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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 लक्ष्मीचंदस्तमायांवं, श्रुत्वा सबलवाहनः॥ चचाल करवालेन, भूषयन दक्षिणं करम् // 242||3| गुण देशसंधी समागत्य, लक्ष्मीचंद्रे स्थिते सति / पुष्पकेतुरपि प्राप्तस्तत्र शत्रुत्वसादरः।।२४३॥ चरित्र / 101) / विधातुमक्षमे संधि, मंत्रिवर्गद्वयोर्बलम् // डुटोके द्वंद्वयुद्धाय, शस्त्रझात्कारकारकम् // 24 // त्रासिता वैरिभिः सर्वे, लक्ष्मीचंद्रभटाः क्षणात् / / क्षत्रियः क्षत्रियो नूनं, वणिगेव वणिक् पुनः।। एवं हसत्सु क्षत्रेषु, लक्ष्मीचंद्रे तदाकुले॥ नागदत्तामरोऽज्ञासीदवधिज्ञानवानिदम् // 24 // तत्कालं स समागत्य, मित्रसांनिध्य हेतवे // संक्रम्य तच्छरीरे च, शमयामास वैरिणः // शृगालीव वनाधीशानष्टवा रे कुत्र यास्यथ।मान्यां मन्यधमस्याज्ञां, यदि वोजीवितं प्रियम्।। इत्याकर्ण्य नभोवाचं, पुष्पकेतु दे॒पस्तदा / / प्राभृतेन समागत्य, लक्ष्मीचंद्रमतृतुषत् // 24 // लक्ष्मीचंद्रस्ततस्तेन, साकं नागपुरं ययौ // ज्ञापयित्वोपकारं च, नागदत्तामरो दिवम् // पकेतुं नृपं प्रेष्य, सकुटुंबो महीपतिः॥ स राज्यं पालयामास, तत्र नागपुरे पुरे // 25 // * इतश्च सिंहतिलकज्ञानवन्मुनिपुंगवाः // तत्रायाताः स तानतुं, जगाम सपरिच्छदः // 252 // 101 / श्रुत्वोपदेशं पप्रच्छ, निजराज्यस्य कारणम् / / मुनिः पूर्वभवं प्रोचे, नगरे हस्तिनापुरे // For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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