस्तौ विचिंत्येति, मिलितौ रजनीमुखे // अलक्ष्यौ गोरजःपूरे, प्रचुरे तिमिरोपमे // दिवारात्रौ व्रजतौ तौ, फलांबुकृतभोजनौ॥ वने शिलातलासीनं, मुनिद्रयमपश्यताम्।।१३५॥ 6 // 21 // तौ वंदित्वा मुनिबंद, निषण्णौ भक्तितः पुरः॥ मुनिरेकोऽवदरप्राप्ती, मिथिलाया युवामिहा। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir **48 * *4GO तौ पोचतुर्मुने कुत्र, दृष्टावावां पुरा त्वया // द्वितीयः साधुरित्याह, ज्ञानमस्य विज़ुभते // * अवधिज्ञानतो वेत्ति, युष्मद्वृत्तमयं मुनिः // कुमारस्तं ततः प्रोचे, चिंतितं मे भविष्यति // चरित्र // 12 // भविष्यति तृतीयेऽन्हि, साधुनेति प्रजल्पिते // कुमारोऽवक् कुतस्तेऽभूद्वैराग्यात्संयमोद्यमः | सोऽवादीन्मालवे देशेऽवंतीनाममहापुरी // अवंतीसेनो भूपालस्तद्भार्या सुरसुंदरी // 140 // सुतोऽस्यामरदत्तोऽभूत, पुत्री चामरसुंदरी // सा संजज्ञे कलाकेलिकलाकेलिकलालया // o आ जन्मतोऽपि संजातमुद्दामद्युतिभासुरम्॥ ललाटे तिलकं तस्या, दिदीपे दीप्रदीपवत् // योग्यं वरं वरीष्यामि, विचिंत्येति विचारवित् // अनवद्यामियं विद्या, सिषेवे प्रीतिकारिणीम्।।। सा विद्यादेवता स्वप्ने, तां प्रति प्रीतिदायकम् // हारकुंडलकोटीरैः, स्वभावोत्थैरलंकृतम् // 18 लसल्लावण्यलीलाढयं नरं निरुपमाकृतिम् / / मां वृणीष्वेति जल्पंतं, दर्शयामास कंचनम्।।युग्मम् / र प्रबुदा स्वप्नदृष्टं तं, नरं निरुपमं श्रिया // स्मारस्मारं स्मराक्रांतमानसा सा व्यचिंतयत् // / यदि द्रक्ष्यामि तादृक्षं, वरिष्यामि ततो वरम् // अन्यथाहं मरिष्यामि, न करिष्ये करग्रहम् // // 9 // वरेषु वीक्ष्यमाणेषु, तातं सा तं न्यवारयत् // अत्याग्रहे बभाषेसा, वरिष्ये वीक्षितं वरम् // RANP40100- 400-*: For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण | भूपतिः कारयामास, सप्तवारं स्वयंवरम्॥ परंन तस्याः संजज्ञे, वर कोऽपि विचिंतितः॥१४९॥ है। PI अन्यदा तां गवाक्षस्थां, चंद्रचूडो हरत्खगः // याति यातीति जल्पाके वीक्ष्यमाणे जनेऽखिले चरित्र // 93 // न भूभृन्न भटश्चापि, नाभूकोऽपि पराक्रमी॥आकाशचारिणा साकं, भूचराणां कियबलम्॥ तत्पिताहरणं तस्या, वीक्ष्य चित्ते विषण्णवान्।। चिंतयामास संसारे, धिधिर मोहविटंबना // B कस्य पुत्राः कलत्राणि, सुहृदाः कस्य वल्लभाः। दैवाधीनं जगत्सर्व, न प्रभुः कोऽपि वर्तते // / मयि सत्यप्यसूरेग, चौरेण तनुजा हता॥ असार एष संसारस्त्याज्य एव ततो मया॥१५४॥ / इति ध्यात्वा हृदा पुत्रं, स्थापयित्वा निजे पदे // गृहीतसंयमः प्राप्तावधिज्ञानोऽहमेव सः // कुमारस्तं मुनिं प्रोचे,स्वप्ने यावीक्षिता मया॥ सा सैव किंन सान्यावा, मुनिरूचे च सैव सा / विद्यादेवतयादर्शि, यस्तस्याः स्वप्नमध्यगः। स नरः खेचरोऽन्यो वा, मुनिरूचे त्वमेव सः // P विद्यादेवतया तस्यै, तुभ्यं चापि परस्परम् // रूपे प्रदर्शिते द्वे द्वे, योग्ययोगविधित्सया || * कुमारःप्रीतिभाक् प्रोचे, द्वितीयस्य मुनेरपि॥ वैराग्यकारणं बहि, श्रोतृपीयुषपारणम्॥१५९॥ // 9 // साधुःप्रोवाच वैताढये, गिरी गगनवल्लभे / पुरेऽभूदनचूडाख्यः, प्रख्यातःखेचराग्रणीः॥१६०॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | चंद्रचूडः सुतः सोऽस्य, येन मे नंदिनी हृता / असौ तं वारयामास, कन्याहरणतस्तदा।। गुण० तथापि सोऽमुचनैतां, स्थापयित्वा गृहे स्थितः॥न सेहे तस्य नाप्रापि, सा कदाप्यर्थिता सती चास्त्र. // 9 // विद्यादेवतया स्वप्ने, दर्शितो योऽस्ति लक्षणैः / / स एव मे वरो नान्यः, सेत्युक्त्वा तं न्यषेधयता / / / तत्पिता रत्नचूडोऽथ, दृष्ट्वा तत्पुत्रचेष्टितं / / दथ्यो वैराग्यमापन्नो, धिक् धिक् कामविडंबनामा भवंति ग्रहिला वीक्ष्य, महिला अपि पंडिताः // कामस्य पारवश्येनावश्यं त्याज्यो भवस्ततः Mचिंतयित्वेति तं पुत्रं, राज्यचिंताविधायकम् / / मुक्त्वा संयममादाय, विचरनिह सोऽमिलत् / दावप्यावामिह स्वैरं, वैरंगिकतया स्थितौ // शिलातलसमासीनौ, तिष्ठावः कष्टवर्जितौ // 6 कुमारस्तं पुनः प्राह, नान्यथा भवतां वचः // अहमत्रास्मि सा तत्र, कथं योगो भविष्यति॥ मुनिरूचेऽत्र का चिंता, पुण्यमेव विचिंतय / / पुण्यस्यैव प्रभावेण, चिंतिताः स्युर्मनोरथाः॥३. * मुनीनां सेवया भद्र, पुण्याचिंतितमाप्यते / / इति तद्वचसा तत्र, कुमारो निश्चलः स्थितः। 5 तृतीये ध्यानतस्तस्य, चारगस्य मुनेर्दिने / उत्पेदे केवलज्ञानं, देवास्तत्र समागताः // // 9 // * कुतश्चित् खेचरात्तातवृत्तं ज्ञात्वा तदंगजः // चंद्रचूडस्तदा तातं, नंतुमुत्कंठितोऽभवत्॥१७२॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तं ज्ञात्वा तत्र गच्छंतं, बभाषेऽमरसुंदरी // साथै नयसि चेन्मां त्वं, तदा प्रीता भवाम्यहम् / / गुण०|| ततो रम्यं करिष्यामीत्युक्ते प्रीतः स खेचरः // तया सह विमानेनाययौ केवलिसन्निधौ // चरित्र // 9 // तां स्फुरत्तिलकं भाले, विभ्राणां वीक्ष्य भूपभूः / तत्क्षणं लक्षयामास, पुरापि स्वप्नवीक्षिताम् / / तत्कालजातालंकारभासुरं वीक्ष्य सापि तम् / / स्वप्नदृष्टं विचिंत्य द्राग, हर्षादुत्पुलकाभवत् / क्षणात् करतले तस्या, श्रृंगझंकारहारिणी / / वरमाला समायाता, सभ्यलोकविलोकिता // | सा सनूपुरझंकारा, मामा कुर्वति खेचरे / / सोत्कंठे कंठपीठेऽस्य, वरमालामलूलुउत्। 178 * जाते जयजयारावे, दुंदुभिध्वनिमिश्रिते || सभ्याः केवलिनं प्रोचुः, किमिदं कौतुकं महत् / 15 मुनिः पूर्वभवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे / / श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, कनकामसुतोऽभवत् // / पूजायां क्रियमाणायां, बांधवैः सह संमदात्॥ जिनस्याभरणारोपो, विहितोऽनेन पूजने // तेन पुण्यप्रभावेण, जातोऽयं कुलभूषणः // विद्यादेवतयाकारि शरीराभरणादिकम्।।१८२॥ कस्मादमरसुंदर्यास्तिलकं दृश्यतेऽलिके // इति पृष्टो मुनिः प्राह, केवलज्ञानभास्करः // // 9 // भरते पुरि चंपायां, दत्तस्य श्रेष्ठिनः प्रिया // श्रीमतीनाम संजज्ञे, पुण्यकर्मणि तत्परा // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | नलस्य दमयंत्याश्च, चरित्रं शुश्रुवेऽन्यदा // वीरमत्या जिनेंद्रेभ्यस्तिलकान्युपनिन्यिरे // * पुण्येन तिलकं तेन, दमयंत्या भवेऽभवत् / / श्रुत्वेति नव्यतीर्थेषु, सार्हद्भयस्तिलकं ददौ॥ चरित्र // 9 // समये शुभभावेन, मृत्वा सामरसुंदरी // संजाता तिलकं तेन, दृश्यतेऽस्या ललाटगम् // पुत्रं वीक्ष्य मुनिः स्माहादत्तकन्यासु नोचितम् / / मनो विधातुं दक्षाणां, परदारेषु किं पुनः इति श्रुत्वा पितुर्वाचं, खेचरस्तां ननाम सः // बंधोराशीर्वचस्तस्मै, ददौ सापि विचक्षणा | पुण्योपदेशं श्रुत्वा ते, तत्र भूचरखेचराः // समुत्थितास्ततश्चक्रुस्तयोः पाणिग्रहोत्सवम् // शृंगारतिलके दृष्ट्वा, ताभ्यां नाम्नी जना ददुः // एषः शृंगारसारोऽस्तु, परा तिलकसुंदरी अयं मुनिद्वयं नत्वा, चंद्रचूडसमर्पितम् // ययौ विमानमारूढः, सप्रियः ससुहृत् पुरम् // महोत्सवैर्गृहं गत्वा, पितृपादौ ननाम सः // समं तिलकपुंदर्या, मातुः क्रमयुगेऽपतत् // समये पृथिवीं तस्मै, दत्वा भूपः परासुताम् // प्राप निःपापधीरेष, तत्र राज्यमपालयत् // ॐ ज्ञानिनस्तत्र संप्राप्ताः, श्रीधर्मव्रतसूरयः // भूपः सपरिवारोऽपि, तान् गत्वा प्रणनाम सः // // 26 // / उपदेशमयं शांतरसोपेतं सुधामयम् / / पीत्वा वैराग्यमापन्नोऽभवत्संयमसादरः // 196 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir o मुनि नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसूनवे॥ प्रपाल्य संयमं प्रांते, सौधर्म त्रिदशोऽभवत् / गुण० चिरं सुखान्यसौ भुंक्त्वा, देवलोकात्ततश्चयुतः।। तनयस्तव संजातो, दशमोऽयं दशाननः चरित्र. // 9 // // इति आभरणपूजायां कनकामकथा / NOH044 कृतं पुष्पगृहं येन, जिनेंदोस्तत्फलं ब्रुवे // अस्त्यत्र भरतक्षेत्रे, पुरी पुष्पकरंडिनी // 199 // पुष्पकेतुर्महीपालस्तस्य पुष्पावती प्रिया॥ तत्र श्रेष्ठी गुणाधारो, लक्ष्मीसागरइत्यभूत् // तस्य लक्ष्मीवतीकांताकुक्षिकासारपंकजम् // हेमामात्माभवत्पुत्रो, लक्ष्मीचंद्र इति स्मृतः // शिवकांतामसौ कन्यां, यौवने परिणीतवान्। लोलया गमयामास, समयं सममेतया // / भ्रमद्भमरझंकारं, किल सौरभ्यसुंदरम् // विना पुष्पगृहं नासो, निद्रां प्राप कदाचन // सोऽन्येयुः पितुरादेशात, पुरं नागपुरावयम्॥ सार्थेन महता प्राप्तो, व्यवसायविशारदः // तत्रासौ भांडशालायां, स्थितो द्रव्यमुपार्जयन् // क्रीणानश्च ददानश्च, क्रयाणकशतान्यपि अन्यदासौ स्थितस्तत्र, नगरे पटहध्वनिम् // श्रुत्वा पप्रच्छ तत्रत्यं, कंचित् किमिह कारणम् // // 9 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir G / सोऽवादीनगर, नागपुरमेतन्मनोहरम् / / अत्र क्षेमंकरो राजा, बभूव क्षेमकारकः।।२०७॥ गुण० तस्य लीलावती कांता, निरपत्यावदुःखिता // सखिभिः सहितान्येयुः, नागानां भवनं गता चरित्र // 98 // तयोपयाचितं तेभ्यो, यदि पुत्रो भविष्यति॥ तदा दिनत्रयं पूजां, तत्चम्यां करिष्यते // जातोऽस्या दैवयोगन, ततः पुत्रः प्रियंकरः // नागैर्दत्त इतिख्यातेर्नागदत्ताभिधोऽभवत् // नागानां विहिता पूजा, लीलावत्या ततः परम् / / वर्षे वर्षे पुरेऽमुष्मिन् , जायते सा दिनत्रयमा 1 ताते परासौ संजाते, नागदत्तोऽभवन्नृपः॥ सांप्रतं सा समायाता, वर्तते नागपंचमी // * आरामिको यः पुष्पाणि, नागानां भवनं विना॥ अन्यत्र दास्यते तस्य, राजा दंडं करिष्यति / / श्रेष्ठी वा व्यवहारी वा, मंत्री वान्योऽपि यःक्वचित् / / अपि देवार्चनं कर्तु,कर्ता कुसुमसंग्रहम् / / / सर्वस्वं तस्य हत्वासौ, राजा दंडं करिष्यति // इत्येवं जायमानोऽयं, श्रूयते पटहध्वनिः // लक्ष्मीचंद्र इति श्रुत्वा, दथ्यौ पुष्पगृहं विना // निद्रा नैति मम क्यापि, कथं कार्य दिनत्रयम्। * अतीते यामिनीयामे, सचिंताचांतचेतसा॥ तले सुष्वाप न प्राप, प्रमीलालेशमप्यसौ॥ // 9 // चिंतया परितः पश्यन् , पाणिभ्यां पुष्पमंदिरम् ।।जातमेतत्स्वयं दृष्ट्वा हृष्टो निद्रामथाप सः / / -MARRHOID 40 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण // 99 // 00%A ततः प्रातः प्रबुद्धेऽस्मिन्, सुहृदोऽस्य समागताः॥ तद्वीक्ष्य पुष्पपासादं, वीक्षांचक्रुः परस्परम् / / | तथा दिने द्वितीयेऽपि, जाते पुष्पगृहे क्रमात् // तलारक्षेरप्ति ज्ञात्वा, विज्ञप्तमिति भूभुजे चरित्र | लक्ष्मीचंद्रो विना पुष्पगृहं न स्वपिति प्रभो॥ श्रुत्वेति कुपितो भूपस्तत्क्षणं तैस्तमानयत् // * त्वयाज्ञा खंडिता कस्मादिति प्रोक्तो महीभुजा।। स प्रोवाच न रामाज्ञां, खंडयामि कदाचन। / स्वरूपे पुष्पगेहस्य, प्रोक्ते सति महीपतिः।। ऊचे तर्हि त्वयागत्य, निद्रा कार्या ममालये॥ / तत्रापि तस्य सुप्तस्य, जाते पुष्पगृहे तथा। नृपतिविस्मितश्चित्ते, क्षमयामास तं प्रगे // * तेनापि सहितो भूपस्ततोऽगानागमंदिरम् / / पात्रावतीर्णा भूपं च, बभाषे नागदेवता॥ असौ ण्यप्रभावाढयः पुण्यात्तुष्यंति देवताः। अस्माकं कथमर्चा स्यादस्य पुष्पगृहं विना॥ / अथ हृष्टो महीनाथस्तेन साकं गृहं ययौ / सामान्यः स्थापितो मंत्री, कृत्याकृत्यविदाऽमुना. देवस्य प्रतिकूलत्वालांतः शूलरुजा नृपः॥ अंत्यावस्थां गतो लक्ष्मीचंद्रं प्रोवाच साश्रुदृक् / // 19 // मित्रत्वं तव देवेन, दूरितं दृश्यतेऽधुना / / धुनाति जीवितं वृक्षं, मृत्युमत्तगजेंद्रवत् // 229 // " सपोचे परमं मित्रं, जिनधर्मो धरापते // पतेन्न जीवो यं यानपात्रं लब्ध्वा भवांबुधौ // -460- - PO*-46 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरित्र. जननी जनको भ्राता, पुत्रो मित्रं कलत्रमितरो वा // गुण. दूरीभवंति निधने, शरणं जीवस्य जिनधर्मः // 231 // / 100 श्रद्दधाने नृपे जैनधर्म शर्मप्रदं नृणाम् / स पोचे शमपीयूषरससागरसन्निभम् // 232 / / चतुःशरणसर्वात्मक्षामणादिकमप्यसौ // नृपतिं कारयामास, सोऽपि तत्सत्यपद्यत // 233 // / भूपो मंत्रिणमाकार्य, बभाषे गुणरंजितं // अस्यैव मम दातव्यं, प्राज्यं राज्यमिदं त्वया // तेन प्रपन्ने भूपालः, समाहितमना भृशम् // नमस्कार स्मरन्मृत्वा, ब्रह्मलोके सुरोऽभवत्।। भूपकृत्ये कृते तत्र, लक्ष्मीचंद्रोऽभवन्नृपः॥ पुर्याः पुष्पकरंडिन्याः स कुटुंबमथानयत् // आकारणे समेतेऽस्य, गंतुकामः सुतांतिकम् // स लक्ष्मीसागरः पुष्पकेतुंभूपं व्यजिज्ञपत् / स्वामिनागपुरे स्वामी, मदीयस्तनुजोऽभवत् // गच्छाम्यहं तवाज्ञातः, सकुटुंबस्तदंतिके॥ र हसित्वा भूपतिः पश्यन् क्षत्रियाणां मुखंजगो॥ तुलादंडो वणिपाणी, भाति खगः पुनर्नहि अत्रैव तेन तिष्ठ त्वं, सोऽप्यत्रैव समेष्यति // तदाज्यमहमादास्ये, राज्यं योग्ये विराजते।। ||100 / // इत्युक्त्वा तं विसृज्यासौ, पुष्पकेतुर्नृपस्ततः॥ सेनया कंपयन् पृथ्वी, ययौ नागपुरं प्रति। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 लक्ष्मीचंदस्तमायांवं, श्रुत्वा सबलवाहनः॥ चचाल करवालेन, भूषयन दक्षिणं करम् // 242||3| गुण देशसंधी समागत्य, लक्ष्मीचंद्रे स्थिते सति / पुष्पकेतुरपि प्राप्तस्तत्र शत्रुत्वसादरः।।२४३॥ चरित्र / 101) / विधातुमक्षमे संधि, मंत्रिवर्गद्वयोर्बलम् // डुटोके द्वंद्वयुद्धाय, शस्त्रझात्कारकारकम् // 24 // त्रासिता वैरिभिः सर्वे, लक्ष्मीचंद्रभटाः क्षणात् / / क्षत्रियः क्षत्रियो नूनं, वणिगेव वणिक् पुनः।। एवं हसत्सु क्षत्रेषु, लक्ष्मीचंद्रे तदाकुले॥ नागदत्तामरोऽज्ञासीदवधिज्ञानवानिदम् // 24 // तत्कालं स समागत्य, मित्रसांनिध्य हेतवे // संक्रम्य तच्छरीरे च, शमयामास वैरिणः // शृगालीव वनाधीशानष्टवा रे कुत्र यास्यथ।मान्यां मन्यधमस्याज्ञां, यदि वोजीवितं प्रियम्।। इत्याकर्ण्य नभोवाचं, पुष्पकेतु दे॒पस्तदा / / प्राभृतेन समागत्य, लक्ष्मीचंद्रमतृतुषत् // 24 // लक्ष्मीचंद्रस्ततस्तेन, साकं नागपुरं ययौ // ज्ञापयित्वोपकारं च, नागदत्तामरो दिवम् // पकेतुं नृपं प्रेष्य, सकुटुंबो महीपतिः॥ स राज्यं पालयामास, तत्र नागपुरे पुरे // 25 // * इतश्च सिंहतिलकज्ञानवन्मुनिपुंगवाः // तत्रायाताः स तानतुं, जगाम सपरिच्छदः // 252 // 101 / श्रुत्वोपदेशं पप्रच्छ, निजराज्यस्य कारणम् / / मुनिः पूर्वभवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, हेमामाख्यः सुतोऽभवत् / / पूजायां क्रियमाणायां, पुष्पगेहमसौ व्यधाता गुण जिनपूजाप्रभावेण, प्राज्यं राज्यं तवाभवत् // पुष्पगेहविशेषात्ते, पुष्पगेहं तदाभवत् // चरित्र // 102 / / भूपः पूर्वभवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ // मुनि नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसूनवे // गृहीत्वा संयमं प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततच्युतः॥ एकादशोयमचलो, नाम्ना ते तनयोऽभवत् / / // इति पुष्पगेहपूजायां हेमाभकथा. // जिनाने विहितः पुष्पप्रकरो येन भावतः // फलं तस्याथ वक्ष्यामः, श्रूयतां भविका जनाः | विदर्भा नगरी रम्या, दक्षिणस्या विभूषणम् // नरसिंहनृपस्तत्र, सुत्रामसमविक्रमः // 260 // श्रीदेवीवल्लमा तस्य, शीलशृंगारशालिनी // मतिसाराभिधो मंत्री, मनोज्ञमतिवैभवः // / तस्य सत्यवती कांता, कांतभक्तिमनोहरा // हेमवर्णकजीवोऽथ, तस्याः कुक्षि समागतः॥ तदा च भूपतिः प्रोचे, सचिवं शुचिवाक् पटुः॥ तोल्यः पट्टगजेंद्रोऽयं, भारोऽस्य ज्ञायते यथा / क्षुद्रादेशममुं ज्ञात्वा, मंत्री मंदिरमागतः ॥अत्यंतं तं सचिंतं च, दृष्ट्या सत्यवती जगौ॥२३४॥ 102] For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir OHO हेतुना केन मलिनमाननं तव दृश्यते॥ राजादेशेऽमुना प्रोक्ते, सास्मित्वोचे नदुःकरमा गुण सरिति स्थाप्यते क्वापि, नौका निश्छिद्रतान्विता॥ यावती सा स्वभारेण, जलमध्ये निमज्जति चरित्र / 103 तावंती रेखया युक्तां, कृत्वात्रारोप्यते गजः॥ यावती तस्य भारेण, नीरं मज्जति सा ततः | तावंती रेखयित्वा तां, तत उत्तार्यते गजः // आगजारोपरेखं सा, वस्तुभिर्धियते तरी / 268 / ततस्तत्तोल्यते वस्तु, समस्तमपि कोविदैः॥ वस्तुनो यत्प्रमाणं स्याद्गजेंद्रस्यापि तद्भवेत् // - श्रुत्वेति सचिवो दथ्यौ, नास्या बुद्धिरियं कुतः॥ किंतु गर्भस्थितस्यैव, कस्यचिद्भाग्येशालिनः / / | चिंतयन्गित्यसौ गत्वा, नृपायादात्तदुत्तरम्॥ तद्बुद्धिरंजितः सोऽस्मै, विशेषान्ना नदोऽभवत्।। समये सुषुवे सूनुः, सत्यवत्या शुभे दिने॥ तस्मै सुमतिरित्याख्या, सचिवः सोत्सवं दधौ / वर्द्धमानः कलाशाली, क्रमात्तारुण्यमाप सः॥ अन्येभुजा मंत्री, समाहूयेति भाषितः / / * मम सौधकृते काष्टान्यटवीतः समानय // ओमित्युक्त्वा समेतोऽसौ, ज्ञात्वेदं तनुजो जगौ / स अहं गत्वा समानेष्ये, तानीत्युक्त्वा जगाम सः॥ सूत्रधारैः सहाठव्यां, संकुलायां लताद्रुमैः॥१०॥ लालहंतालमालूरखर्जूरार्जुनचंदनाः // यत्र वृक्षा असंख्याताः, पर्वताश्चापि सर्वतः / / 276 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्र छत्रसमं पृथ्व्याः , पुष्पतारकपूरितम् // विशाखासहितं सम्यग्, द्विजराजविराजितम् // गुण०नीलामललसच्छायं, दृढपूलं महत्तरं // प्रतिबिंबमिव व्योम्नस्तरुमेकं ददर्श सः // 278 // चरित्र 1104 // तं दृष्ट्वा दध्यिवानेष निरधिष्ठायको न हि // तरुर्गुरुतरस्तेन छेत्तुं नाईति सर्वथा॥२७९॥ तं च्छेत्तुमनसं सुत्रधारवर्ग निवार्य सः॥ धूपगंधार्चनं कृत्वा, तस्याधस्तानिविष्टवान्॥२८॥ प्रत्यक्षीभूय तं प्रोचे, व्यंतरस्तदधिष्ठितः // प्रीतोऽस्मि तव बुदयाहमुचितं तद्धरं ददे // / सर्वत्र चिंतितः पुष्पप्रकरो भवतः पुरः // भवितेत्येवमाकर्ण्य, तं प्रोचे सचिवांगजः॥२८॥ | वरो मेऽस्तु परं सौधे, भारपट्टाविलोक्यते॥अनेन शाखिना सोऽयं, समर्थः खलु जायते // | ततो मेऽनुमतिं देहि, यथा कार्य विधीयते॥स पाहच्छेदनेनालमन्येषामपि शाखिनाम् सौधयोग्यानि काष्ठानि, समेतानि पुरे तव // प्रातर्विदारको भूपमनुष्यस्ते समेष्यति // / एवमुक्त्वा गते तत्र, व्यंतरे मंत्रिनंदनः // पुरतः पुरतः प्राप्तमद्राक्षीन्मानुषं प्रगे // 28 // तेनापि हि तथैवोक्ते, मंत्रीसूः शिल्पिभिः सह ॥आयातः स्वपुरंतातस्तबुद्धया रंजितोभृशमा ||104 / / तदा नगर्यां चंपायां, नरेंद्रोऽभून्महाबलः / तस्य सागरमंत्रींदोः सुता कमललोचना // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण. है याचिता मतिसारेण, सेयं सुमतिमूनवे // यावत्प्रदीयते तेन, ताव त्यो जगाद तम्॥ | आयातो मथुरापुर्याः, सचिवो बुद्धिसागरः॥ स्वपुत्रजयचंद्रार्थे, पुत्रीं याचितुमेति वः // चास्त्र. / 1053/4 तदा तत्र समायातं, तं दृष्ट्वा सचिवाग्रणीः // आसनादिप्रदानेनावर्जयामास गौखम् // ? तेनापि हि तथैवोक्ते, सागरोऽथ व्यचिंतयत्॥ तुल्ययोर्वरयोरेषा, कस्मै कन्या प्रदीयते॥ विपृश्याहं करिष्यामीत्युक्त्वा तौ दौ विसृज्य सः॥चिंतयाचांतचित्तोऽस्थात्तं दृष्ट्वा च सुता जगौ। खिद्यसेऽद्य कथं तात, स्वरूपे कथितेऽमुना / / साप्रोचे वरनामांक, क्रियतां पत्रिकाद्वयम् // कुलदेवीकरे न्यस्य, योग्यं देहीति भाषकः।। अन्यया कन्यया पत्रीमेकमादाय निर्णयः॥ # एवमेव कृते तेन, प्राप्ता सुमतिपत्रिका // प्रच्छन्नं सा ततस्तस्मै, प्रेषील्लेखं स्वपाणिना // - नूनं मयाहतोऽसि तं, स्वबुद्धया बुद्धिसागर॥ मंत्री त्वया तथा वार्यो, यथा कोपं करोति ना वाचयित्वेति तं लेखं, वलमानं लिलेख सः / / सापि तं वाचयामास, समेतं भृत्यपाणिना M आगतो भवतीलेखो, भव्यमेव भविष्यति / अस्मदागमने सोप्याहातव्यो बुद्धिसागरः // 10 // तथा बुद्धिंविधास्यामि, यथा कोऽपि न रोक्ष्यति / तथैव कारयामास, वाचयित्वेति तं मुदा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / विवाहसमये तत्र, मिलिते स्वजनेऽखिले॥ समेते सहपुत्रेण, सचिवे बुद्धिसागरे // | गुण, मतिसारे निविष्टे च, जायमाने महोत्सवे // सुमतिसुहृदा ज्ञातसंकेतेनेत्यभाषत॥३०॥ चरित्र |10|| मिलिताः स्वजना एते, गौरवार्हा गुगान्विताः॥ स्वयमेवागतैः पुष्पैः, कुरुवं प्रकरानिह // 5 सर्वेषु वीक्षमाणेषु, वक्रमेव परस्परम् // जयचंद्रमसं प्रोचे, बुद्धिसागरनंदनम् // 304 // कुरु त्वं यदि शक्तिस्ते, सुमतिः कुरुतेऽन्यथा / / यः करिष्यति तत्कार्य, स कन्यांपरिणेष्यति। 16 एवं परैरपि प्रोक्ते, सुमतिस्तत्क्षणादपि // तं वृक्षव्यंतरं स्मृत्वा, पुष्पाणां प्रकरान् व्यधात् // | बाला सोत्कंठिता मालामस्य कंठे न्यवेशयत् / / पाणिग्रहोत्सपश्चक्रे, पितृभ्यामे तयोस्ततः॥ | तृतीये दिवसेऽकस्मादपुत्रस्तत्र भूपतिः॥ केनापि घातकेनाश, प्रविश्य निशि संहतः // अधिवास्य प्रगे पंचदिव्यानि नगरेऽखिले // मुमोच मंत्रियोग्याय, राज्यं दत्तेति भाषकः तानि तत्र समेतानि, सुमतिर्यत्र वर्त्तते // यो हेपारवं चक्रे, गजो गर्जितमूर्जितम् // ||106 // विस्तीर्ण शिरसि छत्रं, सुमतेः स्वयमेव तत् // रेजाते परितस्तं चानिते चारुचामरे // | राजशृंगारमादाय, गजारुढो जनैर्वृतः / / सुमतिर्भूपतिर्मयादित्युक्तः स सभां ययौ // 312 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न्यायेन पालयामास, स्वजनानंददायकः // राज्यं हरिखि स्वर्गे, सुपतिर्भूमिनायकः // गुण1 अन्यदा ज्ञानिनस्तत्र, महेंद्रप्रभुसूरयः। समायाताः स तानत्वाऽश्री.द्धर्मोपदेशनम् // चरित्र. 107 श्रुत्वोपदेशं पप्रच्छ, निजराज्यस्य कारणम् // मूरिः पूर्वभवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // / श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, हेमवर्णः सुतोऽभवत् // असौ जिनेंद्रपूजायां, पुष्पाणां प्रकरं व्यधात्।।। 18 जिनपूजाप्रभावेण, प्राज्यं राज्यमिदं तव // पुष्पप्रकरतः पुष्पप्रकरस्ते तदाभवत् // 317 // | भूपः पूर्वभवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिसंनिधौ // A मुनिं नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसूनवे॥ गृहीत्वा संयमं प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत्।। चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततश्युतः // दादशो बहुबुद्धिस्ते, तनयो भूपतेऽभवता / / वस्त्रादिपूजनचतुष्कफलानि पुण्यमाणिक्यसुंदररुचिर्नृपतेः पुरस्तात् // उक्त्वा विशेषसहितानि तदाक्षतादिपूजाफलानि गदितुं स पुनः प्रवृत्तः॥३९१॥ श्री अंचलगच्छेश श्री माणिक्यसूरिविरचिते पूजाधिकारे गुणवर्मचरित्रे // 107 महाध्वजाभरणारोपपुष्पगृहपुष्पप्रकरपूजाफल वर्णनो नाम चतुर्थः सर्गः For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // स्वर्ग 5 मो. // एण चरित्र : / 108 अक्षतार्चा कृता येन, मंगलाष्टकपूर्वकम् // फलं तस्याश्च वक्ष्यामः, श्रूयतां भविका जनाः। पुरी शुभंकरा तत्र, हरिर्नाम्ना महीपतिः // सौभाग्यदेवी देवी च, देवीवद्युतिशालिनी // | तनुजो धनदत्तस्य, श्रीदस्तत्कुक्षिमागतः॥ समये स तया सूरः पिता चक्रे महोत्सवम् // || कनकध्वज इत्याख्या, कृता तस्य महीभुजा। वर्द्धमानः कलाशाली,क्रमात्तारुण्यमाप सः / / अन्येयुः सहितो मित्रैर्वने क्रीडनसौ ययौ // जिनेंद्रभवनं नेत्रद्रयपीतिकरं नृणाम् // 5 // नत्वा जिनपतिं तत्र, वीक्षमाणो विचित्रताम् // नंतुकाममसौ देवान प्राप्तं स्त्रीवर्गमैक्षत // | तन्मध्ये कन्यका कापि, करस्थितशुकाननम् // पश्यंती तत्र संप्राप्ता, लसल्लावण्यशालिनी अक्षतान ढोकयंती सा, जिनस्य पुरतः स्वयम् // तेनैव ढोकयामास, शुकेनापि विवेकिना / / अक्षतांतः शुकोवक्त्रेणालिखन्मंगलाष्टकम् / ततस्तया समं प्रीत्याऽपाठीज्जिनपतिस्तुतिम्।।।१०८। | अक्षतं यानपात्रं त्वं, वर्तसे भववारिधौ // अक्षतं शिवसौख्यं नस्त्वं देहि परमेश्वर॥ 