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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समिंद्राणी च सूर्याणी, ब्रह्माणी पस्मेश्वरी // पंडितस्तां च तुष्टाव, बभाषे साचतं प्रति // गुण रेहारं चोरयित्वात्र, निषण्णोऽसि ममाग्रतः // तांबूलं क्षिपसि स्वैरं, वीक्ष्यतां किं करोम्यहम् // चरित्र. // 73 // चोस्तिो न मया हारो, वर्तते परमेश्वरि // सावर ज्ञानेन पश्यामि, किं त्वदुक्तेन दुष्ट रे।। स प्रोचे यदि ते ज्ञानं, वर्तते देवि चंडिके // तदा मे संशयच्छेदं, कृत्वा कुर्यायेथारुचि // कःसंशयः इति प्रोक्ते, स प्रोचे शृणु चंडिके। पिता पुत्र उभौ मार्गे, चेलतुःप्रीतिशालिनौ / तौ विलोक्य पदन्यासं, नार्योरन्योन्यमूचतुः।। एका नीचा परात्युच्चा,तन्मार्ग बजतः स्त्रियोः / पुत्रप्रोवाच नीचा मे, प्रोचा भवतु ते पितः। अन्योन्यमिति जल्पंती, तो ते ददृशतुः स्त्रियो नीचा पुत्रेण चानीता, प्रोच्चा तु जनकेन सा // ते चताभ्यां कृते भार्ये, प्रोमा पुत्री परा प्रसू।। | तेषां च तदपत्यानां, संबंधः किमजायत // इति मे संशयं मिंधिज्ञानं चेत्तव वर्त्तते // / तस्यां तदुत्तरं देव्यां, वितयंत्यां गता निशा ॥अथो कैलासमाप्तायां, प्रभातं च ततोऽभवत् / # भूपालस्तूर्णमागत्योद्धाव्य तालकमादरात् // स्तुतं देवतां प्रेक्ष्य, पंडितं प्रीतिमाप मः // 7 // खगृहे सोत्सवं प्रेष्य, पंडितं भूपतिययौ / दिने तृतीये तं हारमर्पयामास स स्वयम् / / -460-4044100-40 4 For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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