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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / तथैव कृत्वा भूपाज्ञां, स समेतः पुरं निजम् / / बह्वमन्यत भूपःस्त्रीरनं रनवतीमिति // 293 // गुण० अथ चंद्रावती दथ्यौ, स्वसा पूर्वमपि स्वसा॥ सपत्नोत्वेन संजाताधना दहति मां पुनः // चरित्र. // 76 // प्रागेव तत्करिष्येऽहं, विरक्तः स्यान्नृपो यतः।। ध्यात्वेतितं जगौ काले.मंत्रिश्लाधाविधायिनमा / अतिश्लाघान कस्यापि, प्राणनाथ विधीयते। मंत्रिणा यत्कृतं मार्गे, तत्सर्व मे जगौ स्वसा // श्रुत्वेति कुपितो भूपस्त्यक्त्वा रत्नवतीगृहम् / / जिघांसुर्मत्रिणं कंचिदुपायं स व्यचिंतयन् // 1 कुंभं स्वर्णमयं भृत्वा, भस्मना क्षोमवेष्टितम् / / कृत्वा दत्वा स्वयं मुद्रां, बभाषे मंत्रिणं प्रति // रेऽस्ति श्रीकांचनपुरे, मन्मित्रं भूपतिः पृथुः॥ अनेन प्राभृतेन त्वं प्राग् रुष्टं प्रीणयाशु तम् // मुद्रा मे नापनेतव्या, मार्गे किंतु सभांतरे॥ छोटयित्वा त्वया दृश्यः कर्पूरोऽस्ति मनोरमः॥ ही इति शिक्षा स्वयंढत्वा, प्रेषितोऽसौ महीभुजा // मंत्री तथैव चक्रे तमस्म कर्पूरतां गतम्।। - राज्ञा समानितोऽत्यंत, राजकार्य विधाय सः॥ निजंपुरं समागत्य, प्रणनाम नरेश्वरम् // विस्मितोऽपि हृदि मापः, स्वरूपं विनिवेदयत् // पुनर्थ्यात्वा तमादिक्षल्लिखित्वा लेखमात्मना 76 // पुरे हेमपुरे हेमकुंभो भूपः सुहृन्मम // तस्मै लेखं प्रदायेति, वाच्यं वाच्यः स्वयं त्वया // -RACTICOACT For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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