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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है आवां किं कुर्वहे मित्र,न स्थिरं चित्तमावयोः॥विद्यासिद्धिर्भवेन्नोवा, सिंहान्मृत्युस्तु निश्चितम् नृपः प्रोचे भवद्भयां चेन्मह्यं विद्या प्रदीयते॥ साधयित्वा ततः शीघ्र, दर्शये प्रत्ययं युवाम् // चरित्र nanताभ्यां विद्यादयं दत्तं, विधिपूर्वकमोजसा॥ भूपतिः साधयामास, निर्भीकः सिंहसन्निधौ // सिद्धविद्यो विसृज्यैतौ, नृपतिः स्वपुरं ययौ॥ मंत्रिभिः संमुखायातैः, सह मंदिरमागतः // न देवी भवने क्यापि, दृश्यते भोजनादनु // इति पृच्छति भूपाले, मंत्री कृष्णाननो जगौ।। तदा विनिर्गतान युष्मान,सर्वत्रापि चशोधितान्।।अलब्ध्या सकलोराजलोको दुःखाकुलोऽभवत् / देवी त्वत्यंतदुःखार्ता, स्वं निंदंती कदाग्रहम् // लोकेन वार्यमाणापि, गवाक्षात्पतिता भुवि // 5 आकाशात्पतिता दृष्टा, न पत्ती भुवस्तले // न ज्ञायये गता क्यापि, देवीवृत्तमिदं प्रभो // नृपः श्रुत्वेति सूत्कारान् , मुंचंश्चित्ते व्यचिंतयम् // यदर्थेहमुपक्रांतः सैव दैवेन दूरिता // 99 // इति चिंतयतिमापे, वय॑से देवी वर्यसे। जल्पंतीति समायाता, दासी प्रीतिमती जगौ।।।। गवाक्षयित्पतिता यस्मात्तत एव समागता // स्वामिनी दृश्यते स्वामिन् , सारश्रृंगारभासुराच्या हर्षात्पश्यति भूपाले, राज्ञी तत्र समागता // भद्रासने निषण्णा च, कस्य प्रीतिं चकार न // For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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