10 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एतचित्रकरं दृष्ट्वा, विस्मितः कनकध्वजः। मित्रेण प्रच्छयामास, कांचित्तन्मध्यगां स्त्रियम् || गुण० / सा प्रोचे जिनदत्तस्य, सुतेयं कमलाभिधा // जातायां मंदिरे यस्यां, पितुर्धनमभूधनम् | चरित्र |109 // / अष्टवर्षप्रमाणाया, अस्याः करतले स्वयम् / / समागत्य शुकस्तस्थौ, कमले राजहंसवत्॥ एषा क्षणमपि प्रायो, न तिष्ठति शुकं विना // अत्यजंती मनोरंगादंगाज्जीवमिवान्वहम् / पाणिग्रहणयोग्यापि, वरमेपा न वांछति // इतश्च तत्र संप्राप्ता, श्रीमंतो धर्मसूरयः // 15 // M करे न्यस्तशुकामेतां, सहादाय समागतः / श्रेष्ठी पप्रच्छ तानत्वा, केनेयं स्नेहभा. शुकोही ते प्रोचुर्मगधाभिख्ये, देशे संग्रामनामनि // ग्रामे श्यामाकनामाभूतकृषिकर्मणि जीवकः // वर्षाकालेऽमुना शालिक्षेत्रं विहितमादरात् / आनिन्ये सोमया पत्न्या, सहासौ शालितंदुलाना क्षेत्रमार्गे स्थितं जैनमंदिरं वीक्षणेच्छया // सोमा समागता शीर्षे, वहंती शालितंदुलान् // / अनत्वा जिनमुत्तस्थौ, तीर्थवंदारुसाधुना // बभाषे सा महाभागे, पुण्यं किंचिद्विधीयते॥ र सा प्रोचे हेमुने नूनमस्माकं सुकृतं कुतः॥ नित्यं नवनवक्षेत्रकर्मकर्मठचेतसाम् // 21 // |||109 // मुनिःप्रोचेऽस्ति किं शीर्षे, सा जगौशालितंदुलाः।।सप्राह चेन्जिनाग्रेऽमी, टौक्यंते सुकृतं ततः। -*:08-4400204GDasex For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण साक्षतान ढोकयामास, जिनं नत्वा मुनेगिरा // नानाम्यहमकृत्वेदमित्यभिग्रहमग्रहीत् // वर्षाकाले महामेघे, भृशं वर्षति भूतले // भोजनं न तयाकारि, ह्यकृत्वाक्षतपूजनम् // 24 // चरित्र दिनत्रयं महावृष्टि, कारंकारं घने स्थिते / कृतोपवासत्रितया, प्रासादं प्रति साचलत् // अंतरा दुस्तरानद्या, प्राप्ते पूरेऽपि माविशत्॥स्तो जलमिति ज्ञात्वा, पयसाच प्रवाहिता // | अक्षतान ढोकयाम्येषा, जिनाग्रेऽहं कथंचन // चिंतयंतीति सा मृत्वाधुना तव सुताभवत् / एतस्याः समये भर्ता, मृत्वा सोऽयं शुकोऽभवत्॥अन्योन्यमनयोः स्नेहस्तेनायं दृश्यतेऽधिका - जिनस्याक्षतपूजातः, सेयं तव सुताभवत् // तिर्यग्योनी पुनर्जज्ञे, तदर्ता पुण्यवर्जितः // इति श्रुत्वा तयोर्जाता, जातिस्मृतिरथ क्षणात् // अपुण्यकारिणं स्वं च, स निनिंद शुकस्तदा।। नरो न रोचते कोऽपि, वरोऽस्या भविता न वा // श्रेष्ठिनोक्ते गुरुप्रोचे, शुको भर्त्ताभविष्यति / जने हसति सर्वस्मिन्, मूरिः प्रोचेऽत्र पत्तने // वत्सरांते शुको मृत्वा, भावी धनपतेः सुतः॥ एषापि पंचवर्षाते, निश्चितं मृत्युमाप्स्यति // तवैव भविता पुत्री, नाम्ना कनकसुंदरी // / एतयोस्तारतारुण्यमाप्तयोः करपीडनम् // भविताक्षतपूजातः, सुखमप्यक्षतं तयोः // 34 // 110 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | स्वसुताशुकयोवृत्तं, श्रुत्वेति मुनिपुंगवात्॥ श्रेष्टी भक्त्या च तं नवा, सपुत्रीको गृहं ययौ / गुण० जिनपूजा परं पुण्यमिति निश्चित्य मानसे / कुरुते कारयत्येनं, शुकं साक्षतद्वौकनम्।।३६॥ चरित्र. / 111 // इति श्रुत्वा तयोवृत्तं, कुमारः कनकध्वजः / / अक्षता कृते भावं, विशेषेण बभार सः // | तदा पारापतः कोऽपि, तत्रैव जिनमंदिरे // लेख मुमोच तत्पाणौ, सोऽपि वाचयतिस्म तम् / 1) स्वस्तिलंकामहादीपाद्विभीषणपुरादतः // रामदेवाभिधः श्रेष्ठी कुमारं कनकध्वजम् // 39 // / वदत्यदस्त्वयागम्यं, मत्पुत्रीकरपीडने // वाचयित्वेति तं लेखं दधौ चित्रं नरेंद्रभूः // 40 // x यावत्पश्यति तं पारापतं भूपतिनंदनः // तावता नररूपेण, स्कंधमारोप्य सोऽचलत् / / 4 / / लंकाद्वीपे स तं नीत्वा, रामदेवगृहेऽमुचत् // रम्यरामाजनोलूलन्मृदंगवनिसुंदरे // 4 // | तत्राष्टौ कन्यकाः सारशृंगाराः पूर्वसज्जिताः // परिणिन्ये प्रमोदेन, पूरिताःस महोत्सवात् / जाते विवाहे जामाता, श्वशुर माह कौतुकम् // किमिदं स जगावेतद्विभीषणपुरे पुरम् / श्रेष्ठी च रामदेवोऽहमिमा अष्टौ सुता मम॥ भार्याचतुष्कसंजाताः, समं संजातयौवनाः // 11 // निमित्तज्ञो जगौ सोमो, मया पृष्टस्तवांगजाः // कनकध्वजभूपस्य, भविष्यंति सुवलभाः॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कामिदेवाभिधो यक्षस्ततः संसेवितो मया // तेनानीय प्रदत्तोऽसि, कृतोऽयं च महोत्सवः / / गुण० इति श्रुत्वा स्थितस्ताभिर्भुजानः सौख्यमद्भुतम् / / विसस्मार निजं स्थानमप्यसौ तद्रिमोहितः चरित्र / 112|| प्राप्तेषु यानपात्रेषु, निजस्थानागतानरान् // विलोक्योत्कंठितो जातः, स्वपित्रोःमंगमाय सः / 3 श्वशुरोज्ञातवृत्तांतः, कालक्षेपमसासहिः।। यक्षेण स क्षणानीतस्ताभिः सह निजं पुरम् // 40 // 19 अकस्मादागतं गेहे, प्रियाभिः परिवारितम् // तं प्रेक्ष्य पितरौ प्रीति, परमां प्रापतुःप्रगे // 41 // / अथो हरिर्महीपालस्तस्मै राज्यं प्रदाय सः॥ कृतप्रांताईपुण्येन, परलोकमसाधयत् // 42 // | कनकध्वजभूपालः, पालयन् वैभवं निजम् / समयं गमयामास, ताभिःसह सुधामयम् // / अन्यदासौ बहिर्गच्छन्, केनापि प्रीतिशालिना // पुंसा प्रोचे समागत्य, त्वयाहमुपलक्षितः शुकजीवोऽस्म्यहं प्राप्तजातिस्मरनिजप्रियः // श्रुत्वेति पूर्ववृत्तांतं, स्मृत्वा प्रीतिमवाप सः | तं कृत्वाऽसौ हयारूद, सह नीत्वा बहिर्ययो / तावता तत्र संप्राप्ता, मुनिशेखरसूरयः॥५६॥ ज्ञानिनस्तानृपो नत्वापृच्छत्पूर्वभवं निजम् // निःशेष प्रोचिरे ते च, पुरतस्तस्य विस्तराता 112 / हस्तिनागपुरे श्रेष्ठी, धनदत्ताभिधोऽभवत् // श्रीदनामा सुतस्तस्य, विदधे जिनपूजनम् // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | अक्षतार्चा कृता पूर्व, मंगलाष्टकपूर्वकम् / / अक्षतं राज्यमेताभिः, सह प्राप्तं त्वया ततः // गुण० नृपः पूर्वभवं श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे मुनिमंनिधौ।।६०॥ चरित्र. / 1130/- मुनि नत्वा गृहं गत्वा, मित्रं धनपतेः सुतम् // कृत्वामौ पुण्यकर्माणि, कुर्वन् राज्यमपालयत् / मित्रस्य शुकजीवत्वाच्छुकनाम ददौ नृपः॥ लोकैरपि तथा ख्यातो, दक्षोऽयं पुण्यकर्मणि / | समये स्वस्य पुत्राय, राज्यं दत्वा निजं नृपः॥ तेषामेव गुरूणां स, पार्श्व संयममाददे // प्रपाल्य निरतीचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् // विहितानशनःप्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् // | चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततश्युतः // भूपते तनयस्तेऽभूत्तारणाख्यः त्रयोदशः।। // इति अक्षतमंगलपूजायां श्रीदकथा. // धूपपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते / / अत्रास्ति भरतक्षेत्रे, ताम्रलिप्त्याख्यया पुरी // 1 | सिंहो महीपतिस्तत्र, सिंहवद्धिक्रमास्पदम् // देवी दुर्लभदेवी च, देवीव दुर्लभा परैः॥६॥ 113 // सुबुद्धि-सचिवस्तस्य बुद्धिहंसीसरोवरम् // हंसी नाम्ना प्रिया तस्य, प्रशस्यगुणशालिनी॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 -44 LOT श्रीदत्तो धनदत्तस्य, सुतस्तत्कुक्षिमागतः॥ समये स तयासूतः, पिता चक्रे महोत्सवम् // गुण अस्य प्रायः सुगंधोऽस्ति, कायः कमलवकिल // गंधराज इतिप्रीत्या, तस्य नाम ददौ पिता चरित्र / 114 कलाकलापकौशल्यशाली शालीनमानमः // लसल्लावण्यलीलावांस्तारं तारुण्य माप सः // | / अन्येयुः सहितो मित्रैः क्रीडार्थ स ययौ वनम् ॥सयौवनैर्वृतो लीलातल्येव वेष्टितः // तले तरोरशोकस्य, वीक्ष्य च प्रीतिकारकम् // मुनि नत्वा निविष्टोऽसौ, पुरतस्तस्य भक्तिभाक् / प्रभो वयसि तारुण्ये, कुतः संयममग्रहीः॥ इत्युक्ते गंधराजेन, मुनिः प्रोचे निशम्यताम् // वत्सदेशेऽस्ति विख्याता, कौशांबी नामतः पुरी // श्रेष्ठी च विजयस्तत्र, पवित्र पुण्यकर्मणा / विजयश्रीरिति ख्याता, प्रिया तस्य क्रियान्विता // तयोः पद्माकरः पुत्रः, पद्माकर इवामलः || ॐ पद्मश्रीरिति नाम्नास्य, वधूर्विधुसमानना॥ यां विना सैष शिश्राय, स्वप्नेऽपिन परां स्त्रियम् || P एकांते कांतया साकं, तयासौ कांतयानिशम् // नानाक्रीडाभिरक्रीडद्वनेषु भवनेषु च // / अन्येारुत्थिता प्रातमत्तेवभ्रांतलोचना // यत्तज्जजल्प सा भूमौ, लुलोठ च रुरोद च // 14 // क्षणं गति क्षणं हास्यं, क्षणं नृत्यं चकार सा // न चकार परं लज्जां, न वस्त्रस्यापि संवरम् / / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वधूमेवविधां वीक्ष्य, वल्लभः श्वशुरोऽपि च // दावपि व्याकुलौ जातो, चक्रतुस्तत्प्रतिक्रियाम् / गुण०|| मिलिता मिषजोऽनेके, मांत्रिका जगदुश्च ते॥ रोगवेतालशाकिन्यादिकान् दोषान् पृथक् पृथका चरित्र / 115 // तत्र रत्नाभिधो मंत्रवादी प्राह निशम्यताम् // दोषस्य निग्रहं कुर्वे, सर्वे तिष्ठिति चेजनाः।। अथासौ मंडलं कृत्वा, गुग्गुलोद्ग्राहपूर्वकम् / / निवेश्य तत्र तां मंत्रैरभाषयत मांत्रिकः // सा पोचे सैप भूतोऽस्मि, लग्नः कासारसंनिधौ // मोक्ष्यामि सर्वथा नेता, हनिष्याम्येव लीलया अस्या-शोणितमांसाभ्यामेकविंशतिराहुतीः / / यदि दास्यथ तज्जीवितव्यं भवति नान्यथा // अस्या यदि नदीयेत, तद्भर्तुश्च ददातु मे // इत्युक्त्वा विस्तो भूती, सचिंतोऽभूज्जनोऽखिला। कांतानुरागवान्पद्माकरो धैर्यधरोऽवदत् // किमिदं प्राणसन्यासमेतदर्थ करोम्यहम् // 8 // छेदं छेदं स्वमांसानां, खंडानि रुधिरेः समम् // एतस्यामेव पश्यंत्यां, जुहाव ज्वलितानले" अष्टावाहुतयो यावज्जाता भूतो जगाद तम् // तावदेतेन कार्येण, पूर्ण तुष्टोऽस्मि धैर्यतः / / | तदंगं पाणिना स्पृष्टवा, रूढयित्वा च तत्क्षणात् / / गते भूतेऽभवत्सापि, सज्जाहृष्टोजनोऽखिला।।१२५॥ यादृक् स्नेहःखकातायामस्य तादृक् परस्य न॥इति वार्ताजगत्यासीज्जनानांप्रीतिकारिणी For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्यदा सा गवाक्षस्था, पथि यांतं नृपांगजम् ॥ददर्श सोऽपि दैवात्तां, दृष्ट्वा जातोऽनुरागवाना गुण०/8/ सापि तं तादृशं वीक्ष्य, सानुरागां दृशं दधौ // सोऽक्षिभूभ्रमणात्तस्यै, संकेतस्थानमब्रवीत् // चरित्र. / 116 गते तस्मिन्नथोवाच, सा कांतं यदि कानने // गत्वा क्रीडाव आवां तत्पीतिर्मनसि जायते / / / अथ तौ काननं प्राप्तौ, यावत्तावन्नृपांगजः // वृक्षांतरे स्थितस्तत्र, यत्र पश्यति सा दृशा॥ | तं निरीक्ष्य गता, सद्योनिजकांतं विहाय सा // पद्माकरो विषादेन, पूरितः सदनं ययौ // आत्मीयो रूपकः कूटो, वादः किं वणिजा सह।। यदि साखलु तादृक्षा, कः कोपस्तन्नृपांगजे / | अमो हुते मया मांसशोणिते अपि यत्कृते॥ यदि साखलु तादृक्षा, धिक् कृतमा इमाः स्त्रियः Bइति वैराग्यतः सोऽहं, मातापित्रोरनुज्ञया / गृहीत्वा संयमं प्राप्तो, विहरन्नत्र संप्रति / / 10 // | श्रुत्वेति गंध राजोऽपि, विरक्तः स्त्रीषुतं मुनिम् // नत्वागत्य गृहं मातापितरौ स्वौ व्यजिज्ञपताल | गृहीष्याम्येव चारित्रमादेशो मम दीयताम् // तावूचतुर्न जीवद्यामनुज्ञा तव दीयते // ततः स्थितोऽसौ वैराग्यरंगेणैव निरंतरम् // तदा दुर्लभदेवीतः, सुतैका भूपतेरभूत् // 103|| || दृष्ट्ग तामतिदुर्गधां, दासिकास्तत्यजुर्वने // देव्यै तु कथयामास, मृता जातेतिताःपुनः॥ ना११६ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ततः षोडशवर्षेषु, व्यतीतेषु नृपोऽन्यदा // प्राप्तपूरा नदीं द्रष्टुं, ययौ कौतुकपूरितः // 10 // गुण आगच्छंती जले दृष्ट्वा, मंजूषां भूपतिस्ततः। आकृष्योद्घाटयामास, दृष्टा काचिदिहांगना चरित्र [117|| शयाना निंबपत्रेषु, मीलिताक्षी विचेतना // सर्पण दष्टा विज्ञाता, भूभुजा सांगलक्षणैः // मणिना बाहुरक्षस्य, तत्क्षणं निर्विषीकता। आनिन्ये सा गृहं राझ्या, मान्या लावण्यतोऽभवत न कस्या अपि देव्या मे, पुत्रः संप्रति वर्तते॥ तदिमां परिणेप्यामि, सुतार्थ शुभलक्षणाम् / / / इति ध्यात्वा नृपस्तस्याः पाणिग्रहणहेतवे // गणकैर्गणयामास, लग्नं शुद्धं विशेषतः // | इतश्च तत्र संप्राप्ताः श्रीपुण्यप्रभसूरयः // तया च पट्टदेव्या तान्, साकं नंतुं नृपो ययौ // | वंदित्वा तान्नृपोऽवादीदुपदेशः प्रदीयताम् // ते प्रोचुरुपदेशैः किं, पुरतस्ते प्रजापते // असंबद्धमिदं तेषां वाक्यं श्रुत्वा नृपो जगौ॥ कः प्रजापतिरत्रास्ति, ते प्रोचुःसत्वमेव हि // नृपेण कथमित्युक्ते, प्रोचुस्ते दक्षिणे स्थिता // एषा कन्या सलावण्या, ह्यंगजा तव भूपते। जन्मन्येतां सुदुर्गधां, तत्यजुर्दासिका वने // क्रमेण कर्मयोगेन, तस्या दुर्गधता गता // ||117/ , भारंडपक्षिणा नीता, देशं मालवनामकम् ॥आरामे कापि तेनासौ, जीवंतीति समुज्झिता॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्र खेटपुरं नाम पुरमस्ति महर्टिकम् // रामदेवस्ततश्चारामिकः स्वाराममाययौ // 197 // है। गुण पतिता वीक्षिता तेन, प्रागजन्मजनकेन सा॥ गृहीत्वा निजकांतायै, समर्प्य प्रतिपालिता।। चरित्र / 118 आराममध्ये लब्धेयमिति वत्सलचेतसा // आरामनंदिनी नाम, तस्यास्तेन विनिर्ममे // जाता षोडशवर्षीया, दृष्टा सर्पण चान्यदा / / मंत्रैः कृतप्रतीकाराप्यसाध्येति विनिश्चिता // मंजूषायां च निक्षिप्य, नदीपूरे प्रवाहिता / / आयातात्रगृहीतेयं, त्वया कौतुकतस्तदा // / पालिता फलराजीवदथ भोक्तुं त्वयेष्यते // अहो व्यामोहवृक्षाणामालवालायतेऽवलाः || M | श्रुत्वेति भूपतिः प्रोचे, घिधिर मे दुष्टचिंतितम्।। केनाप्यथो विवाद्यैतां,ग्रहीष्ये संयमं ध्रुवम् / इत्युक्त्वा भूपतिर्नवा, सूरींद्रान सपरिच्छदः॥ गृहमागत्य भुक्त्वास्या, योग्यं वरमचिंतयत् / | तस्यामेव त्रियामायां, जन्मक्षण इव क्षणात् // तस्या शरीरे दौर्गध्यदोषः पुनखाप सः // | बिभाते विविधैःद्यवचनैर्वसुधाधवः // औषधं कारयामास, तस्या, आरोग्यहेतवे / / 126 // भनीरुजातामालोक्य, नीरजाक्षां नरेश्वरः // चिंतातुरो गुरुं नंतुमगात्तुर्य दिने पुनः // तस्याः स्वरूपे भूपेन, कथिते सति सूरयः / / प्रोचिरे प्रायशः पुण्यांतरायाः प्रचुरा नृणाम्॥ ENCENT For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / भूपःप्रोचे प्रभो यो मे, संयमस्य मनोरथः।। ससेत्स्यति न वातस्या, नैरुज्यं वा भविष्यति / गुण नैरुज्यं च विना तस्या, विवाहेऽप्यकृते सति // संयमो नोचितो नूनं, हृदये रोचतेऽपि मे पचास्त्र. / 119/- प्रभो ज्ञानधनोऽसि त्वं, ज्ञानिनां नास्त्यगोचरं / मम संदेहसंदोहमपाकुरु कृपां कुरु।।१३।। सूरिः प्रोवाच भो भूप, भविता तव संयमः॥ भविष्यति च नैरुज्यं, तस्याः किंत्वस्ति कौतुकमा नरुज्यं न विना पाणिग्रहं तच्च विना न तत् ॥अन्योन्याश्रयदोषोऽत्र, कथमेकं निरस्यताम॥ एवंविधायास्तस्याः कः, परिणेता भविष्यति॥ विना पाणिग्रहं तस्यारारोग्यं जायते नहि / | श्रुत्वेति चिंतया चांतःचेतसि क्षितिपे भृशम् // तापं विभ्रति मुद्रिस्तं सिषेच वचोऽमृतैः।। यदा पाणिग्रहं तस्या, गंधराजः करिष्यति // तदा दुर्गधतां सर्वामपि सो हि हरिष्यति // श्रुत्वेति सदनं प्राप्तो नृपः सचिवमूचिवान् // कारय स्वसुतं पाणिग्रहे मे कन्यया सह // कृतांजलिरसो प्रोचे, सुतो वैराग्यवासितः // आस्तां विवाहो नारीणां, नामापि सहते नहि विसृज्य मंत्रिणं भूपः, स्वांते बुद्धिं व्यचिंतयत् // तत्पाहणं तेन, यथा स्याक्रियते तथा / / 119 // - प्रायो येनावना याति, गंधराजो दिनात्यये / निर्णीय स्थानके तत्र, भूपो गर्तामचीखनता। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | शिक्षयिस्वा सुतां देव्याः, सखीं चैकां नरेश्वरः।। प्रेषयामास गर्तायाः, संनिधौ वासरात्यये // गुण सुखेन मध्येग तां, निवेश्य प्रथमं सखी।आयांतं गंधराजंच, दृष्ट्वा पूत्कारमातनोत् // चरित्र |१२०भोलोका धावत क्षिप्रं, गंधराज त्वरं भज // गर्तायां पतिता बाला, कृष्यतां म्रियतेऽन्यथा | आकर्ण्य गंधराजस्तत्, कृपापूरितमानसः॥ धावित्वा दक्षिणं हस्तं, तामाक्रष्टुमदात्तदा / / / / करेण दक्षिणेनेयं, गृहीता यावतातदा // गतो दुर्गधतादोषस्तेनाकृष्य बहिष्कृता // बहिर्गता सा तत्पाणिं, मुमुचे मोचितापि न // शुभलग्ने गृहीतोऽयं, न मया मुच्यते करः / तत्क्षणं मिलिता लोकाः, परेऽपि स्वजना अपि // भूपतिस्तत्पिता चापि, सर्वेऽप्येवं बभाषिरे इयं बाला विशालाक्षी, वरं त्वामेव वांच्छति // ततो विवाहं मन्यस्व, काठिन्यं नोचितं तव / इत्यर्थितोऽसौ भूपेन, जनैस्तैः स्वजनैरपि॥ प्रशस्तांगीमुपायंस्त, तां महोत्सवपूर्वकम् // / तत्पाणिमोचने तस्मै, राज्यं राजा निजं ददौ / समं वरवधूभ्यां च, गुरुपादानवंदता॥१५०॥ अप्राक्षीच प्रभा कस्मात्पुत्र्या दुर्गधताभवत // प्रभावो गंधराजस्य, करे केन च कर्मणा / / 120/ | सूरिःप्राह पुरा हेमपुरे श्रेष्ठी शिवोऽभवत् / / कमलाविमलानाम्न्यो, द्वैभार्ये तस्य बंधुरे // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | पूजयंती जिनं प्रोचे, विमला कमलां प्रति // द्रुतमानीयतां धूपो, गंधपूजां करोम्यहम् // गुण सा पोचे कर्म कुर्वाणा, विना गंधं भवेन्न किम् // जिनेंद्रस्याप्यहो देहे, कापिदुर्गधतास्ति किमा चरित्र / 12 / / एवं हसंती संप्राप्तसाध्वीयुगलकेन सा // भाषिता हेमहाभागे, जिननिंदां करोषि किम् / / || सा मिथ्यादुःकृतं दत्वा, क्षमयामास तत्क्षणात // एवं द्वितीयवेलायामपि तस्यास्तथाभवत् / / तथाच मुदिता चित्ते, तस्मै साध्वीदयाय सा॥ दानं ददौ ततो भोगफलकर्मापि चार्जयत्।। H! मृत्वा सा ते सुता जाता, जिननिंदोत्थकर्मणा // प्राप्तो दुर्गधतादोषो, वारद्वयमभूत्ततः // | दानपुण्यप्रभावेण, राज्यसौख्यमुपेयुषी॥ आरामनंदिनी सेयं, क्रमात्स्वर्गमुपैष्यति // प्राच्यजन्मन्यसौ गंधराजः श्रीहस्तिनापुरे // श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, श्रीदत्ताख्यः सुताऽभवत् / * पूजायां क्रियमाणायां, धूपपूजामुना कृता // तेन पुण्यप्रभावेण, प्राज्यराज्यमभूदिदम् // धूपपूजाविशेषेण, प्रभावोऽस्य करेऽभवत् // यथा तव सुता नीरक, तथान्योपि भवत्यतः | श्रुत्वा पूर्वभवं गंधराजो जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादाहतं धर्म, प्रपेदे गुरुसंनिधौ // 13 // 921 // नृपः सिंहस्ततःपाधै, सूरेः संयममग्रहीत् / / गंधराजः पुरंगत्वा, निजराज्यमपालयत् // 4000-46044444 HAKOSS For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरित्र / अन्यदा तत्र संप्राप्ता, जयशेखरसूरयः॥ धर्मोपदेशं गत्वासौ, शुश्राव सपरिच्छदः // 15 // गुण० आरामनंदिनीकुक्षिजातं नंदननामकम् // राजा न्यस्य सुतं राज्ये, तेषां पार्श्वेऽग्रहीव्रतम् / 1221// प्रपाल्य निरतीचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् / विहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् / चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततश्चयुतः // तनयस्तव संजज्ञे, चक्रपाणिश्चतुर्दशः // // इति धूपपूजायां श्रीदत्तकथा समाप्ता. // गीतपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते // अस्ति जांबुनदं नाम, नगरं कुरुमंडले // F] महीपालाभिधो भूपस्तत्र रूपमनोभवः // तस्य रूपवती भार्या, नामतः परिणामतः // 8 तनुजो धनदत्तस्य, शंखस्तत्कुक्षिमागतः। समये स तयामूत, पिता चक्रे महोत्सवम् // र मकरध्वज इत्याख्या, प्रीत्या तस्मै ददौ पिता ॥गीतप्रिय इति पोचे, जनैर्गीतप्रियत्वतः // क्रमेण वर्द्धमानोऽसौ, कलाकौशल्यबंधुरः // लसल्लावण्यलीलावांस्तारं तारुण्यमाप सः // // 122 गीतं शुश्राव जैनेंद्र, श्रुत्वासौ मुदितोऽभवत् // गीतानियैश्च गीयंते, तेभ्यो दानं परं ददौ // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / जगी गीतं स्वयं सोऽपि, निजरंगतरंगितः // हंसकोकिलमुख्यानां, जयं कृत्वा स्वकंठतः॥ गुगल अभूत्यवीणो वीणाया, वादनेऽसौ विशेषतः॥अशेषतत्वं वर्णानामज्ञासीद्धMतोयधीः // चरित्र / 123| अन्येद्युः सहितो मित्रैर्गत्वासौ जिनमंदिरम् // जिनं नत्वा प्रमोदेन, पुरो गीतं जगौ प्रभोः // पुनः प्रभुमसौ नत्वा, यावनिजगृहं ययौ। तावदारामिको मालां, ढौकयामास तत्पुरः // चंचचंपकपुष्पाणां मालामालोक्य भूपभूः / इयुं मदनवीरेण, प्रहितं तामतर्कयत् // 179 // | भ्रामंभ्रामं च कुर्वाणं, झंकारान्मधुरस्वम् // हेमवर्णमसौ श्रृंगं, मालास्थितमलोकयत् // 180 // शुका निला सिता हंसाः, भ्रमराः कृष्णवर्णकाः॥ विपरीतमिदं किंतु, येनालिः कनकप्रभः॥ यादृगवर्णास्ति मालासो, तादृश्वर्णो मधुव्रतः॥ सदृशं सदृशेनेदं, संगतं शोभतेऽथवा // एवं तस्मिन्वंदत्येव, भंगो मर्त्यगिरा जगौ // माला गंधर्वमाला सा, वं चास्यां भ्रमरो भव - गंधर्वमाला वरांगी, त्वं चासि कनकप्रभः॥ उभयोर्जायतां योगो, जगदानंदहेतवे // 18 // तच्छ्रुत्वा भूपभूर्दथ्यो, जल्पंतो वीक्षिताः शुकाः॥भ्रमरान पुनः कापि, महदेव कुतूहलम् ||123 // गंधर्वमाला बाला का, कुतस्तस्याश्च संगमः // केवलं भ्रमरो नासो, खेचरो वामरोऽस्तु वा For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / एवमेव वदत्यस्मिन्नलिरूपं विहाय सः // तत्क्षणं खेचरो जज्ञे, सर्वालंकारसुंदरः // 18 // गुग०|| विलोक्य विलसत्कांति, तं चित्रादुभूपभूजगौ॥ कस्त्वं भो खेचरं मन्ये, स्पृशद्भिश्चरणैर्भुवम् चरित्र. / 124||| स प्राह शृणु वैताढये, पुरे संगीतनामनि / वर्तते गीतरत्याख्यः, खेचराणां शिरोमणिः // / / जयादेवीप्रसूतास्य, सुता कनकमालिका // मयोढा वेगवन्नाम्ना, मणिचूडस्य सूनुना // / तस्या एवानुजा संप्रत्यस्ति गीतरतेः सुता // बाला गंधर्वमालाख्या, शाला सर्वगुणावले // | वीणायां सुप्रवीणा सा, गीतागमे सुकौशला / / इति प्रतिज्ञामादत्त, सखीवृंदसमक्षकम् // विजेष्यते यो वीणायां, गीतगानेऽपि मां नरः // स खेचरःपरो वास्तु, वरणीयः स एव मे || तत्र विद्याधराः सर्वै, मिलिष्यति महाबलाः॥ अबलाया मनस्तस्या, नजाने को ग्रहीष्यति / अद्य स्वयंवरो भावी, सांप्रतं तत्र पत्तने॥अस्मिन्नवसरे सोऽहं, वेगवानागतो भुवम् // IR अदृश्य एव प्राप्तः प्राक्, पुरंतव मनोहरम् // भक्त्या प्रणतवानस्मि, जिनेंद्रान जिनमंदिरे।।। भवांस्तत्र मया दृष्टो, जितेंद्रमुपवीणयन्। त्वां वीक्ष्य तस्यायोग्योऽयमेवेति हृदि चिंतितम्।। / 124 / नत्वा जिनं त्वामायातमत्र मित्रत्वसस्पृहः / / उपकर्तुमनास्तस्या, विवाहेनाहमागतः // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृत्वा चंपकमालास्थं, हेमवर्ण मधुव्रतम् // औचित्यं च वचस्तस्या, योगतः कथितं मया / गुण त्वमागच्छ मया साकं, यथा नीत्वा क्षणादपि // तस्याःपाणिग्रहं तत्र, कारये सुहृदं निजमा चारित / 125 कारणं समवाप्यात्र, त्वद्गुणा एव बंधुराः // निमित्तं पुनरेषोस्मि, तद्विवाहविधावहम् // | मदीयकांतया तस्याः, स्वस्रा नैमित्तिकोत्तमः // पृष्टः प्रोवाच तद्योग्यं, वरं भूचरमेव हि।। एतेनाप्यनुमानेन, सा कांता ते भविष्यति // मा शंकिष्ठाः प्रयासस्य, वैफल्यं हृदये निजे 12 इत्युक्त्वा हंसरूपेण, तमारोप्य निजोपरि // असौ स्वयंवरं प्राप्तोऽस्थापयत्तं च विष्टरे // RI खेचरेषु समग्रेषु, विरेजे तत्र सोऽधिकम् / प्रस्फुरत्कांतिसंभारस्तारकेष्विव चंद्रमाः // | गंधर्वमाला विभ्राणा, वीणां वामकरे निजे // मालां च दक्षिणे पाणी, स्वयंवरमथाययौ // प्रतीहारी जगादेति, भो भोः शृणुत खेचराः॥ कन्या प्रतिज्ञाश्लोकं च, पपाठेति मनोज्ञवाका विजेष्यते यो वीणायां, गीतगानेऽपि मां नरः // खेचरो वा परोवास्तु, वरणीयः स एव मेरी / श्रुत्वेति शक्तिः कस्यापि, न तां जेतुं खगेष्वभूत् // नीचैर्मुखतया नीता, वधूत्वं ते स्वयं तया 12 मित्रेण प्रेरितःप्रोचै!तप्रियस्तदावदत् / / मुग्धेऽहं गर्वसर्वस्वं, क्षणादपनयामि ते // 10 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org वादयस्व स्वयं वीणां, गीतगानपुरःसरम् // ततोऽहमपि तत्कुर्वे, ज्ञायते कौशलं यथा // गुण० / मूर्त्तव भारती देवी, वीणामादाय सा ततः // जगौ गीतं गुणैः स्फीतं, रंजितः सकलो जनः चरित्र / 126 गीतप्रियोऽपि मित्रेण, दत्तां वीणामवादयत् / इयं गर्भवती वीणेत्युक्त्वा लोकमहासयत् // लोकै कथमिति प्रोक्ते, सपोचे कर्करोऽत्र यता।