________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्ताते चिंतयत्येवं, चित्तांतः सा सभांतरे॥ श्लोकं पठंती तत्रागाद्यत्रास्ते गरुडध्वजः // गुण राक्षसोक्तं वचो भूपस्तदा सस्मार चेतसि / / राक्षसश्च ततश्चक्रे, स तस्या मतिविभ्रमं // चरित्र. // 4 // सा स्थाने सर्वशब्दस्य, पुण्यशब्दं प्रयुज्य तम्॥ श्लोकं पपाठ तच्छुत्वा, सर्वो लोको विसिष्मिये / / पुण्यकार्याणि यः कुर्यान्मदुक्तानि निरंतरम् // वरः स मेऽन्यथा नास्ति, विवाहेन प्रयोजनमा / इति श्रुत्वा महीपालस्तन्मालार्थी बभूव सः॥ सा निचिक्षेप सोत्कंठं, तत्कंठे वरणस्रजम् // | क्षिप्तायां वरमालायां, बालया मतिविभ्रमः॥ परिज्ञातः परं प्रीता, वरं वीक्ष्य गुणालयम् // 14 ततस्तत्र तयोर्जाते, पाणिग्रहमहोत्सवे // विसृष्टा भूभुजः सर्वे, स्थानं निजनिजं ययुः // | गरुडध्वजभूपोऽपि, स्थित्वा तत्र कियदिनान् / तया सह समायातः स्वपुरं समहोत्सवम् // तदुक्तपुण्यकार्याणि, कुर्वाणः प्रीतमानसः // समयं गमयामास, नृपः सुखमयं सदा॥५३॥ | गवाक्षस्थस्तया साकमन्यदा भूपतिर्वने // समेतं संघमदाक्षीत्कुतश्चित्प्रौढतीर्थतः // 54 // / तया सह नृपस्तत्र, संघं द्रष्टुं वने ययौ / संघोऽप्यावर्जयामास, नृपतिं स्वयमागतम् // // 4 // - संघसाथै समायातान्, धर्मघोषाह्वयान गुरून् // प्रणम्य भूपतिस्तत्र, सकांतोऽपि निषण्णवान् / 40000 For Private and Personal Use Only