________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण चरित्र. // 85 // समेतं तत्र संघेशं, नृपतिर्वहु मानयन् / / गुरूपदेशं शुश्राव, तीर्थयात्राधिकारिणम् // 57 // समेतेऽष्टापदे शत्रंजये खतपर्वते // वाराणस्यादितीर्थेषु, भव्यैर्यात्रा विधीयते // 50 // (इंद्रवज्रा वृत्तम् ) तीर्थेषु ये श्रीजिननाथभक्ति, कृत्वा कृतार्थी रचयंति लक्ष्मीम् // त एव धन्या धरणीतलेऽत्र, भवंति नारक्यपरा नरोऽन्ये // 59 // H इत्थमाकर्य संघेशवल्लभा संसदि स्थिता // प्रतिराज्ञीमिति स्माह, सोत्साहहृदया मुदा / / अस्माभिर्विहिता यात्रा, पूर्व शत्रुजये ततः॥ रेवताद्रौ च किंवत्र, कौतूहलमिदं पुनः॥ शबुजये खते चाप्येक एव महावजः॥ दत्तश्चित्तप्रमोदेन, एवं न दास्यते परः // 6 // | राज्ञी हसित्वा तां प्राह, संमेतेऽष्टापदेऽपि च॥ अस्माभिः क्रियते यात्रा, हृदये चिंत्यते पुनः / एतयोस्तीर्थयोरेवमेक एव महाध्वजः // दीयते किं त्वया श्लाघा स्वयमेव विधीयते // भूपो विसृज्य संघेशं, पल्या सह गृहं ययौ // समये च तयामाणि, पुण्यकर्तव्यमस्ति नौ - संवेशवलभाग्रे यत्, पूर्व प्रोक्तं तया स्यात् // तदेव कथयामास, पुस्तो भूपतेरपि // 66 // // For Private and Personal Use Only