________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण राजादिष्टेन तेनाशु, समानीतःसमांतरम् // निजगाद नृपं योगी,दत्वाशीर्वादमादरात्। मंत्रस्य पूर्वसेवा हि, कृता द्वादशवार्षिकी। साधयाम्यथ सांनिध्यात्तव साहायिको भव 63 | चरित्र // 6 // रात्रावद्य चतुर्दश्यामवश्यं प्रेतमंदिरे // गत्वा मंत्रो मया साध्य, उपकारपरो भव // 6 // || ओमित्युक्ते नृपेणाथ,सज्जीभूय समागते॥योगी चैपोऽपि यामिन्यां, जगाम प्रेतमंदिरप्६५ / विधाय मंडलं योगी,प्रारेमे मंत्रसाधनम्॥ कखालकरस्तस्थौ, नृपःपश्यन् दिशोऽखिलाः।।६६/ || जाते क्षणेन निर्घाते, प्रत्यक्षः कोऽपि चेटकः।। बभूव भीषणाकारां, कर्नीकां कंपयन करे६७ | हसतो नृत्यतस्तस्य, फेत्कारं मुंचतो मुखे // चकर्त्त करखालेन, कर्तीका साहसी नृपः। | अहं तुष्टोऽस्मि तुष्टोऽस्मीत्यूचाने चेटकेनृपः।।जगौ च योगिने सिद्धिं, देहि क्लेशकृतेऽन्वहम्॥ सिद्धमेतत्परं स्वार्थ, प्रार्थयेत्यत्र भाषिणि॥ कुरु मे निग्रहोपायं, स्त्रावल्या विरोधिनः।।७०॥ | दत्वा दिव्यांजनंतस्मै, तिरोधत्त स चेटकः। योगी ययौ निजंस्थान, नृपोप्यागात् स्वमंदिरम् || सुखसुप्तो निशां नीत्वा, कृतप्रातःक्रियः प्रगे।। रत्नावल्या समं शास्त्रविनोदै दिनमत्यगात 726 // 6 // . कृत्वा दिव्यांजनं नेत्रे,गतो रत्नावलीगृहम॥ नृपो विमानमद्राक्षीत, व्योमश्रीकर्णकुंडलम्॥ PORN 40:9 For Private and Personal Use Only