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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | तच्छुत्वा भूपतिर्दध्यावहो प्रोक्तं किमेतया // कुत्राष्टपदशैलेशः, क्वच संमेतपर्वतः॥६॥ गुण० तयोर्यात्रा विधातव्या, संघतश्च परस्परम् // द्वयोरपिध्वजारोपः, कथमेतद्विधीयते // 6 // चरित्र // 86 // मौनमाधाय भूपाले, स्थिते चिंतातुरे सति // गता सरस्वती देवी, नितांतखिन्नमानसा // | सचिवो ज्ञातवृत्तांतस्तामुवाच विचक्षणः // स्वामिनि! प्रायो वक्तव्यं, युक्तमेव हि सर्वथा // | सा जगाद सभामध्ये, यन्मया कथितं मुदा / अन्यथात्वं व्रजत्यत्र, जीवितान्मे मृतिर्वरम् / // इति तनिश्चयं ज्ञात्वा, राजा चित्तेऽतिदुःखितः॥रात्रावनुक्त्वा कस्यापि, निर्ययो निजमंदिरात स्थाने स्थाने भ्रमन्नेष, तुंगशृंगाभि गिरिम् // निरीक्ष्य भूगुपाताय, गच्छन्नालोकयन्नरौ // तौ शीर्षे ग्रंथिकां कृत्वा, व्रजतौ पर्वतं प्रति // तथैवाचलितो तूर्णे, तथाकारौ पुनःपुनः // विलोक्य भूपतिरेतावूचे हे सुहृदौ कथम् // गमागमौ विधीयेते, युक्तं चेत्तर्हि कथ्यताम्॥ / नृपमूचे तयोरेकः, सविवेक! निशम्यताम् // सारंगपुरमित्यस्ति, नगरं सागरांतिके॥७॥ तत्र चित्रांगदो राजा, राज्ञी तस्य मनोरमा॥ यया मनोरमाकारात्कारिता दास्यमिंदिरा // 6 // ता हल्ला चंडवेगाख्यः, खेचरः खेचरन्नथ // गत्वा जलनिधेर्मध्ये, दीपे क्वचिदवस्थितः // For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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