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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | स्वसुताशुकयोवृत्तं, श्रुत्वेति मुनिपुंगवात्॥ श्रेष्टी भक्त्या च तं नवा, सपुत्रीको गृहं ययौ / गुण० जिनपूजा परं पुण्यमिति निश्चित्य मानसे / कुरुते कारयत्येनं, शुकं साक्षतद्वौकनम्।।३६॥ चरित्र. / 111 // इति श्रुत्वा तयोवृत्तं, कुमारः कनकध्वजः / / अक्षता कृते भावं, विशेषेण बभार सः // | तदा पारापतः कोऽपि, तत्रैव जिनमंदिरे // लेख मुमोच तत्पाणौ, सोऽपि वाचयतिस्म तम् / 1) स्वस्तिलंकामहादीपाद्विभीषणपुरादतः // रामदेवाभिधः श्रेष्ठी कुमारं कनकध्वजम् // 39 // / वदत्यदस्त्वयागम्यं, मत्पुत्रीकरपीडने // वाचयित्वेति तं लेखं दधौ चित्रं नरेंद्रभूः // 40 // x यावत्पश्यति तं पारापतं भूपतिनंदनः // तावता नररूपेण, स्कंधमारोप्य सोऽचलत् / / 4 / / लंकाद्वीपे स तं नीत्वा, रामदेवगृहेऽमुचत् // रम्यरामाजनोलूलन्मृदंगवनिसुंदरे // 4 // | तत्राष्टौ कन्यकाः सारशृंगाराः पूर्वसज्जिताः // परिणिन्ये प्रमोदेन, पूरिताःस महोत्सवात् / जाते विवाहे जामाता, श्वशुर माह कौतुकम् // किमिदं स जगावेतद्विभीषणपुरे पुरम् / श्रेष्ठी च रामदेवोऽहमिमा अष्टौ सुता मम॥ भार्याचतुष्कसंजाताः, समं संजातयौवनाः // 11 // निमित्तज्ञो जगौ सोमो, मया पृष्टस्तवांगजाः // कनकध्वजभूपस्य, भविष्यंति सुवलभाः॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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