________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir o मुनि नत्वा गृहं गत्वा, दत्वा राज्यं स्वसूनवे॥ प्रपाल्य संयमं प्रांते, सौधर्म त्रिदशोऽभवत् / गुण० चिरं सुखान्यसौ भुंक्त्वा, देवलोकात्ततश्चयुतः।। तनयस्तव संजातो, दशमोऽयं दशाननः चरित्र. // 9 // // इति आभरणपूजायां कनकामकथा / NOH044 कृतं पुष्पगृहं येन, जिनेंदोस्तत्फलं ब्रुवे // अस्त्यत्र भरतक्षेत्रे, पुरी पुष्पकरंडिनी // 199 // पुष्पकेतुर्महीपालस्तस्य पुष्पावती प्रिया॥ तत्र श्रेष्ठी गुणाधारो, लक्ष्मीसागरइत्यभूत् // तस्य लक्ष्मीवतीकांताकुक्षिकासारपंकजम् // हेमामात्माभवत्पुत्रो, लक्ष्मीचंद्र इति स्मृतः // शिवकांतामसौ कन्यां, यौवने परिणीतवान्। लोलया गमयामास, समयं सममेतया // / भ्रमद्भमरझंकारं, किल सौरभ्यसुंदरम् // विना पुष्पगृहं नासो, निद्रां प्राप कदाचन // सोऽन्येयुः पितुरादेशात, पुरं नागपुरावयम्॥ सार्थेन महता प्राप्तो, व्यवसायविशारदः // तत्रासौ भांडशालायां, स्थितो द्रव्यमुपार्जयन् // क्रीणानश्च ददानश्च, क्रयाणकशतान्यपि अन्यदासौ स्थितस्तत्र, नगरे पटहध्वनिम् // श्रुत्वा पप्रच्छ तत्रत्यं, कंचित् किमिह कारणम् // // 9 // For Private and Personal Use Only