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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | नलस्य दमयंत्याश्च, चरित्रं शुश्रुवेऽन्यदा // वीरमत्या जिनेंद्रेभ्यस्तिलकान्युपनिन्यिरे // * पुण्येन तिलकं तेन, दमयंत्या भवेऽभवत् / / श्रुत्वेति नव्यतीर्थेषु, सार्हद्भयस्तिलकं ददौ॥ चरित्र // 9 // समये शुभभावेन, मृत्वा सामरसुंदरी // संजाता तिलकं तेन, दृश्यतेऽस्या ललाटगम् // पुत्रं वीक्ष्य मुनिः स्माहादत्तकन्यासु नोचितम् / / मनो विधातुं दक्षाणां, परदारेषु किं पुनः इति श्रुत्वा पितुर्वाचं, खेचरस्तां ननाम सः // बंधोराशीर्वचस्तस्मै, ददौ सापि विचक्षणा | पुण्योपदेशं श्रुत्वा ते, तत्र भूचरखेचराः // समुत्थितास्ततश्चक्रुस्तयोः पाणिग्रहोत्सवम् // शृंगारतिलके दृष्ट्वा, ताभ्यां नाम्नी जना ददुः // एषः शृंगारसारोऽस्तु, परा तिलकसुंदरी अयं मुनिद्वयं नत्वा, चंद्रचूडसमर्पितम् // ययौ विमानमारूढः, सप्रियः ससुहृत् पुरम् // महोत्सवैर्गृहं गत्वा, पितृपादौ ननाम सः // समं तिलकपुंदर्या, मातुः क्रमयुगेऽपतत् // समये पृथिवीं तस्मै, दत्वा भूपः परासुताम् // प्राप निःपापधीरेष, तत्र राज्यमपालयत् // ॐ ज्ञानिनस्तत्र संप्राप्ताः, श्रीधर्मव्रतसूरयः // भूपः सपरिवारोऽपि, तान् गत्वा प्रणनाम सः // // 26 // / उपदेशमयं शांतरसोपेतं सुधामयम् / / पीत्वा वैराग्यमापन्नोऽभवत्संयमसादरः // 196 // For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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