________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जय त्वं पृथिवीनाथ, परीक्षेयं कृता मया।गृहाणैतानि पुष्पाणि कुरुपूजां जिनेशितुः 71 / / गुणा पूजां कृत्वा च भुक्त्वा च, नृपो यावत्सुखं स्थितः॥तावनागेनबद्धोऽरिनागपाशै समागतः॥ चरित्र. // 5 // मानयित्वा निजामाज्ञां, स भूपेन विमोचितः॥ ततो ययौ निजं स्थानं, महोत्सवपुरस्सरम् // पालयित्वा चिरं राज्यं, प्रांते दत्वा स्वसूनवे ॥गुरोःसंयममाप्यासो, सौधर्मत्रिदिवं ययौ७४ सुखान्यसो चिरं भुक्त्वा, देवलोकात्ततव्युतः // पंचमः पद्मनामाभूतनयस्ते नरेश्वर // 7 // // इति पुष्पपूजाधिकारे लक्ष्माधरकथा / ROHODE 200NOOX * माल्यपूजा कृता येन, फलं तस्य निगद्यते॥ भरतक्षेत्रमध्येऽस्त्ययोध्यानाम महापुरी // 76 // | श्रीदत्तो नृपतिस्तत्र, श्रीमती तस्य च प्रिया ॥धनेशो माल्यपूजाकृत्तत्कुक्षौ समवातरत् 77 दोहदावरे तस्या, माल्यतल्पे सुखं शये // इत्यभूदोहदः सोऽपि, ज्ञापितः पृथिवीभुजे 78 | आशमिका नृपादिष्टा, माल्यानयनहेतवे // प्रोविरे देव निर्दग्धं, हिमेन सकलं वनम् 79 // 5 // चेन प्रतीतिस्तमृत्यैर्निजैरेव निरीक्षताम् / तथैव कृत्वा भूपालश्चित्ते चिंतातुरोऽभवत् 80 For Private and Personal Use Only