आदौ घृष्यति वीणाया दंडमध्ये स्थितोऽस्तिभोः | वीणां विदार्य तं वीक्ष्य, विस्मिते सकले जने // गंधर्वमाला वीणां स्वां, तस्य हस्ते समर्पयत् / / | तुंबुरुर्नारदो वासौ, पुंरूपा वा सरस्वती // तां वीणां वादयत्यस्मिन्न कस्तत्र व्यतर्कयत् // | गीते च गीते जैनेये, वर्ण्यभाषामनोहरे // गंधर्वमालया साकं, रंजिताः सर्वखेचराः // अचैतन्यं तथा तेषां, जज्ञे गीतं च शृण्वताम् // मित्रेग हारयामास, यथासौ तद्विभूषणम् / / कस्यचिकुंडलं कर्णाभुजात्कस्यचनांगदम् // मित्रेण कौतुकाज्जहे, करात्तस्याश्च कंकणमा। | गीते मुक्ते ततस्तेन, सर्वे जाताः सचेतनाः // रिक्तमाभरणैरंगं, दृष्ट्वान्योऽन्यं व्यलोकयन् / / स्मित्वा तद्भूषणे दत्ते, विचेतन्योक्तिपूर्वकम् // गंधर्वमाला तत्कंठे, वरमालां मुदाक्षिपत् // 11 // / तयोविवाहे संजाते, रूपलावण्यतुल्ययोः // सदृशं सदृशेनैव, भातीति जनता जगौ // DPORNCOME For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण. विसृष्टाः खेचराः सर्वे, ययुर्निजपुराण्यथ / / गंधर्वमालया रेमे, तत्रासौ सुस्थितश्चिरम् // / अन्येद्युः स तया साकं, खेचरैः परिवारितः // वर्य विमानमारूढो, जांबूनदपुरं ययौ // / 127/ तदैवालानमुन्मूल्य, पट्टहस्ती नरेशितुः / / मत्तश्चचाल विध्यादि, स्मृत्वा पर्वतसंनिभः // | तुरंगांत्रासयंस्तूर्ण, स्थान्विश्लथयन्नथ / / नाशयन्नरनारीश्च, स चक्रे व्याकुलं पुरम् // 22 // जगौ राजा गवाक्षस्थो, यो वशं कुरुते गजम् ।।ददे राज्यार्द्धमप्यस्मै, तत्पुनःश्रूयते न कै॥ गीतप्रियस्तदालोक्य, व्याकुलत्वं निजे पुरे // करेगुं तं वशं कर्तु, वीणां दधे निजे करे। गायति स्म तथा गीतं, वीणयासौ अनोहरम् // श्रुत्वा शांतो यथा हस्ती, हृष्टश्च सकलोजनः / ततो विशेषतस्तत्र, जायमाने महोत्सवे // गत्वा सभां पितुः पादौ, सननाम सखेचरः // नामग्राहं कुमारेण, ज्ञप्तान सह समागतान् // भूपतिः प्रीणयामास, प्रतिपत्त्या नभश्चरान्।। गंधर्वमालामालोक्य पतंती निजपादयोः // श्वश्रूः स्वचित्ते दृष्टा तां, प्रीणयामासचाशिषा / विसृज्य खेचरान् सर्वान्, न्यस्य राज्ये निजं सुतम् // स्वर्लोकं साधयामास, भूपतिर्धर्मकर्मणा - गंधर्वमालया साकं, रममाणः स्वतुल्यया // स्वराज्यं पालयामास, गीतप्रियनरेश्वरः॥२३॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण अन्येयुरागतास्तत्राभयसिंहेति सूरयः // तान्नंतु सपरिवारो, ययौ गीतप्रियो नृपः // 235 // नत्वा श्रुत्वोपदेशं च, पप्रच्छ स्वभवं नृपः॥ प्रोचिरे सूरयस्तं च, पुरतस्तस्य विस्तरात् // चरित्र / 128 हस्तिनागपुरे श्रेष्ठी, धनदत्ताभिधोऽभवत् // शंखनामा सुतस्तस्य, गीतपूजामसौ व्यधात्॥ जिनपूजाप्रभावेण, प्राज्यं राज्यमभूदिदम्।। गीतपूजाविशेषेण, गीतंसफलतामगात् // | गीताद्गंधर्वमालाप्ता गीतादश्यो गजः कृतः।।अनंतफलमित्याहुर्जिनगीतार्चनं जिनाः // | इंद गीतप्रियः श्रुत्वा, तदा जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादार्हतं धर्म, प्रपेदे गुरुसंनिधौ // MP मुनि नत्वा गृहं गत्वा, पालयित्वा चिरं भुवम् // पत्न्यां गंधर्वमालायां, पुत्रं सोममजीजनता पुनःप्राप्तेषु तेष्वेव, सूरींद्रेषु नरेश्वरः // श्रुत्वोपदेशं संप्राप, वैराग्यं पापनाशनम् // 242 // | ततो राज्यं स्वपुत्राय, महोत्सवपुरःसरम् // दत्वा गुरूणां पार्श्वेऽसौ, चारु चारित्रमग्रहीत् // प्रपाल्य निरतीचारं, सारं संयममुज्ज्वलम् // विहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत्।। | चिरं सुखान्यसो भुकृत्वा, देवलोकात्ततश्चयुतः // पूर्णः पंचदशोजातस्तनयस्तव भूपते // 7/128 / // इति गीतपूजायां शंखकथा. // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DEM4600 / वाद्यपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते // कमलापुरमित्याख्यं, पुरमस्ति मनोहरम् // गुण | कीर्तिचंद्रो नृपस्तत्र, कीर्तिनिर्जितचंद्रमाः॥ प्रिया यशोमती तस्य, यशस्तर्जितमल्लिका // चरित्र / 129|| तनुजो धनदत्तस्य, धर्मस्तत्कुक्षिमागतः // दोहदावसरे तस्या, दोहदोऽयमभूदिति // सा जानाति समारुह्य, मृगारातिं महोत्कटम् / अनाहतेषु वाद्येषु, नदत्सु व्योमवर्मनि।। सभूपा सपरिवारा, पौरलोकैर्विलोकिता // करोमि नगरे चैत्यपरिपाटीमहं मुदा // 25 // / अनेनापूर्यमाणेन, दोहदेन कृशामिमाम् // सखीभिः प्रश्नयामास, भूपतिस्तन्मनोरथम्।। / ज्ञाते दोहदवृत्तांते, भृकांतेन मनीषिणः // मंत्रिणः प्रोचिरे कश्चिदुपायः क्रियतां द्रुतम्॥ || येन प्रपूर्यते देव्या, दोहदो हृदये स्थितः // अन्यथा सा कथाशेषा दिनैःस्तोकैर्भविष्यति॥ मंत्रिणः कथयामासुरन्योपायो न कश्चन // दर्शयद्भिः परं लोभं, दाप्यते पट्टहं पुरे // 254 // - आद्ययामे नृपादेशात्प्रोचुः पट्टहदायकाः // स एकं लभते लक्षं, यः पूरयति दोहदम् // यामे द्वितीये घस्रस्य, प्रोचुः पट्टहदायकाः ॥ढे लक्षे लभते सैष, यः पूरपति दोहदम।। ||129 // एवं तृतीयतुर्यादियामेषु जगतीपतेः॥ आदेशादर्द्धयामासुर्लक्षमेकं नराः क्रमात् // 25 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षड्लक्ष्यामपि जातायां, निशीथसमये ततः // नास्पृशत्पटहं कोऽपि, देव्यासीदाकुला पुन गुण राज्या क्रमतः पुत्र्यां, प्रोक्तायां च नृपाज्ञया // अस्पृशत्पटहं विप्रः, क्षिप्रमागत्य कश्चना चरित्र. / 130 // विभातायां विभावर्या, ददृशुस्ते नरा द्विजम् // कुरूपं कुत्सितं कुब्ज, कृष्णवर्णच वामनम् / विज्ञातपटहस्पर्शवृत्तांतप्रीणिते नृपे // नृपस्य पुरुषा विप्रं, निन्यिरे नृपसंनिधौ // 231 // विषण्णचेताः सर्वोऽपि, तं विलोक्याभवज्जनः / / नृपतिस्तु विशेषेण, तेन देयास्य यत्सुतार मुंचतो गृह्णतो वापि, नाभवत्काचिदौचिती // वीक्ष्य ततो हृदः पूर्णान दत्ता चैव कन्यका / / विप्रः प्रोचे विलंबोऽत्र, राजन्मे जायते वृथा // कार्य कृतेन कार्यण, यदि तत्कारय द्रुतम् | | कुरूपत्वं ममालोक्य, बुध्दृया किं खिद्यसे मुधा // कुरूपो वा सुरूपोवा, कार्यकर्ता विलोक्यते / | राजादनादपि प्रायो, रिंगणं रूपतोऽधिकम् // किं क्रियेत पुनस्तेन, येन कार्यन सिद्धयति कोकिलानां स्वरो रूपं, नारीरूपं पतिव्रता // विद्यारूपं कुरूपाणां, क्षमारूपं तपस्विनाम् // E भूपतिर्मत्रिणं प्रोचे, तदिलंबक्रिया कुतः॥ अनेन कार्यतां कार्य, जीवतात् सा यथा तथा।||१३०। मंत्री प्राह प्रभो तथ्यं, परास्त विचारणा // कृते कार्ये प्रदातव्यमस्मै सर्व निवेदितम् // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - राज्यार्द्धदाने विप्राय, विलंबो न भवेत्तव // कन्या कुतस्तु दातव्या, तस्या यद्धर्तते न सा गुण० सचिंते राज्ञि कोऽप्यूचे, राज्ञी ते विजयास्ति या॥श्यामा नाम्नी सुता तस्याः, सैव तस्मै प्रदीयते चरित्र. / 131/- मंत्री प्रोचे त्वया रम्यमुक्तं सा चेन्न दास्यति // ततःकोऽपि बलात्कारो, भविता किं तया सहा ततो राजा स्ययं गत्वा, तामाचख्यौ विचक्षणः॥ प्रदीयतां निजा पुत्री, तस्मै विप्राय वल्लभ सा रुष्यंती नृपं प्रोचे, वरं कूपे जलेऽनले // वरं व्याघ्रमुखे पुत्री, क्षिपे नास्मै ददे पुनः // / सचिवास्तां प्रतिप्राहुराज्ञा राज्ञो विधीयते॥ अभीष्टान्यप्यन्यानि, स्वात्मतो वल्लभानि न।। त्यजेदेकं कुलस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् // ग्रामं जनपदस्याथै, स्वात्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् / | अपूर्णे दोहदे देवी, मृत्युं याति यशोमती // तस्यां मृतायां गर्भश्च, निश्चितं स विनश्यति / / ततः परं नृपस्यापि, नित्यं दुखार्त्तचेतसः // अरम्यं भावि चेत्तर्हि, कन्यायाः किं करिष्यसि / / ततो विमृश्यतां पुत्रीमस्मै देहि द्विजन्मने // राजापि प्रीणितस्तुभ्यं, दास्यते बहुमान्यतामा ततः सोवाच यत्कार्य, कथ्यते समये मया। स्वामिना तद्विधातव्यमिति मे प्रतिपद्यताम् // 131 // तेन प्रपन्ने तदत्ता, श्यामा श्यामाननाभवत्॥तामालोक्य नृपो दध्यावितो व्याघ्र इतस्तटी। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || सदाकारा सलावण्या, नेत्रनिर्जितपंकजा // सेयं चंद्रमुखी कन्या, कथं तस्मै प्रदीयते || गुण.IN/ कल्पवल्ली कथं देया, करभाय सुकोमला। करीर एव तद्योग्यः, कर्कशः कंटकीतनुः // चरित्र 1132 // तथाप्यहं कथं कुर्वे, प्रियागर्मोस्ति भाग्यवान् // विप्रोऽपि भाग्यवानस्ति, दोहदेनामुनाध्रुवम्।। ततो द्वयस्य रक्षार्थ, श्यामिका दीयते मया // अपत्यान्यपि दीयंतेऽतराले ज्वलितेऽनले // न पुत्री पितृपुण्या स्यादात्मपुण्यैव सा भवेत्॥ तत्का चिंतेत्यसौ ध्यात्वा, धरानाथःसभां ययौ / * भूपति मंत्रिणः प्राहः पुनर्विप्रं विलोक्यताम् / अत्र नास्ति कला काचिदाकारोऽपि वदत्यदः।। | आकारसदृशप्रज्ञः, प्रज्ञया सदृशागमः // आगमैः सदृशारंभः, प्रारंभसदृशोदयः // 28 // ततो विप्रं नृपः प्राह, सत्यं भो क्षिप्रमुच्यताम् / कलाप्राप्तिः कुतस्तेऽभूटोहदः पूर्यते यया // स प्रोवाच महाराज, पुरं राजपुरं परम् / / तत्रास्ति ब्राह्मणश्चैत्रस्तस्य जातावुभौ सुतौ॥२९॥ | एको भहिलनामासीदपरः स्कंदिल पुनः // भहिलोऽभूत्सलावण्यः, सदाकारो मनोरमः // | स मान्यः सर्वलोकोनां, जातः पितुरनंतरम् // स्कंदिलस्त्वीदृशाकारो, निर्गतो नगरादहिः / / 7 वाणारस्यामसौ गत्वाचले मृत्युकृतेऽचटत् // तत्र संन्यासिकेनोचे, केनाप्येष कृपालुना // अकालेऽपि त्वया मृत्युः, कथमेवं विधीयते // स प्रोचे निजदौस्थ्यं च, कुरूपत्वं च तत्पुरः। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org म प्राह भव सोत्साहः, कुरूपत्वेऽपि यत्तव॥राज्यं संपत्स्यते प्राज्य, रम्यारामा च निश्चितम् / गुण कलामेकां प्रदास्यामि, रंजितो भूपतिर्यया // अर्द्धराज्यं च कन्यां च, स्वयमेव प्रदास्यति // चरित्र / 133|| ततस्त्वया तया साकं, कार्य केलिकुतूहलम् ॥अधुना मृत्युना किं ते, गृह्यतांजन्मनः फलम् || F| आराध्यतां त्वया देवी, भवानी सिंहवाहना॥ सा तुष्टा सर्वकार्याणि, करिष्यति तवान्वहम।। | तदाराधनविद्या मे, दत्ता तेन मनीषिणा // साधयित्वा च तां सोऽहं, संप्राप्तोऽस्मि तवांतिकम् / नृपःप्रोचे ततः शीघं, कुरुष्व निजसज्जताम् // अथासावुत्थितोऽचालीसिंहानयनहेतवे॥ | लोकैः परिगतो गत्वा, वनांतर्मत्रपूर्वकम् / / पूर्वस्यां दिशि चिक्षेप, साक्षेपं सर्षपानमौ // कृतफाले मृगेंद्रेऽथ, समेते सति विभ्यतम् // लोकं निर्वार्य हस्तेन, तं दधे केसरेष्वसौ // तं मत्तं वृषवद्धृत्वा, भापयंतमपि प्रजाः // आनीय भूपतेर्दारे, स्थापयामास चंचलम् // | आनीयतामथो देवी, सिंहमारोप्यतामिति / / कथिते तेन सा प्रीता, प्राप्ता तत्र यशोमती॥ चंचलत्वं विशेषेण, तदा सिंहे प्रकुर्वति // भूपः प्रोवाच भो राज्ञी, त्वमेवारोपय स्वयम् // 133 // / श्रुत्वेत्यचिंतयचित्ते, जनः पश्यन् परस्परम् // वामनोऽ कथंकारं, राज्ञीमारोपयिष्यति।। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir el तामालिंग्य दृढं दोया, सिंहपृष्ठेऽधिरोपणम् // तस्य कारयतस्तूर्णमंगादामनता गता // गुण० लोके सविस्मये सिंहे, तामारोप्यसमाधिना।सोऽस्या पार्श्वस्थितोऽचालीत्,सभूपाश्च जनाःपुरः चरित्र. / 134|| अनाहतेषु वाद्येषु, श्रूयमाणेषु सर्वतः / देवी सिंहसमारूढा, पौरैर्गौरीव वीक्षिता / / 309 // प्रणम्य सर्वचैत्यानि, कृत्वा तत्र महोत्सवम् / / पुनर्मदिरमायाता, तेनैवोत्तारिता च सा // | तस्यां प्रीणितचित्तायां, संप्राप्तायां स्वमंदिरे // विप्रो व्यलोकयद्भूपं, राज्यकन्याभिलाषुका है। | तेन तन्निश्चये दत्ते, मृगेंद्रं स व्यसर्जयत् / स च विद्युल्लताकारं, दर्शयन्नभसा ययौ // 2 प्रदाय तस्मै राज्याई, नृपः श्यामामजूहवत् / / रुदत्यागाज्जनन्या सा, साकमाकुलिताशया || श्यामां श्यामामिव श्यामामश्यामोभूपतिरपि // तत्पावे स्थापयामास, विवाहावसरे स्वयम्।। स्वरूपस्य स्वरूपं यो, पश्यन्नस्याः करग्रहम् // करिष्यतिनलज्जास्य, परेभ्यः स्वात्मनोऽपि चा: एवं जल्पति सर्वस्मिँलोके शोकेन संकुले // करेण तस्य कन्यायाः, करोऽयोजि पुरोधसा | संजाते तत्करश्लेषे, तत्क्षणं तां कुरूपताम् // विहाय खेचरः सोऽभूदिव्यरूपो विभूषितः॥ हारकुंडलकाटीरकांतिमंडलमंडितः // आखंडल इवाखंडलावण्योऽसौ विरेजिवान् ॥३१वा / 134 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण तद्वक्त्रं पूर्णचंद्राभ, तदालोक्य हसन्मुखी // अराकापि बभौ राका, श्यामा श्यामापि कांतितः पद्मिनीवत्सुवक्रापि, प्रच्छन्नलोचनांचलैः // पायं पायं तदास्येंदु, श्यामा तृप्तिमवाप न // चरित्र / 135|| असौ भाग्यवती श्यामा, यस्याः सौभाग्यसुंदरः। पुरंदर इव प्रेयान्, प्राप्तोऽयं पुण्ययोगतः।। तज्जनन्यांच लोके च, जल्पत्येवं महीपतिः। श्यामाखेचरयोश्चक्रे, पाणिग्रहमहोत्सवम् // नृपो जामातरं प्रोचे, जातं किमिदमद्भुतम् / स जगावस्ति वैताढये, पुरं गगनवल्लभम् / / Mमणिकुंडलरत्नाभनामनौ तत्र खेचरौ // तौ प्रीत्या पर्वतं प्राप्तौ, हीमंतं सुहृदौ मिथः // | विद्यां साधयितुं तत्र, स्थितोऽमौ मणिकुंडलः // रत्नाभः प्रेषितस्तेनापहाराय निजे पुरे // ॐ सत्वरं स स्वमित्रार्थ, गच्छन् गगनवम॑ना॥ स्खलितचिंतयांचक्रे, कापापो यो रुणद्धि माम्।। | अधो गवेषयन्नेष, पश्यतिस्म तपस्विनम् // कुरूपंकुत्सितं कुब्ज, कृष्णवर्ण च वामनम् // / रूपं दृष्ट्वा हसित्वा च, तं वभाषे स खेचरः / / करोषि स्खलनं कस्मान्मित्रार्थे मम गच्छतः / / 15 नीलां कुरूपतामेतां, विलोक्यापि न लज्जसे॥धिक् तपस्ते मुधा क्लेशं, यो हित्वं सहसेऽनिशमा 135 // / इति तद्वचसा क्रुद्धःस तपस्वी शशाप तम् // रे खेचर दुराचार, भवान् भवतु मादृशः॥ 6- 09 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण | ततो निपतितो व्योग्नः, सोऽभूत्तादृश एव हि // पतित्वा पादयोस्तं च क्षमयामास खेचरः // / अज्ञानस्यापराधं मे, क्षमस्वै क्षमाधर // इत्युक्तः शांतहत् किंचित्तपस्वी प्रति तं जगौ // चरित्र / 136 / 4 / भूपप्रियापरिरंभे, वामनत्वं गमिष्यति // प्रयास्यति कुरूपत्वं, राजकन्याकरग्रहे // 333 // | श्रुत्वेति खेचरो दध्याविदं मे घटते नहि / / कुरूपता ततः सेयं, यावज्जीवं समागता // राज्ञः प्रियायाः कन्याया, दर्शनं मम दुर्लभम् / / संभवेताम् कुतमाहि, परीरंभकरग्रहौ // | परीरंभं परस्त्रीणां, वारयंतिस्वयं बुधाः // अयं तु कारयत्येतं, तत्त्वं तन्नावबुध्यते // एवं मह्यं कुरूपाय, दत्तेऽन्योऽपि न कन्यकाम् // कुतस्तद्राजकन्यायाः, पाणिग्रहणसंभवः॥ वीरेण कपिलादानं, कालान्महिषरक्षणम् // श्रेणिकाय यथा प्रोक्तं, तथानेन ममाप्यदः // | विधिद्वारा निषेधोऽयमनेन कथितो मम // भेरी , तरुच्छायायोगो रोगापहो यथा // इत्यादि ध्यायतस्तस्य, वने तत्रैव तस्थुषः / / गृहं साधितविद्योऽगात्तोन्मत्रं मणिकुंडलः // .. # अशा सुहृदं कापि, सर्वत्रासौ परिभ्रमन् // वने तत्रैव संप्राप, यत्र तिष्ठति तत्सखाः // 125 उपलक्ष्य निजं मित्रं, साश्रुदृक् मणिकंडलम् // सुहृत् कुरूपो वृत्तांतं, बभाषे शापमोक्षयोः॥ SV For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / श्रुत्वेति स परिभ्राम्यन्नाययौ नगरं तव // ज्ञात्वा दोहदवृत्तांतं, पुनर्मित्रांतिकं ययौ // गुण० वामनत्वकुरूपत्वमोक्षोऽत्रैव भविष्यति // इति तेन सामानीय, स्थापितोऽयं पुरे तव // चरित्र / 137 मणिकुंडलसांनिध्यात्, कार्य कृत्वा ततस्तव // वामनत्वकुरूपत्वमोक्षं पाप क्षणादसौ // सिंहारोपे प्रियायास्ते, वामनत्वमसौ जहौ // श्यामायाः करसंश्लेषे, कुरूपत्वं च सोऽमुचत् / सोऽहं रत्नाभनामास्मि, खेखरो निजरूपभाक् // भहिलस्कंदिलाद्यं यत्तत्सर्व कल्पितं ममा | उत्तमानां हि सांगत्यादुत्तमत्वं भजेन्नरः // सुवर्णचूर्णसंयोगालोहं भवति कांचनम् // // इत्युक्त्वा निजवृत्तांतं, प्रीणिताशेषसज्जनः // भूपतेराग्रहात्तस्थौ, कियत्कालं स खेचरः / / नुज्ञाप्य महीनाथमन्येयुः श्यामया सह // कृत्वा विमानमारुह्य, ययौ वैताढयपर्वतम् // संपूर्णदोहदा सेयमित्थं देवी यशोमती // समये सुषुवे पुत्रं, पवित्रद्युतिशालिनम्।।२५॥ अतुच्छमुत्सवं कृत्वा, सर्वत्र नगरे निजे // सिंहनाद इति प्रीत्या, तस्मै नाम ददौ पिता * कलाकलापकौशल्य-वल्लीवासमहीरुहः॥ लसल्लावण्यलीलावांस्तारं तारुण्यमाप सः // 35 // // 13 // / ततो विजयसेनाख्यो, विजयायाः सुतोऽभवत् // क्रमेण ववृधे सोऽपि, कलालावण्यबंधुरः / / For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | शत्रुमर्दन पस्य, द्वे कन्ये परिणायितौ // तौ द्वावपि मुदा क्रीडां, चक्रतुः स्वेच्छया सदा / गुण०। अन्येाभूपतिः प्राह, मंत्रिणं प्रति धर्मधीः // स्वराज्यं सिंहनादाय, दत्वा लास्यामि संयममा चरित्र. / 130 तद् ज्ञात्वा विजया दथ्यौ, प्रागदत्तोऽस्ति वरो मम॥ तेन स्वस्वामिना राज्यं, निजपुत्राय दापयो / श्रुतायामिति वार्तायां, भूपश्चित्ते व्यचिंतयत् // कुत्र स्थाने गृहीतोऽस्मि, तयाप्यवलयाधुना | इति चिंतयति मापे, वनपालो व्यजिज्ञपत् // समेताः कानने संति, प्रभो श्रीप्रभसूरयः // // श्रुत्वेति भूपतिः कांताद्वितीयेन समन्वितः॥ जगाम सपरिवारः, सूरीनंतुं महोत्सवात् // ITI तत्र गत्वा गुरुन्नत्वा, निविष्टो भूपतिः पुरः // शुभाव स्लेशनाशाय, पेशलां देशनामिति BI मित्रपुत्रकलत्राणि, विघटते क्षणात्पुनः॥ सम्यगाराधितो धर्मो, न जंतुषु कदाचन।।३६| / देशनामित्यसौ श्रुत्वा, प्रबुद्धहृदयोऽभवत् / / नृपः पुनर्गुरून्नत्वा, जगाम निजमंदिरम् // निविश्य मंत्रिभिावद्राज्यचिंतां करोत्यमौ // तावत्तत्र समायाता, विजया वीक्ष्यतेस्म मा / / मदीयमानसे योऽस्ति, मनोरथतरुर्महान् // तद्भजनार्थमायाता, विजया करिणीसमा // ||138) इति ध्यायति भूपे सा, निविष्टा भद्रविष्टरे। इत्येवं स्पष्टमाचष्ट, प्राणेश श्रुपतां वचः॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | यः पूर्व मे प्रदत्तोऽस्ति, वरं स्मरसि तं प्रिय // यदि स्मरसि तत्राथ, यद्याचे तत्प्रसादय / / गुण०।। ततस्तु भूपतिर्दध्यावनिष्टत्वेन तगिरि // विस्तरेण तया व्याप्तं, कार्यमेव न जल्प्यते // चरित्र / 139 / ततो हुमिति राज्ञोक्ते, सा जगाद ततः प्रिय ॥दापय संयमो मह्यं, गुरुपादांतिकेऽधुना 0 | श्रुत्वेति भूपतिःप्रीतः, प्रीताः सचिवपुंगवाः॥ सर्वेऽपि श्लाघयामासुः, साधुसाध्विति तां मुहुः / भूपः प्रोचे प्रियेऽगं ते, कोमलं कठिनं व्रतम् // कथमौचित्यमत्रास्ति, मोहोऽपि खलु दुस्त्यजा - साख्यद्गुरूपदेशेन, व्यामोहो मेऽव्यलीयत // पश्यामि सकलं विश्वं, ततोऽहं सदृशं दृशा पुनर्भूपो जगादैतां, कृत्वा राज्यस्य सूत्रणाम् // आददाने गुरोर्दीक्षां, मयि त्वमपि तां भजा। | परीक्षार्थ पुनः सोऽवक्, कस्मै राज्यं प्रदास्यते // सा जगौ तत्र जानामि, यद्योग्यं तत्समाचर र हृष्टो राजा विसृज्यैनां, सिंहनादाय मूनवे // राज्यं दत्वा तया साकं, गुरूपांतेऽग्रहीव्रतम् अथ राज्यं पपौ तत्र, सिंहनादो नरेश्वरः / / प्रतापाक्रांतदिक्चक्रः, शक्रोपमपराक्रमः॥३७॥ 15 अन्येद्युभूपतेस्तस्य, सभायामधितस्थुषः // रवेविमिवायासीदिमानं व्योममंडले // 377 / 6 / / 139 // उर्व पश्यत्सु लोकेषु, रत्नामः खेचरस्ततः // श्यामया सहितः प्रापदास्थानं तन्नरेशितुः // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | उत्थाय भूपतिः साकं सभया समया सह // तो द्रौ गौरवयामास, स्वसारं भगिनीपतिम् / / गुण स्वस्रा प्रीत्या प्रदत्ताशीस्तनिर्दिष्टः स विष्टरे // आसीनः खेचरं वीक्ष्य, पप्रच्छ कुशलं नृप वास्त्र / 140 तेनोक्ते कुशले स्वीये, राजाप्याचष्टतं निजम् ॥एवं परस्परं वार्तावल्लीपल्लवितानयोः // मापति खेचरः प्रोचे, त्वयि गर्भस्थिते मया // अनाहतानां वाद्यानां, मातुस्तेऽपूरि दोहद / भूपःप्रोचे महाविद्यां, यदनाहतवाद्यतां // स प्रोवाच मया दत्ता, तुभ्यं सा यदि रोचते // ततः पठिता सिद्धा सा, तेन दत्ता प्रमोदतः॥ आददे भूभुजा विद्योनवद्याश्चर्यकारिणी // अथागृह्णति भूपाले, स्थित्यर्थ खेचरोजगौ॥ मलयादि गमिष्यामि,तत्र मे सार्थिका गताः / है इत्युक्तिपूर्वमारुह्य, विमानं श्यामया सह // दृशोरदृश्यतां सोऽगात्, स्वप्नदृष्ट इव क्षणात् // ततः परं नरेंद्रस्यांगणे प्रोचैरखादयन् // अनाहतानि वाद्यानि, विशेषाच रणांगणे // 387 // ततो भीता नृपाःसर्वे, तस्याज्ञामेनिरे स्वयम्। तस्मै चददिरेदंडमखंडातिशालिने // | साम्राज्यं कुर्वतस्तस्य, प्रजापालनशालिनः॥ वत्सराणां सहस्राणि, नित्यं सुखमयान्यगुः // 140 / | अन्वेमुस्तत्र संप्रासा, मुनिचंद्राख्यसूरयः / / तान्नंतुं सपरीवारो, जगाम पृथिवीपतिः॥३९॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / नत्वा श्रुत्वोपदेशं च, पप्रच्छ स्वभवं गुरून् // ते प्रोचिरे पुरस्तस्य, नगरे हस्तिनापुरे // गुण० श्रेष्ठिनो धनदत्तस्य, धर्मनामाभवत्सुतः / / पूजायां क्रियमाणायां, वाद्यपूजा कृतामुना // चरित्र / 141/ जिनपूजाप्रभावेण, प्राज्यं राज्यमिदंतव // वाद्यार्चनविशेषात्ते, तदानाहतवाद्यता // 393 // / / इत्थं पूर्वभवं श्रुत्वा, भूपो जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादार्हतधर्म, प्रपेदे गुरुसन्निधौ।।३९४॥ गुरुन्नत्वा गृहं गत्वा, चिरं राज्यं स पालयन् / / तनुजं भानुनामानं, पट्टदेव्यामजीजनत् // समये सूनवे राज्यं, दत्वा वैराग्यसंभृतः // तेषामेव गुरूणांस, पार्श्वे संयममाददे // 396|| प्रपाल्य निरतीचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् // विहितानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् / / | चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलाकात्ततश्युतः / षोडशःसोमनामासौ, तनुजस्तवभूपते // // इति वाद्यपूजायां धर्मकथा // 1019-OKHO | नाट्यपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते // पुरं पृथ्वीप्रतिष्ठान, महाराष्ट्रेषु विद्यते // 14 // | बभूव जयदेवाख्यस्तत्र भूपतिकुंजरः / / करेणुक्यानिभातस्याभूज्जयश्रीः सुवल्लभा // 4006 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | तनुजो धनदत्तस्य, धीरस्तत्कुक्षिमागतः॥ समये स तया जातः, पिता चक्रे महोत्सवम् // गुण रत्नसिंहाभिधः सोऽयं, वर्द्धमानो दिने दिने / कलाकलापकौशल्यशाली तारुण्यमासदता। चरित्र. 142 | धरणीधरभूपस्य, धारिणीकुक्षिसंभवा // रमेति कन्या तेनोढा, रेमे च स तया सह // 1 | अन्यदा रत्नसिंहस्य, रत्नपल्यंकशायिनः // निशीथसमये निद्रा, नेत्रतो दूरतां गतो // | सोऽथ जागरितोऽश्रौषीन्नाटयध्वनिममंदधीः॥ मृदंगादिकवादित्रगीतगानमनोहरम् / / 405 // 4 रणन्नूपुरझंकारघर्घरीघोषबंधुरम् // उल्लसन्मेखलादामकिंकिणीकंकणक्वणम् // 406 // // | श्रुत्वेति दध्यिवानेष, स धन्यो यस्य कस्यचित् // पुरतो जायते नाट्यमिदमाश्चर्यकारणमा IS उत्थाय तल्पतः सैष, गवाक्षादिषु वीक्षणम् // चकार चतुरस्तेनाक्षिप्तचेताः पुनः पुनः // परं ददर्श न क्वापि, केवलं तद्ध्वनिःश्रुतः // असौ विचिंतयामास, किमिदं कौतुकं महत्।। / अश्वप्लुतं यथा जायमानं श्रूयेत निश्चयः॥ परं न शक्यते कर्तु कुतश्चिद्भवतीत्यदः // पाताले भूतले वापि, गिरौ वा गगनेऽपि वा। अन्यत्र वा भवेत्कापि, नृत्यमेतन्मनोहरम। 142 // | कर्णयोर्जायतेहों, नाट्यस्य वनितःश्रुतेः। तस्यावीक्षणतः किंतु, खिद्यते नेत्रयोयुगम् // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं चिंतयतस्तस्य, शृण्वतस्तद्वनि मुदा॥ यामो जगाम यामिन्याः, प्रिया तेनाथ बोधिता गुण०|बोधयित्वा सतां यावत, पृच्छतिस्म सविस्मयः।।