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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण साक्षतान ढोकयामास, जिनं नत्वा मुनेगिरा // नानाम्यहमकृत्वेदमित्यभिग्रहमग्रहीत् // वर्षाकाले महामेघे, भृशं वर्षति भूतले // भोजनं न तयाकारि, ह्यकृत्वाक्षतपूजनम् // 24 // चरित्र दिनत्रयं महावृष्टि, कारंकारं घने स्थिते / कृतोपवासत्रितया, प्रासादं प्रति साचलत् // अंतरा दुस्तरानद्या, प्राप्ते पूरेऽपि माविशत्॥स्तो जलमिति ज्ञात्वा, पयसाच प्रवाहिता // | अक्षतान ढोकयाम्येषा, जिनाग्रेऽहं कथंचन // चिंतयंतीति सा मृत्वाधुना तव सुताभवत् / एतस्याः समये भर्ता, मृत्वा सोऽयं शुकोऽभवत्॥अन्योन्यमनयोः स्नेहस्तेनायं दृश्यतेऽधिका - जिनस्याक्षतपूजातः, सेयं तव सुताभवत् // तिर्यग्योनी पुनर्जज्ञे, तदर्ता पुण्यवर्जितः // इति श्रुत्वा तयोर्जाता, जातिस्मृतिरथ क्षणात् // अपुण्यकारिणं स्वं च, स निनिंद शुकस्तदा।। नरो न रोचते कोऽपि, वरोऽस्या भविता न वा // श्रेष्ठिनोक्ते गुरुप्रोचे, शुको भर्त्ताभविष्यति / जने हसति सर्वस्मिन्, मूरिः प्रोचेऽत्र पत्तने // वत्सरांते शुको मृत्वा, भावी धनपतेः सुतः॥ एषापि पंचवर्षाते, निश्चितं मृत्युमाप्स्यति // तवैव भविता पुत्री, नाम्ना कनकसुंदरी // / एतयोस्तारतारुण्यमाप्तयोः करपीडनम् // भविताक्षतपूजातः, सुखमप्यक्षतं तयोः // 34 // 110 // For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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