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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / राजा दधौ निजोत्संगे, तं रंगेण मनोहरम् // मूर्तिमंतमिवानंद, वस्त्राभरणभासुरम् // 11 // गुण याचमानस्य पुष्पाणि, दीयमानानि पश्यतः॥ कुमारस्य करे पुष्पयुग्मं लक्ष्मधरोऽमुचत् / / चरित्र. // 52 // 4 आजिनन् पुनरेतानि, कुसुमानि ययाच सः।। अन्याघ्रातानि तान्येष,दीयमानानिना ददे // 13 एतज्जातीयपुष्पाणि, नव्यान्येव प्रयच्छ मे // इत्यगृह्णति पुत्रे च, नृपो लक्ष्मीधरं जगौ॥ | कुतस्त्वया समानीतान्येतान्येष नृपं जगौ // चतुष्पथादिति श्रुत्वा. भूपो भृत्यानभाषत 15 / / गत्वा भो यत्रतत्राप्यारामिकाणां चतुष्पथे।आनीय दत्त पुष्पाणि. पाणी मे तनुजन्मनः / / | परिभ्रम्य समायातास्ते पोचुनृपतिं प्रति ॥न लब्धान्येव पुष्पाणि. सर्वतःशोधितान्यपि // तदा वाढतरं बालः, पारेभे कुसुमाग्रह // नामुक्त भोज्यमादत्त, न फलं न जलं पपौ // 11 // तस्य मातापि मंतापानामुक्त सपरिच्छदा !! राजापि दुःखितो दध्यावहो बालकदाग्रहः 19 भूपोऽथ मंत्रिणं प्राह, येनानीतानि मूलतः।ततःस्वरूपं विज्ञाय, पुष्पाण्यानय सत्वरम् 20 ततो मंत्री नृपादेशादारामिकचतुष्पथे। पप्रच्छारामिकान सर्वास्तेषामेकस्त्विदं जगौ 21 // 12 // - आरामिकः समायातः, प्रातरेव पुनर्गतः। प्रत्यासन्ने वसत्येष, ग्रामे सुग्रामनामनि // 22 // For Private and Personal Use Only
SR No.020361
Book TitleGunvarma Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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