तावन्नाव्यध्वनिस्तस्थौ,सापोचे बोधितास्मि किमा/चरित्र / 143 // स जगाद श्रुतं किंचित्त्या सापि पुनर्जगौ // श्रूयते भैखीशब्दः, शृगालानां वस्तथा // / स चकार ततो हास्यं, साप्रोचे किं स्मितं प्रिय // अयुक्तं किं मया प्रोक्तं, येनेत्थं हस्यते त्वया / | ततो नाट्यस्वरूपं स, जगाद दयितां प्रति // साप्रोचेऽहं न जानामि, प्रमीलायां किमप्यभूत् / / तस्यां संप्राप्तनिद्रायां, पुनः शुश्राव सध्वनिम् / तेन द्राग्बोधिता सातु, न शुश्राव किमप्यहो / / किं वृथेति तया प्रोक्ते, विलक्षः स्वपितिस्म सः // प्रातः प्रबुद्धः प्राभातकार्याणि विदधे सुधीः नाटयस्वरूपं पप्रच्छ, स स्वमित्राणि चैकशः // परं प्रोचे न केनापि, स्वल्पनिद्रावतापि हि // 8 एवं निशि निशि श्रुत्वा, तं नाटयध्वनिमद्भुतम् // मुहुर्मुहुश्च पृच्छंतं, दारामित्राणितं जगुः | तव भ्रांतिरियं काचिदथवा चित्तविभ्रमः // ततोऽसौ मौनमाधाय, स्थितः श्रृण्वत्यपि स्वयम् / / एकविशंतिघस्रेषु, व्यतीतेषु तथैव सः // नाट्यचिंतातुरो रात्रौ, तेज पटलमैक्षत / 423 / / ||143 // सोद्योते मंदिरे जाते, तेजसा तेन सोग्रतः // ददर्श दैवतं दिव्यमालालंकारसुंदरम् // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्मितो रत्नसिंहस्तं, विलोक्य रविभास्वरम् // वक्त्रपमं दधौ युक्तं, रात्रावपि विकस्वरम्।।। गुण० कोऽयं कथं कुतः प्राप्त, इति चिंतां वितन्वति // तस्मिन्नसौ जगादेति, श्रूयतां सुकृतालय चरित्र ।१४४|नाट्यस्य चिंता ते चित्ते, वरिवर्ति निरंतरम् / तत्स्वरूपमहं वक्तुं, प्राप्तोऽस्मि व्यंतरामरः॥ मूलनःशृणु संबंधमस्ति रत्नपुरं पुरम् // शंकरो भूपतिस्तत्राभवल्लोकप्रियंकरः // 428 // गौरी नाम्ना प्रिया चासीत्, गौरीवास्य मनोहरा // शेवधर्मंतयोश्चित्तं, वसतिस्म क्रमागते। / अन्यदा सुषुवे पुत्रपुत्रीयुग्मं नृपप्रिया // पद्मनामाभवत्पुत्रः पुत्री च कमलाभिधा // 430 // / तयोर्मासे व्यतिक्रांते, तत्रायातास्तपस्विनः॥ नंतुं जगाम भूपालः पालयन् स्वकुलक्रमम् / / | तेषां धर्मोपदेशंतु, श्रुत्वा वैराग्यकारणम् // मासजातं सुतं न्यस्य, राज्ये दीक्षामुपाददे // | बिभ्राणः स जटाभारं, भस्मोद्धूलितगात्रभाक् / / भूपो जगाम तैः साकमाश्रमं श्रमवर्जितः॥ पितुहं प्रति प्राज्यपरिवारसमन्विता // मिलनाय तदा राज्ञी, युगलेन सहाचलत् // 43 // * राज्यभारतौ संभा, निर्दभा मंत्रिणस्तदा // अनुगत्य कियद्राज्ञी, तद्विसृष्टाःपुरं ययुः // 5 // 144 / तस्यामटव्यां प्राप्तायां, भिल्लघाटी समापतत् // लोकेषु लुंटयमानेशु, प्रणष्टाःसुभटा अपि // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ततःपलायमानासा, गृहीत्वा तनयं गता // अत्यंतव्याकुलत्वेन, पुत्री तत्रैव विस्मृता // | गुण ततो गतेषु तेषु च, लोकास्ते मिलिताः पुनः॥ विस्मृतांशोधयामास, राज्ञी निजसुतांनरैः।। चरित्र. / 145|| अप्राप्य तां वने क्वापि, साजगाम पितुहम् / / मातापितृभ्यामानंदं दधाना तत्र तस्थुषी // | 8 तत्र स्थित्वा कियत्कालं, सा जगाम निजंपुरम् / / तनयं वर्द्धयामास, शैशवादपि भूपतिम् / / तत्र तारुण्यमारूढे, लसल्लावण्यशालिनि // तद्योग्यां कन्यकां राज्ञी, पप्रच्छ निजमंत्रिणः॥ / कोऽपि प्रोचे पुरे पद्मनाभाख्ये शिवभूपतेः॥ वनमालाभिधा कन्या, वर्तते रूपशालिनी / / तदैव प्रेषयामास, तदर्थे सा निजान्नरान् / / पद्मनाभपुरं गत्वा, ते शिवं तां ययाचिरे // तां प्राप्य लग्नं संस्थाप्य, ते निजं पुरमागताः। गौर्यै विज्ञापयामासुस्तत्सर्व मत्सरोज्झिताः // ततो विवाहसामग्री, जायतेस्म महोद्यमात् // तदा शंकरराजर्षिः सहसा पुरमाययौ // | तमायांतं वने दृष्ट्वा, मंत्रीस्वभवने स्थितः // वातायने निविष्टः स्वे, चिंतयामास चेतसि | हलकृष्टाममी भूमि, नाकामंति तपस्विनः // ततःकथमयं प्राप्तः, किंमनस्तपसःश्लथम् // ||145 // | तदा राज्यं परित्यज्य, रामस्येन वनं ययौ // विंध्यं गज इव स्मृत्वा, पुनरेषसमाययौ // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परीक्ष्येहं ततो गत्वा स्वरूपं स्वयमेव तत् // पश्चात्पद्मनरेंद्राय, कथयामि यथोचितम् // गुण०।। इति ध्यात्वा वनं गत्वा, मुनिं नत्वा निविष्टवान् / / प्रपच्छ कुशलं मंत्री, भक्त्या विरचितांजलि चरित्र. / 146|||| अस्माकं केवलाद्भाग्यायमत्र समागताः॥ केनापि हेतुना वेति, विज्ञप्तो मुनिरब्रवीत् // सर्वत्र कुशलप्रश्नः, प्रायशः क्रियते जनैः॥परं मंत्रिन् मनुष्याणां, कुशलत्वं विलोक्यते॥ ॐ पद्माकिं न समायातस्तन्माता किं समेति न॥तां वार्ता कथय क्षिप्रं, ब्रवीम्यागमकारणम् // 1) श्रुत्वेत्यचिंतयन्मंत्री, यन्मया चिंतितं पुरा // तदेव घटते सत्यं, हा त्वया किं कृतं विधे / / M विहिते कुशलप्रश्ने, कुशलत्वं विलोक्यते // इत्येषा कापि वक्रोक्तिविशेष वक्ति कंचन // | इति ध्यायन्नसौ शीघं, गत्वा गौर्यै न्यवेदयत् / / तत्क्षणंसापिसाशंकाकार्य पुत्रमभाषत // . हे वत्स जनकस्तेद्य, संप्राप्तो वर्तते वने // सोऽवादीत्तर्हि तं नंतुं, गच्छामि सपरिच्छदः॥ Rसा प्रोचे सत्स नो वेत्सि, स्वरूपं रूपमन्मथ / / स्थातव्यं तावदत्रैव, यावन्नाकारयाम्यहम्।। / इत्युक्त्वा तत्र संस्थाप्य, पद्म पद्मोपमानना // तेनैव मंत्रिणा साकं, सा गता मुनिसंनिधौ // 14 // वाताहतमिवादर्श, किंचिदिच्छायतां गता // वदनं तस्प पश्यंती, दंडवत्तणनाम सा // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनिः प्रोवाच किं नागात्पद्मः किं वारितस्त्वया॥अहं स्वरूपजानामि, तवास्य सचिवस्य च / श्रुत्वेति रानी मंत्री च, किंचिद्धीक्ष्य परस्परम् / / निश्चयं चक्रतुरःस्य, चिंतितस्यैव मानसे // चरित्र / 147 - राजी बभाषे वः पुत्रः, सांप्रतं परिणेष्यते // ततो विवाहसामग्री जायतेऽद्य महोद्यमात् // अस्य चिंता गले क्षिप्ता, भवद्भिाल्य एवहि॥ ततस्तेनैन सा कार्या, कस्तस्थान्य करोति तामा शिरो धुन्वन्मुनिः प्रोचे, चिंतयालं त्वयाधुना // यदहं वच्मि तचित्ते, चिंत्यतां नान्यथाशुभम् / / राज्ञी दथ्यौ ध्रुवं चित्तमस्य राज्याभिलाषुकम् / / दत्ते शापमपि क्रुद्धस्ततो भवति किं शुभम्। किं चित्रमत्र चेद्विश्वामित्राद्या अपि वंचिताः // विषयुर्वनवासेऽपि वनितावेषवीक्षणे / / यदा नित्यं पुराणेपि, श्रुतं भागवताभिधे // नारदात्याप्तवैराग्यः, प्रवज्यायां परायणः // / | प्रियव्रतनृपो राज्यं, बुभुजे भुजविक्रमी // तदंशे च क्रमेणामूवृषभः प्रथमो जिनः // चित्तं पुण्यगृहे स्तंभस्तञ्चेचलितमात्मनः॥ तत्कथं स्थिरतां याति, वाक्यदुर्बलदारुभिः // हसतां रुदतां वायमतिथिः समुपागतः // हसद्धिगुह्यते तर्हि, यद्भाव्यं तद्भवत्यथ // चिंतयित्वेति सा राज्ञी, पुत्रमाकारयत्तदा // तत्क्षणं स समायातो, मुनिं नत्वा निविष्टवाना। // 147 For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | मुनिःप्रोचे यदस्माकं, चित्ते तद्भवतां नहि॥ अन्यतो जायते बुंबा, व्याहारः क्रियतेऽन्यतःहै। गुणा अहिताय समायातस्तातः कातरतां गतः // इति चिंता न कर्तव्या, त्वया वत्स कदाचन // चरित्र 148|| तपांसि कुर्वतो ज्ञानमुत्पन्नं मम सांप्रतम् // तेन ज्ञानेन विज्ञातं, भवतामसमंजसम् // हितार्थ भवतां पृथ्वी, हलैः कृष्टामचिंतयन् // इहायातोऽस्मितत्सर्वैः श्रूयतां तत्वसंकथा। या बाला वनमालाख्या, याचिता शिवभूपतेः // ज्ञायतां ननु सामुष्य, सुतस्यैव सहोदरी पित्रोः संगमसोत्कंठा, पुत्रमाता तदाचलत् // प्राप्तायामटवीमस्यां, मिल्लघाटी समापतत् // | नष्टा पलायमानेयं, पुत्री तत्रैव विस्मृता // शोधितापि न सा लब्धा, पितुहमियं ययौ।। तदा तां पतितां तत्र, पद्मनाभपुराधिपः // मृगयार्थ समायातः शिवो दृष्ट्वाग्रहीद्रुतम् // 18| अनपत्येन तेनेयं, गत्वा पल्यै समर्पितो // वने लब्धेतिसावर्द्धदनमालाख्यया सुखम् // / इति स्वरूपं विज्ञाय, कार्य कार्य यथोचितम् // आशीर्वचोऽस्तु पुत्राय, वयं यामोनिजाश्रमम् / # मुनि मंत्री च राज्ञी च, क्षमयामासतु ततः॥ हितस्य हि चित्तेऽस्ति. चिंतितं हन्यतामिति 148| | अथ गते मुनौ तत्र, तेऽपि मंदिरमागताः // सचिवेन शिवे प्रष्टे, ज्ञातवृत्त.श्चमत्कृताः॥ GOOK For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ततः सा चलिता सैन्यसहितो नगरात्ततः / / प्रायःशंकरराजर्षिसंश्रितं वनमंतरा // 485 // है। गुण०/ सात्र तातं निजं ज्ञात्वा, ववंदे सपरिच्छदा ॥प्रमोदाश्रुपरिव्याप्तमाननेत्रद्रया स्यात्।। 586 // चरित्र 149 // तपस्विना वभाषे सा, तपोग्रहणहेतवे / नानुमेने च सा बंधुजननीसंगमोत्सुका // ततस्तेन विसृष्टा सा, ययौ रत्नपुरं पुरम् / / अभ्यायातप्रसूबंधुप्रीणिता सौधमागता // वरेषु चिंयमानेषु, तद्योग्येष्वन्यदा मुदा // बांधवस्यांतिकं प्राप्ता, सभायां सा सुलोचना / / समुद्रमंत्रिणःपुत्रः सागराख्यः सरागधीः॥ संपूर्णयौवनामेतां दृष्ट्वा चित्ते व्यचिंतयत् // / येन केनाप्युपायेन, स्वीकार्यासौ मया ध्रुवम् // पाखश्यं नयात्येषा, यावदन्यस्य कस्यचित् / ध्यात्वेति स जगौ तातं, रहःस्थित्वा विलज्जधीः॥पुत्रेण यदि कार्य ते, तदुक्तं कार्यमेव तत् / / बुद्धिं कुरुष्व तां तात, कातर्येणोज्झितां यया // वनमाला विशालाक्षी, जायते गृहिगी मम मुखे प्रदाय हस्तं स, बभाषे किं त्वयोदितम् // सा कथं लभ्यते वत्स, परिणेतुं प्रभोःस्वसा। | सोऽवादीता बहुक्तेन, वरं कूपे पताम्यहम् // क्षिपामि क्षुरिकांकुक्षौ, नच तिष्ठामितां विना ||149 / मंत्री प्रोचे नते वत्स, भूपेजीवतिसाभवेत्॥स्वामिद्रोहोऽपितचिंत्यः, सोऽवादीत् कुरुतत्क्षणम् For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति मंत्रं चतुःकर्ण कृत्वा तौ निर्गतौ बहिः // तथैव चतुर्दत्वा, विषं पद्माय पापिनौ // गुण। विषेण व्याकुले भूपे, पतिते पृथिवीतले // सा गौरी वनमाला च, मिलितश्च परिच्छदः / / 150 चित्तं विना प्रतीकारा, द्रुतमारेभिरे ततः॥ गुगो न तस्य कोऽप्यासीदोदितिस्म जनोऽखिलः। 3 रुदत्यां वनमालायां, गौखां सर्वपरिच्छदे // चारगश्रमणश्चंद्रस्तत्रागालाभहेतवे।।५००॥ | अहोभाग्यमहो भाग्यं, प्राप्तोऽयं मुनिपुंगवः // एतेन ज्ञायते नूनं, भव्यमेव भविष्यति // | एवंलोके वदत्येव, तत्पादक्षालनोदकैः // मातृस्वसृभ्यां सिक्तोऽभूनिर्विषो नृपतिःक्षणात् / / | अथोत्थाय निविष्टोग्रे, मुनि नत्वा नृपो जगौ। कथ्यतां केन मे दत्तं, वैरिणा विषमुत्कटम् / / | चित्ते व्याकुलयोटिं, प्रश्रेऽस्मिन् मंत्रिपुत्रयोः। मुनिः प्रोवाच जानीषे, कंदंड संविधास्यसि / भूपोजगौ रुषा मूलात्तमुच्छेत्स्यामि निश्चितम् / / मुनिःप्रोचे ततो राजन्, श्रूयतां कथ्यते यथा विषस्य दायको तो दौ, संप्रताय निरंतरम् / / यत्रैकस्तत्र चान्यः स्यादेवं प्रीतिपरायणौ // अस्मिन्नवसरे लौ दौ, दध्यतुर्निजचेतसि // सा कुबुद्धिःकृतावाभ्यां, यया प्राप्तः कुलक्षयः / / 150 / मुनिःपाचे तपोर्नाम, कथ्यमानं निशम्यताम् / / सगोदेषस्तथा तौ दौ, प्रत्यासन्नौ शरीरिणाम DPHO For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कत्र रागो भवेत्तत्र, द्वेषो भवति निश्चितम् // सांनिध्यं भवतः शश्वविख्यात्वैरिणस्तयोः // गुण तो त्वं मूलादपि यदि सत्यप्रतिज्ञता॥ एवमुक्ता स्थिते साधौ, सर्वकोऽपि विसिष्मिये // चरित्र / 151|| पोचतुर्मत्रिपुत्रौ च, स्पृशंतौ चरणौ मुनेः॥ भाग्येन सर्वलोकानां, बभूव भवदागमः // / पुनर्मूपं मुनि मोचे, नराः सर्वै नराधिप // प्रेरिता रागद्वेषाभ्यामकृत्यानि प्रकुर्वते // 51 // / प्रस्तरेणाहाः श्वाचेतः, प्रस्तरं दष्टुमिच्छति // मृगारिस्तु शरं प्राप, शरोत्पत्ति विलोकयेत् / / यत्प्रेरितेन केनापि, विषं दत्तं तवाधुना / / तन्नाम्नि कथिते किं स्यादागं देषं च संहर // भूपेन वीक्षिते वक्त्रे, मंत्री प्रोवाच सादरम् // सत्यं तदेव हे देव, यन्मुनिर्वक्ति वत्सलः // प्रोचे प्रबुध्धो भूपस्तं, राज्यं कापि निधीयताम् / अपुत्रोऽहं यथा दीक्षां, गृह्णामि मुनिसंनिधौ / तदाज्यं सागरायैव, दत्वा मंत्रिनरेश्वरौ // पार्थे प्रावजतां तस्य, साधोः साम्यरसान्वितौ // / अद्भुता समितिर्वाचः साधनामिति सागरः // शिवधर्म परित्यज्य, जिनधर्मपरोऽभवत् // ताभ्यां युते गते साधौ, सागरः पृथिवीपतिः / / तदाज्य पालयामास, रेच वनमालया ||1511 वनमालान्यदा स्वप्ने तातं वीक्ष्य, तपस्विनम् ।।