________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | ओमित्युक्त्वा पलादेन, विसृष्टः स्वबलं गतः॥ प्रातश्च चलितो भूपः, क्रमाच्छिवपुरं ययौ। गुण० तत्र सिंहासनासीने, भूपवंदे स्वयंवरे // वरमाला करे विभ्रत्यागता सा सरस्वती // 36 // चरित्र // 8 // तां प्रोवाच प्रतीहारो, हारीकृतरदद्युतिम् // अंगुल्या दर्शयंती तानामग्राहं नरेश्वरान्॥३॥ | अंगवंगतिलंगानां, कलिंगानां महीभुजः॥ मिलिताः संति सर्वेऽपि, कृतार्थ्यतां त्वया दृशा। विलोक्य तांस्ततो बाला, पूर्वश्लोकं पपाठ सा // तं श्रुत्वा जज्ञिरे ते च, निराशास्तत्करग्रहे। | सर्वकार्याणि यः कुर्यान्मदुक्तानि निरंतरम् / / वरःसः मेऽन्यथा नास्ति विवाहेन प्रयोजनम्।।। / प्रतिभूपमिमं श्लोकं, पठंती प्रचचाल सा // न कोऽपि तस्या मालार्थी, बभूव क्षितिनायकः / / | ततस्तस्याः पिता किंचिदचिंतयद् हहा विधे / अस्या गुणनिर्दोषः कृतः कस्मात्कदाग्रह (मालिनी वृत्तम् ) / शशिनि खलु कलंक कंटकाः पद्मनाले, जलधिजलमपेयं पंडिते निर्धनत्वम् // * दयितजनवियोगो दुर्भगत्वं सुरूपे, धनिषु च कृपणत्वं रत्नदोषी कृतांतः // 43 // 3 // - स्वयंवरप्रयासो मे, विफलः सकलोऽभवत् // कथं यास्यंति भूपाला, बालापरिणयं विना // For Private and Personal Use Only