नृपानुमत्या गत्वा तत्पायें जाता तपस्विनी For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रण. 152 काले शंकरराजर्षिर्गृहीतानशनस्तया // पोचे तात त्वया बोध्याहं भवेत्र परत्रवा // 52 // ॐ तत्प्रपद्य मृतः सोऽभूव्यंतरेंद्रो भुवस्तले // परिज्ञेयः स एवाहं, भवतःपुरतःस्थितः // 522 // चरित्र. मया पूर्वमवेऽकारि, शैवधर्मोऽन्वहं पुनः॥ जिनधर्मसमो धर्मो, न भूतो न भविष्यति // वनमालापि मृत्वाभूत्पुर्यामस्यांधनेशितुः // धनेश्वराभिधानस्य, रत्नश्रीरिति पुत्रिका // | साधुना यौवनेनालंकृता लावण्यसाधुना // तद्बोधाय समेतोऽस्मि, सा पुनर्नैव बुध्यते // ! तस्यास्वप्ने मया स्वर्गा नरकाश्चापि दर्शिताः॥ मालास्वप्नानहं पश्यामीति प्रातर्जजल्प सा || | दिव्यनाट्यध्वनिश्चक्रे, चैकविंशतिवासरान् ॥परं तस्याः प्रमीलायां, नसोऽभूत्कर्णगोचरः // | प्रत्यक्षीभूय चेत्किंचित्स्वरूपं कथयाम्यहम् // भीता विमुच्ये पूत्कारं, सा तन्नश्यति बालवत् / Pe एवंविधे स्वरूपेऽस्याः, कथं धर्मः प्रकाश्यते // ग्रामं विना कुतःसीमा, विना पुत्रं कुतःकुलम् त्वं तु पूर्वकृतप्राज्यपुण्यसंभारसंश्रितः। स्वयमेव शृणोष्येनं, दिव्यनाट्यध्वनि निशि॥५३०॥ सोऽहंतस्यां परिश्रांतस्त्वां प्राप्तोऽस्म्यद्य सुंदर॥ त्वया प्रातर्विवाह्यासौ, त्वत्संगाद्धर्ममाप्स्यति।।१५२ सा पार्थे जैनसाधूनां, नेतव्या धर्महेतवे॥ तुष्टो चाद्याभिलाषात्ते दिव्यनाटयं करोम्यहम्।। For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवमुकत्वा स्वरूपं स व्यंतरेंद्रस्तिरोदधे // प्रातः प्रबुद्धः स्वंतातमयं नंतुं समागतः // 533 // गुण०।। तदा धनेश्वरः श्रेष्ठी, स्थालमापूर्य मौक्तिकैः / / नृपाय प्राभृतीचक्रे, प्रोचे च रचितांजलिः।चरित्र / 1534 हे देव देवता कापि, स्वप्नेमामित्युपादिशन् // रत्नसिंहाय दातव्या, स्वपुत्री नृपसूनवे // 1 // है। तेनैषा दीयते तस्मै, वरेष्वन्येषु भूरिषु // ओमित्युक्ते नरेंद्रेण. स तया परिणायितः // | ताभ्यां शुभाभ्यां भार्याभ्यां, महितोऽयमनंगवत् // रतिप्रीतिममाभ्यां म. रेमे बैरं वनादिषु।। || इतश्च तत्र संप्राप्ता, रत्नशेखरसूरयः // भूपो जगाम तं नंतुं, परिवारसमन्वितः // 53 // * प्रियाद्रययुतो रत्नसिंहोऽपि प्रीतमानमः // गत्वा नत्वा च सूरींद्रानश्रीपीद्धर्मदेशनाम // || भो भो अनादिमिथ्यात्वपरिहारेण भावतः // जैनधर्मो विधातव्यः, शिवधर्मनिबंधनम् // शैवं मीमांमकं सांख्य, बौधं नैयायिकं तथा // एतानि दर्शनान्याहुर्धर्म मर्मविवर्जितम् / / | स्याद्वादरूपं मर्म स्यादथवा प्राणिनां दया // तेन मुक्तोऽखिलो धर्मो, जीवेनांगमिवाफलः। वने वामं प्रकुर्वाणाः शेवास्तावत्तपस्विनः / दर्भानुन्मूलयंत्येव, त्वचं गृह्णति शाखिनाम ||153 // शोभाकिनींगुदीतैले, मंचिन्वंत्यन्वहं च ये // दहंति समिधस्तेषा, धर्ममर्मज्ञता कुतः // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / शास्त्राण्यधीत्य ये विप्राद्या अपि प्राणिहिंसनम् / / कुर्वति सर्वदा तेषां धर्ममर्मज्ञता कुतः॥ . गुण०, एवंश्रुत्वा गुरोर्वाक्य, रत्नश्रीर्जातिमस्मरत् / / मिथ्यात्वं स्वं च निदंती, सा सम्यक्त्वमुपाददो चरित्र / 154|| व्यंतरेंद्रोऽपि तद् ज्ञात्वा, गत्वानत्य प्रमोदतः // नाटयं विधाय सम्यक्त्वमुपादत्त मुनीश्वरात् / / | रत्नसिंहोऽपि पप्रच्छ, निजं पूर्वभवं गुरून् / ते प्रोचुः श्रूयतामस्ति, हस्तिनागपुरं पुरम् // क श्रेष्ठयत्र धनदत्तोऽभूत्तस्य धीराभिधःसुतः॥श्री जिनेंद्रस्य पूजायां, नाटयपूजामुना कृता॥ * तज्जीवस्त्वमभूराजकुले राज्यं च लप्स्यसे // नाट्यपूजाविशेषेण, व्यंतरो नाट्यकृत्तव / / / / M श्रुत्वैवं स्वभवं रत्नसिंहो जातिस्मरोऽभवत् // विशेषादाहतंधी, प्रपेदे मुनिसंनिधौ // मुनि नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसूनवे // गुरोःसंप्राप्तवैराग्यो, जयदेवोऽग्रहीव्रतम् // प्रियाभ्यां सहितः पुण्य-कर्त्तव्येषु परायणः॥ रत्नसिंहोऽथ भूपालस्तत्र रोज्यमपालयत् // | अन्यदा न्यस्य राज्येऽसो, पुत्रं रत्नप्रियाभिधम् / / तेषामेव गुरुणांस, पार्श्वे संयममग्रहीत् / / प्रपाल्य निरतीचारं, चारु चारित्रमुज्वलम् // गृहीतानशनः प्रांते, सौधर्मे त्रिदशोऽभवत् // 15 चिरं सुखान्यसौ भुक्त्वा, देवलोकात्ततच्युतः॥ राजन् सागरनामाभृत्पुत्रः सप्तदशस्तव // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण // इति नाव्यपूजायां धीरकथा // चरित्र 155, एवं सप्तदशाप्यते, सुतास्ते शैशवादपि // जातिस्मरणमापन्ना, दृष्टे पार्श्वे जिनालये // | तेन स्तन्यमपि प्रायो, न पिवंति विचक्षणाः // यावन्नमंति न पार्श्वदेवमेते प्रगे मुदा // | प्रवर्द्धमानाः सर्वेऽमी जिनभक्तिमनोहराः // विशेषतो भविष्यंति, जलसिक्ता द्रुमा इव // | जिनपूजाविधानेन, भवता भवतारणम् // विंशतिस्थानकेष्वाद्यं, स्थानं स्पृष्टं विभाव्यताम् || तीर्थकृत्समकर्मार्जीम् त्रिविधं तेन पार्थिव // जिनो महाविदेहेषु, भूत्वावं सिद्धिमाप्स्यसि तदा सप्तदशाप्येते, सुता गणधरास्तव / / भवितारस्तमोवंसे, सवितार इवामलाः॥५६२॥ 6) इति श्रुत्वा मुनेर्वाक्यं, भूपतिःप्रीतमानसः॥ पुनःपप्रच्छ संदेहमेकं नृपशिरोमणिः // 563 // / कथं सिंहलराजस्य, सुतात्र स्वयमागता // तद्विवाहकृते तस्याः सचिवोऽपि ययौ च क // 15 मुनिः प्रोवाच पार्श्वे सोऽधिष्टाता व्यंतरस्तव // हितैषी कृतवान्सर्वमेतत् सुकृतशालिनः।। ||155 // | पूर्वजन्मानुरागेण, पूर्वजन्मप्रिया इमाः // चतस्रोऽपि च त्वां प्रापुरधुनापि कलावतीः॥ For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है। इति श्रुत्वा मुनिं नत्वा, प्रमोदात् पृथिवीपतिः / / सपुत्रसपरिवारो, जगाम निजमंदिरम् // है। गुण नवर्मापि धर्माब्धिसमुद्रेलनचंद्रमाः॥ विजहार सनीहारहारोज्वलयशोभरः // 538 // चरित्र / 156// काले कलाकलापज्ञाः, प्रज्ञाप्राग्भारतोऽभवत् / / उपाध्यायस्य सांनिध्यात्पुत्रास्ते गुणवर्मणः / क्रमेण शैशवं हित्वा श्रितास्ते यौवनं वनम् / / वधूवल्लीभिराश्लिष्टा, रेजिरे कल्पवृक्षवत् // पश्चिमे रजनीयामे, गुणवर्मा नृपोऽन्यदा // भावनां भावयामास, स एव भवनाशनीम् / भुक्तं राज्यं चिरं जाता, पुत्रा पौत्रादिभिर्वृताः॥ संवत्ता एव भांत्येते, व्यापाराः पापहेतवे / / नानिलैःपूर्यते व्योम, वारिधिः सलिलैन च // वन्हिस्तृप्यति काष्ठेर्न, जीवोन विषयैस्तथा / ॐ अभिरामा इमा रामाः, कामासक्तैकचेतसाम् / / साम्यस्पृशा दृशा दृष्टाअनिष्टा एव ताःपुनः यदि प्रातः समायाति, तातः केवलभास्करः / / राज्यं पुत्रेषु विन्यस्य, तदा दीक्षामुपाददे // - एवं चिंतयतस्तस्य, प्रभातसमयोऽभवत् // नेदुर्मगलतूर्याणि, प्रोचुमंगलपाठकाः // 576 // स यावत्तल्पं नृपो हित्वा, कृतप्राभातिकक्रियः // समायाति सभां तावदागत्यारामिकोऽवदत् // // 156 // वनं पुनंति ते तातपादाः संप्रति भूपते / / सुरासुरकृते स्वर्णकमले हंसवस्थिताः // 578 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . श्रुत्वेति भूपतिःप्रीतमानसः सपरिच्छदः // तत्र गत्वा मुनिं नत्वा, पुरतः सन्निविष्टवान् // गुण केवली देशनां चक्रे, भो भव्या भववारिधौ // चिंतामणिसमं मयै, न पुनः प्रोप्यते जनैः / / / 157 // तत्रापि जैनधर्मोऽयं, जैनधर्मेऽपि संयमः // संयमेनैव सा स्यान्च, प्राणिनां सिद्धिकामिनी|| इति श्रुत्वा मुनि नत्वो, गृहं गत्वा नरेश्वरः // पुत्रं प्रथमराजाख्यं, निजराज्ये न्यवीविशत् / / / | पृथक् पृथक् स्वदेशेषु, पुत्रान्निवेश्य स स्वयम् // नरवर्ममुनेः पार्श्वे, संयममाददे मुदा // दधानो द्विविधां शिक्षा, स चतुर्दशपूर्वभृत् // प्राप्य मूरिपदं पृथ्व्यां, व्याहरत्सपरिच्छदः॥al | गुणवर्मसुतास्ते च, राज्येप स्वेष संस्थिताः // राज्यानि पालयामासुरन्योऽन्यं प्रीतिशालिन। | जैनेंद्र भवनं विंबं, तत्प्रतिष्ठा च पुस्तकम् // चतुर्द्धा संघभक्तिं ते, तीर्थयात्रां च चक्रिरे / / . सर्वप्रकारैःसर्वेऽमी, त्रिसंध्यं जिनपूजनम् // चक्रिरे निजदेशे च. सप्तव्यसनवारणाम् // अन्येद्युस्तीर्थयात्रायां, समेता हस्तिनापुरे // मिलिताःबांधवाःसर्वे तेऽन्योऽन्यं प्रीतिशालिनः // 157/ नवममुनौ सिद्धिं, संप्राप्ते विहरन्महीम् / / गुणवर्मगुरुस्तत्र, तदागात्तीर्थयात्रया // 589 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KIS-4000-XIOM अनभ्रवृष्टिवत्प्राप्तं, तातं दृष्ट्वा प्रमोदतः // तेऽमुं ववंदिरे प्रीत्या, शुश्रुवुर्धर्मदेशनाम् // गुण | धर्मार्थकाममोक्षेषु धर्मो मूलं निगद्यते // अर्थादयो मूलरूपाद्धर्मादेव भवंति हि // 591 // चरित्र. / 158 तारणाय भवांभोधो, धर्मस्तावत्तरीसमः // चारित्रमेव चारित्रतुलां तत्र विभर्त्यलम्।।५९२|| राज्यमाज्यमिव त्याज्यं, सज्वरेणेव धीमता // यतःस्वल्पसुखं जंतोरत्यंत दुःखसंचयः // ज्ञानदर्शनचारित्ररत्नत्रयविभूषितम् // जीवं सौंदर्यतः स्वैरं, वृणुते सिद्धिकामिनी // 594 // | / / इति श्रुत्वा समं प्राप्तवैराग्यास्ते नरेश्वराः // न्यस्य राज्ये निजान्पुत्रान्, चाददुः संयमं मुदा / क्रोधो निर्मूलितः पश्चान्मानस्तैरपमानितः // मायाच्छाया परित्यक्ता, लोभक्षोभश्च वारित || ते गुरुणां भुखांभोजादागमं मकरंदवत् // पिवतो ,गवद्भजुः, परं मालिन्यवर्जिताः // पंचबाणस्य वाणानां, पंचानामपि वारणी // पंचधा समितिस्तेषां, चित्तेषु स्थितिमातनोत्।।। - गुणवर्मगुरुयोग्यं, गुणान्वितं निजे पदे // शिष्यं संस्थापयामास, शासनस्य प्रवर्तकम् // ते सर्व आयुरापूर्य, गृहीतानशनास्ततः॥शुभध्यानपरा मृत्वा, ब्रह्मलोकं दिवं ययुः // 150 / चिरं सुखान्यमी भुक्त्वो, देवलोकात्ततश्युताः॥ समुत्पद्य विदेहेषु, सिद्धिमाप्स्यंति सिद्धिदाः For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * श्रुत्वा मुदार्चनविधिप्रमुखप्रकारान्, पंचात्र तत्फलविलासविचारसारान् / / गुण तानादितः स्तुत च सप्तदशापि पुण्यमाणिक्यसुंदररुचिं भविका भजध्वम् // 602 // / 159 // इति श्री अंचलगच्छेश श्री माणिक्यमूरिविरचिते पूजाधिकारे गुणवर्मचरित्रे साक्षताष्टमांगलिकपूजाफल वर्णनो नाम पंचमः सर्गः // // अथ प्रशस्तिः // एवं स्नात्रविलेपनां शुकयुगाभ्यारोपवासार्चनापुष्पसगवरवर्णसिंचनचयालंकारपुष्पालयाः॥ सत्पुष्पप्रकराऽक्षतार्चनमथो धूपंच गीतं तथा, वाद्यं नाट्यमहोजयंतु जगतां नाथस्य पूजाइमाः। स्था व्यरचयच्च गुरूपदेशान्माणिक्यसुंदरगुरुर्जगतां हिताय // यंतु मुनयः परिभावयंतु, तद्वज्जिनार्चनविधीनुपदेशयंतु // 2 // For Private and Personal Use Only
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरित्र. चतुरशीत्यधिकेषु समाचतु-र्दशसु तेषु गतेषु च विक्रमात् / / अयमभूज्जिनपूजनसत्कथा-समुदयः स करोत्विह मंगलम् // 3 // श्रीवर्द्धमानजिनभवन-भूषिते रचित एष सत्यपुरे // ग्रंथः श्रीमदुपाध्याय-धर्मनंदनविशिष्टसांनिध्यात् // 4 // 5 माणिक्यांकश्चतुःप:, शुकराजकथा तथा / / पृथ्वीचंद्रचरित्रं च, ग्रंथा एतेऽस्य बांधवाः // यावन् मेरुर्महीयावद्यावचंद्रदिवाकरौ // वाच्यमानो जनस्तावद्, ग्रंथोऽयं भुवि नंदतात् // मंगलं सर्वसंघाय, कर्रे भवतु मंगलम् // व्याख्यायकेभ्यो मांगल्यं, श्रोत्रे भवतु मंगलम् // // इति प्रशस्तिः // For Private and Personal Use Only
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